Swami Vivekananda Biography in hindi | स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय, जीवनी

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“जागो, उठो,  और तब तक रुको मत जब तक तुम लक्ष्य की प्राप्ति न कर लो।“

-स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद भारतीय वैदिक एवं सनातन संस्कृति के सच्चे प्रहरी एवं वाहक थे । वे एक ऐसे पुरोधा थे जिन्होंने भारतीय संस्कृति, सनातन धर्म और वैदिक परंपराओं से संपूर्ण विश्व का परिचय कराया।

स्वामी विवेकानंद जी साहित्य, वेद और इतिहास के क्षेत्र में पूरी तरह निपुण थे। स्वामी जी का जन्म कलकत्ता के एक बहुत कुलीन परिवार में हुआ, उनका वास्तविक नाम नरेंद्र नाथ दत्त था।

किशोरावस्था के बाद वह स्वामी रामकृष्ण परमहंस के संपर्क में आए और यही से सनातन धर्म की ओर उनका झुकाव होने लगा ।

स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी से मिलने से पूर्व वे एक सामान्य व्यक्ति थे, स्वामी रामकृष्ण ने अपने सानिध्य में रखकर विवेकानंद जी के अंदर ज्ञान की एक ज्योत जलाई।

स्वामी विवेकानंद जी को शिकागो अमेरिका में 1893 में आयोजित विश्व धर्म महासभा में दिए गए उनके भाषण के लिए एक प्रमुख पहचान मिली ।

स्वामी जी के अमेरिका जाने से पूर्व हमारे देश को गुलामों और अज्ञानियों की तरह माना जाता था परंतु विवेकानंद जी ने संपूर्ण विश्व को जगतगुरु भारत की आध्यात्मिक शक्ति से परिचित कराते हुए वेदांत का दर्शन कराया।

दोस्तों, आज की इस पोस्ट स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय, जीवनी | Swami Vivekananda Biography in hindi में हम विराट व्यक्तित्व व भारतीय सनातन और वैदिक सभ्यता का गूढ़ ज्ञान रखने वाले महापुरुष व महान संत स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय, जीवनी के बारे में विस्तार से जानेंगे।

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय इन हिंदी

बिन्दु जानकारी
नामस्वामी विवेकानन्द
वास्तविक नाम (Real Name )नरेंद्रनाथ दत्त
जन्म12 जनवरी 1863
जन्म स्थलकलकत्ता ( प0 बंगाल )
पिता का नाम विश्वनाथ दत्त
माता का नाम भुवनेश्वरी देवी
शिक्षास्नातक ( 1884 )
पत्नी का नाम अविवाहित रहे
पेशाआध्यात्मिक गुरु
संस्थापक रामकृष्ण मठ , रामकृष्ण मिशन
प्रसिद्धि का कारणअमेरिका व यूरोपीय देशों में हिन्दू दर्शन के सिद्धांतों का प्रचार-प्रसार
मृत्यु 4 जुलाई 1902, बेल्लूर मठ, बंगाल रियासत, ब्रिटिश भारत ( वर्तमान प0 बंगाल राज्य )
मृत्यु के समय आयु उम्र 39 वर्ष
गुरु का नाम रामकृष्ण परमहंस
दर्शन राज योग , आधुनिक वेदान्त
साहित्यिक कृति राज योग, कर्म योग, भक्ति योग, मेरे गुरु , अल्मोड़ा से कोलंबो तक दिए गए व्याख्यान
महत्वपूर्ण कार्यन्यूयॉर्क में वेदांत सिटी की स्थापना करना, कैलिफोर्निया में शांति आश्रम की स्थापना, अल्मोड़ा ( भारत ) के पास “अद्वैत आश्रम” की स्थापना
सर्वप्रिय वचन ” जागो, उठो, और तब तक रुको मत जब तक तुम लक्ष्य की प्राप्ति न कर लो।“
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Table of Contents

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय, जीवनी, इतिहास | Swami Vivekananda Biography in hindi, History

स्वामी विवेकानंद वेदांत के सर्वकालिक प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु थे। स्वामी विवेकानंद का वास्तविक नाम नरेंद्र नाथ दत्त था । स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण मिशन की भी स्थापना की। स्वामी जी रामकृष्ण परमहंस के सर्वाधिक योग्य शिष्य थे ।

सन् 1893 में अमेरिका के शिकागो में आयोजित विश्व धर्म महासभा में स्वामी विवेकानंद जी ने भारत की और से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया ।

इस सम्मेलन में स्वामी जी के हृदय को छू लेने वाले संबोधन “मेरे अमेरिकी भाइयों एवं बहनों” के लिए उन्हें आज भी याद किया जाता है, उनके इसी संबोधन वाक्य ने सभी लोगों का दिल जीत लिया था ।

 स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय
स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय

स्वामी विवेकानंद का जन्म एवं पारिवारिक परिचयSwami Vivekananda Birth  & Family Introduction

स्वामी विवेकानंद ( Swami Vivekananda) जी का जन्म 12 जनवरी 1863 को तत्कालीन कलकत्ता के गौर मोहन मुखर्जी नामक स्ट्रीट में एक उच्च कुलीन कायस्थ परिवार में हुआ था। इनका बचपन का नाम नरेंद्रनाथ दत्त था, ।

इनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था, वे कलकत्ता हाईकोर्ट के मशहूर वकील थे, वह कलकत्ता के उच्च न्यायालय में एटार्नी-एट-लॉ (Attorney-at-Law ) के पद पर कार्यरत थे ।

इनकी माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था जो विशुद्ध धार्मिक विचारों, एवं धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं , इनकी माता का अधिकांश समय भगवान शिव की पूजा में व्यतीत होता था।

नरेंद्र के पिता पश्चिमी सभ्यता में विश्वास रखते थे अतः वह इन्हें भी अंग्रेजी की शिक्षा देकर पाश्चात्य सभ्यता के रंग में रंगा देखना चाहते थे।

परन्तु घर के धार्मिक माहौल के कारण उनका झुकाव बचपन से ही आध्यात्म की ओर हो गया था और उनकी ईश्वर को प्राप्त करने की लालसा भी प्रबल हो गई थी ।

इसी उद्देश्य के लिए वे ‘ब्रह्म समाज’ गए , परंतु वहां वे संतुष्ट नहीं हुए । वे भारत की ओर से वेदांत और योग शिक्षा का पाश्चात्य देशों में प्रचार प्रसार करना चाहते थे।

दुर्भाग्यवश नरेंद्र के पिता की मृत्यु हो गई, और घर की समस्त जिम्मेदारी नरेंद्र पर आ गई । इनके घर की माली हालत बहुत खराब हो गई थी, परंतु दरिद्रता की स्थिति में ये आतिथ्य से मुंह नहीं मोड़ते थे, तथा पूर्ण भक्ति भाव से आतिथ्य धर्म निभाते थे ।

स्वामी जी ने पूर्णरूपेण अपना जीवन अपने गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस जी को समर्पित कर दिया था।

अपने गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस जी के अंतिम दिनों में ये अपने परिवार की दयनीय आर्थिक स्थिति, व स्वयं के खाने-पीने की चिंता के बगैर अपने गुरु की सेवा में जुड़े रहे, क्योंकि उनके गुरु का शरीर बहुत रूग्ण तथा कमजोर हो गया था।

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स्वामी विवेकानंद सही मायने में भविष्य दृष्टा थे इसी कारण उन्होंने भविष्य के सुंदर समाज की कल्पना की थी ….और वो कल्पना थी एक ऐसे समाज की जिसमें जाति, धर्म और भाषा के आधार पर मनुष्यों में कोई भेद ना हो ।

बालक नरेंद्र का बचपन – Childhood of Narendra

बालक नरेंद्र अपने बाल्यकाल से ही शरारती व कुशाग्र बुद्धि के थे , इनकी स्मरणशक्ती अलौकिक थी और अध्ययन में ये विलक्षण थे, ऐसा कहा जाता है कि वे किसी भी किताब को मात्र एक बार पढ़ कर कंठस्थ कर लेते थे ।

वे न सिर्फ सहपाठियों के साथ शरारत करते बल्कि अध्यापकों के साथ भी शरारत करने से बाज नहीं आते ।

नरेंद्र की मां धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी अतः उन्हें रामायण, महाभारत, पुराण आदि की कथा सुनने का अत्यंत शौक था , वे प्रतिदिन पूजा पाठ करती थी, और बालक नरेंद्र को रामायण महाभारत की कहानियां सुनाती थी अतः इनके घर का माहौल बहुत अध्यात्मिक था

घर का माहौल आध्यात्मिक व धार्मिक होने के कारण व माँ के सानिध्य में रहने के कारण बालक नरेंद्र के मन पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा और बचपन से ही वे ईश्वर की पूजा अर्चना करने लगे तथा ईश्वर को जानने व उनको प्राप्त करने की तीव्र उत्कंठा उनके मन में जागृत हो गई ।

कभी-कभी वह अपने घर में ही ध्यान में मगन हो जाया करते थे। साधु सन्यासियों की बातों से उन्हें बड़ी प्रेरणा मिलती थी, कभी कभी भी उनसे ऐसे प्रश्न पूछते कि वे आश्चर्यचकित रह जाते, क्योंकि उनके पास भी उनके प्रश्नों का कोई जवाब नहीं होता था।

स्वामी विवेकानंद का शैक्षिक सफर – Swami Vivekananda Education

1871 में बालक नरेंद्र नाथ का ईश्वर चंद विद्यासागर के मेट्रोपॉलिटन संस्थान में दाखिला कराया गया था। 1881 में उन्होंने ललित कला की परीक्षा पास की, और 1884 में उन्होंने स्नातक कर लिया और उसके बाद उन्होंने वकालत की पढ़ाई भी की ।

स्वामी जी की धर्म, दर्शन, इतिहास और सामाजिक विज्ञान आदि विषयों में विशेष रूचि थी, उन्होंने गीता, रामायण, वेद , उपनिषद व हिंदू शास्त्रों को बड़ी दिलचस्पी के साथ पड़ा था, अतः वे इन शास्त्रों के अच्छे ज्ञाता थे ।

स्वामी विवेकानंद ने आगस्ट कॉम्टे, जॉन स्टूअर्ट मिल, चार्ल्स डार्विन, इमानुएल कांट, डेविड ह्यूम, आर्थर स्पेंसर आदि को भी पढ़ा था ।

स्वामी विवेकानंद जी General Assembly Institution में यूरोपीय इतिहास का भी अध्ययन कर चुके थे । उन्हें बंगाली भाषा का भी अच्छा ज्ञान था।

उन्होंने आर्थर स्पेंसर की पुस्तक एजुकेशन का बांग्ला भाषा में अनुवाद भी किया वे स्पेंसर, जॉन स्टूअर्ट मिल और डेविड ह्यूम से बहुत प्रभावित थे ।

नरेंद्र देव से स्वामी विवेकानंद बनने का सफर – Journey : From Narendradev to Swami Vivekananda

दोस्तों Swami Vivekananda Biography in hindi में हम आपको स्वामी जी के सम्पूर्ण जीवन यात्रा के बारे में बता रहे हैं – लगभग 25 वर्ष की उम्र में ही स्वामी विवेकानंद ने घर को त्याग कर संयास लेने का निश्चय किया, और धर्म की पताका विश्व में चारों ओर फैलाने का लक्ष्य निर्धारित किया ।

विद्यार्थी जीवन के दौरान उनकी मुलाकात ब्रह्म समाज के प्रमुख सदस्य व नेता महर्षि देवेंद्रनाथ से हुई थी, उन्होंने देवेंद्र नाथ जी से प्रश्न पूछा कि – ” क्या आपने ईश्वर को देखा है ?”

विवेकानंद के इस प्रश्न पर महर्षि देवेंद्र नाथ निरुत्तर हो गए, तब उन्होंने नरेंद्र की जिज्ञासा को संतुष्ट करने हेतु उन्हें स्वामी रामकृष्ण परमहंस के सानिध्य में जाने की सलाह दी थी।

स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी दक्षिणेश्वर में स्थित काली मंदिर के प्रमुख पुजारी थे। विवेकानंद जी को रामकृष्ण परमहंस जी की असीम कृपा प्राप्त हुई।

और उन्हें आत्मज्ञान प्राप्त हुआ, और कालांतर में वे उनके सर्वप्रिय शिष्य बन गए, और उनके बताए मार्ग पर चलने लगे ।

परमहंस जी के साथ रहते हुए विवेकानंद उनसे इस कदर प्रभावित थे कि उनके मन में अपने गुरु के प्रति आदर और श्रद्धा बलवती होती गई ।

1885 में स्वामी रामकृष्ण परमहंस कैंसर की बीमारी से पीड़ित हो गए, उन दिनों विवेकानंद जी ने गुरुजी की तन मन से सेवा की ।

गुरु के प्रति निष्ठा व सेवाभाव – Devotion and Service to the Guru

अपने गुरु परमहंस जी की बीमारी के दिनों में जब विवेकानंद जी पूर्ण श्रद्धा से सेवा किया करते थे तब एक बारअन्य शिष्य ने उनके इस सेवा भाव पर घृणा दिखाई।

उसके ऐसे व्यवहार को देखकर विवेकानंद जी को बहुत क्रोध आया । स्वामी जी ने उस गुरुभाई को शब्दों में कुछ नहीं कहा परंतु अपने व्यवहार से उसे जीवन का एक नया सबक सिखाया।

स्वामी जी अपने गुरु जी के बिस्तर के आसपास खून, थूक आदि से भरी थूकदानी को उठाकर साफ करते, उनकी प्रत्येक वस्तु को साफ करते और उसके प्रति प्रेम दर्शाते।

स्वामी जी की अपने गुरु के प्रति अनन्य भक्ति तथा सेवा भावना के कारण ही वे अपने गुरु के उच्चतम आदर्शों व उनके भौतिक शरीर की सर्वोत्तम सेवा कर सके ।

गुरु के प्रति अनन्य सेवा भाव के कारण ही उन्होंने अपने गुरु के विराट व्यक्तित्व को समझा जाना, और अपने सर्वस्व को गुरु के महान स्वरूप में विलीन कर दिया। कैंसर की बीमारी के चलते 16 अगस्त 1886 को स्वामी रामकृष्ण परमहंस का निधन हो गया ।

स्वामी विवेकानंद द्वारा रामकृष्ण मठ की स्थापना-Establishment of Ramakrishna Math

अपने गुरु परमहंस जी की मृत्यु के तुरंत बाद ही नरेंद्र देव ने परमहंस जी की स्मृति में 1886 में कलकत्ता से 3 किलोमीटर की दूरी पर बारानागौर में रामकृष्ण संघ की स्थापना की।

बाद में 1899 में इसे कलकत्ता से 6 km. दूर गंगा के पार बेल्लूर ( वर्तमान स्थल ) ले जाया गया और इसे रामकृष्ण मठ कहा जाने लगा ।

नरेन्द्रनाथ ने रामकृष्ण मठ की स्थापना के बाद ब्रह्मचर्य व्रत धारण कर लिया और फिर वे नरेंद्र से स्वामी विवेकानन्द बन गए ।

पैदल भारत भ्रमण पर स्वामी विवेकानन्द – Swami Vivekananda on foot Tour of India

मात्र 25 वर्ष की आयु में ही स्वामी विवेकानन्द जी ने गेरुआ वस्त्र धारण कर लिए और भारत की पैदल यात्रा पर निकाल पड़े ।

उन्होंने भारत भ्रमण करते हुए हिमालय से कन्याकुमारी तक पैदल यात्रा की । अपनी पदयात्रा के दौरान उन्होंने आगरा, वाराणसी, वृंदावन, अयोध्या समेत कई प्रमुख नगरों का भ्रमण किया ।

अपनी यात्रा के दौरान Swami Vivekananda अमीर-गरीब सभी लोगों से मिले , अलग-अलग क्षेत्रों की कुरीतियों, विभिन्न प्रकार के भेदभाव का भी उन्हें ज्ञान हुआ, जिसे दूर करने के उन्होंने प्रयास भी किये ।

30 दिसंबर 1892 को स्वामी जी कन्याकुमारी पहुंचे जहां उन्होंने समुद्र के भीतर एक चट्टान के ऊपर 3 दिनों तक समाधि ( ध्यान ) ली, और भारत के भूतकाल और भविष्य के बारे में गहन चिंतन किया ।

शिकागो विश्व धर्म सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व – Representation of India in Chicago World Conference of Religions

11 सितंबर 1893 को अमेरिका के शिकागो में “विश्व धर्म सम्मेलन” का आयोजन हुआ जिसमें स्वामी विवेकानंद जी ने भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए प्रतिभाग किया व अपने ओजस्वी और सारगर्भित भाषण से सबको हतप्रभ् कर दिया ।

स्वामी जी के शिकागो धर्म सम्मेलन में प्रतिभाग करने की कहानी –

दोस्तों स्वामी जी ने शिकागो विश्व धर्म सम्मेलन में प्रतिभाग क्यों और कैसे किया इसके पीछे एक कहानी है, तो आइए इस लेख के माध्यम से जानते हैं उस कहानी के बारे में –

ऐसा माना जाता है कि गुजरात के काठियावाड़ में रहने वाले लोगों ने सर्वप्रथम स्वामी जी को विश्व धर्म सम्मेलन में प्रतिभाग करने का सुझाव दिया था उसके बाद चेन्नई में रहने वाले उनके शिष्यों ने भी उनसे विनती की।

स्वामी जी ने स्वयं लिखा था तमिलनाडु के राजा भास्कर सेतुपति ने सर्वप्रथम स्वामी जी के सामने यह विचार रखा और उसके बाद स्वामी जी कन्याकुमारी पहुंच गए थे।

दोस्तों, यह बात जानकर शायद आपको भी बेहद हैरानी होगी कि स्वामी जी तैर कर समुद्र के बीच स्थित चट्टान पर पहुंचे जिसे आजकल “विवेकानन्द रॉक” कहा जाता है।

ऐसा कहा जाता है कि उस चट्टान पर उन्होंने 3 दिन तक भारत के भूतकाल और भविष्य के बारे में गूढ़ता से मनन किया ।

स्वामी जी के शिकागो जाने के लिए उनके शिष्यों ने इकट्ठा किया था धन –

स्वामी जी के चेन्नई लौटने तक उनके शिष्यों ने उनके शिकागो जाने के समस्त इंतजाम कर दिए थे, उन्होंने मिलकर इस कार्य के लिए धन जुटाया था परंतु स्वामी जी ने उनसे कहा- “जमा किया हुआ सभी धन गरीबों में बांट दिया जाए ।”

सपने ने दिया धर्म सम्मेलन में जाने हेतु मार्गदर्शन –

एक बार स्वामी जी ने एक सपना देखा, उसमें उन्होंने देखा कि उनके गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस जी समुद्र पार जा रहे हैं तथा उन्हें भी अपने पीछे आने का इशारा कर रहे हैं।

स्वामी जी ने इस सपने की सच्चाई जानने के लिए गुरुमाता शारदा ( स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी की पत्नी ) से मार्गदर्शन देने के लिए कहा।

3 दिन इंतजार कराने के बाद मां शारदा ने विवेकानंद जी के गुरु भाई से कहा कि उनके गुरु की यह इच्छा है कि विवेकानंद विदेश जाएं ।

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क्यों हुआ था धर्म सम्मेलन – Why was the Religious Convention Held

कोलंबस द्वारा अमेरिका की खोज के 400 वर्ष पूरे होने पर 1893 में अमेरिका में आयोजित होने वाले एक विशाल विश्व मेले का हिस्सा था ‘विश्व धर्म सम्मेलन’ ।

मिशीगन झील के किनारे 1037 एकड़ जमीन पर आयोजित इस विशाल मेले में लगभग 2.75 करोड़ लोग आए थे।

इस मेले को घूमने के लिए प्रतिदिन लगभग डेढ़ लाख से अधिक लोग पहुंचते थे और पूरे मेले को घूमने के लिए किसी व्यक्ति को लगभग 150 मील चलना पड़ता था।

भाषण देने ट्रेन से शिकागो पहुंचे थे स्वामी जी –

स्वामी विवेकानंद जी 31 मई 1893 को बंबई से यात्रा प्रारंभ करके याकोहामा सेएम्प्रेस ऑफ इण्डिया” नाम के जहाज से बैंकुवर पहुंचे, और फिर बैंकुवर से ट्रेन द्वारा शिकागो भाषण देने पहुंचे ।

विश्व धर्म सम्मेलन के मंच पर स्वामी विवेकानन्द –

प्रारंभ में उपस्थित लोगों ने यह प्रयास किया कि स्वामी जी को उस मंच पर अपने विचार रखने का समय ही ना मिले।

स्वामी जी के गेरुआ वस्त्र एवं पगड़ी का पहनावा देखकर वहां उपस्थित लोग उपेक्षा पूर्ण नजरों से देख रहे थे।

मानों उन्हें लगता था कि गेरुआ वस्त्र धारण किए यह सन्यासी विश्व धर्म सम्मेलन के इस मंच पर धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलने वाले वक्ताओं के बीच क्या बोल पाएगा ।

उस सम्मेलन में अपनी बारी आने पर जैसे ही मंच पर पहुंचकर स्वामी जी ने अपनी ओजस्वी वाणी में उपस्थित लोगों को संबोधित किया और कहा – “मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों” उसी क्षण समस्त सभागार में हर तरफ तालियों की आवाज कुछ मिनट तक गूँजती रही।

शिकागो में आज से 128 वर्ष पूर्व स्वामी जी द्वारा दिए गए भाषण पर हम सब आज भी गर्व करते हैं, यह एक ऐसा भाषण था जिसने विश्व मंच पर भारत के आध्यात्मिक ज्ञान और उसकी अतुल्य विरासत का डंका बजा दिया ।

शिकागो सम्मेलन में स्वामी विवेकानन्द शून्य पर ही क्यों बोले –

बहुत कम लोग ही यह बात जानते हैं कि शिकागो धर्म सम्मेलन में स्वामी जी ने शून्य पर ही भाषण क्यों दिया ? तो आइए हम आपको इस लेख में बताते हैं इसके पीछे की कहानी जो वास्तव में बेहद दिलचस्प कहानी है –

स्वामी जी जब सम्मेलन में प्रतिभाग करने शिकागो पहुंचे तो वहां के आयोजकों ने ( जो उन्हें परेशान करना चाहते थे ) उनके नाम के आगे एक बड़ा शून्य लिख दिया था।

ऐसी जानकारी मिलती है कि Swami Vivekananda जी जब भाषण देने के लिए खड़े हुए तो उनके सामने दो पेड़ों के बीच एक सफेद कपड़ा बांधा हुआ था।

उस कपड़े पर बीच में एक बड़ा शून्य बना था , स्वामी जी उस दृश्य को देखकर तुरंत सारी बात समझ गए, इसी कारण से वहां उन्होंने शून्य से ही अपने भाषण की शुरुआत की।

उसके बाद विवेकानन्द जी ने अपने भाषण को आगे बढ़ाते हुए भारतीय सनातन एवं वैदिक संस्कृति के बारे में अपने विचार प्रस्तुत किए, उनके इन्हीं विचारों से न केवल अमेरिका अपितु समस्त विश्व में स्वामी जी के साथ-साथ भारत का भी सम्मान बढ़ गया ।

विश्व धर्म सम्मेलन में स्वामी जी द्वारा दिया गया उनका यह भाषण दुनिया के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा गया, और हमेशा हमेशा के लिए अमर हो गया।

शिकागो की धर्म संसद के आयोजन के बाद स्वामी विवेकानंद जी अमेरिका में 3 वर्षों तक रहे और उन्होंने वेदांत की शिक्षाओं का प्रचार प्रसार किया ।

इस दौरान अमेरिका की प्रेस ने स्वामी जी को “Cyclonic Monk from India” का नाम दिया । स्वामी जी रामकृष्ण परमहंस की जीवनी लिखने वाले ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के मैक्स मूलर से भी 1896 में मिले।

15 जनवरी 1897 को स्वामी जी श्रीलंका पहुंचे वहां के लोगों ने उनका बड़ी गर्मजोशी से स्वागत किया ।

स्वामी जी द्वारा रामकृष्ण मिशन की स्थापना – Establishment of Ramkrishna Mission

स्वामी विवेकानंद ने कलकत्ता वापस लौट कर 1 मई 1897 को रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, रामकृष्ण मिशन का मुख्यालय बेलूर मठ ( हावड़ा ) पश्चिम बंगाल में स्थित है । कालांतर में रामकृष्ण मिशन ने समाज सेवा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य किए ।

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इस मिशन का प्रमुख उद्देश्य एक नए भारत के निर्माण के लिए देश में स्कूल, अस्पताल , कॉलेज आदि का निर्माण व स्वच्छ समाज की स्थापना था । इसके अतिरिक्त स्वामी जी ने बेलूर मठ व दो अन्य मठों की स्थापना की थी।

स्वामी जी की प्रतिभा से न सिर्फ भारत बल्कि समस्त यूरोपीय देश और अमेरिका भी बहुत प्रभावित थे, इस समय तक स्वामी जी देश के नौजवानों के लिए आदर्श बन चुके थे ।

स्वामी विवेकानन्द जी से जुड़ा एक प्रेरक प्रसंग –

इस पोस्ट में हम आपको स्वामी जी से जुड़ा एक प्रसंग बताने जा रहे हैं – स्वामी विवेकानन्द की ख्याति को सुनकर एक बार एक विदेशी महिला उनके पास आई और स्वामी जी से बोली ” मैं आपसे विवाह करना चाहती हूं”।

महिला के प्रस्ताव को सुनकर स्वामी जी ने महिला को जवाब दिया-“देवी, मैं तो ब्रह्मचारी हूं, मैं आपसे विवाह कैसे कर सकता हूं ?”

शायद  वह स्त्री  स्वामी विवेकानन्द जी के विराट व्यक्तित्व व उनके अनन्त ज्ञान भंडार से प्रभावित होकर उनसे विवाह करना चाहती थी जिससे कि उसको स्वामी जी के समान अलौकिक गुण व ज्ञान से समृद्ध पुत्र की प्राप्ति हो सके जो बड़े होकर समस्त विश्व में अपना ज्ञान फैलाए व नाम रोशन करें।

स्वामी विवेकानंद जी ने महिला को प्रणाम करके कहा – “हे माता, लीजिए आज से आप मेरी माता हैं , इस प्रकार आपको मेरे जैसा पुत्र भी मिल जाएगा और मेरे ब्रह्मचर्य का पालन भी हो सकेगा” स्वामी जी का यह जवाब सुनकर महिला उनके चरणों में गिर गई ।

दूसरी विदेश यात्रा पर स्वामी विवेकानन्द

स्वामी जी 20 जून 1899 को एक बार फिर अमेरिका गए वहाँ स्वामी विवेकानंद ने न्यूयॉर्क, डेट्राइट, शिकागो और बोस्टन में व्याख्यान दिए , साथ ही उन्होंने न्यूयॉर्क में “वेदांत सोसाइटी” और कैलिफॉर्निया में “शांति आश्रम” की भी स्थापना की ।

जुलाई 1900 में वे पेरिस गए जहां वे लगभग 3 माह तक रहे । इन्ही दिनों भगिनी निवेदिता उनकी शिष्या बनीं जो उनकी प्रमुख शिष्या थीं । 1901 में उन्होंने बोधगया व वाराणसी की भी यात्रा की थी ।

इन दिनों लगातार उनका स्वास्थ्य खराब ही होता चला जा रहा था, अब तक उन्हे डायबिटीज और अस्थमा जैसे रोगों ने बुरी तरह घेर लिया था ।

स्वामी विवेकानन्द जी की मृत्यु – Death of Swami Vivekananda

अपनी मृत्यु के समय स्वामी जी बेलूर मठ में थे, उस दिन उन्होंने पूजा अर्चना और योगा किया, सभी छात्रों को वेद ,संस्कृत आदि विषयों की शिक्षा दी।

सायं काल में वह अपने कमरे में योग करने गए और वही योग करते हुए उन्होंने महासमाधि लेकर इस नश्वर संसार से विदा ली ।

और केवल 39 वर्ष की अल्पायु में ही ज्ञान का यह अलौकिक पुंज अनंत में विलीन हो गया। स्वामी विवेकानंद जी के जन्मदिन को हमारे देश में “युवा दिवस” के रूप में मनाया जाता है ।

स्वामी विवेकानन्द के विचार/अनमोल वचन – Swami Vivekananda Quotes

विलक्षण प्रतिभा और ज्ञान के भंडार स्वामी विवेकानंद जी के विचार भी उनकी ही भांति विलक्षण व प्रभावशाली थे।

इस बात का अंदाजा हम इसलिए भी लगा सकते हैं कि 150 वर्षों से अधिक समय बीतने के बाद भी उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं , उनके कुछ ओजस्वी व अनमोल विचारों को हम आपके लिए नीचे लिख रहे हैं –

“चारित्रिक गठन इंसान की प्रथम आवश्यकता है।”

” सत्य हज़ार ढंग से प्रकट कीजिए,

हर ढंग सत्य को ही उजागर करेगा।”

“कोई कार्य महत्वपूर्ण नहीं होता,

महत्वपूर्ण होता है कार्य का उद्देश्य।”

“आत्मविश्वास सरीखा दूसरा मित्र नहीं।

आत्माविश्वास ही भावी उन्नति का मूल आधार है।”

” प्रसन्नता आपका अनमोल खजाना है,

छोटी-छोटी बातों पर उसे लुटने मत दीजिए।”

“जीवन का रहस्य भोग में नहीं,

 अनुभव के द्वारा शिक्षा प्राप्ति में है।”

“गति अथवा परिवर्तन जीवन का गीत है।”

“बल ही जीवन है और दुर्बलता मृत्यु।”

 “गुस्से का बेहतरीन इलाज खामोशी है।”

“प्रेम सदैव आनंद की अभिव्यक्ति करता है।

 इस पर दुख की तनिक भी छाया पड़ना सदैव शरीरप्रियता और स्वार्थपरता के चिन्ह हैं।”

देश और मानव मात्र के विकास में स्वामी विवेकानंद का योगदान –

देश और मानवता के लिए स्वामी जी का अभूतपूर्व योगदान रहा है-

  • स्वामी विवेकानंद जी ने दर्शन व अपने ज्ञान के द्वारा लोगों के समक्ष धर्म की एक नई परिभाषा प्रस्तुत की ।
  • स्वामी जी ने वैचारिक भिन्नता होने के बावजूद पूर्वी और पश्चिमी देशों को परस्पर जोड़ने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।
  • विवेकानंद जी ने अपनी रचनाओं के द्वारा भारतीय साहित्य को बल प्रदान किया ।
  • उन्होंने धार्मिक और सांस्कृतिक भावनाओं के द्वारा लोगों को एकता में पिरोने का प्रयास किया
  • Swami Vivekanand जी ने भारत भ्रमण के दौरान जातिवाद , क्षेत्रवाद तथा अन्य विभिन्न प्रकार की कुरीतियों को दूर करने के प्रयास किए तथा निम्न जातियों को समाज की मुख्यधारा में शामिल करने हेतु भी प्रयास किए ।
  • शिकागो धर्म सम्मेलन के माध्यम से स्वामी जी ने समस्त विश्व को हिंदू धर्म की महत्ता के बारे में समझाया, और हिंदुत्व का सम्मान बढ़ाया ।

“राष्ट्रीय युवा दिवस” (स्वामी विवेकानंद जयंती) – Swami Vivekananda Jayanti “National Youth Day”  

स्वामी विवेकानंद जी के विचारों का प्रभाव आम जनमानस के साथ-साथ युवाओं पर बहुत अधिक रहा है स्वामी जी के जन्म दिवस अर्थात 12 जनवरी को हमारे देश में राष्ट्रीय युवा दिवस ( National Youth Day ) की तरह मनाते हैं ।

स्वामी विवेकानंद के बारे में 10 महत्वपूर्ण बातें 10 Important things About Swami Vivekananda

  • स्नातक की डिग्री लेने के बाद भी विवेकानंद जी को कोई नौकरी नहीं मिली और इसी कारण से वे काफी निराश हुए और साथ ही नास्तिक भी बन गए ।
  • विवेकानंद जी बहुत जिज्ञासु स्वभाव के थे , वे हमेशा अपने गुरु जी से अलग-अलग प्रकार के प्रश्न पूछते और उनका उत्तर ना मिलने तक व्यग्र रहते थे ।
  • हमारे देश में 12 जनवरी के दिन को (स्वामी विवेकानंद जी का जन्मदिन) ” राष्ट्रीय युवा दिवस”  की तरह हर वर्ष मनाते हैं ।
  • स्वामी विवेकानंद अपनी मां से बहुत अधिक प्रेम करते थे और उन्होंने आजीवन अपनी माता की पूजा की ।
  • स्वामी जी की पिता की मृत्यु के बाद उनके घर की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई थी, इसलिए अक्सर स्वामी जी घर में यह झूठ बोल देते थे कि “उन्हे बाहर से न्यौता आया है और वे खाना नहीं खाएंगे”, ताकि शेष सदस्य खाना खा सकें ।
  • खेत्री के राजा अजीत सिंह विवेकानंद जी की माँ को मदद की तौर पर गुप्त रूप से 100 रुपये भेजते थे जिससे उनके परिवार की काफी मदद हो जाती थी ।
  • स्वामी जी की जोगेन्द्रबाला नाम की एक बहिन ने आत्महत्या कर ली थी ।
  • शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में स्वामी विवेकानंद ने अपने भाषण की शुरुआत में संबोधन वाक्य प्रयोग किया – ” मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों” उनके इसी वाक्य ने सभी को बहुत प्रभावित किया और कुछ मिनट तक पूरा हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजता रहा ।
  • विवेकानंद जी को चाय पीने का बहुत अधिक शौक था ।
  • खिचड़ी स्वामी विवेकानंद जी का प्रिय भोजन था ।

FAQs

प्रश्न – स्वामी विवेकानन्द के  बचपन का क्या नाम था ?

उत्तर – स्वामी विवेकानन्द का वास्तविक नाम नरेंद्र नाथ दत्त था ।

प्रश्न – स्वामी विवेकानंद का जन्म कब और कहां हुआ था ?

उत्तर –स्वामी विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी 1863 को तत्कालीन कलकत्ता के गौर मोहन मुखर्जी नामक स्ट्रीट में हुआ था।

प्रश्न – भारत में राष्ट्रीय युवा दिवस किस दिन मनाया जाता है ?

उत्तर – राष्ट्रीय युवा दिवस स्वामी विवेकानंद के जन्म दिन 12 जनवरी को मनाया जाता है ।

प्रश्न – रामकृष्ण मिशन की स्थापना कब और किसके द्वारा की गयी ?

उत्तर – रामकृष्ण मिशन की स्थापना 1 मई 1897 स्वामी विवेकानन्द जी ने की थी ।

प्रश्न – स्वामी रामकृष्ण परमहंस कौन थे ?

उत्तर – रामकृष्ण परमहंस जी दक्षिणेश्वर के पुजारी और विवेकानंद जी के गुरु थे ।

प्रश्न – विश्व धर्म सम्मेलन में प्रतिभाग करने के लिए स्वामी जी कहां गए ?

उत्तर – शिकागो ( अमेरिका )

प्रश्न – “विवेकानंद रॉक मेमोरियल” नामक स्मारक भारत में कहां स्थित है ?

उत्तर – कन्याकुमारी, भारत

प्रश्न – स्वामी विवेकानंद की पुस्तकों के क्या नाम है ?

उत्तर- कर्म योग, राजयोग, भक्ति योग, मेरे गुरु, अल्मोड़ा से कोलंबो तक दिए गए व्याख्यान

प्रश्न – बेलूर मठ की स्थापना किसके द्वारा की गई ?

उत्तर – बेलूर मठ की स्थापना स्वामी विवेकानंद ने की

स्वामी विवेकानंद जी के प्रवचन और भाषण आज भी विश्व समुदाय में बल , पराक्रम , और साहस का शंखनाद करते हैं । उनका कथन – “उठो ! जागो ! और जब तक ध्येय की प्राप्ति न हो , रुको मत !” हम सभी के लिए प्रेरणास्रोत है ।

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ज़िंदगी को अपनी शर्तों पर जियें ।  

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