हिन्दू धर्म में पितृ पक्ष (Pitru Paksha) या श्राद्ध पक्ष का विशेष महत्व है। श्राद्ध पितरों (पूर्वजों) को भोजन अर्पित करने के दिन होते हैं, उनको भोजन के साथ श्रद्धांजलि भी दी जाती है।हिन्दू धर्म के अनुसार पूर्वजों के तर्पण की यह परंपरा अत्यंत महत्वपूर्ण व जरूरी है। पित्रों की आत्मिक शांति, संतुष्टि, उन्हें प्रसन्न करने व उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए विधि अनुसार अलग-अलग तिथियों पर श्राद्ध किए जाते हैं।
पुराणों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि पितृपक्ष के दिनों में स्वयं यमराज भी पितरों की आत्मा को मुक्त कर देते हैं, जिससे कि इन 16 दिनों तक वे अपने परिजनों के बीच रहकर अन्न-जल ग्रहण कर सके और तृप्त रह सकें । पुराणों के अनुसार पितृपक्ष का खास महत्व बताया गया है इन दिनों पितरों की पूजा, तर्पण तथा पिंडदान करने से पितरदेव खुश होते हैं और उन्हें आत्मिक शांति भी मिलती है।
इस बार 12 साल बाद फिर से 16 दिन का श्राद्ध पक्ष रहेगा, जिसको शुभ नहीं माना जाता इससे पूर्व 2011 में 16 दिन का श्राद्ध पक्ष रहा था। 17 सितंबर 2022 को कोई श्राद्ध नहीं है।
तो आइए दोस्तों आपको हम अपने इस लेख Pitru Paksha-Significance, History and Facts | पितृ पक्ष 2022, जानें श्राद्ध का महत्व में पितृ पक्ष के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी देते हैं।
बिन्दु | जानकारी |
---|---|
नाम | पितृ पक्ष |
अन्य नाम | श्राद्ध पक्ष, कनागत, शराद |
पितृ पक्ष की तिथि | भादों मास की पूर्णिमा से आश्विन मास की अमावस्या तक |
अवधि | 16 दिन |
2022 में पितृ पक्ष की तिथि | 10 सितंबर 2022 से 25 सितंबर 2022 तक |
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Pitru Paksha-Significance, History and Facts | पितृ पक्ष 2022, जानें श्राद्ध का महत्व
श्राद्ध पक्ष (पितृ पक्ष) कब होता है ?– Pitru Paksh Time
श्राद्ध पक्ष (पितृ पक्ष) भाद्रपद माह की पूर्णिमा से प्रारंभ होकर आश्विन माह की अमावस्या तक होते हैं। ये 15 या 16 दिन तक रहते हैं।
कौन कहलाते हैं पितृ ?
हमारे ऐसे पूर्वज जो आज इस पृथ्वी पर जीवित नहीं है उन्हें पितृ ( पितर ) कहा जाता है। कोई भी बच्चा-बूढ़ा, स्त्री-पुरुष, विवाहित-अविवाहित जिनकी मृत्यु हो चुकी है, वे पितृ कहलाते हैं। उन सब की आत्मा की शांति के लिए पितृपक्ष के दिनों में उनके निमित्त तर्पण व पिंडदान किया जाता है, जिससे वे प्रसन्न होते हैं, और परिवार के लोगों को सुख शांति व समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
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पितृ पक्ष 2022 – कब से कब तक हैं- shradh 2022 start date and end date
2022 में पितृपक्ष ( श्राद्ध पक्ष ) 10 सितंबर 2022 शनिवार ( भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा ) से प्रारंभ होकर 25 सितंबर रविवार ( अश्विन कृष्ण अमावस्या ) तक रहेंगे। पहले दिन अर्थात 10 सितंबर को पूर्णिमा और प्रतिपदा दोनों श्राद्ध एक साथ होंगे। यहां उल्लेखनीय है कि 17 सितंबर 2022 को कोई श्राद्ध नहीं होगा। 25 सितंबर को अश्विन कृष्ण अमावस्या है और यही पितृ विसर्जन की तिथि होती है।
‘श्राद्ध‘ का अर्थ क्या होता है ? What is Pitru Paksh ?
श्राद्ध शब्द का निर्माण श्रद्धा शब्द से हुआ है। अतः श्राद्ध शब्द का मतलब है श्रद्धा पूर्वक दिया जाने वाला। किसी व्यक्ति के द्वारा अपने पितरों के लिए श्रद्धा पूर्वक दिए गए दान ( तिल, जल, कुश आदि ) को ही श्राद्ध कहा जाता है। श्राद्ध कर्म को पितृऋण चुकाने का सरलमार्ग माना जाता है।
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श्राद्ध की 16 तिथियों का महत्व –
श्राद्ध भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि से प्रारंभ होकर अश्विन माह की अमावस्या तक होते हैं, अर्थात यह पूर्णिमा, प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी और अमावस्या तक 16 दिन होते हैं। यह तिथियां एक मास में दो बार ( शुक्ल पक्ष तथा कृष्ण पक्ष में ) आती हैं। इन्ही में से किसी एक तिथि पर व्यक्ति की मृत्यु होती है। इनमें से जिस भी तिथि पर व्यक्ति की मृत्यु होती है श्राद्ध पक्ष के दौरान ठीक उसी तिथि पर उस व्यक्ति का श्राद्ध करने का विधान माना जाता है।
किन व्यक्तियों का श्राद्ध किन तिथियों पर करना चाहिए –
विधि-विधान पूर्वक निश्चित की गई तिथियों के अतिरिक्त नाना-नानी का श्राद्ध प्रतिपदा तिथि को किया जा सकता है।अविवाहित स्थिति में मृत्यु होने वाले लोगों का श्राद्ध पंचमी तिथि को किया जाता है। पति से पूर्व मृत्यु होने वाली पत्नी ( सौभाग्यवती ) का श्राद्ध नवमी तिथि को किया जाना चाहिए। जिन महिलाओं की मृत्यु की तिथि मालूम ना हो उनका श्राद्ध भी नवमी तिथि को किया जाना चाहिए।
संन्यास लेने वाले लोगों का श्राद्ध एकादशी तिथि को करने का विधान है, त्रयोदशी तिथि को बच्चों का श्राद्ध करना चाहिए, दुर्घटना में मृत्यु ,अकाल मृत्यु, विषपान से मृत्यु, डूबने से मृत्यु वाले व्यक्तियों का श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को किया जाता है। विसर्जन अमावस्या या सर्व पितृ अमावस्या पर सभी भूले-बिसरे पितरों का श्राद्ध करने का विधान है।
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किसको होता है श्राद्ध करने का अधिकार –
पिता की मृत्यु के बाद उसका श्राद्ध करने का अधिकार उसके ज्येष्ठ ( बड़े ) पुत्र को होता है। पुत्र ना होने की स्थिति में उसका भाई या भाई का बेटा श्राद्ध कर सकते हैं । पुत्र, भाई अथवा भाई का पुत्र ना होने की स्थिति में उसकी पत्नी श्राद्ध सकती है।अविवाहित व्यक्ति की मृत्यु होने की स्थिति में सगे भाई या सगे भाई ना होने पर नाती व्यक्ति का श्राद्ध कर सकता है।
श्राद्ध पक्ष से जुड़ी पौराणिक कथा –
महाभारत युद्ध के समय दानवीर कर्ण की मृत्यु के पश्चात जब उसकी आत्मा स्वर्ग गई, तो उसे भोजन के स्थान पर सोना, चांदी और रत्न दिए गए, उस वक्त कर्ण को भोजन की आवश्यकता थी। उन्होंने स्वर्ग के राजा इंद्र से प्रश्न पूछा कि उन्हें खाने के लिए भोजन के स्थान पर सोना क्यों परोसा जा रहा है? उनके सवाल पर राजा इंद्र ने जवाब दिया कि उन्होंने मृत्युलोक में पूरा जीवन सिर्फ सोना दान किया था, अपने पितरों को श्राद्ध में कभी भोजन नहीं कराया।
कर्ण ने कहा क्योंकि वह अपने पूर्वजों के बारे में कुछ नहीं जानता था इसी कारण उसने अपने पूर्वजों का श्राद्ध नहीं किया और उनके निमित्त कभी कोई दान नहीं किया। अपनी त्रुटि को सुधारने के लिए कर्ण को 16 दिनों के लिए पृथ्वी पर वापस लौटने की अनुमति मिली, जिससे कि वह अपने पितरों का श्राद्ध कर उन्हें अन्न व जल प्रदान कर सकें।
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फिर कर्ण ने पृथ्वी पर वापस आकर अपने पूर्वजों का ध्यान करते हुए विधि विधान से उनका तर्पण किया, ब्राह्मणों को भोज कराया और दान दक्षिणा के साथ उन्हें विदा किया।
तब से इस 16 इन की अवधि को अब हम लोग पितृपक्ष अथवा श्राद्ध पक्ष के नाम से जानते हैं। और वहीं से यह श्राद्ध-क्रिया का आरंभ माना जाता है।
पितृ पक्ष 2022 की प्रमुख तिथियां – Pitru Paksha 2022 Start and End Dates in Hindi
2022 में पितृपक्ष 10 सितंबर से प्रारंभ हो रहे हैं, इनकी प्रमुख तिथियां निम्न प्रकार हैं –
तारीख | दिन | तिथि |
---|---|---|
10 सितंबर 2022 | शनिवार | पूर्णिमा श्राद्ध, भाद्रपद माह, शुक्ल पूर्णिमा |
10 सितंबर 2022 | शनिवार | प्रतिपदा श्राद्ध, आश्विन माह, कृष्ण प्रतिपदा |
11 सितंबर 2022 | रविवार | अश्विन मास की कृष्ण द्वितीया का श्राद्ध |
12 सितंबर 2022 | सोमवार | आश्विन मास की कृष्ण तृतीया का श्राद्ध |
13 सितंबर 2022 | मंगलवार | आश्विन मास की कृष्ण चतुर्थी का श्राद्ध |
14 सितंबर 2022 | बुद्धवार | अश्विन मास की कृष्ण पंचमी का श्राद्ध/ भरणी नक्षत्र का श्राद्ध |
15 सितंबर 2022 | बृहस्पतिवार | अश्विन मास की कृष्ण षष्ठी का श्राद्ध/ कृतिका नक्षत्र का श्राद्ध |
16 सितंबर 2022 | शुक्रवार | अश्विन मास की कृष्ण सप्तमी का श्राद्ध |
17 सितंबर 2022 | शनिवार | इस दिन कोई श्राद्ध नहीं है। |
18 सितंबर 2022 | रविवार | अश्विन मास की कृष्ण अष्टमी का श्राद्ध |
19 सितंबर 2022 | सोमवार | अश्विन मास की कृष्ण नवमी का श्राद्ध/ सौभाग्यवतियों का श्राद्ध |
20 सितंबर 2022 | मंगलवार | अश्विन मास की कृष्ण दसवीं का श्राद्ध |
21 सितंबर 2022 | बुद्धवार | अश्विन मास की कृष्ण एकादशी का श्राद्ध |
22 सितंबर 2022 | बृहस्पतिवार | अश्विन मास की कृष्ण द्वादशी का श्राद्ध/संन्यासियों का श्राद्ध |
23 सितंबर 2022 | शुक्रवार | अश्विन मास की कृष्ण त्रयोदशी का श्राद्ध/मघा नक्षत्र का श्राद्ध |
24 सितंबर 2022 | शनिवार | अश्विन मास की कृष्ण चतुर्दशी का श्राद्ध/ दुर्घटना, विषपान शस्त्र आदि से मृतकों का श्राद्ध |
25 सितंबर 2022 | रविवार | अश्विन मास की कृष्ण अमावस्या का श्राद्ध/सर्वपितृ अमावस्या, महालय श्राद्ध, सर्वपितृ अमावस्या का श्राद्ध |
श्राद्ध पक्ष की पूजा से होने वाले लाभ –
पद्मपुराण व महाभारत ग्रंथों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि पितृपक्ष में पूरे विधि-विधान से पितरों की पूजा करने से व्यक्ति की सब इच्छाएं पूरी होती हैं, परिवार में सुख, शांति व उन्नति होती है, तथा गृह-क्लेश दूर होता है,पितरों का आशीर्वाद मिलता है।
पितरों की पूजा एवं विधि-विधान –
पितृ पक्ष में लोग अपने पितरों को प्रसन्न एवं तृप्त करने के लिए प्रयाग, हरिद्वार जैसे तीर्थों पर जाकर पूर्वजों को जल अर्पण करके श्राद्ध पक्ष की पूजा करते हैं। जो लोग तीर्थ स्थानों पर नहीं जा सकते वे अपने घर पर ही पूर्ण विधि विधान से पितरों की पूजा कर सकते हैं।
पितरों की पूजा विधि का सम्पूर्ण विधि-विधान –
यदि अपने घर पर ही पितरों की पूजा करनी हो तो निम्न विधि-विधान से करनी चाहिए –
- व्यक्ति को सुबह जल्दी उठकर स्नानादि व घर की साफ सफाई करके गौमूत्र व गंगाजल छिड़ककर पवित्र कर लेना चाहिए। बाएं पैर को मोड़कर, बाएं घुटने को जमीन पर टेककर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए।
- फिर काले तिल, गाय का कच्चा दूध, गंगाजल और पानी तांबे के पात्र में डाल लें।
- फिर जल को हाथों की अंजलि में लेकर दाएं हाथ के अंगूठे से उसी पात्र में गिराएं ।
- इस प्रकार पितरों का ध्यान करते हुए 11 बार करें।
- चावल, कुश, तिल, जौ और जल दोनों हाथों में लेकर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके संकल्प करें।
- अपनी सामर्थ्य अनुसार एक, तीन अथवा ग्यारह ब्राह्मणों को भोजन करवाएं।
- घर की महिलाओं को पवित्रता का ध्यान रखते हुए पितरों के लिए भोजन बनाना चाहिए।
- ब्राह्मणों को भोज कराने के बाद उन्हें दक्षिणा प्रदान करके दान आदि दें ।
- ब्राह्मणों को स्वर्ण, भूमि, गौ, तिल, वस्त्र,घी, अनाज, चांदी, गुड़, नमक आदि का दान करें, क्योंकि ये महादान कहलाता है।
- चार बार ब्राह्मण की प्रदक्षिणा करके उनसे आशीर्वाद लेना चाहिए।
- ब्राह्मण को पूजा-पाठ करके यजमान एवं उनके पितरों के प्रति शुभकामनाएं प्रेषित करनी चाहिए।
- श्राद्ध की पूजा करते समय केवल सफेद फूलों का ही प्रयोग करना चाहिए।
- पितरों का श्राद्ध करने के लिए सफेद कपड़े, गंगाजल, दूध, शहद, तिल और अभिजीत मुहूर्त बहुत जरूरी है।
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श्राद्ध पक्ष (पितृ पक्ष) में क्या करें क्या न करें –
श्राद्ध में हर व्यक्ति को अपने पितरों की आत्मिक शांति, तृप्ति व उनका आशीर्वाद ग्रहण करने के लिए श्राद्ध अवश्य करना चाहिए । ऐसा विश्वास किया जाता है कि जब कोई व्यक्ति अपने पूर्वजों के संपत्ति का भोग करता है परंतु उनका श्राद्ध तर्पण नहीं करते तो उन लोगों को पितृ दोष होता है तथा उनको अपने जीवन में कई प्रकार के दुखों व मुसीबतों का सामना करना पड़ता है।
हम आपको अपने लेख Pitru Paksha – Significance, History and Facts | पितृ पक्ष 2022, जानें श्राद्ध का महत्व में ये बताने जा रहे हैं कि श्राद्ध पक्ष में कौन से काम करने और कौन से नहीं करने चाहिए।
क्या न करें –
- रात्रिकाल राक्षसी समय माना जाता है अतः रात्रि में श्राद्ध नहीं करना चाहिए।
- संध्या के समय भी कभी श्राद्ध नहीं करना चाहिए।
- पितृ पक्ष में तामसी भोजन वर्जित होता है अतः तामसी भोजन बनाना, ग्रहण करना नहीं चाहिए।
- श्राद्ध के दिनों में किसी को भी अपने शरीर पर इत्र, साबुन, तथा सिर में तेल नहीं लगाना चाहिए।
- श्राद्ध के दिनों मे किसी भी प्रकार के नशे से दूर रहना चाहिए।
- पितृ पक्ष के दिनों में राजमा, मटर, मसूर की दाल, उड़द, सरसों, कुलथी व बासी भोजन नहीं करना चाहिए।
- श्राद्ध करते हुए जल्दबाजी और क्रोध नहीं करना चाहिए।
- श्राद्ध के दौरान कोई भी शुभ कार्य जैसे गृह-प्रवेश, मुंडन, विवाह या नया व्यापार प्रारंभ नहीं करना चाहिए।
- पितृ पक्ष में नए वस्त्र बनाने या पहनने नहीं चाहिए। कोई नई चीज नहीं खरीदनी चाहिए।
- पितृ पक्ष के दौरान बाल कटवाना,दाढ़ी बनवाना नाखून काटना आदि कार्य नहीं करने चाहिए।
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क्या करें –
- पुत्र को ही पिता का श्राद्ध करना चाहिए, पुत्र के अनुपस्थित होने पर पुत्रवधू को श्राद्ध करना चाहिए।
- श्राद्ध के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराने के लिए घर पर ही आमंत्रित करना चाहिए।
- श्राद्ध के दिन पितरों की पसंद का भोजन व पकवान बनाने चाहिए।
- श्राद्ध के दिन मुख दक्षिण दिशा की ओर करके पितृ गायत्री मंत्र और पितृ स्त्रोत्र का पाठ करना चाहिए।
- मध्याह्न समय में ब्राह्मणों को भोजन कराकर उन्हें दक्षिणा देनी चाहिए और उनका आशीर्वाद लेना चाहिए।
- श्राद्ध के दिन कांसा, चांदी, सोना या तांबे के पात्र में ब्राह्मणों को भोज कराना अच्छा माना जाता है।
- श्राद्ध के दिन शहद, दूध, तिल व गंगाजल का प्रयोग आवश्यक माना गया है।
- श्राद्ध वाले दिन कौवे, कुत्ते या गाय को भोजन जरूर देना चाहिए श्राद्ध इसके बिना अधूरा होता है।
पितृ पक्ष का महत्व – Significance of Pitru Paksha
ऐसी मान्यता है कि श्राद्ध पक्ष के 16 दिनों में पितर पृथ्वी पर विचरण करते हैं। अतः हिंदू धर्म में श्राद्ध अथवा पितृ पक्ष का खास महत्व है। हिंदू धर्म में मृत्यु लोक के साथ-साथ परलोक में भी आस्था रखते हैं, मृत्यु के बाद भी पूर्वजों और उनकी संतुष्टी का ध्यान रखा जाता है।
अतः श्राद्ध पक्ष में पितरों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने तथा उनके निमित्त दान-पुण्य किया जाता है, ऐसा माना जाता है कि यदि मरने वाले का श्राद्ध ना किया जाए तो उसकी आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती, और उनका श्राप पूरे परिवार को मिलता है, और परिवार के सभी सदस्यों के जीवन पर उसका प्रभाव पड़ता है। ऐसी मान्यता है कि पितृपक्ष के दौरान पितरों के निमित्त दान-पुण्य करने से व्यक्ति की कुंडली में होने वाले पितृ दोष समाप्त हो जाते हैं।
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हिंदी पुराणों के अनुसार पितृलोक ( स्वर्ग एवं पृथ्वी के बीच का स्थान ) में किसी व्यक्ति के पूर्वजों की 3 पीढ़ियों का निवास होता है। माना जाता है कि यह क्षेत्र यम ( मृत्यु के देवता ) द्वारा शासित होता है। यम, व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी आत्मा को पृथ्वी से पितृलोक तक ले जाते हैं, उसी व्यक्ति की अगली पीढ़ी के व्यक्ति की मृत्यु होने पर वह पीढ़ी स्वर्ग लोक चली जाती है। पितृलोक में इस प्रकार तीन पीढियों का श्राद्ध दिया जाता है। इस प्रक्रिया में यम की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।
पितृपक्ष में गया जी का महत्व और उनसे जुड़ी कथा –
वायु पुराण की कथा के अनुसार, आर्यवर्त के पूर्वी क्षेत्र में स्थित कोलाहल नामक पर्वत पर गयासुर नाम के एक राक्षस ने हजारों वर्ष तक घोर तपस्या करते हुए भगवान विष्णु को प्रसन्न किया, तब विष्णु भगवान ने ब्रह्मा जी से कहा कि आप गयासुर को वरदान दें, तब ब्रह्मा जी अन्य देवताओं के साथ गयासुर के पास पहुंचे और उससे वरदान मांगने की बात कहीं।
गयासुर ने यह वरदान मांगा कि सभी देवताओं व ऋषि-मुनियों का समस्त पुण्य उसे प्राप्त हों, तथा वह देवताओं की भांति पवित्र हो जाए। तथास्तु कहकर ब्रह्मा जी और अन्य देवताओं ने गयासुर को यह वर दे दिया।
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इस वरदान का यह परिणाम हुआ कि गयासुर के दर्शन करने वाला प्रत्येक व्यक्ति पाप मुक्त हो जाता, और पवित्र हो जाता, और सीधा स्वर्ग चला जाता। इस वरदान के प्रभाव से विधि का विधान समाप्त होने लगा, अतः ब्रह्मा जी ने गयासुर के पास जाकर कहा, मुझे ब्रह्म यज्ञ करने के लिए पवित्र भूमि की आवश्यकता है, और आप से अधिक पवित्र भूमि मुझे कहीं और नहीं मिल सकती, अतः तुम अपना पवित्र शरीर मुझे प्रदान कर दो, और ब्रह्मा जी की इच्छा अनुसार गयासुर ने अपना शरीर यज्ञ के लिए ब्रह्मा जी को दे दिया।
यज्ञ करते समय जब गयासुर का शरीर हिलने लगा तो अपने नाभि प्राण से ब्रह्मा जी ने उसे नियंत्रित किया। गयासुर की छाती पर भगवान विष्णु ने अपने चरण रखें, और गयासुर के कंपन को अपनी गदा से नियंत्रित किया।
भगवान विष्णु के चरण गयासुर के शरीर पर पड़ते ही उसका अहंकार मिट गया। गयासुर ने अपनी मृत्यु के समय भगवान विष्णु से वर मांगा कि भविष्य में इस यज्ञ क्षेत्र में भगवान विष्णु पाद पर जिस का श्राद्ध किया जाए, उसे सद्गति मिले। विष्णु भगवान ने गयासुर की अंतिम इच्छा का सम्मान करते हुए उसे यह वरदान दिया, तभी से उस क्षेत्र का नाम गया तीर्थ पड़ गया।
उसी समय ब्रह्मा जी ने भी उस क्षेत्र व भूमि को श्राद्ध-कर्म के लिए पवित्र भूमि घोषित कर दिया। तभी से गया जी में तर्पण व पिंडदान करने से पितरों को तृप्ति होती है। वायु पुराण के अनुसार गया ना जा सकने की स्थिति में गयाजी की ओर मुख करके तर्पण करने से भी पितरों को तृप्ति मिलती है। गयाजी में पितरों का तर्पण व पिंडदान करने से उन्हें तृप्ति व प्रसन्नता प्राप्त होती है और उन्हें बैकुंठ की प्राप्ति होती है।
श्राद्ध पक्ष में कौओं का महत्व –
हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कौए को पितरों का स्वरूप माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि हमारे पितृ कौए के रूप में श्राद्ध ग्रहण करने के लिए निर्धारित तिथि पर हमारे घर आते हैं, श्राद्ध न मिलने पर वे रुष्ट हो जाते हैं। कौओं के महत्व को लेकर एक पौराणिक कथा का संदर्भ दिया जाता है।
त्रेता युग में एक बार देवराज इंद्र के पुत्र जयंत ने कौवे का रूप धारण करके सीता माता के पैर में चोंच मार दी। उसकी इस धृष्टता पर भगवान श्रीराम ने एक तिनके के बाण से जयंत ( कौए ) की आंख फोड़ दी। इसके बाद जयंत ने अपनी धृष्टता के लिए माफी मांगी तब भगवान श्रीराम ने उसे माफ करते हुए वरदान दिया कि, तुम्हें दिया गया भोजन पितरों को मिलेगा।
श्राद्ध में कौओं को भोजन कराने की परंपरा तभी से प्रचलित है। श्राद्ध पक्ष में इसी कारण श्राद्ध का पहला अंश कौओं को प्रदान किया जाता है। पितृपक्ष के दौरान कौओं को भगाया या मारा नहीं जाता, ऐसा करने से व्यक्ति को पितरों का श्राप लगता है।
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पितृपक्ष के बारे में विशिष्ट तथ्य – Facts about Pitru Paksh
- श्राद्ध पक्ष में कोई भी शुभ कार्य करना जैसे- शादी-विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन संस्कार आदि को वर्जित माना गया है, माना जाता है कि इन दिनों शुभ कार्य करने से पितृों की आत्मा को दुख होता है।
- श्राद्ध पक्ष में नया व्यापार करना, नए वस्त्र अथवा नई वस्तुएं खरीदना अशुभ माना जाता है।
- प्राचीन काल से ही श्राद्ध पक्ष में पिंड दान करने की परंपरा है, बहुत से लोग गया और काशी जाकर अपने पितरों का पिंडदान करते हैं।
- माना जाता है कि पितृपक्ष में श्राद्ध ना करने पर पितरों की आत्मा तृप्त नहीं होती और उन्हें शांति नहीं मिलती।
- इन दिनों पितरों का श्राद्ध व तर्पण करने से पितरदेव प्रसन्न होते हैं तथा परिवार को सुखी व संपन्न जीवन का आशीर्वाद देते हैं।
- जिन लोगों की मृत्यु की सही तिथि ज्ञात ना हो उनका श्राद्ध अश्विन अमावस्या ( पितृ विसर्जन) के दिन करना चाहिए।
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FAQ
प्रश्न – श्राद्ध पक्ष 2022 कब से है?
उत्तर- 10 सितंबर 2022 से ।
प्रश्न-पितृ पक्ष में हम क्या करते हैं?
उत्तर- पितृपक्ष में अपने मृतक पूर्वजों को निर्धारित तिथि पर तर्पण व पिंडदान किया जाता है, ब्राह्मणों को भोजन करा कर दक्षिणा व दान आदि दिया जाता है, जिससे पितर तृप्त व प्रसन्न होते हैं।
प्रश्न-पितर पक्ष क्यों मनाया जाता है?
उत्तर- पूर्वजों के देहांत की तिथि पर ही पितृपक्ष में उनका श्राद्ध किया जाता है, जिससे पितरों की आत्मा को बहुत तृप्ति मिलती है, और वे परिवार को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
प्रश्न-पित्र पक्ष में क्या नहीं करना चाहिए?
उत्तर- पितृपक्ष के दौरान तामसिक भोजन, मांसाहारी भोजन तथा मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए।
हमारे शब्द – Our Words
प्रिय पाठकों ! हमारे इस लेख (Pitru Paksha – Significance, History and Facts | पितृ पक्ष 2022, जानें श्राद्ध का महत्व ) में Pitru Paksha के बारे में हमने आपको विस्तार से हर जानकारी देने का पूरा प्रयास किया है। पितृ पक्ष 2022 से जुड़ी वृहत जानकारी आपको कैसी लगी ? यदि आप ऐसे ही अन्य लेख पढ़ना पसंद करते हैं तो कमेंट बॉक्स में कमेंट करके हमें अवश्य लिखें, हम आपके द्वारा सुझाए गए टॉपिक पर लिखने का अवश्य प्रयास करेंगे । दोस्तों, अपने कमेंट लिखकर हमारा उत्साह बढ़ाते रहें , साथ ही यदि आप को हमारा ये लेख पसंद आया हो तो इसे अपने मित्रों के साथ शेयर अवश्य करें ।
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जीवन को अपनी शर्तों पर जियें ।
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