गणेश चतुर्थी 2023 | जानें गणपति जी की स्थापना का शुभ मुहूर्त | Ganesh Chaturthi Essay in Hindi

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गणेश चतुर्थी हिंदू धर्म के लोगों का प्रमुख पर्व है। यह पर्व संपूर्ण भारत में बड़ी धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, परंतु महाराष्ट्र में इस पर्व का विशेष महत्व है।

1893 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने पुणे,  महाराष्ट्र में गणेशोत्सव की शुरुआत की। हिंदू पुराणों के अनुसार इसी दिन भगवान गणेश का जन्म हुआ था। भगवान गणेश को बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के देवता के रूप में पूजा जाता है।

इस दिन बड़े-बड़े पंडालों में भगवान गणेश की विशाल प्रतिमाओं को स्थापित किया जाता है, 10 दिन उनकी पूजा अर्चना करने के बाद अनंत चतुर्दशी के दिन उनकी प्रतिमा को गाजे-बाजे के साथ नाचते-गाते विदा कर जल में विसर्जित कर दिया जाता है।

दोस्तों ! आइए हम भगवान गणेश के जन्मोत्सव पर मनाए जाने वाले गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) पर्व के बारे में अपने इस निबंध Ganesh Chaturthi Essay in Hindi | गणेश चतुर्थी निबंध, 2023 में विस्तार पूर्वक आपको संपूर्ण जानकारी देते हैं।

इस निबंध को पढ़कर छात्र आगामी परीक्षाओं में गणेश चतुर्थी निबंध लिखने में सक्षम हो सकेंगे, आपसे अनुरोध है Ganesh Chaturthi Essay in Hindi को अंत तक अवश्य पढ़ें। तो आइए दोस्तों जानते हैं Ganesh Chaturthi Essay in Hindi के बारे में।

Ganesh Chaturthi Essay in Hindi | गणेश चतुर्थी निबंध, 2023

बिन्दु जानकारी
त्यौहार का नाम गणेश चतुर्थी
अन्य नाम गणेश चौथ, गणेशोत्सव
अनुयायी हिन्दू धर्म
तिथि भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी
उत्सव दस दिन
समापन ( विसर्जन ) अनंत चतुर्दशी

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प्रस्तावना –

गणेश चतुर्थी अथवा गणेशोत्सव हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह त्यौहार भगवान गणेश के जन्म के उपलक्ष में मनाया जाता है। वैसे तो पूरे देश में इस त्यौहार को पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं।

परंतु महाराष्ट्र में इस पर्व को बहुत जोश और धूमधाम से मनाते हैं, महाराष्ट्र में इस पर्व की छटा दर्शनीय होती है।गणेश जी, भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र हैं। वह हिंदू देवताओं में प्रथम पूजनीय माने जाते हैं।

Ganesh Chaturthi Essay in Hindi
Ganesh Chaturthi Essay in Hindi

गणेश चतुर्थी पर्व कब मनाया जाता है ? –

भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को हर वर्ष गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है।

2023 में गणेश चतुर्थी कब है ? –

ज्योतिषियों के अनुसार गणेश चतुर्थी 2023 इस बार 19 सितंबर दिन मंगलवार को पड़ रही है। गणेश चतुर्थी 19 सितंबर से प्रारंभ होकर 28 सितंबर 2023 को अनंत चतुर्दशी पर समाप्त होगी। और अंतिम दिन गणपती बप्पा की मूर्ति का विर्सजन किया जाएगा।

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गणपति स्थापना का शुभ मुहूर्त – Ganesh Chaturthi 2023 Sthapana Muhurat

गणेश चतुर्थी के दिन गणपती बप्पा जी की मूर्ति की स्थापना शुभ मुहूर्त में ही करना चाहिए, ऐसा करने से घर में शुभ और लाभ की प्राप्ति होती है। भगवान गणेश आपके परिवार के सभी दुख हर लेते हैं। इस वर्ष सन 2023 में गणेश स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त निम्न प्रकार रहेगा-

भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी तिथि प्रारंभ
18 सितंबर 2023, दोपहर 12:39 बजे
भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी तिथि समाप्त 19 सितंबर 2023, दोपहर 01:43 बजे
गणेश स्थापना समय 19 सितंबर 2023, प्रातः 11:07 से दोपहर 01:34

गणेश चतुर्थी उत्सव मनाने का कारण –

भगवान गणेश बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के देवता के रूप में जाने जाते हैं, हमारे देश में गणेश उत्सव को बड़े धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ 10 दिनों तक मनाया जाता है।

इस त्योहार को मनाने के पीछे एक कथा को कारण माना जाता है, वह कथा निम्न प्रकार है-

हिंदू पुराणों के अनुसार माता पार्वती के पुत्र गणेश का जन्म गणेश चतुर्थी के दिन हुआ था। एक पौराणिक कथा के अनुसार जब महर्षि वेदव्यास जी ने महाभारत की रचना की तो उसे लिपिबद्ध करने के लिए उन्होंने भगवान गणेश का आह्वान किया।

माना जाता है कि लेखन कार्य में गणपति जी की गति सबसे तेज है। ऐसा माना जाता है कि गणेश चतुर्थी के दिन ही वेदव्यास जी ने महाभारत की रचना के लिए श्लोक बोलनाऔर गणेश जी ने उन श्लोकों को लिपिबद्ध करना प्रारंभ किया था।

गणेश जी 10 दिन तक बिना रुके लेखन कार्य करते रहे, माना जाता है कि इन 10 दिनों तक लगातार लेखन कार्य करने के कारण गणेश जी पर मिट्टी और धूल की परत चढ़ गई दसवें दिन गणेश जी ने स्वयं को साफ स्वच्छ करने के लिए सरस्वती नदी में स्नान किया।

जिस दिन उन्होंने नदी में स्नान किया वह अनंत चतुर्दशी का दिन था। ऐसा माना जाता है कि इसी कथा के आधार पर ही गणेश स्थापना और विसर्जन की परंपरा को निभाया जाता है।

महाराष्ट्र में गणेश उत्सव की शुरुआत कैसे हुई ?

1893 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने पुणे, महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी उत्सव की शुरुआत की। हालांकि उससे पहले भी महाराष्ट्र में यह उत्सव मनाया जाता था परंतु तब यह केवल घरों में व्यक्तिगत रूप से ही मनाया जाता था।

तब आज की तरह सार्वजनिक रूप से पांडाल में गणपति नहीं विराजते थे। बाल गंगाधर तिलक उस समय ‘स्वराज’ के लिए आंदोलनरत थे, और उन्हें देश में इस आंदोलन के लिए लोगों को एकजुट करने व अपनी बात को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने के लिए एक मंच की जरूरत थी।

और इस कार्य के लिए गणेशोत्सव सर्वश्रेष्ठ मंच था, अतः उन्होंने इसे ही चुना। और इस पर्व को अनोखा और भव्य रूप प्रदान किया।

बाल गंगाधर की सोच के अनुसार ही सम्पूर्ण महाराष्ट्र में भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी ( भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी ) तक 11 दिनों तक गणेशोत्सव मनाया जाने लगा। उसके बाद देश के अन्य राज्यों में भी इस त्यौहार को धूमधाम से मनाया जाने लगा।

Ganesh Chaturthi Essay in Hindi
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गणेश चतुर्थी का महत्व – Significance of Ganesh Chaturthi

भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी के रूप में मनाते हैं क्योंकि इसी तिथि को भगवान गणेश जी का जन्म हुआ था।

भगवान शिव के आशीर्वाद के कारण गणेश जी देवताओं में प्रथम पूजनीय हैं अतः हर शुभ कार्य करने से पूर्व गणपति जी का पूजन अवश्य किया जाता है।

गणेश जी को बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य का देवता माना जाता है, अतः उनकी पूजा अर्चना से जो उन्हें मना लेता है उसके घर में समृद्धि का वास होता है।

इसी कारण भगवान गणेश और उनके जन्म दिवस को पूर्ण हर्सोल्लास के साथ मनाया जाता है ।

भगवान गणेश का जन्म कैसे हुआ ?

भगवान गणेश का जन्म कैसे हुआ इसके बारे में अलग-अलग पुराणों में अलग-अलग रोचक कथाओं का वर्णन मिलता है, आइए Ganesh Chaturthi Essay in Hindi लेख में जानते हैं इनके बारे में –

पहली कथा –

स्कंद पुराण में स्कंद अर्बुद खंड में गणेश भगवान के जन्म से जुड़ी कथा मिलती है, जिसके अनुसार भगवान शंकर ने पार्वती माता को पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया था, जिसके फलस्वरूप भगवान गणेश ने अर्बुद पर्वत ( माउंट आबू ) पर जन्म लिया था।

माउंट आबू को इसी कारण अर्धकाशी के नाम से भी जाना जाता है। भगवान गणेश के जन्म के पश्चात समस्त देवी देवताओं ने इस पर्वत की परिक्रमा की, और साधु-संतों ने उस स्थान पर भगवान गणेश की एक प्रतिमा गोबर से बना कर स्थापित की थी, वर्तमान में यह मंदिर ‘सिद्धि गणेश’ के नाम से विख्यात है।

दूसरी कथा –

वराह पुराण में गणेश जन्म के बारे में एक और कथा का वर्णन मिलता है, कि भगवान शिव ने पंचतत्व से गणेश जी को बनाया।

कथा के अनुसार जब भगवान शिव गणेश जी को बना रहे थे तब अन्य देवताओं को इस बात का पता चला कि, भगवान शिव अत्यंत खूबसूरत तथा गुणवान गणेश जी का निर्माण कर रहे हैं।

यह बात देवताओं को डराने लगी कि गणेश निर्माण के बाद वही सबके आकर्षण का केंद्र होंगे और फिर देवताओं का महत्व समाप्त हो जाएगा।

देवताओं के इस भय को भगवान शिव ने जान लिया और उन्होंने जानबूझकर गणेश जी के पेट का आकार बड़ा कर दिया, और उनके शरीर पर हाथी का मस्तक लगा दिया।

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तीसरी कथा –

पुराणों के अनुसार भगवान गणेश के जन्म के बारे में एक और कथा प्रचलित है, इस कथा के अनुसार मां पार्वती ने पुत्र प्राप्ति के लिए कठोर तपस्या की थी।

इनकी तपस्या से प्रभावित होकर गणेश भगवान ने उन्हे यह आशीर्वाद दिया कि बिना गर्भधारण किए उन्हें एक बुद्धिमान एवं दिव्य पुत्र की प्राप्ति होगी।

इस समाचार से कैलाश पर चारों ओर हर्षोल्लास का वातावरण हो गया, सभी बाल गणेश को देखने कैलाश पर आए ।

इस उत्सव में शामिल होने के लिए शनिदेव भी पहुंचे थे, माता पार्वती ने शनिदेव से बाल गणेश को आशीर्वाद देने के लिए कहा, परंतु शनिदेव अपनी दृष्टि की वजह से बाल गणेश की ओर देखना नहीं चाहते थे।

परंतु माता पार्वती के विवश करने पर जैसे ही शनिदेव ने बाल गणेश की ओर देखा, उनका सिर आकाश में उड़ गया, ऐसा होते ही चारों ओर हाहाकार मच गया।

तब गरुड़ जी से कहा गया कि वे जंगल से कोई सिर लेकर आए जो सबसे उत्तम हो, गरुड़ जी एक हाथी के बच्चे का सिर लेकर आए जिसे बाल गणेश के शरीर पर लगा दिया गया।

तत्पश्चात भगवान शिव ने उस बालक में पुनः प्राणों का संचार किया। और इस प्रकार गणेश जी के शरीर पर हाथी का मुख लग गया ।

चौथी कथा –

गणेश भगवान के जन्म के बारे में एक अन्य कथा शिव पुराण में भी मिलती है। जिसके अनुसार एक बार स्नान करते समय मां पार्वती ने अपने शरीर पर से मैल हटाने हेतु हल्दी के लेप का इस्तेमाल किया।

बाद में उस उबटन को उतार कर उससे एक पुतले का निर्माण कर उसमें प्राण डाल दिए, इस प्रकार गणेश भगवान का जन्म हुआ।

माता पार्वती ने बालक गणेश को आदेशित किया कि आप द्वार पर रहना, और इस बात का ध्यान देना कि कोई भी अंदर ना आ सके।

तब भगवान शंकर ने गरुण को आदेशित किया कि उत्तर दिशा की ओर जाकर देखो, जो माँ अपने बच्चे की ओर पीठ करके सो रही हो, उस बच्चे का सिर ले आना।

तब गरुड़ जी एक हाथी के बच्चे का सिर लेकर आए और उसे भगवान शिव को दिया, उन्होंने उस सिर को बाल गणेश के धड़ पर जोड़कर उसमें प्राण फूँक दिए, और इस प्रकार गणेश भगवान को हाथी का सिर लगा।

कुछ समय बाद भगवान शिव वहाँ आए और उन्होंने अंदर प्रवेश करना चाहा, परंतु बालक गणेश ने उन्हें इसकी अनुमति नहीं दी, दोनों पिता-पुत्र में विवाद हुआ और फिर इस विवाद ने युद्ध का रूप ले लिया।

इस युद्ध के दौरान भगवान शिव ने बाल गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया। जब माता पार्वती बाहर आई वह दृश्य देखकर वे बुरी तरह प्रलाप करने लगीं और उन्होंने भगवान शिव से अपने पुत्र को पुनः जीवन दान देने का आग्रह किया।

Ganesh Chaturthi Essay in Hindi
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गणेश उत्सव की तैयारी –

गणेश उत्सव के अवसर पर कई दिन पहले से तैयारियां की जाती हैं, उत्सव की तैयारी के लिए निम्न महत्वपूर्ण कार्यों को किया जाना चाहिए –

  • गणेशजी की मूर्ति का चयन करते वक्त यह देखना चाहिए कि उनकी सूंड बाईं ओर होनी चाहिए, तथा उनके पैर फर्श को स्पर्श कर रहे हों, ऐसी मूर्ति शुभ होती है।
  • गणेश मूर्ति की स्थापना के लिए पूजा पांडाल की जगह तथा दिशा पहले से ही निर्धारित कर लेनी चाहिए।
  • गणेश उत्सव के दौरान खूब मिठाईयां बांटी जाती है गणपति जी के भोग तथा मेहमानों में बांटी जाने वाली मिठाइयां पहले से ही निर्धारित कर लेनी चाहिए और तदनुसार उनकी व्यवस्था कर लेनी चाहिए।
  • गणेश उत्सव पर सजावट के लिए विभिन्न प्रकार के रंग बिरंगे फूल तथा अन्य सजावट का सामान प्रयोग किया जाता है, अतः इन सब सामानों की व्यवस्था समय से कर लेनी चाहिए।
  • गणपति जी का भोग लगाने के लिए उनका मनपसंद मोदक घरों में बनाए जाते हैं, मोदक बनाने का सभी सामान पहले ही बाजार से खरीद लेना चाहिए ताकि बाद में कोई परेशानी ना हो।

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गणेश पूजा का व्रत विधान एवं उसकी संपूर्ण जानकारी –

गणेशोत्सव पर गणपति के पूजन के चार प्रमुख रिवाज हैं । त्योहार के प्रथम दिन गणपति की मूर्ति स्थापना के साथ पहला रिवाज शुरू होता है। दूसरे रिवाज के अनुसार गणपति के 16 रूपों की पूजा की जाती है।

गणपति जी की प्रतिमा के स्थानांतरण के साथ तीसरा रिवाज पूर्ण होता है, और चौथे व अंतिम रिवाज में गणपति जी की प्रतिमा को विसर्जित कर दिया जाता है।

गणपति पूजा व व्रत विधान की संपूर्ण जानकारी निम्नप्रकार है –

  • सर्वप्रथम गणेश जी की प्रतिमा को स्वच्छ व उचित स्थान पर स्थापित करना चाहिए।
  • तत्पश्चात गणपति की प्रतिमा के सामने बैठकर ब्राह्मणों द्वारा मंत्र उच्चारण किया जाना चाहिए।
  • गणपति जी, माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा अर्चना करके अपने इष्ट देव, समस्त ग्रहों व पितरों को याद करते हुए उनकी पूजा अर्चना करना चाहिए।
  • उसके बाद कलश की स्थापना करनी चाहिए, कलश में सुगंधित पदार्थ के अतिरिक्त सप्तमृत्तिका गुग्गल इत्यादि द्रव्य डालने चाहिए।
  • भगवान शिव, माता पार्वती और गणपति जी को सिंहासन पर बैठा कर उन्हें यज्ञोपवीत पहनाना चाहिए।
  • इसके बाद उन्हे स्नान करा कर वस्त्र अर्पित करने चाहिए।
  • फिर इन पर रोली, चावल, सिंदूर, चंदन चढ़ाने चाहिए।
  • फिर आभूषण, प्रदान कर पुष्पमाला अर्पित करनी चाहिए।
  • गणपति जी को अष्टदुर्वा अर्पित करनी चाहिए।
  • तत्पश्चात गणपति जी को मोदक अथवा बूंदी के लड्डू का भोग लगाना चाहिए, क्योंकि यह मिष्ठान उन्हें अति प्रिय हैं ।
  • फिर गणपति जी को ऋतु अनुसार फल, लोंग, इलायची, पान व दक्षिणा अर्पित करनी चाहिए।
  • और अंत में भगवान गणपति और शिव जी की आरती करनी चाहिए, गणपति की मूर्ति स्थापित करने वाले लोगों को विसर्जन वाले दिन हवन अवश्य करना चाहिए।

गणपति विसर्जन का समय –

गणेश चतुर्थी के उत्सव को पूरे 10 दिनों तक मनाया जाता है। गणेश चतुर्थी के दिन गणपति की स्थापना करने के बाद पूरे 9 दिन तक गणपति भक्तों के घर में वास करते हैं फिर दसवें दिन उन्हें विदा करते हुए अनंत चतुर्दशी के दिन जल में विसर्जित कर दिया जाता है।

गणपति जी का विसर्जन इस बार 28 सितंबर 2023 को होगा। इसी दिन अनंत चतुर्दशी भी है। अनंत चतुर्दशी को भगवान विष्णु की पूजा अर्चना व उपासना का दिन माना जाता है, अनंत चतुर्दशी के दिन ही गणपति विसर्जन भी होता है।

गणपति विसर्जन का सही तरीका –

गणपति जी के 10 दिनों तक घर पर वास करने के बाद, उन्हें विसर्जित करते समय परिवार के सब लोग बेहद भावुक हो जाते हैं।

अगले बरस गणपति जी के पुनः आगमन की विनती करते हुए श्रद्धालुगण नाचते-गाते हुए फूल और अबीर-गुलाल उड़ाते हुए गणपति जी को विदा करते हैं।

गणपति जी को विदा करने के लिए अग्रलिखित नियमों के अनुसार उन्हें विदा/विसर्जित करना चाहिए –

  • लकड़ी का एक पटरा लेकर उसे गंगाजल से साफ करके परिवार की महिला के द्वारा उस पर स्वास्तिक बनाया जाना चाहिए।
  • फिर उस पटरी पर अक्षत रखकर उस पर लाल, गुलाबी अथवा पीला कपड़ा बिछाकर उस पर गणपति जी की मूर्ति को रखना चाहिए।
  • गणपति जी को पटरी पर विराजमान करने के बाद उस पर फल फूल और मोदक रखने चाहिए।
  • इसके बाद गणपति जी को वस्त्र पहनाकर, उनका भोग लगाकर विधिवत रूप से उनकी पूजा करनी चाहिए।
  • फिर एक रेशमी कपड़ा लेकर उसमें दूर्वा घास, मोदक, सुपारी और कुछ पैसे रखकर उसकी गांठ बांधकर उस पोटली को गणपति बप्पा के साथ ही रख देना चाहिए।
  • तदुपरांत परिवार के समस्त सदस्यों को गणपति जी की आरती करनी चाहिए और “गणपति बप्पा मोरया” के जयकारे लगाने चाहिए, तथा अपनी त्रुटियों के लिए क्षमा माँगनी चाहिए।
  • अंत में गणपति जी की मूर्ति का पूर्ण सम्मान के साथ जल में विसर्जन करना चाहिए।

गणेश जी के 12 नाम अर्थ सहित –

वैसे तो भगवान गणेश के असंख्य नाम हैं। परंतु उनके निम्न 12 चमत्कारी नाम अत्यंत शुभ हैं , जिनके स्मरण मात्र से व्यक्ति के समस्त दुख एवं बाधाएं दूर हो जाती हैं।

जन्म, विवाह, नामकरण, गृह-प्रवेश आदि शुभ कार्यों में इन नामों के स्मरण से समस्त अड़चनें दूर हो जाती हैं । भगवान गणेश के 12 नाम अग्रलिखित हैं –


नाम
अर्थ
एकदन्त एक दांत वाले
सुमुख सुंदर मुख वाले
कपिल कपिल वर्ण वाले
लंबोदर लंबे पेट वाले
विनायक न्याय करने वाले
गजकर्ण हाथी के समान कान वाले
धूम्रकेतु धुएं के रंग की पताका वाले
भालचन्द्र मस्तक पर चंद्रमा धारण करने वाले
विकट विपत्ति का विनाश करने वाले
गणाध्यक्ष गणों के अध्यक्ष
गजानन हाथी के समान मुँह वाले
विघ्ननाशन विघ्नों को हरने वाले

उपसंघार –

गणेश जी देवताओं में प्रथम पूजनीय हैं अतः हर शुभ कार्य करने से पूर्व गणपति जी का पूजन अवश्य किया जाता है ।

गणेश जी बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के देवता हैं , अतः उनकी पूजा अर्चना से जो उन्हें मना लेता है उसके घर में समृद्धि का वास होता है। इसी कारण भगवान गणेश और उनके जन्म दिवस को पूर्ण हर्सोल्लास के साथ मनाया जाता है ।

FAQ

प्रश्न –  गणेश चतुर्थी 2023 में कब है ?

उत्तर – 19 सितंबर दिन मंगलवार को

 प्रश्न – गणेश उत्सव किसने और कब शुरू किया ?

 उत्तर – 1893 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने महाराष्ट्र में गणेशोत्सव की शुरुआत की।

 प्रश्न – गणेश चतुर्थी पर्व क्यों मनाया जाता है ?

 उत्तर – भगवान गणेश के जन्म के उपलक्ष्य में ।

 प्रश्न – गणेश जी के गुरु कौन थे ?

उत्तर – गणेश जी के गुरु विष्णु के अवतार परशुराम थे।  

प्रश्न – गणेश जी की मृत्यु कैसे हुई?

उत्तर – सूर्यदेव के पिता कश्यप ने क्रोध में शिवजी को श्राप दिया था कि जिस प्रकार तुम्हारे त्रिशूल से मेरे पुत्र का शरीर नष्ट हुआ है, उसी प्रकार तुम्हारे पुत्र का मस्तक भी कट जाएगा। इसी श्राप के फलस्वरूप भगवान श्री गणेश के मस्तक कटने की घटना हुई।

हमारे शब्द –

प्रिय पाठकों ! हमारे इस लेख (Ganesh Chaturthi Essay in Hindi | गणेश चतुर्थी निबंध, 2023) में Ganesh Chaturthi Essay in Hindi  के बारे में हमने आपको विस्तार से हर जानकारी देने का पूरा प्रयास किया है।

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जीवन को अपनी शर्तों पर जियें ।

35 thoughts on “गणेश चतुर्थी 2023 | जानें गणपति जी की स्थापना का शुभ मुहूर्त | Ganesh Chaturthi Essay in Hindi”

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