13 अप्रैल 1919 को घटित जलियांवाला बाग हत्याकांड भारतीय इतिहास के काले पन्नों पर अंकित अति शर्मनाक एवं दुर्भाग्यपूर्ण घटना है । ब्रिटिश सरकार के द्वारा किये गये इस घृणित व जघन्य नरसंहार की पूरे विश्व में निंदा हुई ।
जलियांवाला बाग हत्याकांड को ब्रिटिश शासकों की क्रूरता का प्रतीक माना जाता है, वैशाखी त्यौहार के दिन जलियांवाला बाग में हजारों की संख्या में इकट्ठे होकर लोग शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे।
शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रही जनता का प्रदर्शन दमनकारी सत्ता को रास नहीं आया, और उन बेकसूरों को गोलियों से भून दिया गया।
परंतु दोस्तों ! भारत के उन बेकसूर शहीदों की कुर्बानी व्यर्थ नहीं गई आगे चलकर यह घटना भारतीय स्वतंत्रता के आंदोलनों में बड़ा परिवर्तन लाई जिसकी परिणति देश की आजादी थी।
ब्रिटिश सरकार के खिलाफ भारतीय क्रांतिकारियों के द्वारा देश की आजादी के लिए चलाए जा रहे आंदोलनों को रोकने के लिए इस कुकृत्य को अंजाम दिया गया।
गोरी सरकार की यह सोच कि इस प्रकार भारतीयों का दमन करने से वे देश के क्रांतिकारियों का मनोबल तोड़ सकेंगे, गलत साबित हुई, और इस दुर्घटना के बाद भारतीयों के दिलों में देश को आजाद कराने का जज्बा और मजबूती से पैर पसारने लगा।
दोस्तों! क्या आप जानते हैं कि हमारे देश में ऐसा क्या हुआ कि ब्रिटानिया सरकार ने कुछ ही मिनट में हमारे देश के हजारों बेगुनाह स्त्री, पुरुष, बच्चे और बूढ़ों की जान ले ली, और वह भी हृदय विदारक तरीके से ।
यदि आप नहीं जानते, तो चलिए आज हम आपको 103 वर्ष पुराने इस दर्दनाक हत्याकांड के बारे में सभी बातें अपने इस लेख ( जलियांवाला बाग हत्याकांड : निबंध | Jallianwala Bagh Massacre In Hindi : Essay) के माध्यम से विस्तारपूर्वक बताने जा रहे हैं ।
जलियांवाला बाग हत्याकांड पर निबंध | Jallianwala Bagh Massacre In Hindi : Essay
बिन्दु | सूचना |
घटना ( कांड ) का नाम | जलियांवाला बाग हत्याकांड |
दुर्भाग्यपूर्ण तारीख | 13 अप्रैल 1919 |
घटनास्थल | जलियांवाला बाग, अमृतसर, पंजाब, भारत |
घटना का जिम्मेदार ब्रिटिश सरकार का अधिकारी | ब्रिगेडियर जनरल रेगिनाल्ड एडवर्ड हैरी डायर |
मृतकों की संख्या ( आधिकारिक) | लगभग 379 |
घायलों की संख्या ( आधिकारिक) | लगभग 1000 से अधिक |
मृतकों की संख्या ( वास्तविक ) | लगभग 1000 से अधिक |
घायलों की संख्या ( वास्तविक ) | लगभग 2000 से अधिक |
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जलियांवाला बाग हत्याकांड के लिए जिम्मेदार परिस्थितियां – Causes of Jallianwala Bagh Massacre
जलियाँवाला बाग हत्याकांड के लिए जो परिस्थितियाँ जिम्मेदार थीं यहाँ हम उनके बारे में आपको विस्तार से बता रहे हैं –
1- रौलट एक्ट के खिलाफ विद्रोह का परिणाम – Result of Rebellion Against Rowlatt Act
ब्रिटिश शासन के दौरान गोरी सरकार आए दिन भारतीयों के अधिकारों को सीमित करने तथा उनका शोषण करने के लिए नए-नए कानून लागू करती रहती थी, जिनमें अधिकांश का विरोध हमारे देश में होता रहता था ।
6 फरवरी 1919 को ब्रिटिश सरकार ने “रौलट एक्ट” नाम का ऐसा ही एक बिल इंपीरियल लेजिसलेटिव काउंसिल में प्रस्तुत किया, और इस बिल को काउंसिल द्वारा 8 मार्च को पास कर दिया गया, पास करने के बाद यह बिल कानून बन गया ।
यह बिल वास्तव में ब्रिटिश सरकार की भारतीयों के खिलाफ एक गहरी साजिश थी, जिसके अनुसार सरकार द्वारा किसी भी भारतीय को केवल शक के आधार पर गिरफ्तार किया जा सकता था, और उसे ज्यूरी के सामने प्रस्तुत किए बिना जेल में डाला जा सकता था ।
इसके अतिरिक्त पुलिस किसी भी भारतीय व्यक्ति को बिना किसी जांच के 2 वर्ष तक हिरासत में रख सकती थी । इस कानून के रूप में ब्रिटिश सरकार को देश में होने वाली क्रांतिकारी गतिविधियों का दमन करने के लिए एक मजबूत हथियार मिल गया था ।
रौलट एक्ट के माध्यम से ब्रिटिश सरकार देश में चल रहे स्वाधीनता आंदोलन व उनमें हिस्सा लेने वाले क्रांतिकारियों व सामान्य नागरिकों का दमन करके भारतीयों का मनोबल तोड़ना चाहती थी।
और भारत में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ उठने वाली आवाज, और भारतीय राष्ट्रीय आंदोलनों को हमेशा के लिए खत्म कर देना चाहती थी।
इस अधिनियम का पूरे देश में जोर-शोर से विरोध हुआ, महात्मा गांधी ने पूरे देश में इस बिल के विरुद्ध सत्याग्रह आंदोलन शुरू कर दिया।
2- ‘सत्याग्रह आंदोलन’ का प्रारंभ – Start of Satyagraha Movement
1919 में महात्मा गांधी के द्वारा प्रारंभ किया गया सत्याग्रह आंदोलन बहुत तेजी के साथ ब्रिटिश शासन के खिलाफ पूरे देश में फैल रहा था, भारतीय इस आंदोलन में बड़ी संख्या में भाग ले रहे थे।
इसी क्रम में पंजाब के अमृतसर में 6 अप्रैल 1919 को इसी आंदोलन के संदर्भ में हड़ताल का ऐलान हुआ था तथा इस रौलट एक्ट का भी विरोध किया गया था, सब कुछ बड़ा शांतिपूर्वक चल रहा था कि धीरे-धीरे इस आंदोलन ने हिंसक रूप अपना लिया ।
ब्रिटिश सरकार ने 9 अप्रैल को पंजाब के डॉ0 सैफुद्दीन किचलू तथा डॉ0 सत्यपाल नामक दो नेताओं को गिरफ्तार कर लिया और इन्हें अमृतसर से धर्मशाला भेज कर नजरबंद कर दिया गया।
इन दोनों नेताओं की लोकप्रियता अमृतसर में बहुत अधिक थी, अतः इन दोनों की रिहाई को लेकर वहां के लोग 10 अप्रैल को इर्विंग से मुलाकात करना चाहते थे।
परंतु इन से मुलाकात करने से इंकार कर दिया गया, जिससे यह लोग क्रुद्ध हो गए, और गुस्साई हुई भीड़ ने तार विभाग, रेलवे स्टेशन और कई सरकारी ऑफिस को आग लगा दी जिसकी वजह से सरकारी कामकाज में बहुत दिक्कत होने लगी।
क्योंकि उस वक्त का सारा काम संचार के इन्हीं माध्यमों से हो पाता था, इस सारी हिंसा के बीच 3 अंग्रेज अधिकारियों को भी मार दिया गया अतः इन हत्याओं से ब्रिटिश हुकूमत भी बहुत नाराज थी।
3- जनरल डायर की तैनाती – Deployment of General Dyer
अमृतसर समेत पंजाब में कई जगहों पर हालात बिगड़ने लगे थे, इन हालातों को काबू करने के लिए अंग्रेज सरकार ने इर्विंग से यह जिम्मेदारी वापस लेकर ब्रिगेडियर जनरल रेगिनाल्ड एडवर्ड हैरी डायर को सौंप दी।
जनरल डायर ने 11 अप्रैल से अमृतसर के बिगड़े हालातों पर नियंत्रण पाने के लिए अपना काम शुरू किया।
पंजाब के कई स्थानों पर हालात ज्यादा बिगड़ने के कारण अंग्रेज सरकार ने मार्शल लॉ लगा दिया। इन स्थानों पर मार्शल लॉ लगाने के कारण लोगों की स्वतंत्रता और सार्वजनिक समारोहों पर प्रतिबंध लग चुका था।
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मार्शल लॉ के कारण 3 से अधिक व्यक्तियों के एक साथ इकट्ठा होने पर प्रतिबंध था, ऐसा होने पर उन्हें गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया जाता।
दरअसल इन सब के पीछे गोरी सरकार का मकसद था कि क्रांतिकारी किसी तरह की कोई भी सभा ना कर सके, और ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ किसी प्रकार का कोई कदम ना उठा सके।
12 अप्रैल 1919 को अंग्रेज सरकार के अधिकारियों ने चौधरी बुगा मल और महाशा रतन चंद नाम के दो और नेताओं को गिरफ्तार कर लिया जिससे अमृतसर की जनता के बीच गुस्सा और रोष चरम पर पहुंच गया ।
ब्रिटिश सरकार को अंदेशा था कि अमृतसर के हालात ज्यादा बिगड़ सकते हैं अतः उन संभावित परिस्थितियों पर नियंत्रण रखने के लिए अमृतसर में पुलिस की सख्ती को और बढ़ा दिया गया।
जलियांवाला बाग हत्याकांड कब हुआ था ? When did the Jallianwala Massacre Take Place ?
13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन अमृतसर, पंजाब में ‘जलियांवाला बाग’ नामक स्थान पर बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा हुए थे, इसी दौरान अंग्रेज अधिकारी जनरल डायर ने अपने पुलिस अधिकारियों को उस भीड़ पर फायरिंग का आदेश दिया।
जलियांवाला बाग में नृशंस हत्याकांड की दिल दहला देने वाली कहानी –
13 अप्रैल 1919……..जी हां….. दोस्तों, भारतीय इतिहास का सबसे हृदय विदारक दिन यही था, जब अमृतसर के जलियांवाला बाग में लगभग 20000 की संख्या में बच्चे, बूढ़े, महिला, पुरुष इकट्ठे थे। अमृतसर में इस दिन कर्फ्यू लागू था।
परंतु बैसाखी का त्यौहार होने की वजह से बड़ी संख्या में लोग स्वर्ण मंदिर में मत्था टेक कर जलियांवाला बाग करीब ही होने के कारण वहां घूमने पहुंच गए थे।
अमृतसर के नेताओं की गिरफ्तारी के सिलसिले में वहां एक सभा भी थी, जिसमें लोग शांतिपूर्ण तरीके से वार्तालाप करने के लिए वहां इकट्ठा हुए थे।
जनरल डायर को लगभग 12:30 पर जलियांवाला बाग में लोगों के द्वारा सभा करने की सूचना मिल गई थी, इसके बाद जनरल डायर लगभग 4:00 बजे डेढ़ सौ सिपाहियों के साथ जलियांवाला बाग के लिए रवाना हुआ।
जनरल डायर का ऐसा मानना था कि जलियांवाला बाग में एकत्रित सारी भीड़ बलवा फैलाने के उद्देश्य से यहां पर जमा थी, अतः बाग में पहुंचने के बाद डायर ने लोगों को कोई भी चेतावनी दिए बगैर पुलिस को लोगों के ऊपर गोली चलाने का आदेश दे दिया।
इस हमले से बेखबर लोग गोली चलने पर खुद को बचाने के लिए बेतहाशा इधर-उधर दौड़ने लगे, लोग अपने परिवार और बच्चों को बचाने के प्रयास में दौड़ रहे थे, कुछ लोग नीचे गिर कर भीड़ के पैरों से कुचले जा रहे थे, परंतु गोलियां रुकने का नाम ही नहीं लेती थी।
यह बाग चारों ओर से लगभग 10 फुट ऊंची चारदीवारी से घिरा था, और जिस में से बाहर निकलने का एक मात्र संकरा रास्ता था, जिसे अंग्रेज सिपाहियों ने बंद कर दिया था, इसी बाग के बीच में एक कुआँ था ।
जब लोगों को अपनी जान बचाने का कोई रास्ता नहीं सूझा, तो उन्होंने अपनी जान बचाने के लिए कुएं में छलांग लगा दी, इस तरह जान बचाने के प्रयास में ही बहुत से लोगों ने कुएं में कूदकर अपनी जान गवाँ दी, कुछ लोग अपनी जान बचाने के लिए लाशों के नीचे लेट गए ।
कहा जाता है कि अंग्रेज सिपाहियों ने बिना रुके लगभग 10 मिनट तक गोलियां चलाई, नतीजतन कुछ ही देर में जलियांवाला बाग की मिट्टी निहत्थे , बेगुनाह लोगों के लहू से लाल हो गई ।
लाशों के उस अंबार में चंद हफ्तों के दूधमुँहे बच्चे से लेकर असहाय और निशक्त वृद्ध तक की लाशें शामिल थीं। यह हत्याकांड क्रूर और दमनकारी अंग्रेज सरकार का निर्मम, वीभत्स और सबसे दुर्दांत चेहरा था और भारतीय इतिहास का सर्वाधिक दुखद दिन।
जलियांवाला बाग हत्याकांड में शहीद हुए लोगों की संख्या कितनी थी ?
अंग्रेज सरकार के रिकॉर्ड इस हत्याकांड में केवल 379 लोगों के शहीद होने तथा 200 लोगों के घायल होने की बात स्वीकारते हैं, इनमें से 337 पुरुष, 41 कम उम्र के लड़के तथा एक मात्र 6 सप्ताह का बच्चा शामिल था ।
परंतु माना जाता है कि उस दिन लगभग 1650 राउंड फायर हुए और अनाधिकृत आंकड़ों के अनुसार इस नरसंहार में 1000 से अधिक लोगों के मारे जाने तथा 2,000 से अधिक लोगों के घायल होने की बात सामने आती है।
बाद में बाग में स्थित कुएं से लगभग 100 से अधिक शव निकाले गये, इन शवों में अधिकांशतः महिला और बच्चों के शव थे, सच्चाई से परे विश्व स्तर पर अपनी छवि को बचाने के लिए अंग्रेजी हुकूमत ने इस हत्याकांड में केवल 379 मौत होने की बात की ही पुष्टि की।
जलियांवाला बाग हत्याकांड के परिणाम – Results of Jallianwala Bagh Massacre
इस हत्याकांड की निंदा भारत समेत समूचे विश्व में हुई । ऐसा माना जाता है कि इस घटना के बाद ब्रिटिश सरकार के भारत पर शासन करने के ‘नैतिक’ दावों का समापन हो गया।
इस घटना ने समस्त आक्रोशित भारतीय जन समुदाय को ब्रितानिया हुकूमत के खिलाफ एकजुट होकर स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए आंदोलनरत होने का मौका दिया ।
इस हत्याकांड की खबर जब पूरे देश में फैली तो लोगों में सरकार के खिलाफ बहुत अधिक आक्रोश बढ़ गया , और इस आक्रोश ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को एक नई दिशा प्रदान कर दी ।
इस नरसंहार की रविंद्र नाथ टैगोर जी ने भी घोर निंदा करते हुए अपनी ‘सर’ की उपाधि को वापस कर दिया।
गांधी जी ने देश की जनता का आह्वान करते हुए व्यापक स्तर पर पूरे देश में सत्याग्रह आंदोलन प्रारंभ कर दिया , ऐसा माना जाता है कि भारतीय इतिहास का यह ऐसा पन्ना था जिस पर भविष्य में भारत को मिलने वाली आजादी का पैगाम उसी समय लिखा जा चुका था।
जनरल डायर के फैसले की हुई आलोचना – General Dyer’s Decision Was Criticized
इस हत्याकांड के बाद भारत के लगभग सभी नेताओं ने कड़े शब्दों में निंदा की, यहां तक कि जनरल डायर के इस फैसले पर विश्व बिरादरी में भी सवाल उठाए गए ।
हालांकि अंग्रेज सरकार के ही कुछ अधिकारियों ने जनरल डायर के इस फैसले का बचाव करते हुए उसे सही बताया । हत्याकांड के बाद जनरल डायर ने इस घटना की सूचना अपने अधिकारी को दी।
उस समय लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ0 ड्वायर ने पत्र के माध्यम से जनरल डायर के इस कुकृत्य को सही ठहराया और कहा यह कार्यवाही बिल्कुल सही थी ।
जलियांवाला बाग हत्याकांड के लिए गठित हुई हन्टर समिति –
ब्रिटिश सरकार ने जलियांवाला बाग हत्याकांड की जांच के लिए 1 अक्टूबर 1919 को एक समिति गठित की जिसका अध्यक्ष लॉर्ड हन्टर को नियुक्त किया गया, दरअसल भारत में हुए उग्र प्रदर्शनों के दबाव में इस जांच समिति की मजबूरी में अंग्रेज सरकार ने स्थापना की ।
इस समिति में कुल 8 लोग सदस्य थे जिनमें पांच अंग्रेज तथा तीन हिंदुस्तानी शामिल थे । कमेटी ने इस मामले के हर पहलू की जांच करते हुए इस निष्कर्ष पर पहुंचने का प्रयास किया कि क्या मौका-ए-वारदात पर गोली चलाना अवश्यंभावी था ?
कमेटी ने जनरल डायर को 19 नवंबर 1919 को अपने सामने पेश होने का आदेश दिया और उनसे इस कांड को लेकर सवाल किए गए।
डायर ने अपने पक्ष को स्पष्ट करते हुए कहा कि उसे लगभग 12:40 पर सूचना मिली, जिसके अनुसार जलियांवाला बाग में ब्रिटिश शासन के खिलाफ कोई सभा हो रही थी।
जनरल डायर लगभग 4:00 बजे सिपाहियों को साथ लेकर जलियांवाला पहुंचे, डायर ने कमेटी के सामने स्पष्ट रूप से स्वीकार किया, कि उसने फैसला कर लिया था, यदि वहां इस प्रकार की कोई सभा होगी तो हम फायरिंग शुरू कर देंगे।
डायर ने यह भी स्वीकार किया कि यदि वे चाहते तो फायरिंग के बिना भी भीड़ को वहां से हटा सकते थे ।
परंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया इसके पीछे उनकी सोच थी कि बल प्रयोग किए बिना उस भीड़ को सबक सिखाया नहीं जा सकता, वे लोग विद्रोही थे,अतः उसने अपनी ड्यूटी पूरी करते हुए गोली चलाने का आदेश दिया।
बाद में अपनी सफाई में डायर ने कहा कि उन्होंने घायलों की मदद इसलिए नहीं की क्योंकि यह उनका काम नहीं था, बल्कि अस्पताल खुले थे घायलो को वहां जाकर अपना इलाज स्वयं करवाना चाहिए था।
हंटर कमेटी ने अपनी रिपोर्ट को 8 मार्च को सार्वजनिक किया, जाहिर तौर पर इसमें मामले पर लीपापोती की गई थी।
कमेटी ने जनरल डायर के निर्णय को सही बताया, अलबत्ता यह कहा गया कि लोगों पर इतनी देर तक गोली चलाना गलत था, जनरल डायर ने अपनी सीमाओं का उल्लंघन करते हुए यह निर्णय लिया।
इसके लिए डायर को दोषी करार देते हुए 23 मार्च 1920 को सेवानिवृत्त करने की सजा दी गई।
ब्रिटिश मीडिया ने डायर को बनाया हीरो – British Media Made Dyer a Hero
समिति द्वारा मामले को रफा-दफा करते हुए भले ही जनरल डायर को दोषी करार देते हुए सेवानिवृत्त कर दिया गया।
परंतु ब्रितानी मीडिया ने एक हीरो की तरह जनरल डायर का महिमामंडन करते हुए अपने अखबारों में उसे ‘ब्रिटिश साम्राज्य का रक्षक’ की उपाधि दी, और ब्रिटिश लॉर्ड सभा ने उसे ‘ब्रिटिश साम्राज्य का शेर’ कहकर पुकारा।
जलियांवाला बाग के प्रतिशोध में की गई डायर की हत्या –
उधम सिंह जलियांवाला बाग हत्याकांड के समय लगभग 20 वर्ष के किशोर थे, और घटना वाले दिन वह उसी बाग में मौजूद थे, इस नृशंस हत्याकांड को उन्होंने अपनी आंखों से देखा था।
उस दृश्य ने बालक उधम सिंह को अंदर तक आहत कर दिया, और उन्होंने जलियांवाला बाग की मिट्टी को हाथ में लेकर सौगंध खाई कि इस नरसंहार का डायर से बदला अवश्य लेंगे।
इस घटना के बाद उधम सिंह अपनी योजना को अंजाम देने के लिए प्रयास करते रहे और लंदन पहुंचकर अंततः जलियांवाला बाग हत्याकांड के लगभग 21 साल के बाद 13 मार्च 1940 को लंदन के कॉक्सटन हॉल में जनरल ओ डायर को गोली मारकर अपने सैकड़ों हिंदुस्तानी भाइयों, बहनों की मौत का बदला ले लिया।
उधम सिंह के द्वारा लिए गए इस इंतकाम की कई देशी और विदेशी अखबारों ने जमकर तारीफ की, भारतीय अखबार ‘ अमृत बाजार पत्रिका’ ने लिखा था – ” हमारे देश के क्रांतिकारी तथा आम जनता उधम सिंह के इस प्रतिशोध भरी कार्रवाई से गौरव का अनुभव कर रही है।”
उधम सिंह को डायर की हत्या का दोषी ठहराते हुए उन पर मुकदमा चलाया गया और 31 जुलाई 1940 को उन्हें पेंटनविलें जेल में फांसी दी गई।
उधम सिंह के इस बलिदान के लिए देश के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उधम सिंह को 1952 में शहीद का दर्जा प्रदान किया।
कभी भी ब्रिटिश सरकार ने इस हत्याकांड के लिए माफी नहीं मांगी –
भले ही जलियांवाला बाग हत्याकांड के बारे में ब्रिटिश सरकार ने दुख व अफसोस जाहिर किया, परंतु इसके लिए माफी नहीं मांगी।
ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ-II 1997 में अपनी भारत यात्रा के दौरान जलियांवाला बाग भी गई थी वहां उन्होंने स्मारक के पास कुछ समय बिताते हुए मौन रखा । देश के कई नेताओं ने मांग की कि महारानी को इस हत्याकांड के लिए माफी मांगी चाहिए।
इनके अतिरिक्त 2016 में इंग्लैंड के प्रिंस विलियम और केट मिडलटन भारत यात्रा पर थे परंतु कभी किसी ने इस विषय पर बोलने या माफी मांगने का प्रयास नहीं किया।
हालांकि 2017 में ब्रिटेन के मेयर सादिक खान भारत यात्रा के दौरान इस स्मारक पर गए और उन्होंने अपने एक बयान में इस बात को स्वीकारा कि इंग्लैंड सरकार को इस पर माफी मांगनी चाहिए थी ।
जलियांवाला बाग हत्याकांड पर बनाई गई फिल्में व पुस्तकें –
जलियांवाला बाग की हृदयविदारक घटना ने देश को एक ऐसा जख्म दिया जिसे भारत के लोग कभी ना भुला सकेंगे ।
इसी घटना को आने वाली पीढ़ियों को याद दिलाने के लिए समय-समय पर फिल्मों का भी निर्माण किया गया।
इस घटना पर आधारित ‘जलियांवाला बाग’ नाम की एक फिल्म 1977 में बनाई गई जिसमें मुख्य भूमिकाएं विनोद खन्ना और शबाना आज़मी ने निभाई थी ।
कई और ऐसी फिल्में भी आई जिनके कुछ दृश्यों में जलियांवाला बाग हत्याकांड का फिल्मांकन भी किया गया , ऐसी फिल्मों में प्रमुख रूप से “दि लीजेंड ऑफ भगत सिंह” , “रंग दे बसंती”, “उधम सिंह” आदि हैं।
फिल्मों के अतिरिक्त जलियांवाला बाग हत्याकांड पर कई पुस्तकें भी लिखी गई, इनमें से प्रमुख है –मिडनाइट्स चिल्ड्रन (1981) लेखक – सलमान रुश्दी।
जलियांवाला बाग से जुड़े 10 महत्वपूर्ण तथ्य : 10 Important Facts Related to Jallianwala Bagh
- किसी समय जलियांवाला के नाम से मशहूर बाग पर राजा जसवंत सिंह के वकील का अधिपत्य था|
- कुछ साक्ष्यों के अनुसार 1919 में हत्याकांड के समय इस बाग पर लगभग 30 लोग अपना अधिकार जताते थे।
- इस स्थान पर स्मारक का डिजाइन अमेरिका के एक आर्किटेक्ट, जिसका नाम बेंजामिन पोल्क था, ने तैयार किया।
- भारत के राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद जी ने 13 अप्रैल 1961 को इस स्मारक का उद्घाटन किया।
- उस समय इस स्मारक को बनाने का खर्चा लगभग ₹900000 था।
- “अग्नि की लौ” के नाम से भी इस स्मारक को जाना जाता है।
- आज जलियांवाला बाग एक पर्यटक स्थल की तरह विकसित किया जा चुका है यहां प्रतिदिन हजारों की संख्या में पर्यटक आते हैं, और 13 अप्रैल 1919 से जुड़ी उन यादों को देखते हैं, जो आज भी वहां मौजूद हैं।
- ऐसी ही दुखद यादों में से एक है बाग की एक पुरानी दीवार , जिस पर ब्रिटिश हुकूमत की चलाई हुई गोलियों के निशान आज भी मौजूद है जो अंग्रेजों की क्रूरता की दास्तां बयां करती हैं।
- इसके अलावा बाग में वह कुआं आज भी मौजूद है जिसमें अपनी जान बचाने के लिए महिलाओं ने अपने बच्चों के साथ छलांग लगाई थी परंतु वे फिर भी खुद को ना बचा सके।
- भारतीय इतिहास में जलियांवाला बाग हत्याकांड सबसे बड़ी व वीभत्स नरसंहार की घटना थी।
FAQs
प्रश्न – जलियांवाला बाग हत्याकांड कब हुआ ?
उत्तर – जलियांवाला बाग हत्याकांड 13 अप्रैल 1919 को हुआ।
प्रश्न – जलियांवाला बाग कहां है ?
उत्तर – जलियांवाला बाग स्वर्ण मंदिर के निकट अमृतसर में स्थित है ।
प्रश्न – जलियांवाला बाग हत्याकांड क्या था ?
उत्तर – 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला नामक बाग में हजारों की संख्या में लोग एकत्रित थे, जिन पर अंग्रेज अधिकारी जनरल डायर ने गोली चलाने का आदेश दिया, जिसमें 1000 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई तथा 2000 से अधिक लोग घायल हुए।
प्रश्न – जलियांवाला बाग की घटना का जिम्मेदार कौन था ?
उत्तर – जनरल डायर।
प्रश्न – जलियांवाला बाग में मारे जाने वाले लोगों की संख्या कितनी थी ?
उत्तर – 379 ( अंग्रेज सरकार के अनुसार ) वास्तव में यह संख्या 1,000 से अधिक मानी जाती है।
प्रश्न – जलियांवाला बाग की घटना की जांच करने के लिए किस कमेटी का गठन हुआ ?
उत्तर – हन्टर कमीशन।
प्रश्न – जलियांवाला बाग की घटना के समय भारत में कौन गवर्नर था ?
उत्तर – लॉर्ड चेम्सफोर्ड।
निष्कर्ष – Conclusion
यूं तो इस घटना को इतिहास के पन्नों में गुम हुए 103 साल बीत चुके हैं, परंतु इस दुखद घटना का दर्द और जख्म आज भी उतना ही ताजा है । इसीलिए इसी स्थान पर 13 अप्रैल को हर बार बड़ी तादाद में लोग पहुंचकर उन शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं ।
इस लेख के माध्यम से हम भी संजीवनीहिंदी की ओर से जलियांवाला बाग के समस्त शहीदों को शत-शत नमन व श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं ।
दोस्तों ! आपको यह लेख ( जलियांवाला बाग हत्याकांड : निबंध | Jallianwala Bagh Massacre In Hindi : Essay ) कैसा लगा ? अपनी राय अवश्य लिखें । यदि इस लेख से संबंधित आपका कोई प्रश्न हो तो हमें अवश्य लिखिए ।
disclaimer – इस लेख Jallianwala Bagh Massacre In Hindi में लिखे गए समस्त ऐतिहासिक तथ्यों को विभिन्न स्रोतों से लिया गया है, संजीवनीहिंदी इनमें से किसी भी तथ्य की सत्यता अथवा सही होने का दावा नहीं करता।
यह लेख केवल जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है, किसी भी गलत तथ्य के लिए संजीवनीहिंदी जिम्मेदार नहीं होगा।
अंत में – हमारे आर्टिकल पढ़ते रहिए, हमारा उत्साह बढ़ाते रहिए, खुश रहिए और मस्त रहिए।
ज़िंदगी को अपनी शर्तों पर जियें ।
पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद !
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