नवरात्रि हिंदू धर्म के लोगों का सर्वाधिक महत्वपूर्ण त्यौहार है। यह पर्व मां दुर्गा के नौ स्वरूपों को समर्पित है। हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र नवरात्रि का पर्व चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारंभ होता है। इस वर्ष 8 मार्च 2023 को होली का त्यौहार मनाए जाने के बाद Chaitra Navratri 2023, 22 मार्च से प्रारंभ होकर 30 मार्च 2023 तक रहेंगे।
ऐसी मान्यता है कि नवरात्रि पर्व पर मां भगवती की विधि-विधान और सच्चे मन से पूजा-अर्चना करने पर मां प्रसन्न होती हैं, और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। दुर्गा मां को धन व सुख समृद्धि की देवी के रूप में माना जाता है। इस अवसर पर आदिशक्ति मां भगवती की 9 दिनों तक व्रत का पालन करते हुए उपासना की जाती है।
हमारे देश में एक ही वर्ष में दो बार मनाया जाने वाला नवरात्रि का त्यौहार इकलौता पर्व है। यह पर्व ऋतु-संधि के दौरान अर्थात् एक ग्रीष्म ऋतु प्रारंभ होने पर तथा दूसरा शरद ऋतु प्रारंभ होने पर मनाया जाता है।
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नवरात्रि पर निबंध, चैत्र नवरात्रि 2023 महत्वपूर्ण जानकारी- Navratri Essay in Hindi
बिन्दु | जानकारी |
त्यौहार का नाम | नवरात्रि |
अन्य नाम | नौराते, नवरात्र, नवराते |
पर्व मनाने वाले अनुयायी | हिन्दू |
एक वर्ष में नवरात्रि | 4 |
चारों नवरात्रि का समय | चैत्र, आषाढ़ , अश्विन , माघ |
चैत्र नवरात्रि मनाने का समय | चैत्र मास का शुक्ल पक्ष |
तिथि | प्रतिपदा से प्रारंभ होकर नवमी तक |
वर्ष की चार नवरात्रि –Four Navratri in a Year
दोस्तों कम लोग ही जानते हैं कि 1 वर्ष में 4 नवरात्रि होती हैं । आज हम आपको अपने इस लेख Navratri Essay in Hindi में बता रहे हैं कि देवी पुराण के अनुसार प्रति वर्ष क्रमशः चैत्र, आषाढ़ , अश्विन , माघ माह में चार बार नवरात्रि आती हैं, परन्तु इनमें से केवल दो नवरात्रि ( चैत्र एवं अश्विन माह ) का ही विशेष महत्व है ।
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इनके अतिरिक्त आषाढ़ तथा माघ माह की शेष दो नवरात्रि गुप्त रहती हैं, इसी कारण अधिकांश लोगों को इनके बारे में जानकारी नहीं है, इसीलिए इन्हें गुप्त नवरात्रि भी कहा जाता है। यह दोनों गुप्त नवरात्रि गृहस्थों के लिए नहीं होती । इन दो गुप्त नवरात्रि में ऋषि मुनि पूजा अर्चना तथा साधना करते हैं। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह दोनों गुप्त नवरात्रि जून-जुलाई और जनवरी-फरवरी में आती है। इन चारों नवरात्रि का विवरण इस प्रकार है –
चैत्र नवरात्रि – Chaitra Navratri
चैत्र नवरात्रि हिंदू पंचांग के अनुसार वर्ष के प्रथम मास अर्थात् चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि (पहली तिथि/पढ़वा) से आरंभ होती है, और 9 दिन अर्थात् नवमी तक चलती है। चैत्र मास में मनाए जाने के कारण इसे चैत्र नवरात्रि कहा जाता है। बसंत ऋतु (बसंत पंचमी) के आगमन के समय पर होने के कारण इन्हें वासंतीय नवरात्र भी कहा जाता है। अंग्रेज़ी कैलेंडर के हिसाब से यह पर्व प्रत्येक वर्ष मार्च अथवा अप्रैल के महीने में मनाया जाता है । 2023 में चैत्र नवरात्रि 22 मार्च से प्रारंभ हो रही हैं और 30 मार्च 2023 को इसका समापन होगा ।
शारदीय नवरात्रि -Shardiya Navratri
शारदीय नवरात्रि हिन्दू पंचांग के अनुसार अश्विन माह में आती है । यह नवरात्रि अश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से आरंभ होती है, और 9 दिन तक चलती है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार सितंबर अक्टूबर में आने वाली यह नवरात्रि मुख्य नवरात्रि के रूप में मनाई जाती है।
इस नवरात्रि को लोग शारदीय नवरात्रि के नाम से जानते हैं, इसी नवरात्रि की नवमी तिथि के बाद दशमी तिथि को विजयदशमी के रूप में देश भर में धूमधाम से मनाया जाता है ।
गुप्त नवरात्रि – Gupt Navratri
आमतौर पर आम जनमानस केवल देश में मनाई जाने वाली दो नवरात्रि, शारदीय नवरात्रि तथा चैत्र नवरात्रि के बारे में ही जानते हैं बहुत कम लोगों को ही यह बात पता है कि इन दोनों के अलावा प्रत्येक वर्ष 2 और नवरात्रि आती है।
यह दोनों गुप्त नवरात्रि क्रमश: आषाढ़ तथा माघ में होती हैं , वास्तव में यह चारों ही नवरात्रि ऋतु परिवर्तन के मौके पर होती हैं, महाकाल संहिता तथा अन्य धार्मिक ग्रंथों की दृष्टिकोण से चारों ही नवरात्रों का अलग-अलग महत्व बताया गया है।
इनमें विशेष प्रकार की इच्छा पूर्ति हेतु और अनेक प्रकार की सिद्धियां प्राप्त करने के लिए पूजा, अनुष्ठान किए जाते हैं । गुप्त नवरात्रि मुख्य रूप से शक्ति साधना, तांत्रिक क्रियाओं और महाकाल आदि से संबंध रखने वाले लोगों के लिए बहुत महत्व रखती हैं।
इस समय मां भगवती के भक्त बहुत कड़े नियमों के साथ माता की पूजा-अर्चना तथा व्रत करते हैं और इन सब के द्वारा दुर्लभ शक्तियों पर विजय प्राप्त करने का प्रयास करते हैं ।
गुप्त नवरात्रि की कथा- Story of Gupt Navratri
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार श्रृंगी ऋषि के पास एक महिला आई और उनसे कहा कि ” मेरे पति सभी प्रकार के दुर्व्यसनों से परिपूर्ण है, जिनके कारण मैं कोई धार्मिक कृत्य और पूजा पाठ नहीं कर पाती, मेरा पति मांसाहारी और जुआरी है। मैं मां दुर्गा की पूजा अर्चना करना चाहती हूं और अपने परिवारिक जीवन को सुखी व सफल बनाना चाहती हूं।
“श्रृंगी ऋषि महिला की बात से प्रभावित हुए और उन्होंने महिला को इसका उपाय बताया कि वर्ष के दो सार्वजनिक नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है तथा गुप्त नवरात्रि में 10 महाविद्याओं की पूजा अर्चना व साधना की जाती है। जो कोई इस समय मां दुर्गा की पूजा करता है तो माँ उसके जीवन को सुखी और सफल बना देती है ।
श्रृंगी ऋषि के वचनों को मानकर उस महिला ने गुप्त नवरात्रि की पूजा की और ऐसा करने पर मां दुर्गा उस स्त्री पर प्रसन्न हुई, और उसका जीवन बदल गया जीवन में सुख – शांति आई और गलत रास्ते पर चलने वाला उसका पति सही मार्ग पर आ गया।
आसाढ़ की गुप्त नवरात्रि – Gupt Navratri of Aashadh
आषाढ़ मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से आषाढ़ मास की गुप्त नवरात्रि प्रारंभ होती है । यह दक्षिण भारत में अधिक प्रसिद्ध है। गुप्त नवरात्रि होने के कारण इस दौरान गुप्त रूप से दुर्गा मां की पूजा अर्चना की जाती है तथा सिद्धि प्राप्ति हेतु विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं।
इस समय औरअधिक सिद्धि प्राप्त करने और अघोरियों द्वारा तंत्र विद्या में पारंगत होने हेतु किए जाने वाले अनुष्ठान किए जाते हैं। इस समय किसी दूसरे को बिना बताए नियमानुसार सुबह शाम दुर्गा मां की पूजा की जाती है।
माघ की गुप्त नवरात्रि – Gupt Navratri of Maagh
माघ मास में आने वाली नवरात्रि को माघ की गुप्त नवरात्रि कहा जाता है। इसे माघी नवरात्रि भी कहा जाता है। यह उत्तर भारत में अधिक प्रसिद्ध है। गुप्त नवरात्रि को इसीलिए गुप्त नवरात्रि कहा जाता है क्योंकि इस समय देवी मां से विभिन्न प्रकार की शक्तियां प्राप्त करने के लिए गुप्त रूप से उनकी पूजा-अर्चना व अनुष्ठान किए जाते हैं।
इस दौरान 10 महाविद्याओं की पूजा अर्चना करने की परंपरा है , धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गुप्त नवरात्रि में ऐसा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और विशेष फल प्राप्त होता है।
माना जाता है की गुप्त नवरात्रि की पूजा अर्चना जितनी गोपनीय होगी उतना ही फल मिलता है। गुप्त नवरात्रि में तांत्रिक पूजाओं का विशेष महत्व माना जाता है। इस वर्ष माघ मास की गुप्त नवरात्रि का समय 2 फरवरी से 11 फरवरी तक है।
नवरात्रि का इतिहास – History of Navratri
नवरात्रि में आदिशक्ति मां भगवती के नौ रूपों की उपासना की जाती है। नवरात्रि का आरंभ कैसे हुआ इस प्रश्न को लेकर कई पौराणिक मान्यताएं हैं जो हम आपको Navratri Essay in Hindi में बताने जा रहे हैं –
प्रथम मान्यता के अनुसार- भगवान राम के द्वारा लंका के राजा रावण का वध कराने हेतु देव ऋषि नारद जी ने भगवान श्रीराम से इस व्रत को करने का अनुरोध किया था।
यह व्रत पूर्ण होने के पश्चात श्रीराम ने लंकापति रावण के साथ युद्ध किया और अंततः उसका वध किया। ऐसा माना जाता है कि तभी से कार्य सिद्धि के लिए लोग इस व्रत का पालन करते हैं।
एक दूसरी मान्यता के अनुसार- मां भगवती ने महिषासुर नाम के असुर का संहार करने के लिए प्रतिपदा के दिन से नवमी तक अर्थात 9 दिनों तक युद्ध किया और अंत में नवमी की रात्रि को उस राक्षस का संहार किया।
इसलिए मां दुर्गा को ‘महिषासुरमर्दिनि’ भी कहा जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार तभी से आदि शक्ति मां दुर्गा की शक्ति को समर्पित यह नवरात्र के व्रत किए जाते हैं।
चैत्र नवरात्रि 2023 की तिथि व मुहूर्त – Chaitra Navratri 2023 Date And Time
वर्ष 2023 में चैत्र नवरात्रि की तिथि व मुहूर्त निम्न प्रकार हैं –
तिथि | दिनांक व समय ( मुहूर्त ) |
चैत्र शुक्ल,प्रतिपदा तिथि | 21 मार्च 2023 रात्रि 10:52 से 22 मार्च रात्रि 08:20 तक |
प्रथम नवरात्रि (प्रतिपदा,उदया तिथि के अनुसार) | 22 मार्च 2023, बुद्धवार |
महाअष्टमी | 29 मार्च 2023, बुद्धवार |
महानवमी ( राम नवमी ) | 30 मार्च 2023, बृहस्पतिवार |
8 या 9 कितने दिन के होंगे चैत्र नवरात्रि 2023- Chaitra Navratri 2023, 8 Or 9 Days ?
इस वर्ष चैत्र नवरात्रि 22 मार्च से प्रारंभ होकर 30 मार्च 2023 तक होंगे अर्थात् इस बार नवरात्रि पूरे नौ दिन मनाई जाएगी। इस वर्ष किसी भी तिथि का क्षय नहीं है ।
2023 में चैत्र नवरात्रि की तिथियाँ व माँ दुर्गा के स्वरूप – Dates Of Chaitra Navratri 2023 And Names Of Maa Durga
इस वर्ष चैत्र नवरात्रि की तिथियाँ निम्न प्रकार हैं –
तिथि | दिन | देवी स्वरूप का नाम | बीज मंत्र |
22 मार्च (प्रतिपदा /पहला दिन) | बुद्धवार | माँ शैलपुत्री का दिन व पूजा | शैलपुत्री: ह्रीं शिवायै नमः |
23 मार्च ( द्वितीया /दूसरा दिन ) | बृहस्पतिवार | माँ ब्रह्मचारिणी का दिन व पूजा | ब्रह्मचारिणी: ह्रीं श्री अंबिकायै नमः |
24 मार्च ( तृतीया /तीसरा दिन ) | शुक्रवार | माँ चंद्रघण्टा का दिन व पूजा | चंद्रघण्टा: ऐं श्री शक्तयै नमः |
25 मार्च ( चतुर्थी /चौथा दिन ) | शनिवार | माँ कूष्माण्डा का दिन व पूजा | कूष्मांडा: ऐं ह्रीं देव्यै नमः |
26 मार्च ( पंचमी /पाँचवाँ दिन ) | रविवार | स्कन्दमाता मैया की पूजा व दिन | स्कंदमाता: ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नमः |
27 मार्च ( षष्ठी /छठा दिन ) | सोमवार | माँ कात्यायनी का दिन व पूजा | कात्यायनी: क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नमः |
28 मार्च ( सप्तमी /सातवाँ दिन ) | मंगलवार | माँ कालरात्रि का दिन व पूजा | कालरात्रि: क्लीं ऐं श्री कालिकायै नमः |
29 मार्च ( अष्टमी /आठवाँ दिन ) | बुद्धवार | माँ महागौरी का दिन व पूजा | महागौरी: श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नमः |
30 मार्च ( नवमी /नौवां दिन ) | बृहस्पतिवार | माँ सिद्धिदात्री का दिन व पूजा | सिद्धिदात्री: ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नमः |
31 मार्च (दशमी/दसवां दिन) | शुक्रवार | नवरात्रि पारण | – |
नवरात्रि के पीछे वैज्ञानिक कारण – Scientific Reasons Behind Navratri
नवरात्रि त्यौहार को मनाने के पीछे केवल धार्मिक आस्था ही नहीं अपितु सबल वैज्ञानिक आधार भी है। जिसको हम इस प्रकार समझ सकते हैं।
पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा पूरा करने में 1 वर्ष का समय लेती है और इस 1 वर्ष में 4 ऋतु-संधियाँ ( दो ऋतुओं के मिलन का समय ) पढ़ती हैं। इनमें से दो बार मार्च व सितंबर में साल की दो महत्वपूर्ण नवरात्रि आती है। चूँकी ऋतु परिवर्तन के समय रोगाणुओं के आक्रमण की संभावना प्रबल होती है अतः ऋतु-संधि के समय अक्सर बीमारियां बढ़ती हैं ।
नवरात्र के 9 दिनों तक लगभग सभी लोग बड़ी संख्या में हवन आदि का आयोजन करते हैं, यह सर्वविदित है कि हवन से निकलने वाला धुआँ वातावरण में व्याप्त समस्त रोगाणु को नष्ट करता है, तथा वातावरण को शुद्ध व रोगाणु मुक्त करता है।
अतः यह बात सिद्ध होती है कि ठीक ऋतु परिवर्तन के समय वर्ष में दो बार नवरात्रि का आयोजन करने का वैज्ञानिक आधार है।
नवरात्रि में माँ के नौ स्वरूप/ नव दुर्गा के 9 नाम – 9 Names of Maa Durga
नवरात्रि के हर दिन मां भगवती के एक अलग स्वरूप की पूजा-अर्चना की जाती है । आइए जानते हैं साधक किस दिन मां के स्वरूप की उपासना करते हैं –
शैलपुत्री – ( पहला दिन ) Shailputri
मां दुर्गा का पहला स्वरूप शैलपुत्री का है। पर्वतराज हिमालय के घर में पुत्री के रूप में उत्पन्न होने के कारण इनको शैलपुत्री कहा जाता है। मां शैलपुत्री वृषभ पर आरूढ़ हैं तथा दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल पुष्प धारण किए हुए हैं।
शैलपुत्री माता नवदुर्गाओं में सर्वप्रथम दुर्गा हैं । नवरात्रि में पहले दिन शैलपुत्री माँ की ही पूजा की जाती है। पहले दिन साधक स्वयं के मन को “मूलाधार” चक्र में स्थित रखते हैं, और पहले दिन से ही उनकी योग साधना शुरू होती है।
ब्रह्मचारिणी – ( दूसरा दिन ) Brahmcharini
मां दुर्गा की नौ शक्तियों में से दूसरा स्वरूप है ब्रह्मचारिणी का। “ब्रह्म” शब्द का अर्थ तपस्या से है। ब्रह्मचारिणी का अर्थ होता है तप की चारिणी अर्थात् तप का आचरण करने वाली। इनके बाएं हाथ में कमंडल और दाएं हाथ में जप की माला रहती है।
मां दुर्गा का यह दूसरा स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल प्रदान करने वाला है । दुर्गा पूजा के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन ” स्वाधिष्ठान” चक्र में स्थित होता है।
चंद्रघण्टा – ( तीसरा दिन ) ChandraGhanta
मां दुर्गा की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघण्टा है। नवरात्र के तीसरे दिन इन्हीं का पूजन व आराधना की जाती है। इनके मस्तक में घंटे के आकार का अर्धचंद्र है। इसी कारण इस देवी का नाम चंद्रघण्टा पड़ा। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है तथा इनका वाहन सिंह है।
कूष्माण्डा – ( चौथा दिन ) Kooshmanda
माता दुर्गा के चौथे स्वरूप का नाम कूष्माण्डा है। अपनी मंद और हल्की हंसी के द्वारा ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इनका नाम कूष्माण्डा पड़ा। नवरात्रि के चौथे दिन माता कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन “अनाहज” चक्र में स्थित होता है ।
स्कन्दमाता – ( पाँचवाँ दिन ) Skandmata
मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता कहा जाता है। यह भगवान स्कन्द (कुमार कार्तिकेय ) की माता होने के कारण स्कन्दमाता के नाम से जानी जाती हैं। इनकी उपासना नवरात्रि के पांचवे दिन की जाती है।
इस दिन साधक का मन ” विशुद्ध” चक्र में स्थित रहता है। इनका वर्ण शुभ्र है, यह कमल के आसन पर विराजमान हैं ,इसी कारण इन्हें पद्मासन देवी भी कहा जाता है , इनका वाहन भी सिंह है।
कात्यायनी- ( छठा दिन ) Katyayani
मां दुर्गा के छठे स्वरूप को कात्यायनी कहते हैं। कात्यायनी महर्षि कात्यायन की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर उनकी इच्छा के अनुसार उनके घर में पुत्री के रूप में पैदा हुई थी। महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी उपासना की थी इसी कारण यह कात्यायनी के नाम से प्रसिद्ध हैं ।दुर्गा पूजा के छठे दिन इनके स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन ” आज्ञा चक्र” निहित रहता है।
कालरात्रि- ( सातवाँ दिन ) Kaalratri
दुर्गा माँ के सातवें दिन के स्वरूप को माँ कालरात्रि कहते है। इनका स्वरूप देखने में अत्यधिक भयानक है परन्तु माँ कालरात्रि हमेशा शुभ फल देती हैं, इसीलिए माँ के इस स्वरूप को शुभंगकरी भी कहते हैं। नवरात्रि व्रत के सातवें दिन इनकी पूजा की जाती है।
नवरात्रि के सातवें दिन व्यक्ति का मन “सहस्रार” चक्र में उपस्थित रहता है। मां कालरात्रि ग्रह बाधाओं को दूर करती हैं और दुष्टों का विनाश करती हैं परिणामस्वरूप व्यक्ति जीवन में हर भय से मुक्त हो जाता है।
महागौरी- ( आठवाँ दिन ) Mahagauri
दुर्गा माँ के आठवें स्वरूप को महागौरी माँ के नाम से जाना जाता है। नवरात्रि में अष्टमी के दिन महागौरी माता की पूजा-अर्चना की जाती है । महागौरी माता अमोघ शक्ति से पूर्ण और सद्यः फल देने वाली है। इनकी पूजा-अर्चना करने से साधकों के सभी पापों का विनाश होता हैं।
सिद्धिदात्री- (नौवां दिन) Siddhidatri
मां दुर्गा के नौवें स्वरूप को माता सिद्धिदात्री कहते हैं। जैसा कि नाम से ही प्रकट है यह सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करने वाली हैं। नवदुर्गाओँ में माता सिद्धिदात्री अंतिम हैं। इनकी उपासना के बाद भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।
दुर्गा पूजा की पूजा विधि तथा सामग्री- Pooja Vidhi And Saamagree
माता दुर्गा के साधक भक्तों को स्नान करके शुद्ध होकर, वस्त्र धारण करके पूजा स्थल को सजाना चाहिए। पूजा मंडप में मां दुर्गा की मूर्ति स्थापित करनी चाहिए। मूर्ति के दाएं और कलश स्थापना करनी चाहिए। पूजन में सबसे पहले श्री गणेश भगवान की पूजा करके बाद में मां जगदंबा का पूजन करना चाहिए।
पूजा सामग्री के लिए जल, गंगाजल, पंचामृत, दूध, दही, घी , शहद, शक्कर, रेशमी वस्त्र, उप वस्त्र, नारियल, चंदन, रोली, कलावा, अक्षत, पुष्प, पुष्पमाला, धूप, दीप, नेवैद्य, ऋतु फल, पान, सुपारी, लौंग , इलायची, आसन, चौकी, पूजन पात्र आरती, कलश आदि सामान एकत्र करना चाहिए।
नवदुर्गा की प्रार्थना करने से पहले मस्तक पर भस्म, चंदन , रोली का टीका लगाना चाहिए। नवदुर्गा की प्रार्थना के पश्चात कवच का पाठ करना चाहिए। इसके बाद अर्गला और कीलक का पाठ करना चाहिए। तत्पश्चात रात्रि सूक्त का पाठ करना चाहिए। और इसके बाद सप्तशती का पाठ प्रारंभ करना चाहिए।
नवरात्रि में घट स्थापना (कलश स्थापना) विधि – Ghat Sthapna Vidhi
नवरात्रि के प्रथम दिन घट स्थापना की जाती है,घट स्थापना हेतु निम्नलिखित कार्य सम्पन्न करने चाहिए –
- प्रतिपदा तिथि को प्रातः जल्दी उठकर स्नानादि करने के पश्चात पूजा-स्थल को साफ-स्वच्छ करना चाहिए ।
- घट स्थापना ( कलश स्थापना ) करने से पूर्व कलश को गंगाजल से अवश्य शुद्धकर लेना चाहिए तभी माँ का आह्वान करना चाहिए ।
- कलश स्थापना के बाद सर्वप्रथम भगवान गणेश की आराधना करनी चाहिए ।
- कलश में गंगाजल भरकर पूजा-वेदी पर स्थापित करते हैं और उसे आम के पत्तों से सजाते हैं और हल्दी की गांठ , दूर्वा घास व सुपारी रखनेे चाहिए ।
- कलश स्थापित करने से पूर्व मिट्टी की वेदी बनाकर उसमें जौं बोकर उसके ऊपर कलश को स्थापित करना चाहिए ।
- कलश की गर्दन पर पवित्र धागा “कलावा” बांधना चाहिए ।
- कलश के मुख पर नारियल में लाल चुनरी लपेटकर रखना चाहिए ।
- कलश पर रोली से स्वास्तिक बनाना चाहिए ।
- अंत में कलश को फल, फूल व धूप अर्पित करना चाहिए ।
घट स्थापना का शुभ मुहूर्त – चैत्र नवरात्रि 2023- Ghat Sthapna Muhurt : Chaitra Navratri 2023
चैत्र नवरात्रि पर कलश स्थापना प्रतिपदा तिथि पर की जाती है, कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त 2023 निम्नवत है –
बिन्दु | सूचना |
घट स्थापना का दिनांक व मुहूर्त | 22 मार्च 2023 सुबह 06:29 से 07:39 तक |
कुल अवधि | 01 घंटे 10 मिनट |
घट स्थापना अमृत काल | 22 मार्च 2023 सुबह 11:07 से 12:35 तक |
चैत्र नवरात्रि का महत्व – Chaitra Navratri Significance
इस लेख में हम जानेंगे कि चैत्र नवरात्रि का मनुष्य की आत्माशुद्धि और मोक्ष के लिए विशेष महत्व है । हालांकि अगर आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो प्रत्येक नवरात्रि का अपना आध्यात्मिक महत्व है, क्योंकि यह पुरुष और प्रकृति के संयोग का समय है। क्योंकि प्रकृति को मातृशक्ति माना गया है अतः इन दिनों माता रानी की उपासना की जाती है।
वास्तव में नवरात्रि के नौ पवित्र दिनों में मनुष्य अपनी यांत्रिक, तांत्रिक, आध्यात्मिक और भौतिक हर प्रकार की इच्छाओं को पूरा करने के ध्येय से उपवास करता है इन दिनों देवी उसकी इन कामनाओं को पूरा करने में सहायता करती है, इसी कारण से नवरात्रि का आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत महत्व है।
ज्योतिषीय दृष्टिकोण से भी नवरात्रि का विशेष महत्व माना जाता है क्योंकि इसी दौरान सूर्य का नयी राशि में परिवर्तन होता है। सूर्य 12 राशियों में भ्रमण पूरा करने के पश्चात पुनः अगला चक्र पूर्ण करने हेतु फिर से पहली राशि ( मेष ) में प्रवेश करते हैं। सूर्य और मेष दोनों का ही तत्व अग्नि है अतः दोनों के संयोग से गर्मी का आरंभ हो जाता है।
नवरात्रि अर्थात चैत्र मास से ही नये पंचांग की शुरुआत होती है, अतः नए वर्ष की शुरुआत देवी तथा नवग्रहों की पूजा आराधना से की जाती है ताकि आने वाले पूरे वर्ष राशि और ग्रहों की स्थिति व्यक्ति के अनुकूल रहे तथा उसका जीवन खुशहाल रहे।
धार्मिक दृष्टिकोण से नवरात्रि का बिल्कुल अलग ही महत्व माना गया है। ऐसा माना जाता है कि इस समयावधि में आदिशक्ति मां भगवती स्वयं पृथ्वी पर विचरण कर रही होती हैं, अतः इन दिनों माता रानी की पूजा अर्चना से मनुष्य को अन्य दिनों की अपेक्षा शीघ्र फल की प्राप्ति हो जाती है।
चैत्र नवरात्रि के धार्मिक महत्व के लिए एक और महत्वपूर्ण मान्यता यह है कि नवरात्रि के प्रथम दिन आदिशक्ति मां भगवती प्रकट हुई थी और उन्हीं के कहने पर श्री ब्रह्मा जी ने सृष्टि के निर्माण का कार्य प्रारंभ किया था।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हिंदू नव वर्ष प्रारंभ होता है। चैत्र नवरात्र के तृतीय दिन में विष्णु भगवान ने अपना प्रथम अवतार मत्स्य रूप में लेकर पृथ्वी की स्थापना की थी ।
भगवान श्री राम जोकि विष्णु भगवान का सातवां अवतार माने जाते हैं, उनका जन्म भी चैत्र नवरात्रि मैं हुआ था इस कारण से भी चैत्र नवरात्रि का बहुत अधिक महत्व है।
भारत के विभिन्न राज्यों में नवरात्रि मनाने के ढंग – Navratri in various States Of India
हमारे देश में पर्वों की खूबसूरती अलग-अलग राज्यों में उनकी परंपराओं व मनाने के ढंग को देखने से पता चलती है,नवरात्रि पर्व को भी इसी प्रकार विभिन्न राज्यों में मनाया जाता है जो हम आपको यहाँ बता रहे हैं –
गुजरात में नवरात्रि – Navratri In Gujarat
गुजरात हमारे देश का एकमात्र ऐसा राज्य है जहां नवरात्रि का त्यौहार पूरे 9 दिनों तक उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है । यहां 9 दिनों तक गरबा नृत्य, डांडिया नाइट, स्वादिष्ट भोजन और बेहद खूबसूरती के साथ सजे हुए माता के मंदिर पर्यटकों को सहज ही आकर्षित करते हैं।
नवरात्रि के दिनों में गुजरात में अहमदाबाद, बड़ोदरा ,पाटन,गांधीनगर आदि शहरों में घरों की रौनक देखते ही बनती है। यहां नवरात्रि के पहले दिन पानी से भरा मिट्टी का एक कलश स्थापित किया जाता है, जिसके अंदर नारियल, सुपारी और चांदी का सिक्का रखा जाता है। इस कलश के भीतर एक दिया जलाते हैं।
खूबसूरत कपड़ों में सजी-धजी महिलाएं व पुरुष हर रात मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा आराधना करने के लिए एकत्रित होते हैं। गुजरात में कुछ लोग 9 दिनों तक अन्न का त्याग करते हुए व्रत धारण करते हैं। महिलाएं शाम को नवरात्रि आयोजन के समय गोल घेरा बनाकर गरबा करती है।
महाराष्ट्र में नवरात्रि – Navratri In Maharashtra
महाराष्ट्र में लोग नवरात्रि त्योहार को नई शुरुआत की तरह से मनाते हैं, वे लोग अपने घरों के लिए नए सामान खरीदते हैं। महिलाएं अपने मित्रों और रिश्तेदारों को अपने घर बुलाकर उन्हें उपहार स्वरूप सुपारी और नारियल देती है। महाराष्ट्र में भी डांडिया और गरबा नृत्य बहुत प्रसिद्ध है।
दिल्ली में नवरात्रि -Navratri In Gujarat
राजधानी दिल्ली में बंगाली समुदाय के लोग बड़ी संख्या में निवास करते हैं इसलिए दुर्गा पूजा में मां दुर्गा के नौ रूपों का आयोजन विशेष होता है। हालांकि दिल्ली में भी अलग-अलग स्थानों पर गुजरात व महाराष्ट्र की तरह डांडिया नाइट तथा गरबा के प्रोग्राम देखने को मिल जाते हैं। यहां के प्रसिद्ध रामलीला मैदान में नवरात्रि के अवसर पर शानदार आयोजन किए जाते हैं।
पश्चिम बंगाल व असम में नवरात्रि – Navratri In West Bengal And Assam
नवरात्रि का पर्व महिषासुर पर मां दुर्गा की विजय तथा बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। नवरात्रि के पर्व को पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा के रूप में मनाने की परंपरा है। बंगाल और असम में दुर्गा पूजा का त्योहार बहुत बड़ा माना जाता है।
पूरे राज्य में इस पर्व को बड़ी धूमधाम, जोश और उत्साह के साथ मनाया जाता है, पूरा राज्य इस दौरान रंग बिरंगी रोशनी से जगमगाता है। नवरात्रि के अंतिम 4 दिनों को बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस अवसर पर मां दुर्गा स्वयं पृथ्वी पर अपने मायके आती है अतः सभी लोग मिलजुल कर बड़े प्रेम और गर्मजोशी के साथ उनका स्वागत करते हैं।
पूरे राज्य में दुर्गा पूजा के समय गली नुक्कड़ पर गुफा, अंतरिक्ष आदि अलग-अलग थीम पर आधारित भव्य और विशाल पंडाल सजाए जाते हैं,और मां दुर्गा की खूबसूरत और सजीव, बड़ी-बड़ी प्रतिमाएं स्थापित की जाती है तथा उनकी पूजा-अर्चना की जाती है।
हिमाचल प्रदेश में नवरात्रि – Navratri In Himachal Pradesh
देश के पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में भी हिंदू पर्व नवरात्रि को बड़ी धूमधाम और उमंगों के साथ मनाते हैं। हिमाचल में नवरात्रि के समारोह की शुरुआत तब होती है जब लगभग सभी जगह यह त्यौहार समाप्ति के करीब आ जाता है।
कुली घाटी के ढालपुर मैदान में भगवान रघुनाथ ( राम ) की अन्य देवी-देवताओं के साथ पूजा की जाती है। शारदीय नवरात्रि के दसवें दिन कुल्लू में विश्व प्रसिद्ध दशहरा मनाया जाता है। इस दिन को बुराई पर अच्छाई की विजय तथा भगवान राम की अयोध्या वापसी के प्रतीक के रूप में मनाते हैं।
इस अवसर पर मनाया जाने वाला कुल्लू का दशहरा ना सिर्फ देश में बल्कि विदेशों में भी प्रसिद्ध है, पर्यटक दूर-दूर से इस मेले को देखने के लिए आते हैं। इस अवसर पर मंदिरों से देवी देवताओं को निकालकर वहां एक जुलूस का आयोजन किया जाता है तथा इन देवी-देवताओं को पूजा अर्चना करने के लिए एक पवित्र स्थान पर लाया जाता है ।
आंध्र प्रदेश में नवरात्रि – Navratri In Andhra Pradesh
देश के इस राज्य में नवरात्रि का त्यौहार देवी गौरी को समर्पित किया जाता है। आंध्र के लोग इस पर्व को तेलुगु भाषा में “बथुकम्मा पांडुगा” के रूप में मनाते हैं, इसका अर्थ है “आओ जीवित देवी मां” । यहां माता की मूर्ति को फूलों के ढेर पर स्थापित किया जाता है।
रेशमी परिधान तथा सोने के गहने पहनकर सजी-धजी महिलाएं बथुकम्मा के निकट गौरा देवी का आशीर्वाद लेने के लिए पहुंचती है। अविवाहित लड़कियां अपने मनपसंद जीवनसाथी की इच्छा के साथ पूजा में शामिल होती है।
कर्नाटक और तमिलनाडु में नवरात्रि – Navratri In Karnatak And Tamilnadu
देश के इन राज्यों में नवरात्रि के अवसर पर खिलौनों की भांति छोटी-छोटी मूर्तियां बनाई जाती हैं इनमें भगवानों की मूर्तियों के अलावा दूल्हा दुल्हन, ऋषि मुनि, महिला पुरुष, रथ, बर्तन की मूर्तियां होती है।
इन राज्यों में नवरात्रि त्यौहार को गोलू, बोम्मा गोलू, बोम्बे हब्बा आदि के नाम से भी पुकारा जाता है जिसका अर्थ है गुड़िया का त्योहार। यहाँ नवरात्रि के प्रथम दिन गणेश, लक्ष्मी, पार्वती और सरस्वती की पूजा की जाती है शाम के वक्त लोग एक दूसरे के घर जाकर त्यौहार की तैयारियों को देखते हैं इस दौरान रोज पूजा अर्चना की जाती है और प्रसाद बांटा जाता है ।
कर्नाटक के मैसूर में आयोजित किया जाने वाला समारोह अद्वितीय होता है, यहां नवरात्रि उत्सव की परंपरा विजयनगर राजवंश के द्वारा असुर महिषासुर पर मां दुर्गा की विजय के उपलक्ष्य में शुरू की गई थी।
नवमी के दिन मां सरस्वती की विशेष पूजा अर्चना की जाती है, विजयदशमी के दिन शाम के वक्त किसी खिलौने को प्रतीक के तौर पर सुला दिया जाता है, पूजा अर्चना के दौरान घट स्थापना की जाती है इस कलश को विजयदशमी की शाम उत्तर दिशा की ओर बढ़ा दिया जाता है और त्यौहार की समाप्ति हो जाती है।
उत्तर प्रदेश और बिहार में नवरात्रि – Navratri In U.P. And Bihar
उत्तर प्रदेश व बिहार में नवरात्रि के प्रथम दिन कलश की स्थापना की जाती है, इस कलश में पूजा के सामान के साथ साथ नारियल रखा जाता है, तथा इसके इर्द-गिर्द मिट्टी में कई प्रकार के अनाज रखते हैं । नवरात्रि में 9 दिनों तक इसमें पानी देते रहते हैं तथा मां भगवती के साथ-साथ कलश का भी पूजन किया जाता है।
महा अष्टमी तथा महा नवमी के दिन छोटी कन्याओं को भोजन कराया जाता है, बिहार के साथ-साथ उत्तर भारत के अधिकांश राज्यों में अष्टमी और नवमी को कन्याओं को भोजन कराने की परंपरा है।
पंजाब में नवरात्रि – Navratri In Punjab
पंजाब में भी इस पर्व को अन्य राज्यों की भांति बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यहाँ नवरात्रि में पूरे 9 दिनों तक नगरों तथा मंदिरों में माता के जागरण किए जाते हैं। यहां भी अष्टमी और नवमी पर छोटी कन्याओं को भोजन कराने तथा उपहार देने की परंपरा है।
छत्तीसगढ़ में नवरात्रि – Navratri In ChhattisGarh
छत्तीसगढ़ में नवरात्रि का उत्सव 75 दिनों तक चलता है तथा अश्विन माह में शुक्ल पक्ष के 13वें दिन मुरिया दरबार की रस्म के साथ समाप्त हो जाता है।
उत्तराखंड में नवरात्रि – Navratri In Uttarakhand
उत्तराखंड राज्य में भी उत्तर प्रदेश की ही तरह नवरात्रि का त्यौहार बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यहां लोग नवरात्रि के प्रथम दिन कलश की स्थापना करते हुए मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की पूजा अर्चना व्रत के साथ आरंभ करते हैं, अधिकांश जगहों पर शाम को घरों में माता रानी के भजन गाए जाते हैं तथा कुछ लोग इन दिनों माता रानी का जागरण भी कराते हैं।
अलग-अलग परंपराओं के अनुसार अलग-अलग परिवारों में नवरात्रि के अष्टमी तथा नवमी के दिन लोग छोटी बालिकाओं को अपने घर में बुलाकर भोजन कराते हैं तथा उन्हें उपहार देकर विदा करते हैं।
नवरात्रि त्यौहार के बारे में 10 पंक्तियाँ – 10 Lines About Navratri Festival
- हिंदू धर्म के पवित्र त्यौहार नवरात्रि को लोग नवरात्रि के अतिरिक्त नवरात्र, नौराते, नवराते आदि अनेक नामों से भी पुकारा जाता है।
- चैत्र नवरात्रि पर्व हिंदी महीनों के अनुसार चैत्र माह में प्रतिपदा तिथि से प्रारंभ होकर नवमी तिथि तक चलता है।
- नवरात्रि पर्व के आठवें दिन को महाअष्टमी तथा नौवें दिन को महा नवमी के नाम से जानते हैं।
- नवरात्रि में आदिशक्ति मां दुर्गा के नौ अलग-अलग रूपों की आराधना की जाती है, जिनमें काली मां के स्वरूप को सर्वोच्च महत्व प्राप्त है।
- नवरात्रि में 9 दिन तक लगातार उपवास करने के उपरांत लोग 9 वें दिन व्रत का पारण करते हुए 9 छोटी कन्याओं को घर में बुलाकर, उन्हें मां दुर्गा के स्वरूप में मान्यता देते हुए भोजन कराते हैं और उपहार देते हैं साथ ही उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
- गुजरात में इस त्यौहार को बहुत खूबसूरत तरीके से मनाते हैं, अलग-अलग स्थानों पर दुर्गा माँ के पंडाल लगाकर उनमें माता की प्रतिमा स्थापित की जाती हैं तथा नवरात्रों के 9 दिनों तक भजन, कीर्तन इत्यादि कार्यक्रम होते हैं और इनके साथ-साथ गुजरात का प्रसिद्ध डांडिया व गरबा नृत्य का आयोजन होता है।
- बंगाल में लोग नवरात्रि के 9 दिनों में माता दुर्गा की पूजा अर्चना करते हैं और फिर उनकी मूर्ति को जल में विसर्जित कर देते हैं।
- नवरात्र में कुछ लोग पूरे नौ दिन तक केवल पानी पीकर अथवा दिन में एक लौंन्ग खाकर नवरात्रि मैं कठोर व्रत धारण करते हुए मां दुर्गा की पूजा अर्चना करते हैं तथा उन्हें प्रसन्न करते हैं।
- हमारे देश के प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेंद्र मोदी जी भी संपूर्ण नवरात्र अर्थात् 9 दिनों तक केवल जल ग्रहण करते हुए व्रत धारण करते हैं।
- नवरात्रि के दिनों में हमें माता की पूजा अर्चना करते हुए बहुत ही सादगी पूर्ण जीवन बिताना चाहिए और चमड़े से बनी बेल्ट, पर्स, जूते आदि धारण नहीं करने चाहिए।
नवरात्रि व्रत के कुछ नियम – Rules For Navratri ‘Vrat’
नवरात्रि में व्रत धारण करने वाले साधकों के लिए कुछ नियमों का पालन करना अनिवार्य होता है, इस लेख में आज हम आपको ऐसे ही कुछ महत्वपूर्ण नियम यहां बता रहे हैं –
- नवरात्रि में 9 दिन बहुत ही पवित्र माने जाते हैं अतः यदि आप व्रत का पालन करते हैं तो माता रानी की पूजा अर्चना में कोई भूल चूक नहीं होनी चाहिए और सभी नियमों का कड़ाई से पालन होना चाहिए।
- नवरात्रि के प्रथम दिन व्रत प्रारंभ किया जाता है और मां शेरावाली की सुबह-शाम पूजा अर्चना की जाती है।
- अधिकांश लोग प्रत्येक दिन शाम को घर में ही मां अंबे के भजन गाते हैं, कुछ लोग इन 9 दिनों में माता रानी के जागरण का आयोजन भी करते हैं।
- नवरात्रि के 9 दिनों तक व्रत का पालन करने वाले साधक व्रत में कूटू के आटे से बने भोजन को ग्रहण करते हैं, अपितु कुछ लोग इन 9 दिनों तक फलाहार भी करते हैं।
- कुछ परिवारों में नवरात्रि के दिनों में अखंड ज्योत जलाई जाती है इस ज्योत में देशी घी का प्रयोग किया जाता है।
- जिन परिवारों में अखंड ज्योत जलाई जाती है उन्हें इस बात का विशेष ध्यान रखना होता है कि किसी भी प्रकार से अखंड ज्योत बुझ ना सके।
- नवरात्रि के 9 दिनों तक साधक को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
- अलग-अलग परिवारों में अपनी अपनी परंपरा के अनुसार अष्टमी अथवा नवमी के दिन छोटी कन्याओं को भोजन करा कर व्रत का समापन किया जाता है।
निष्कर्ष – Conclusion
नवरात्रि के दौरान लोग 9 दिन तक कठिन साधना एवं नियमों का पालन करते हुए व्रत धारण करते हैं तथा मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की पूजा अर्चना करते हैं। नवरात्र में इस पूजा को करने का बहुत अधिक महत्व है।
माता के हर स्वरूप से हमें कुछ प्रेरणा मिलती है। इन दिनों सच्चे मन से, नि:स्वार्थ भाव से माता की उपासना करने पर माता रानी अपने भक्तों पर अवश्य प्रसन्न होती हैं तथा उन पर अपना आशीर्वाद बनाए रखती है।
FAQ
प्रश्न – चैत्र नवरात्रि 2023 कब है ?
उत्तर –इस वर्ष चैत्र नवरात्रि 22 मार्च से प्रारंभ होकर 30 मार्च 2023 तक है ।
प्रश्न – एक वर्ष में नवरात्रि कितनी बार आती है ?
उत्तर – एक वर्ष में नवरात्रि 4 बार आती है ।
प्रश्न – 2023 में माघ गुप्त नवरात्रि कब है ?
उत्तर – इस वर्ष माघ गुप्त नवरात्रि 22 जनवरी से 30 जनवरी 2023 तक है।
प्रश्न – चैत्र नवरात्रि 2023 घट स्थापना मुहूर्त कब है ?
उत्तर –चैत्र नवरात्रि घट स्थापना शुभ मुहूर्त 22 मार्च 2023 सुबह 06:29 से 07:39 तक है ।
प्रश्न- नवरात्रि क्यों मनाई जाती है निबंध?
उत्तर-माँ दुर्गा के द्वारा महिषासुर के वध करने और आसुरी शक्तियों का विनाश करने के समय आश्विन मास का समय था, इसीलिए आश्विन मास की प्रतिपदा से नवमी तक नवरात्रि मनायी जाती है।
दोस्तों ! आज के इस लेख Navratri Essay in Hindi,नवरात्रि पर निबंध, Chaitra Navratri 2023 में हमने आपको नवरात्रि के पर्व के बारे में वृहत जानकारी उपलब्ध कराई है , हमें पूर्ण आशा है कि आपको यह जानकारी और यह लेख अवश्य पसंद आया होगा।
यदि आप में से किसी भी व्यक्ति को इस लेख से संबंधित कुछ जानकारी अथवा सवाल पूछना हो तो कमेंट बॉक्स में कमेंट करके हमसे पूछ सकते हैं।
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अंत में – हमारे आर्टिकल पढ़ते रहिए, हमारा उत्साह बढ़ाते रहिए, खुश रहिए और मस्त रहिए।
ज़िंदगी को अपनी शर्तों पर जियें ।
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