Maha Shivratri Essay in Hindi 2023 | महाशिवरात्रि की कथाएं | Why Mahashivratri Celebrated

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महाशिवरात्रि या शिवरात्रि हिन्दुओं का बहुत बड़ा और प्रमुख त्यौहार (Festival) है। महाशिवरात्रि का त्यौहार हर साल फाल्गुन मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन ही भगवान शिव के विशालकाय स्वरूप (अग्निलिंग) के उदय के साथ सृष्टि का आरंभ हुआ।

यह दिन भगवान शिव (महादेव) के प्रकटोत्सव की तरह भी मनाया जाता है। कुछ जगहों पर लोग इसे भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह के रूप में मनाते हैं।

भगवान शंकर के भक्त इस दिन व्रत धारण करते हैं और भोलेनाथ की पूजा-अर्चना करते हैं। शिवरात्रि हर महीने में एक बार आती है।

अर्थात 1 साल में 12 शिवरात्रि होती हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को शिवरात्रि माना जाता है, परंतु फाल्गुन मास की शिवरात्रि का बहुत महत्व है, इसीलिए इसे महाशिवरात्रि कहा जाता है।

महाशिवरात्रि का इसलिए भी खास महत्व है क्योंकि इसे शिव और शक्ति या प्रकृति और पुरुष के मिलन की रात माना जाता है।

त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश ) में भगवान शिव को सर्वोच्च माना जाता है। हिन्दू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ब्रह्मा जी सृष्टि के सृजन करने वाले, भगवान विष्णु सृष्टि के पालनहार और भगवान शिव सृष्टि के संहारक हैं।

भगवान शिव को सभी देवों में श्रेष्ठ और अनंत माना जाता है। भगवान शिव का एक नाम आशुतोष भी है। आशुतोष का शाब्दिक अर्थ है बहुत कम में प्रसन्न होने वाले।

भगवान शिव ऐसे देव हैं जो बहुत शीघ्र ही प्रसन्न हो जाते हैं इनके भक्तजन इनके भोले-भाले व्यक्तित्व के कारण इन्हें भोलेबाबा, भोलेनाथ या भोले भंडारी जैसे नामों से भी पुकारते हैं।

लोगों के मन में इस पर्व को लेकर कई सवाल होते हैं आइए दोस्तों Maha Shivratri Essay in Hindi 2023 | महाशिवरात्रि की कथाएं | Why Mahashivratri Celebrated लेख में इन सब सवालों के जवाब जानते हैं।

Table of Contents

Maha Shivratri Essay in Hindi 2023 | महाशिवरात्रि की कथाएं | Why Mahashivratri Celebrated

बिन्दु जानकारी
पर्व का नाम महाशिवरात्रि
मनाने वाले लोग हिन्दू
मनाने की तिथि फाल्गुन मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि
महाशिवरात्रि 2023 में कब है 18 फरवरी, शनिवार
किस भगवान की पूजा की जाती है भगवान शिव की
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महाशिवरात्रि कब मनाई जाती है – When Mahashivratri is Celebrated

महाशिवरात्रि का पावन पर्व हर साल फाल्गुन मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व इस तिथि पर सम्पूर्ण भारत में पूर्ण श्रद्धा व उत्साह से मनाया जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह पर्व अधिकांश फरवरी माह में मनाया जाता है।

महाशिवरात्रि कब है 2023 – When is Mahashivratri in 2023

2023 में फाल्गुन मास में महाशिवरात्रि का पर्व 18 फरवरी, शनिवार को पूरे देश में बड़ी धूमधाम और हर्षोल्लास से मनाया जाएगा।

महाशिवरात्रि 2023 का शुभ मुहूर्त – Mahashivratri 2023 Date and Time

फाल्गुन मास महाशिवरात्रि 2023 की चतुर्दशी तिथि आरंभ 18 फरवरी की रात्रि 8:02 से
चतुर्दशी तिथि समाप्त 19 फरवरी को शाम 4:18 पर
निशिता काल का समय 18 फरवरी रात्रि 11:52 से 12:42 तक
महाशिवरात्रि व्रत पारण का समय 19 फरवरी सुबह 6:10 से दोपहर 2:40 तक
Why Mahashivratri Celebrated
Why Mahashivratri Celebrated

महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है – Why Mahashivratri Celebrated

महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है ?(Why Mahashivratri Celebrated) इसके पीछे कई मान्यताऐं हैं। कुछ प्रमुख मान्यताऐं इस प्रकार हैं।

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महाशिवरात्रि को हुआ था शिव और पार्वती का विवाह-(Why Mahashivratri Celebrated)

महाशिवरात्रि को मनाये जाने के पीछे कई पौराणिक मान्यताएं हैं। परंतु इस पर्व को मनाने के पीछे यह मान्यता सर्वाधिक बलवती है कि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था।

इसीलिए महाशिवरात्रि के पर्व को शिव और पार्वती के विवाह की वर्षगांठ के रूप में मनाया जाता है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पूर्व जन्म में माता पार्वती सती के रूप में भगवान शिव की अर्धांगिनी थी।

अपने इस जन्म में माता पार्वती भगवान शिव को पुनः पति के रूप में प्राप्त करना चाहती थीं, उन्होंने महादेव को प्रसन्न करने के अथक प्रयास किए परंतु वे प्रसन्न नहीं हुए।

तब माता पार्वती ने तिर्गुणीनारायण से कुछ दूरी पर स्थित गौरीकुंड नामक स्थान पर कठोर तपस्या की और तब भगवान शिव ने उनकी साधना से प्रसन्न होकर माता पार्वती के साथ विवाह किया और उनके विवाह का दिन महाशिवरात्रि का ही दिन था।

प्रथम बार प्रकट हुए भगवान शिव –

एक और पौराणिक मान्यता के अनुसार महाशिवरात्रि की रात्रि को करोड़ों सूर्य के समान प्रभाव वाले ज्योतिर्लिंग (अग्नि के शिवलिंग) के रूप में भगवान शिव का प्राकट्य हुआ। यह एक ऐसा शिवलिंग था जिसका कोई आदि और अंत नहीं था।

ऐसी मान्यता है कि शिवलिंग के सबसे ऊपरी भाग को देखने के लिए ब्रह्मा जी हंस के रूप में बहुत ऊपर तक गए, परंतु वह उसके ऊपरी छोर को नहीं देख सके।

साथ ही शिवलिंग के आधार को ढूंढने के लिए भगवान विष्णु ने वराह का रूप लिया और उसे ढूंढने की कोशिश की, परंतु वे शिवलिंग के आधार को नहीं पा सके।

महाशिवरात्रि को 64 स्थानों पर प्रकट हुए थे शिवलिंग –

एक और मान्यता के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन अलग-अलग 64 स्थानों पर शिवलिंग प्रकट हुए थे।इनमें से केवल 12 शिवलिंग की जानकारी ही उपलब्ध है। इन 12 शिवलिंग को हम 12 ज्योतिर्लिंगों के नाम से जानते हैं।

महाशिवरात्रि पर्व के दिन उज्जैन में स्थित महाकालेश्वर मंदिर में भक्तजनों द्वारा दीपस्तंभ लगाने की परंपरा है, मान्यता है कि दीपस्तंभ के द्वारा भक्तजन भगवान शिव के अग्नि वाले अनंत लिंग का अनुभव करते हैं, इसे लिंगोभव ( जो लिंग से प्रकट हो) कहा जाता है।

महाशिवरात्रि कैसे मनाई जाती है – How is Maha Shivaratri Celebrated

महाशिवरात्रि पर्व पर शिव-भक्त भगवान शिव का जलाभिषेक और दुग्धाभिषेक करते हैं। महाशिवरात्रि के दिन प्रातः सूर्योदय होते ही शिव मंदिरों में श्रद्धालुओं की बड़ी भीड़ उमड़ने लगती है।

और पूरे दिन मंदिरों में शिव भक्तों का हुजूम उमड़ता रहता है। भक्तजन मंदिर में शिवलिंग का जलाभिषेक और दुग्धाभिषेक करते हैं फिर शिवलिंग का दूध व शहद से भी अभिषेक करते हैं ।

शिवलिंग पर शहद, दूध, दही, शक्कर, गंगाजल, गन्ने का रस,भांग, धतूरा, बेल-पत्र, बेर और पुष्प इत्यादि चढ़ाते हैं। फिर धूप जलाकर आरती करते हैं।

उसके बाद मंदिर परिसर ॐ नमः शिवाय और हर-हर महादेव की ध्वनि से गूँज उठता है। इस प्रकार पूजा अनुष्ठान से शिव भक्तों के जीवन में आने वाले कष्ट व बाधाएं दूर होती और उन्हें शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

इस दिन भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों का दर्शन करना बहुत शुभ माना जाता है।श्रावण मास के अतिरिक्त महाशिवरात्रि त्यौहार के अवसर पर भी उत्तर भारत में काँवड़ यात्रा का विशेष महत्व है।

महाशिवरात्रि के दिन शिवभक्त हरिद्वार, नीलकंठ आदि स्थानों से काँवड़ में पवित्र गंगाजल लाकर शिव मंदिर में शिवलिंग पर चढ़ाते हैं।

सवेरे-सवेरे काँवड़िए शिवलिंग पर गंगाजल चढ़ाकर शिव की पूजा-अर्चना करते हैं और बम भोले, हर-हर महादेव ध्वनि से संपूर्ण वातावरण गुंजायमान कर देते हैं।

महाशिवरात्रि पर्व पर कुछ जगहों पर शिव भक्त जागरण आयोजित कराते हैं जिसमें पूरी रात भगवान शिव की पूजा-अर्चना और उनका गुणगान किया जाता है।

महाशिवरात्रि के लिए पूजा सामग्री –

  • गंगाजल
  • गाय का दूध (कच्चा)
  • देसी घी
  • शहद
  • साबुत चावल (अक्षत)
  • साबुत हल्दी
  • पंचफल ( भोग के लिए)
  • मिश्री
  • बिल्व पत्र (बेलपत्र)
  • भांग
  • धतूरा
  • पुष्प
  • कपूर
  • धूप
  • कलावा
  • लोंग, सुपारी
  • श्रृंगार सामग्री (माता पार्वती के लिए)

महाशिवरात्रि पर व्रत, पूजा-विधि – Mahashivratri Puja Vidhi in Hindi 

भगवान शिव ऐसे देव हैं जो बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं, इसीलिए उन्हें भोले कहा जाता है। महाशिवरात्रि पर्व पर उनका व्रत तथा पूजा निम्न प्रकार करनी चाहिए।

  • महाशिवरात्रि के दिन प्रातः जल्दी उठ कर नित्यकर्मों से निपटने के बाद स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए।
  • पूजा आरंभ करने से पहले भक्तों को माथे पर त्रिकुंड लगाना चाहिए।
  • फिर तांबे या मिट्टी के लोटे या कलश में गंगाजल से भगवान शिव का जलाभिषेक करना चाहिए।
  • इसके बाद दूध, दही, शहद और घी से शंकर भगवान का अभिषेक करना चाहिए।
  • इसके साथ ही शिवलिंग पर बेलपत्र, भांग, धतूरा, पुष्प, बेर, अक्षत, चंदन, इत्र और बेल आदि भी चढ़ाने चाहिए।
  • समस्त सामग्री शिवलिंग पर चढ़ाते समय ओम नमः शिवाय का जाप करना चाहिए।
  • इसके पश्चात धूप अथवा शुद्ध घी का दीपक जलाकर भगवान शिव की आरती करनी चाहिए।
  • भगवान शिव की पूजा अर्चना के बाद भक्तों को पूरे दिन उपवास रखना चाहिए।
  • महाशिवरात्रि के दिन भक्तों को शिव पुराण, शिव चालीसा का पाठ करना चाहिए। महामृत्युंजय मंत्र, तथा शिव के पंचाक्षर मंत्र ॐ नमः शिवाय का जाप भी करना चाहिए।
  • महाशिवरात्रि की रात्रि को शिव का भजन कीर्तन करते हुए जागरण करना चाहिए।
  • हिंदू शास्त्रों के अनुसार महाशिवरात्रि की पूजा को निशीथ काल में करना चाहिए। वैसे श्रद्धालु अपनी सुविधानुसार भी भगवान शिव की पूजा अर्चना कर सकते हैं।

महाशिवरात्रि की कथा/कहानी/इतिहास – Mahashivratri Story/History in Hindi

दोस्तों, महाशिवरात्रि पर्व के मनाने को लेकर शिव पुराण, स्कंद पुराण, पद्म पुराण और लिंग पुराण आदि में कई पौराणिक कथाएं मिलती हैं। Maha Shivratri Essay in Hindi 2023 | महाशिवरात्रि की कथाएं | Why Mahashivratri Celebrated लेख में हम आपको कुछ ऐसी कथाओं के बारे में यहाँ बता रहे हैं।

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1. समुद्र मंथन की कथा –

जब देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया तब उससे अमृत निकला। परंतु उसके साथ ही हलाहल नामक विष भी निकला। यह विष इतना विनाशकारी था कि सम्पूर्ण ब्रह्मांड को नष्ट कर सकता था।

तब भगवान शिव ने संपूर्ण सृष्टि को बचाने के लिए हलाहल नाम के उस विष को पी लिया, परंतु उसे अपने कंठ से नीचे नहीं उतरने दिया।

यह विष इतना विनाशकारी था कि उसका पान करके स्वयं भगवान शिव भी पीड़ा से व्याकुल हो गए, विष के प्रभाव से उनका कंठ नीला हो गया।

तभी से भगवान शिव को नीलकंठ कहा जाने लगा। उत्तराखंड में ऋषिकेश के निकट स्थित नीलकंठ महादेव मंदिर इसी कथा से संबंधित है।

विषपान के बाद भगवान शिव के उपचार के दौरान देवताओं के वैद्य द्वारा देवताओं को सलाह दी गई कि वे भगवान शिव को पूरी रात जगा कर रखें।

तब समस्त देवताओं ने भगवान शिव को जगाए रखने के लिए नृत्य और संगीत का सहारा लेकर पूरी रात जागते रहे और महादेव को भी जगाए रखा। सुबह होने पर भगवान शिव ने उन सभी की भक्ति से प्रसन्न होकर आशीर्वाद दिया।

ऐसा माना जाता है कि तभी से इस घटना को शिवरात्रि के उत्सव के रूप में मनाया जाता है, क्योंकि इसी घटना के दौरान महादेव ने विषपान करके संपूर्ण संसार को बचाया था, तभी से शिवभक्त इस दिन व्रत रखते हैं, तथा भोलेनाथ की पूजा अर्चना करते हैं।

2. शिकारी की कथा –

एक बार की बात है कि माता पार्वती ने महादेव से प्रश्न किया कि, क्या कोई ऐसा आसान अनुष्ठान अथवा व्रत पूजन है जिसको करने से पृथ्वीवासी सहज रूप से ही आपकी कृपा पा सकते हैं ?

महादेव ने उत्तर में माता पार्वती को शिवरात्रि व्रत पूजन का विधि-विधान बताते हुए एक कथा सुनायी –

चित्रभानु नाम का एक शिकारी था। वह पशुओं का शिकार करके अपने परिवार का पालन पोषण करता था।

उसने एक साहूकार से ऋण लिया था और उसे समय से नहीं चुका सका, अतः साहूकार ने उसे शिव मठ में बंदी बना दिया। संयोगवश वह शिवरात्रि का ही दिन था।

शिव मठ में बंदी बना हुआ चित्रभानु पूरा दिन भगवान शिव की महिमा तथा शिवरात्रि की व्रत कथा सुनता रहा।

संध्या को साहूकार ने चित्रभानु को पुनः अपने पास बुलाया, तब शिकारी ने अगले दिन साहूकार का ऋण चुकाने की बात कही।

इस पर साहूकार ने उसे बंधन से मुक्त कर दिया। स्वतंत्र होकर शिकारी भूखा प्यासा जंगल की ओर चला गया।

वह शिकार करने के लिए किसी तालाब के किनारे एक बेल-वृक्ष पर चढ़कर बैठ गया। बेल वृक्ष के नीचे विल्वपत्रों (बेलपत्रों) से ढका हुआ एक शिवलिंग था, जिसे चित्रभानु ना देख सका।

पेड़ पर चढ़कर बैठते समय कुछ बेलपत्र टूट कर शिवलिंग पर गिरे। इस तरह पूरे दिन के भूखे प्यासे शिकारी का व्रत भी पूर्ण हो गया और शिवलिंग को बेलपत्र भी समर्पित हो गए।

जब एक पहर की रात बीत गई, तो एक गर्भवती हिरनी तालाब से पानी पीने आई, शिकारी ने ज्योंहि उसका शिकार करने के लिए धनुष उठाया हिरनी ने शिकारी से विनती की कि, मैं गर्भवती हूं, यदि आप मेरा शिकार करते हैं तो आप एक साथ दो जीवों की हत्या करेंगे।

मुझे जाने दो, बच्चे को जन्म देने के बाद मैं स्वयं आ जाऊंगी, तब आप मेरा शिकार कर सकते हैं। शिकारी ने धनुष बाण वापस रखा और उसे जाने दिया।

दूसरा पहर बीतने के बाद फिर एक हिरनी तालाब के निकट से गुजरी। शिकारी ने जैसे ही उसके शिकार के लिए धनुष उठाया, हिरनी ने उस से प्रार्थना की कि मैं अपने पति से मिलने जा रही हूँ, आप मुझे अभी जाने दीजिए।

मैं आपको वचन देती हूं कि मैं अपने पति से मिलकर वापस आऊंगी, तो आप मेरा शिकार कर लेना। शिकारी का दिल पसीज गया और उसने हिरनी को जाने दिया।

रात्रि का तीसरा पहर बीतते समय एक हिरनी अपने बच्चों के साथ उधर से गुजरी, उसे देखकर शिकारी प्रसन्न हो गया। और फिर जैसे ही उसने उसका शिकार करना चाहा, हिरनी ने विनती की मैं अपने बच्चों को उनके पिता के पास पहुंचाने जा रही हूं आप मुझे मत मारिए।

मैं आपको वचन देती हूं मैं इन बच्चों को इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत वापस आ जाऊंगी। शिकारी ने कहा घर पर मेरे बच्चे भूखे प्यासे तड़प रहे होंगे, मैं इतना मूर्ख नहीं कि तुम्हें जाने दूँ।

हिरनी ने कहा जिस प्रकार तुम्हें अपने बच्चों की चिंता है, उसी प्रकार मैं भी अपने बच्चों के लिए चिंतित हूं इसीलिए आपसे कुछ देर के लिए अपने जीवन की भीख मांग रही हूँ।

आप मेरा विश्वास करें। हिरनी की बातों पर शिकारी का ह्रदय द्रवित हो गया, और उसने उस हिरनी को जाने दिया।

शिकार ना मिलने पर शिकारी चिंतित था, और इसी उहापोह में वह बेल के पत्तों को तोड़कर नीचे गिराता जा रहा था।

उसी पल वहां से एक हिरण गुजरा, शिकारी ने जब उसे मारने के लिए धनुष की प्रत्यंचा खींची, तब हिरण ने विनीत भाव से कहा कि हे शिकारी! यदि आपने मुझसे पहले आने वाली तीन हिरनियों को मार डाला है, तो आप मुझे भी मार दीजिए, क्योंकि वह तीनों मेरी पत्नियां थी, और अब मैं उनके वियोग में जीवित नहीं रह सकता।

शिकारी ने जिस प्रकार द्रवित हृदय से उन तीनों हिरनियों तथा उनके बच्चों को जाने दिया उसी प्रकार उस हिरण को भी छोड़ दिया।

सुबह होने पर भगवान शिव ने प्रसन्न होकर चित्रभानु को दर्शन दिए। दरअसल अनजाने में ही चित्रभानु शिवरात्रि के दिन भूखा प्यासा रहा अर्थात उसका व्रत हो गया।

शिकार की तलाश में पूरी रात जागा अर्थात उसने शिवरात्रि पर रात्रि जागरण किया, तथा अज्ञानता में ही पेड़ से बेलपत्र तोड़कर नीचे स्थापित शिवलिंग पर चढ़ाते रहा और क्योंकि भगवान शिव को बेलपत्र अति प्रिय है, अतः वे उससे प्रसन्न हुए।

महादेव की कृपा से शिकारी का हृदय निर्मल हो गया, शिकारी ने एक कठोर हृदय शिकारी होकर भी हिरण और उसके परिवार को छोड़ दिया, और उसका हृदय दयालुता के भाव से भर गया।

उसके बाद उसने धनुष बाण और पशुओं का वध त्याग दिया। इस घटना को देखकर समस्त देवताओं ने प्रसन्न होकर पुष्प-वर्षा की और आशीर्वाद दिया। ऐसी मान्यता है कि तभी से महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है।

शिव पार्वती के विवाह की कथा –

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शिव और पार्वती का विवाह महाशिवरात्रि की रात को ही संपन्न हुआ।

महादेव को इसीलिए यह दिन बहुत प्रिय है। इसी दिन जब माता पार्वती ने भगवान शिव से उनकी भक्ति प्राप्त करने का सबसे सरल मार्ग पूछा तो भगवान शिव ने उत्तर दिया कि शिवलिंग की उपासना तथा महाशिवरात्रि के व्रत द्वारा मेरी भक्ति प्राप्त की जा सकती है। देश में इस दिन कुछ जगहों पर भगवान शिव की बारात भी निकाली जाती है।

12 ज्योतिर्लिंग के दर्शन का महत्व – Importance of Darshan of 12 Jyotirlinga

महाशिवरात्रि पर्व के दिन संपूर्ण देश में शिव मंदिरों में भक्तों का पूरे दिन तांता लगा रहता है, परंतु इस दिन हमारे देश के भीतर स्थित 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन करने का विशेष महत्व है।

माना जाता है कि यह 12 ज्योतिर्लिंग कभी स्थापित नहीं किए गए बल्कि यह स्वयंभू हैं अर्थात यह स्वयं उत्पन्न हुए हैं।

पढिए भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग के नाम Why Mahashivratri Celebrated लेख में –

  1. सोमनाथ ( गुजरात)
  2. श्री शैल मल्लिकार्जुन शिवलिंग ( चेन्नई)
  3. महाकालेश्वर ( उज्जैन)
  4. ॐकारेश्वर ( मध्य प्रदेश)
  5. नागेश्वर ( गुजरात)
  6. रामेश्वरम ( चेन्नई)
  7. काशी विश्वनाथ धाम ( बनारस)
  8. केदारनाथ ( उत्तराखंड)
  9. घुमेश्वर ( औरंगाबाद)
  10. त्र्यंबकेश्वर ( नासिक)
  11. भीमाशंकर ( महाराष्ट्र)
  12. बाबा बैद्यनाथ धाम ( झारखंड)

देश के विभिन्न राज्यों में महाशिवरात्रि की धूम –

हमारे देश में महाशिवरात्रि हिंदू धर्म के लोगों का बहुत पवित्र और बड़ा त्यौहार है। यह पूरे भारत में बड़े हर्सोल्लास के साथ मनाया जाता है।

यह पर्व भारत में पूरब से पश्चिम तक और उत्तर से दक्षिण सभी राज्यों में बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।

कश्मीर में महाशिवरात्रि का पर्व –

कश्मीर के प्रमुख त्योहारों में से महाशिवरात्रि का पर्व एक है। कश्मीर में महाशिवरात्रि के त्योहार को पूरे धूमधाम से मनाया जाता है।

यहां इस त्यौहार को हैरथ ( हरि की रात्रि ) कहा जाता है। यहां शिवरात्रि का पर्व फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी के स्थान पर 1 दिन पूर्व त्रयोदशी को मनाने की परंपरा है।

तांत्रिक ग्रंथों में वर्णित मान्यताओं के अनुसार महाशिवरात्रि से 1 दिन पूर्व अर्थात त्रयोदशी के दिन भगवान शिव के महाकाल अवतार की पूजा की जाती है।

इन ग्रंथों में इस पूजा को भैरवोत्सव के नाम से वर्णित किया गया है। कश्मीर राज्य में लगभग 1 माह पूर्व से ही हैरथ उत्सव की तैयारी शुरू होती है जो महाशिवरात्रि के 2 दिन बाद तक चलती है।

कश्मीरी पंडित इस दिन भगवान शिव को सपरिवार अपने घर में स्थापित करते हैं। इसके पीछे मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान शिव बटुकनाथ भैरव के रूप में घर में मेहमान बनकर विराजमान होते हैं।

पंजाब में महाशिवरात्रि का पर्व –

हिंदुओं के लिए इस पर्व का विशेष महत्व है। महाशिवरात्रि पर्व के दिन यहां अनेक शहरों में महादेव की शोभायात्रा निकाली जाती है, और बड़ी धूमधाम से यह पर्व मनाया जाता है।

गुजरात में महाशिवरात्रि का पर्व –

गुजरात राज्य के जूनागढ़ में भावनाथ नामक स्थान पर प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि के त्यौहार पर एक विशाल मेले का आयोजन होता है।

यहां के लोगों का मानना है कि महाशिवरात्रि पर्व पर स्वयं भगवान शिव वहां स्थित मृगी कुण्ड में स्नान करने आते हैं।

गुजरात के ही सोमनाथ मंदिर में, जो कि 12 ज्योतिर्लिंगों में से 1 ज्योतिर्लिंग है, भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग की विशेष पूजा अर्चना की जाती है।

मध्यप्रदेश में महाशिवरात्रि का पर्व –

12 ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित है। महाशिवरात्रि पर्व की रात्रि में यहां विशेष पूजा का आयोजन होता है।

विशेष पूजा के दौरान शिव के महाकाल अवतार का शमशान की भस्म से श्रृंगार किया जाता है और भव्य आरती होती है।

हिमाचल प्रदेश में महाशिवरात्रि का पर्व –

हिमाचल प्रदेश में मंडी का महाशिवरात्रि मेला बहुत प्रसिद्ध है। यहां इस पर्व को ऐसी धूमधाम से मनाया जाता है मानो पूरा मंडी शहर शिवमय हो गया हो।

यहां के लोगों की मान्यता है कि इस मेले में सभी देवी देवता स्वयं आते हैं, तथा उनके दर्शनों के लिए भक्तजन दूर-दूर से इस मेले में पहुंचते हैं।

मंडी शहर व्यास नदी के तट पर बसा एक पुराना शहर है जिसे “मंदिरों का कैथेड्रल” कहा जाता है। मंडी शहर में विभिन्न देवी-देवताओं के 81 से अधिक मंदिर हैं।

बनारस ( उत्तर प्रदेश ) में महाशिवरात्रि का पर्व –

उत्तर प्रदेश के बनारस में स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर भगवान शंकर के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। इस मंदिर में महाशिवरात्रि पर्व पर विशेष भव्य आयोजन होता है

पश्चिम बंगाल में महाशिवरात्रि का पर्व –

यदि पूर्वी भारत की बात की जाए तो यहां पश्चिम बंगाल में भी महाशिवरात्रि के पर्व को बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।

यहां शिवरात्रि का पर्व अविवाहित कन्याओं के लिए विशेष महत्व रखता है। ऐसी मान्यता है कि इस पर्व पर भगवान शिव की आराधना करने पर वे कन्याओं को अच्छे पति का वरदान देते हैं।

महाशिवरात्रि के दिन यहां ताड़केश्वर मंदिर में पूजा-अर्चना का आयोजन किया जाता है।

आंध्र प्रदेश में महाशिवरात्रि का पर्व –

आंध्र प्रदेश में महाशिवरात्रि पर्व का बहुत महत्व है। यहां अलग-अलग शहरों में शिवरात्रि के दिन भगवान शिव की भव्य शोभायात्राएं निकाली जाती हैं, और मंदिरों में विशेष पूजा होती है।

इस पर्व के दिन यहां गुंडलाकम्मा, मल्लय्या गुट्टा, कंभालापल्ले, कोडुरु व उमा महेश्वरम में भगवान शिव की भव्य शोभायात्रा निकाली जाती हैं।

इसके अतिरिक्त भीमावराम में सोमारामम् और द्रक्षारामम् , अमरावती में अमरारामम् , समरलाकोट्टा में कुमारारामम् और पलाकोल्लू के क्षीरारामम् मंदिरों में भगवान शिव की विशेष पूजा अर्चना की जाती है, इसे पंचरामास के नाम से पुकारा जाता है।

और 1000 स्तंभ वाले वारंगल के प्रसिद्ध मंदिर में भी शिवरात्रि पर्व को पूरे धूमधाम से मनाया जाता है।

तमिलनाडु में महाशिवरात्रि का पर्व –

तमिलनाडु के थिरुवन्नमलाई के अन्नामलाइय्यर मंदिर में शिवरात्रि पर्व पर बड़ा भव्य आयोजन किया जाता है। यह मंदिर पर्वत की चोटी पर स्थित है।

शिव भक्त शिवरात्रि के मौके पर इस मंदिर की परिक्रमा करते हुए 14 किलोमीटर चलते हैं। यह परिक्रमा गिरी प्रदक्षिणा के नाम से प्रसिद्ध है।

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भारत के अतिरिक्त महाशिवरात्रि का त्यौहार कुछ अन्य देशों में भी पूर्ण श्रद्धा भाव से मनाया जाता है। यह पर्व नेपाल में पशुपतिनाथ मंदिर में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।

इसके अलावा पाकिस्तान, बांग्लादेश और मॉरीशस आदि देशों में भी हिंदू धर्म के लोग इस पर्व को मनाते हैं।

महाशिवरात्रि का महत्व – Significance of Mahashivratri

महाशिवरात्रि का पर्व देवादिदेव भगवान शिव, जो समस्त देवों में श्रेष्ठ हैं, के लिए मनाया जाता है। यह पर्व सृष्टि में संतुलन बनाए रखने में भगवान शिव की भूमिका के लिए उनकी स्तुति करते हुए मनाया जाता है।

साथ ही यह त्यौहार शरद ऋतु के समापन और वसंत ऋतु के आगमन का भी प्रतीक माना जाता है।

महाशिवरात्रि का महापर्व शिव और शक्ति के मिलन ( शिव पार्वती का विवाह) के रूप में भी मनाया जाता है, इसलिए भी इसका महत्व है।

ऐसी मान्यता है कि सर्वप्रथम त्रिपुरारी भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए उनके गणों के द्वारा शिवरात्रि का उत्सव मनाया गया था।

तब से आज तक यह उत्सव मनाया जा रहा है । शिवभक्त शिवरात्रि पर उनकी उपासना करते हैं और उपवास करते हैं, जिससे भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों को सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य का आशीर्वाद देते हैं ।

महाशिवरात्रि का वैज्ञानिक महत्व –Scientific Significance of Mahashivratri

महाशिवरात्रि त्यौहार को मनाए जाने का जितना धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्व है, उतना ही इसका वैज्ञानिक महत्व भी है।

महाशिवरात्रि पर्व पर व्रत रखने से संपूर्ण शरीर का शुद्धिकरण होता है। आंत, पेट और पाचन तंत्र को आराम मिलता है, शरीर को कई रोगों से छुटकारा मिलता है।

उपवास से कोलेस्ट्रॉल का स्तर घटता है दिमाग स्वस्थ रहता है। महाशिवरात्रि के पर्व पर भक्तजन पूरी रात बैठकर अपने आराध्य प्रभु शिव की साधना करते हैं, जिससे रीढ़ की हड्डी की मजबूती के साथ साथ रक्त संचरण भली प्रकार होता है।

महाशिवरात्रि व्रत नियम/ व्रत में क्या नहीं करना चाहिए – Mahashivratri Vrat Niyam

भक्तों को यह व्रत पूर्ण श्रद्धा व नियमानुसार करना चाहिए और निम्नलिखित गलतियां नहीं करनी चाहिए-

  • काले रंग के वस्त्र नहीं पहनना चाहिए।
  • महादेव को पूजा में खंडित चावल नहीं चढ़ाना चाहिए।
  • भगवान शिव की पूजा में भूलकर भी केतकी के फूल नहीं चढ़ाने चाहिए।
  • शिव उपासना में काले तिल कदापि अर्पित ना करें।
  • भगवान शिव की पूजा में तुलसी के पत्तों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  • मान्यताओं के अनुसार शिवरात्रि की पूजा में शंख बजाना वर्जित माना जाता है।

शिवरात्रि और महाशिवरात्रि में अंतर – Difference between Shivratri and Mahashivratri

शिवरात्रि हर महीने में एक बार आती है, अर्थात 1 साल में 12 शिवरात्रि होती हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को शिवरात्रि माना जाता है।

परंतु फाल्गुन मास की शिवरात्रि का बहुत महत्व है, इसीलिए इसे महाशिवरात्रि कहा जाता है। महाशिवरात्रि का इसलिए भी खास महत्व है क्योंकि इसे शिव और शक्ति या प्रकृति और पुरुष के मिलन की रात माना जाता है।

महाशिवरात्रि पर 10 लाइन – 10 Lines on Mahashivratri in Hindi

  1.  हमारे देश में महाशिवरात्रि हिंदुओं का एक पवित्र एवं महत्वपूर्ण त्यौहार है।
  2. यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है।
  3. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन भगवान शिव विशालकाय अग्नि लिंग के रूप में प्रथम बार प्रकट हुए। और इसी दिन सृष्टि का आरंभ हुआ।
  4. अन्य पौराणिक कथाओं के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन ही भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ।
  5. एक अन्य कथा के अनुसार समुद्र मंथन से निकले हलाहल को भगवान शिव ने पीकर उसे अपने कंठ में धारण कर लिया था और संपूर्ण सृष्टि की रक्षा की थी। इस विष के प्रभाव से उनका कंठ नीला पड़ गया था, तभी से वे नीलकंठ कहलाए।
  6. यह पर्व भारत के अधिकांश राज्यों में तथा अन्य देशों में भी बड़ी धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
  7. इस दिन भक्तगण भगवान शिव का जल तथा दुग्ध से अभिषेक करते हैं।
  8. तत्पश्चात भगवान शिव को बेलपत्र, भांग, धतूरा, बेल, फल, पुष्प आदि समर्पित किए जाते हैं, जिससे वे अत्यधिक प्रसन्न होते हैं।
  9. भगवान शिव की पूजा अर्चना के बाद शिवभक्त इस दिन उपवास रखते हैं, कुंवारी कन्याएं भी सुयोग्य वर की प्राप्ति के लिए निर्जला उपवास रखती हैं ।
  10. त्रिपुरारी, देवादिदेव भगवान शिव बहुत थोड़े में ही प्रसन्न हो जाने वाले एकमात्र देव हैं, इसीलिए उन्हें आशुतोष और भोले बाबा भी कहा जाता है। शिव की भक्ति से ओतप्रोत यह पर्व महादेव को समर्पित है।

FAQs

प्रश्न – महाशिवरात्रि किस तिथि को मनाई जाती है ?

उत्तर – महाशिवरात्रि का त्यौहार हर साल फाल्गुन मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है।

प्रश्न – महाशिवरात्रि का इतिहास क्या है ?

उत्तर – पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव अपनी धर्मपत्नी सती की रक्षा के लिए जब अपने ससुर के घर पहुंचे तब तक माता सती ने स्वयं को यज्ञ कुंड की अग्नि को समर्पित कर दिया था, भगवान शिव ने माता सती का शरीर बाहों में उठा लिया और क्रोध में तांडव किया। उस दिन फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी तिथि थी, महापुराण के अनुसार यही महाशिवरात्रि कहलायी।

प्रश्न – महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है ?

उत्तर – विभिन्न मान्यताओं के अनुसार शिवरात्रि मनाये जाने के लिए कई कारण बताए जाते हैं जिनमें से प्रमुख हैं – इस दिन भगवान शिव का विवाह माता पार्वती से हुआ था, इस दिन पहली बार भगवान शिव प्रकट हुए थे तथा महाशिवरात्रि के दिन ही 64 स्थानों पर शिवलिंग प्रकट हुए। जिनमें से ज्ञात 12 शिवलिंग को ज्योतिर्लिंग कहा जाता है।

प्रश्न – महाशिवरात्रि कैसे मनाई जाती है ?

उत्तर – इस दिन शिवभक्त भगवान शिव का जल और दूध से अभिषेक करते हैं, उन्हें बेलपत्र, भांग, धतूरा, बेल, फल, पुष्प आदि समर्पित करते हैं, उपवास रखते हैं और भगवान शिव का गुणगान करते हुए रात्रि जागरण करते हैं।

प्रश्न – महाशिवरात्रि किस महीने में आती है ?

उत्तर – हिंदू पंचांग के अनुसार महाशिवरात्रि का त्यौहार हर साल फाल्गुन मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है।जबकि अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह फरवरी या मार्च में आती है।

प्रश्न – महाशिवरात्रि में ऐसा क्या खास है ?

उत्तर – इस दिन भगवान शिव का विवाह पार्वती के साथ हुआ था।

प्रश्न – महाशिवरात्रि मनाने का मुख्य कारण क्या है ?

उत्तर – महाशिवरात्रि के ही दिन शिव और पार्वती का विवाह हुआ था, इसी दिन भगवान शिव एक विशाल अग्निलिंग के रूप में पहली बार प्रकट हुए थे। इन्ही कारणों से ये पर्व मनाया जाता है।

प्रश्न – महाशिवरात्रि से क्या लाभ होता है ?

उत्तर – महाशिवरात्रि व्रत से कई लाभ होते हैं। भूखे रहने से शरीर की फैट ऊर्जा में बदल जाती है, शरीर से विषैले तत्व बाहर निकलते हैं। पाचन तंत्र व पेट को आराम मिलता है।

प्रश्न – शिवरात्रि के व्रत का क्या महत्व है ?

उत्तर – हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार महाशिवरात्रि का व्रत रखने से उपासक को मोक्ष प्राप्त होता है। मृत्युलोक में रहते हुए महाशिवरात्रि मनुष्य का कल्याण करने वाला व्रत है। यह व्रत करने से महादेव साधक की पीड़ा व दुख दूर करते हैं।इस पर्व पर पूर्ण निष्ठा से उपवास करने से शिव प्रसन्न होते हैं, भक्तों पर उनकी कृपा बनी रहती है और उनकी हर मनोकामना पूर्ण होती है।

प्रश्न – महाशिवरात्रि पर क्यों नहीं सोना चाहिए ?

उत्तर – इस व्रत को करने पर सोना नहीं चाहिए , शस्त्रों के अनुसार व्रत के दिन सोने पर साधक को व्रत का फल नहीं मिलता है।

प्रश्न – महाशिवरात्रि की रात में क्या करें ?

उत्तर – महाशिवरात्रि की रात में साधकों को रात्री जागरण करते हुए भगवान शिव के भजन, स्तोत्र, मंत्र, आरती, चालीसा आदि का पाठ करना चाहिए ।

प्रश्न – महाशिवरात्रि में क्या नहीं करना चाहिए ?

उत्तर – इस दिन माता-पिता , पूर्वजों, पत्नी और गुरु का कदापि अपमान नहीं करना चाहिए , शराब पीना आदि कार्य नहीं करने चाहिए।

प्रश्न – महाशिवरात्रि के दिन क्या नहीं खाना चाहिए ?

उत्तर – इस व्रत में साधारण आयोडीनयुक्त नमक का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए बल्कि उसके स्थान पर सेंधा नामक खाना चाहिए ।

प्रश्न – महाशिवरात्रि के पीछे क्या कहानी है ?

उत्तर – महाशिवरात्रि के ही दिन शिव और पार्वती का विवाह हुआ था, इसी दिन भगवान शिव एक विशाल अग्निलिंग के रूप में पहली बार प्रकट हुए थे। इन्ही कारणों से ये पर्व मनाया जाता है।

प्रश्न – शिवरात्रि और महाशिवरात्रि में क्या अंतर है ?

उत्तर – शिवरात्रि हर महीने में एक बार आती है, अर्थात 1 साल में 12 शिवरात्रि होती हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को शिवरात्रि माना जाता है, परंतु फाल्गुन मास की शिवरात्रि का बहुत महत्व है, इसीलिए इसे महाशिवरात्रि कहा जाता है।

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