Essay on Navratri in Hindi | नवरात्रि पर निबंध | Shardiya Navratri 2022

शारदीय नवरात्रि शक्ति की आराधना का पर्व है यह हिंदू धर्म के लोगों का अत्यंत महत्वपूर्ण त्यौहार है। यह त्यौहार मां दुर्गा के नौ स्वरूपों को समर्पित है। हिंदू पंचांग के अनुसार शारदीय नवरात्रि का पर्व अश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारंभ होकर नवमी तक होता है। इस वर्ष शारदीय नवरात्रि का पर्व 26 सितंबर से प्रारंभ होकर 5 अक्टूबर 2022 तक रहेगा।

ऐसी मान्यता है कि नवरात्रि पर्व पर मां भगवती की विधि-विधान और सच्चे मन से पूजा अर्चना करने पर मां प्रसन्न होती हैं, और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। दुर्गा मां को धन व सुख समृद्धि की देवी के रूप में माना जाता है। इस अवसर पर आदिशक्ति मां भगवती की 9 दिनों तक व्रत का पालन करते हुए उपासना की जाती है।

हमारे देश में एक ही वर्ष में दो बार मनाया जाने वाला नवरात्रि का त्यौहार इकलौता पर्व है। यह पर्व ऋतु-संधि के दौरान अर्थात एक बार ग्रीष्म ऋतु शुरू होने के समय पर तथा दूसरी बार शरद ऋतु शुरू होने पर मनाया जाता है।

प्रिय पाठकों ! हमारे इस लेख Essay on Navratri in Hindi | नवरात्रि पर निबंध | Shardiya Navratri 2022 में हम आपके लिए लेकर आए हैं हमारे देश के महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार नवरात्रि पर निबंध। दोस्तों आगामी परीक्षाओं या विद्यालय में आयोजित होने वाले निबंध और भाषण प्रतियोगिता में यह निबंध आपके लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होगा ।

आप हमारे इस लेख से नवरात्रि पर निबंध कैसे लिखा जाता है, इस कला को सीख कर अपने विद्यालय में विभिन्न प्रतियोगिताओं तथा परीक्षाओं में इसका प्रयोग करके सफलता प्राप्त कर सकते हैं। तो आइए शुरू करते हैं Essay on Navratri in Hindi | नवरात्रि पर निबंध | Shardiya Navratri 2022, नवरात्रि कब है

Table of Contents

Essay on Navratri in Hindi | नवरात्रि पर निबंध | Shardiya Navratri 2022

बिन्दु जानकारी
त्यौहार का नामनवरात्रि (शारदीय नवरात्रि)
अन्य नामनौराते, नवरात्र, नवराते
त्यौहार मनाने का समय अश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवमी तिथि तक
2022 में शारदीय नवरात्रि 26 सितंबर से प्रारंभ होकर 5 अक्टूबर 2022 तक
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Essay on Navratri in Hindi
shardiya navratri 2022

एक वर्ष में 4 नवरात्रि- 4 Navratri in a Year

चारों नवरात्रि का समयचैत्र, आषाढ़ , अश्विन , माघ
तिथिप्रतिपदा से प्रारंभ होकर नवमी तक

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कम लोग ही जानते हैं कि 1 वर्ष में 4 नवरात्रि होती हैं । देवी पुराण के अनुसार प्रति वर्ष क्रमशः चैत्र, आषाढ़ , अश्विन व माघ माह में चार बार नवरात्रि आती हैं, परन्तु इनमें से केवल दो नवरात्रि ( चैत्र एवं अश्विन माह ) का ही विशेष महत्व है । इनके अतिरिक्त आषाढ़ तथा माघ माह की शेष दो नवरात्रि गुप्त रहती हैं, इसी कारण अधिकांश लोगों को इनके बारे में जानकारी नहीं है, इसीलिए इन्हें गुप्त नवरात्रि भी कहा जाता है।

यह दोनों गुप्त नवरात्रि गृहस्थों के लिए नहीं होती । इन दो गुप्त नवरात्रि में ऋषि मुनि व तांत्रिक पूजा अर्चना तथा साधना करते हैं। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह दोनों गुप्त नवरात्रि जून-जुलाई और जनवरी-फरवरी में आती हैं। यहाँ हम आपको केवल चैत्र व शारदीय नवरात्रि के बारे में बता रहे हैं। शेष नवरात्रि की विस्तृत जानकारी के लिए पढ़ें –

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चैत्र नवरात्रि – Chaitra Navratri

चैत्र नवरात्रि हिंदू पंचांग के अनुसार वर्ष के प्रथम मास अर्थात् चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि ( पहली तिथि ) से आरंभ होती है, और 9 दिन अर्थात् नवमी तक चलती है। चैत्र मास में मनाए जाने के कारण इसे चैत्र नवरात्रि कहा जाता है । इन्हें वासंतीय नवरात्र भी कहा जाता है। अंग्रेज़ी कैलेंडर के हिसाब से यह पर्व प्रत्येक वर्ष मार्च अथवा अप्रैल के महीने में मनाया जाता है । 

शारदीय नवरात्रि – Shardiya Navratri

हिन्दू पंचांग के अनुसार शारदीय नवरात्रि अश्विन मास में आती है । अश्विन मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शारदीय नवरात्रि आरंभ होती है, और नवमी तिथि तक चलती हैं । अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार सितंबर अक्टूबर में आने वाली यह नवरात्रि मुख्य नवरात्रि के रूप में मनाई जाती है। इस नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि के नाम से जाना जाता हैं। नवरात्रि की नवमी तिथि के पश्चात दशमी तिथि को दशहरा अथवा विजयदशमी पर्व के रूप में सम्पूर्ण देश में बड़ी धूम और हर्सोल्लास से मनाते हैं।

नवरात्रि का इतिहास – History of Navratri / नवरात्रि पर्व क्यों मनाते हैं ? Why Navratri is Celebrated ?

प्रथम मान्यता –

नवरात्रि में आदिशक्ति मां भगवती के नौ रूपों की उपासना की जाती है। नवरात्रि का आरंभ कैसे हुआ इस प्रश्न को लेकर कई पौराणिक मान्यताएं हैं-

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प्रथम मान्यता के अनुसार भगवान राम के द्वारा लंका के राजा रावण का वध कराने हेतु देव ऋषि नारद जी ने भगवान श्रीराम से इस व्रत को करने का अनुरोध किया था। यह व्रत पूर्ण होने के पश्चात श्रीराम ने लंकापति रावण के साथ युद्ध किया और अंततः उसका वध किया। ऐसा माना जाता है कि तभी से कार्य सिद्धि के लिए लोग इस व्रत का पालन करते हैं।

द्वितीय मान्यता –

एक दूसरी मान्यता के अनुसार मां भगवती ने महिषासुर नाम के असुर का संहार करने के लिए प्रतिपदा के दिन से नवमी तक अर्थात 9 दिनों तक उसके साथ युद्ध किया और अंत में नवमी की रात्रि को उस राक्षस का संहार किया। इसलिए मां दुर्गा को ‘महिषासुरमर्दिनी’ भी कहा जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार तभी से आदि शक्ति मां दुर्गा की शक्ति को समर्पित यह नवरात्र के व्रत किए जाते हैं।

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शारदीय नवरात्रि 2022 की तिथि व मुहूर्त/नवरात्रि कब है – Shardiya Navratri 2022 : Date and Muhurt

वर्ष 2022 में शारदीय नवरात्रि की तिथि व मुहूर्त निम्न प्रकार हैं –

बिन्दु जानकारी
शारदीय नवरात्रि 26 सितंबर से 5 अक्टूबर तक
अश्विन शुक्ल पक्ष, प्रतिपदा प्रारंभ 26 सितंबर 2022, सोमवार , प्रातः 03:24 से  
अश्विन शुक्ल पक्ष, प्रतिपदा समापन   27  सितंबर 2022, मंगलवार , प्रातः 03:08 तक
अभिजीत मुहूर्त 26 सितंबर प्रातः 11:54 से दोपहर 12:42 तक   
महा अष्टमी 3 अक्टूबर 2022, सोमवार
महा नवमी 4 अक्टूबर 2022, मंगलवार

8 या 9 कितने दिन के होंगे शारदीय नवरात्रि 2022-

इस वर्ष शारदीय नवरात्रि 26 सितंबर से प्रारंभ होकर 5 अक्टूबर 2022 तक होंगे अर्थात् इस बार नवरात्रि पूरे नौ दिन मनाई जाएगी । इस वर्ष किसी भी तिथि का क्षय नहीं है ।

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2022 में शारदीय नवरात्रि की तिथियाँ व माँ दुर्गा के रूप –

इस वर्ष शारदीय नवरात्रि की तिथियाँ निम्न प्रकार हैं –

तारीख तिथि दिन माँ का स्वरूप
26 सितंबर 2022 प्रतिपदा/पहला दिनसोमवार माँ शैलपुत्री का दिन व पूजा
27 सितंबर 2022 द्वितीया/दूसरा दिनमंगलवार माँ ब्रह्मचारिणी का दिन व पूजा
28 सितंबर 2022 तृतीया/तीसरा दिनबुद्धवार माँ चंद्रघंटा का दिन व पूजा
29 सितंबर 2022 चतुर्थी/चौथा दिनबृहस्पतिवार माँ कूष्माण्डा का दिन व पूजा
30 सितंबर 2022 पंचमी/पाँचवाँ दिनशुक्रवार माँ स्कन्दमाता का दिन व पूजा
1 अक्टूबर 2022 षष्ठी/छठा दिनशनिवार माँ कात्यायनी का दिन व पूजा
2 अक्टूबर 2022 सप्तमी/सातवाँ दिनरविवार माँ कालरात्रि का दिन व पूजा
3 अक्टूबर 2022 अष्टमी/आठवाँ दिनसोमवार माँ महागौरी का दिन व पूजा
4 अक्टूबर 2022 नवमी/नौवां दिनमंगलवार माँ सिद्धिदात्री का दिन व पूजा/व्रत पारण
5 अक्टूबर 2022 दसवीं/दसवां दिनबुद्धवार माँ दुर्गा विसर्जन/दशहरा

नवरात्रि के पीछे वैज्ञानिक कारण – Scientific Reason Behind Navratri

Essay on Navratri in Hindi | नवरात्रि पर निबंध | Shardiya Navratri 2022 के इस लेख में आज हम आपको ये बताएंगे कि नवरात्रि त्यौहार को मनाने के पीछे केवल धार्मिक आस्था ही नहीं अपितु सबल वैज्ञानिक आधार भी है। जिसको हम इस प्रकार समझ सकते हैं।

पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा पूरा करने में 1 वर्ष का समय लेती है और इस 1 वर्ष में 4 ऋतु-संधियाँ ( दो ऋतुओं के मिलन का समय ) पड़ती हैं। इनमें से दो बार मार्च व सितंबर में साल की दो महत्वपूर्ण नवरात्रि आती हैं। चूँकि ऋतु परिवर्तन के समय रोगाणुओं के आक्रमण की संभावना प्रबल होती है अतः ऋतु-संधि के समय अक्सर बीमारियां बढ़ती हैं ।

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नवरात्रि के दौरान 9 दिनों तक लगभग सभी लोग बड़ी संख्या में घर पर हवन आदि करते हैं, वातावरण में व्याप्त समस्त रोगाणु को हवन से निकलने वाला धुआँ नष्ट करता है, तथा वातावरण को रोगाणु मुक्त व शुद्ध करता है।

इस प्रकार यह बात सिद्ध होती है कि साल में दो बार नवरात्रि का आयोजन, ठीक ऋतु परिवर्तन के समय करने का वैज्ञानिक आधार है।

नवरात्रि में माँ के नौ स्वरूप –

नवरात्रि के हर दिन मां भगवती के एक अलग स्वरूप की पूजा-अर्चना की जाती है । आइए जानते हैं साधक किस दिन मां के किस स्वरूप की उपासना करते हैं –

माँ शैलपुत्री – ( पहला दिन )

मां दुर्गा का पहला स्वरूप शैलपुत्री का है। पर्वतराज हिमालय के घर में पुत्री के रूप में उत्पन्न होने के कारण इनको शैलपुत्री कहा जाता है। मां शैलपुत्री वृषभ पर आरूढ़ हैं तथा दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल पुष्प धारण किए हुए हैं। शैलपुत्री माता नवदुर्गाओं में सर्वप्रथम दुर्गा हैं ।

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नवरात्रि में पहले दिन शैलपुत्री माँ की ही पूजा की जाती है। पहले दिन साधक स्वयं के मन को “मूलाधार” चक्र में स्थित रखते हैं, और पहले दिन से ही उनकी योग साधना शुरू होती है।

माँ ब्रह्मचारिणी – ( दूसरा दिन )

मां दुर्गा की नौ शक्तियों में से दूसरा स्वरूप है ब्रह्मचारिणी का। “ब्रह्म” शब्द का अर्थ तपस्या से है। ब्रह्मचारिणी का अर्थ होता है तप की चारिणी अर्थात् तप का आचरण करने वाली। इनके बाएं हाथ में कमंडल और दाएं हाथ में जप की माला रहती है।

मां दुर्गा का यह दूसरा स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल प्रदान करने वाला है । दुर्गा पूजा के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन ” स्वाधिष्ठान” चक्र में स्थित होता है।

माँ चंद्रघण्टा – ( तीसरा दिन )

मां दुर्गा की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघण्टा है। नवरात्र के तीसरे दिन इन्हीं का पूजन व आराधना की जाती है। इनके मस्तक में घंटे के आकार का अर्धचंद्र है। इसी कारण इस देवी का नाम चंद्रघण्टा पड़ा। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है तथा इनका वाहन सिंह है।

माँ कूष्माण्डा – ( चौथा दिन )

माता दुर्गा के चौथे स्वरूप का नाम कूष्माण्डा है। अपनी मंद और हल्की हंसी के द्वारा ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इनका नाम कूष्माण्डा पड़ा। माता कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की पूजा नवरात्रि के चौथे दिन की जाती है। साधक का मन इस दिन “अनाहज” चक्र में स्थित होता है ।

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माँ स्कन्दमाता – ( पाँचवाँ दिन )

मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता कहा जाता है। यह भगवान स्कन्द (कुमार कार्तिकेय ) की माता होने के कारण स्कन्दमाता के नाम से जानी जाती हैं। इनकी उपासना नवरात्रि के पांचवे दिन की जाती है। इस दिन साधक का मन “विशुद्ध” चक्र में स्थित रहता है। इनका वर्ण शुभ्र है, यह कमल के आसन पर विराजमान हैं, इसीलिए ये पद्मासना भी कहलाती हैं, स्कंदमाता का भी वाहन सिंह है।

माँ कात्यायनी- ( छठा दिन )

मां दुर्गा के छठे स्वरूप को कात्यायनी कहते हैं। कात्यायनी महर्षि कात्यायन की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर उनकी इच्छा के अनुसार उनके घर में पुत्री के रूप में पैदा हुई थी। महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी उपासना की थी इसी कारण यह कात्यायनी के नाम से प्रसिद्ध हैं। दुर्गा पूजा के छठे दिन इनके स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन “आज्ञा चक्र” में  स्थित रहता है।

माँ कालरात्रि- ( सातवाँ दिन )

दुर्गा माँ के सातवें दिन के स्वरूप को माँ कालरात्रि कहते है। इनका स्वरूप देखने में अत्यधिक भयानक है परन्तु माँ कालरात्रि हमेशा शुभ फल देती हैं, इसीलिए माँ के इस स्वरूप को शुभंग्करी भी कहते हैं। नवरात्रि व्रत के सातवें दिन इनकी पूजा की जाती है। नवरात्रि के सातवें दिन व्यक्ति का मन “सहस्रार” चक्र में उपस्थित रहता है। कालरात्रि माता ग्रह बाधाओं को दूर कर दुष्टों का संहार करती हैं।  

माँ महागौरी- ( आठवाँ दिन )

दुर्गा माँ के आठवें स्वरूप को महागौरी माँ के नाम से जाना जाता है। नवरात्रि में अष्टमी के दिन महागौरी माता की पूजा-अर्चना की जाती है । महागौरी माता अमोघ शक्ति से पूर्ण और सद्यः फल देने वाली है। इनकी पूजा-अर्चना करने से साधकों के सभी पापों का विनाश होता हैं।

माँ सिद्धिदात्री- ( नौवां दिन )

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मां दुर्गा के नौवें स्वरूप को माता सिद्धिदात्री कहते हैं। जैसा कि नाम से ही प्रकट है यह सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करने वाली हैं। सिद्धिदात्री माता नवदुर्गाओं में अंतिम दुर्गा हैं। साधकों की समस्त मनोकामनाएं माता सिद्धिदात्री की पूजा-अर्चना के बाद पूर्ण हो जाती हैं।

नवरात्रि की पूजा विधि तथा सामग्री- Navratri Puja Vidhi and Samagri

माता दुर्गा के साधक भक्तों को स्नान करके शुद्ध होकर, वस्त्र धारण करके पूजा स्थल को सजाना चाहिए। पूजा मंडप में मां दुर्गा की मूर्ति स्थापित करनी चाहिए। मूर्ति के दाएं और कलश स्थापना करनी चाहिए। पूजन में सबसे पहले श्री गणेश भगवान की पूजा करके बाद में मां जगदंबा का पूजन करना चाहिए।

पूजा सामग्री के लिए पान, सुपारी, लौंग , इलायची, आसन, जल, गंगाजल, रेशमी वस्त्र, उप वस्त्र, नारियल, चंदन, रोली, कलावा, अक्षत, पंचामृत, दूध, दही, घी , शहद, शक्कर, ऋतु फल, चौकी, पूजन पात्र आरती, कलश,  पुष्प, पुष्पमाला, धूप, दीप, नेवैद्य आदि सामान एकत्र करना चाहिए।

नवदुर्गा की प्रार्थना करने से पहले मस्तक पर भस्म, चंदन , रोली का टीका लगाना चाहिए। नवदुर्गा की प्रार्थना के पश्चात कवच का पाठ करना चाहिए। इसके बाद अर्गला और कीलक का पाठ करना चाहिए। तत्पश्चात रात्रि सूक्त का पाठ करना चाहिए। और इसके बाद सप्तशती का पाठ प्रारंभ करना चाहिए।

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नवरात्रि के प्रथम दिन कलश स्थापना विधि –

नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना हेतु निम्नलिखित कार्य करने चाहिए –

  • नवरात्रि के पहले दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करके पूजा-स्थल को स्वच्छ कर लेना चाहिए।
  • कलश को गंगाजल से शुद्ध करके ही कलश स्थापना करनी चाहिए और उसके बाद ही माँ का आह्वान करना चाहिए ।
  • नवरात्रि के प्रथम दिन कलश की स्थापना करके सबसे पहले गणेश भगवान की पूजा-अर्चना करनी चाहिए ।
  •  कलश में गंगाजल भरकर पूजा-वेदी पर स्थापित करते हैं और उसे आम के पत्तों से सजाते हैं और हल्दी की गांठ , दूर्वा घास व सुपारी रखनी चाहिए ।
  •  सर्वप्रथम मिट्टी की एक वेदी बनानी चाहिए फिर उसमें जौं बोने चाहिए, फिर  उसके ऊपर कलश को स्थापित करना चाहिए ।
  • कलश स्थापित करने के बाद उस पर कलावा बांधना चाहिए ।
  • नारियल में लाल चुनरी लपेटकर कलश के मुख पर रखनी चाहिए ।
  • रोली का प्रयोग करके कलश पर एक स्वास्तिक बनाना चाहिए ।

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कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त – Shardiya Navratri 2022-

घट स्थापना मुहूर्त 26 सितंबर 2022, प्रातः 6:20 से प्रातः 10:19 तक

शारदीय नवरात्रि का महत्व – Significance of Shardiya Navratri

Essay on Navratri in Hindi | नवरात्रि पर निबंध | Shardiya Navratri 2022 लेख में हम जानेंगे कि शारदीय नवरात्रि का मनुष्य की आत्माशुद्धि और मोक्ष के लिए विशेष महत्व है । 

आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो प्रत्येक नवरात्रि का अपना आध्यात्मिक महत्व है, क्योंकि यह पुरुष और प्रकृति के संयोग का समय है। प्रकृति को मातृशक्ति माना जाता है इसीलिए नवरात्र में माँ दुर्गा की पूजा-अर्चना की जाती है।

मनुष्य अपनी हर प्रकार की इच्छाओं को पूरा करने के उद्देश्य से नौ दिनों तक व्रत करता है इन दिनों दैविक शक्तियां उसकी इन कामनाओं को पूरा करने में सहायता करती हैं,  इसी कारण से नवरात्रि का आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत महत्व है।

ज्योतिषीय दृष्टिकोण से भी नवरात्रि को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि सूर्य 12 राशियों में भ्रमण पूरा करने के पश्चात पुनः अगला चक्र पूर्ण करने हेतु फिर से पहली राशि ( मेष ) में प्रवेश करते हैं। और इस दौरान सूर्य का नयी राशि में परिवर्तन होता है।

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सूर्य और मेष दोनों का ही तत्व अग्नि है अतः दोनों के संयोग से गर्मी का आरंभ हो जाता है। नवरात्रि अर्थात चैत्र मास से ही नये पंचांग की शुरुआत होती है, अतः आगामी जीवन को खुशहाल बनाने के लिए माँ दुर्गा की पूजा  से नए वर्ष की शुरुआत की जाती है।

धार्मिक दृष्टिकोण से नवरात्रि का बिल्कुल अलग ही महत्व माना गया है। ऐसा माना जाता है कि इस समयावधि में आदिशक्ति मां भगवती स्वयं पृथ्वी पर विचरण कर रही होती हैं नवरात्रि  की पूजा अर्चना से मनुष्य को अन्य दिनों की अपेक्षा शीघ्र फल की प्राप्ति हो जाती है।

नवरात्रि के धार्मिक महत्व के लिए एक और महत्वपूर्ण मान्यता यह है कि श्री ब्रह्मा जी ने सृष्टि के निर्माण का कार्य इसी दिन प्रारंभ किया था, क्योंकि नवरात्रि के प्रथम दिन आदिशक्ति मां भगवती प्रकट हुई थी ।

नवरात्रि त्योहार के बारे में 9 लाइन -9 Lines about Navratri Festival

  • नवरात्रि को लोग नवराते, नवरात्र, नौराते,  आदि दूसरे नामों से भी पुकारते हैं।
  • नवरात्रि का आठवां  दिन महा अष्टमी तथा नौवां दिन महा नवमी कहलाता है।
  • नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों रूपों की पूजा-अर्चना का विधान है, इनमें माँ काली के स्वरूप को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाता है।
  • नवरात्रि में 8 दिन तक लगातार उपवास करते हैं फिर 9 वें दिन व्रत का पारण करते हैं, और 9 छोटी कन्याओं को मां दुर्गा की मान्यता देते हुए भोजन कराकर उन्हें उपहार देकर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
  • गुजरात में नवरात्रि पर दुर्गा माँ के सुंदर पंडाल लगाकर उनमें माता की प्रतिमा स्थापित की जाती हैं तथा 9 दिनों तक माँ दुर्गा का गुणगान कीर्तन, भजन,  इत्यादि कार्यक्रम होते हैं और गरबा, डांडिया नृत्य का होता है।
  • बंगाल में दुर्गा पूजा बड़ी धूम-धाम से की जाती है, फिर माता की मूर्ति का जल में विसर्जन किया जाता है।
  • नवरात्र में कुछ लोग दिन में एक लौंग खाकर या पूरे नौ दिन तक केवल पानी पीकर कठोर व्रत धारण करते हुए दुर्गा माँ की साधना करते हुए उन्हें प्रसन्न करते हैं।
  • हमारे प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेंद्र मोदी जी केवल जल ग्रहण करते हुए संपूर्ण नवरात्रि ( 9 दिनों तक ) व्रत धारण करते हैं।
  • नवरात्रि के 9 दिनों तक पूजा अर्चना व भजन-कीर्तन करते हुए बहुत ही सादगी पूर्ण जीवन व्यतीत करना चाहिए तथा चमड़े के जूते, बेल्ट, पर्स, आदि नहीं पहनने चाहिए।

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नवरात्रि व्रत के महत्वपूर्ण नियम –

नवरात्रि में व्रत धारण करने वाले साधकों के लिए कुछ नियमों का पालन करना अनिवार्य होता है, ऐसे ही कुछ महत्वपूर्ण नियम यहां दिए गए हैं –

  • नवरात्रि के 9 पवित्र दिनों में व्रत धारण करने वाले साधकों से माँ दुर्गा की साधना में कोई भूल नहीं होनी चाहिए और सभी विधि-विधान का सख्ती से पालन होना चाहिए।
  • नवरात्रि के प्रथम दिन अपना करके व्रत प्रारंभ किया जाता है और मां शेरावाली की सुबह-शाम पूजा अर्चना की जाती है।
  • ज्यादातर परिवारों में रोज शाम को लोग घर में मां दुर्गा के भजन गाते हैं, जबकि कुछ लोग नवरात्रि में माँ शेरावाली के जागरण भी कराते हैं।
  • नवरात्रि में व्रत रखने वाले साधक व्रत में कूटू के आटे से बनी व्रत सामग्री व भोजन को ग्रहण करते हैं, जबकि कुछ लोग नवरात्र के दिनों में फलाहार करते हैं।
  • कुछ परिवारों में नवरात्रि के दिनों में अखंड ज्योत जलाई जाती है इस ज्योत में देशी घी अथवा तिल के तेल का प्रयोग किया जाता है।
  • कुछ परिवारों में माता की अखंड ज्योत जलाई जाती है, वहाँ  इस बात का ध्यान रखा जाता है कि अखंड ज्योत किसी भी तरह बुझनी नहीं चाहिए।
  • नवरात्रि के दौरान साधकों को ब्रह्मचर्य का पालन करना करते हुए व्रत व साधना करनी चाहिए।
  • प्रत्येक परिवार में अपनी परंपरा के अनुसार महा अष्टमी या महा नवमी के दिन छोटी कन्याओं को भोजन कराया जाता है, और इस प्रकार नवरात्रि के व्रत का समापन किया जाता है।

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निष्कर्ष – Conclusion

नवरात्रि के पर्व पर लोग कठिन साधना करते हुए व्रत लेते हैं तथा दुर्गा माँ के 9 स्वरूपों की साधना  करते हैं। नवरात्र में इस पूजा को करने का बहुत अधिक महत्व है, माता के हर स्वरूप से हमें कुछ प्रेरणा मिलती है। इन दिनों सच्चे मन से, निस्वार्थ भाव से माता की उपासना करने पर माता रानी अपने भक्तों पर अवश्य प्रसन्न होती हैं तथा उन पर अपना आशीर्वाद बनाए रखती हैं ।

FAQ

प्रश्न – शारदीय नवरात्रि 2022 कब है ?

उत्तर – इस वर्ष शारदीय नवरात्रि 26 सितंबर से प्रारंभ होकर 5 अक्टूबर 2022 तक है ।

प्रश्न – नवरात्रि एक वर्ष में कितनी बार आती है ?

उत्तर – 4 बार  

प्रश्न – शारदीय नवरात्रि 2022 घट स्थापना मुहूर्त कब है ?

उत्तर – शारदीय नवरात्रि घट स्थापना शुभ मुहूर्त 26 सितंबर 2022, प्रातः 6:20 से प्रातः 10:19 तक है।

हमारे शब्द –

दोस्तों ! आज के इस लेख Essay on Navratri in Hindi | नवरात्रि पर निबंध | Shardiya Navratri 2022 में हमने आपको नवरात्रि के पर्व के बारे में वृहत जानकारी उपलब्ध कराई है , हमें पूर्ण आशा है कि Essay on Navratri in Hindi में आपको यह जानकारी और लेख अवश्य पसंद आया होगा। यदि आप में से किसी भी व्यक्ति को इस लेख से संबंधित कुछ जानकारी अथवा सवाल पूछना हो तो कमेंट बॉक्स में कमेंट करके हमसे पूछ सकते हैं।

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