Biography of Veer Chandra Singh Garhwali Hindi me | पेशावर कांड के नायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली का जीवन परिचय

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हमारे देश की रक्षा के लिए समय-समय पर देश के अनेक वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी है। आज हम अपने देश के ऐसे ही एक जांबाज़, साहसी और जीवट देशभक्त सिपाही के बारे में जानेंगे जिन्होंने देश की रक्षा के लिए अपने सुख, ऐशोआराम को त्याग कर देश की सेवा के लिए अपना सर्वस्व न्यौेछावर कर दिया।

भारतीय इतिहास में उस रणबांकुरे को पेशावर कांड के महानायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के नाम से जाना जाता है । तो दोस्तों आइए जानते हैं, ( Biography of Veer Chandra Singh Garhwali Hindi me | पेशावर कांड के नायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली का जीवन परिचय ) लेख के माध्यम से इस जाँबाज़ योद्धा के बारे में |

Table of Contents

Biography of Veer Chandra Singh Garhwali Hindi me | पेशावर कांड के नायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली का जीवन परिचय

वास्तविक नाम चंद्र सिंह भंडारी
पिता का नाम श्री जलौथ सिंह भंडारी
पत्नी का नाम श्रीमती भागीरथी देवी
जन्म स्थान मॉसौं, चौथान पट्टी, सैणीसेरा नामक गॉंव में, (गढ़वाल),उत्तराखण्ड
बटालियन 2/36 गढ़वाल राइफल्स
पद हवलदार मेजर
जन्म 25 दिसंबर 1891
मृत्यु 1 अक्टूबर 1979
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महान क्रांतिकारी वीर चंद्र सिंह गढ़वाली का जीवन परिचय , Biography of Veer Chandra Singh Garhwali Hindi me-

चंद्र सिंह गढ़वाली का जन्म 25 दिसंबर 1891 में मासौं, चौथान पट्टी, ,सैणीसेरा नाम के गॉंव में, गढ़वाल में हुआ था। चंद्र सिंह गढ़वाली के पूर्वज चौहान वंश के थे, वे मुरादाबाद में रहते थे। इनके पूर्वज काफी समय पहले ही गढ़वाल की राजधानी चांदपुर गढ़ में आकर बस गए थे और वे यहां के थोकदारों की सेवा करने लगे।

चंद्र सिंह के पिता का नाम क्या था ?

चंद्र सिंह के पिता का नाम जलौथ सिंह भंडारी था।

प्रारंभिक शिक्षा- Primary Education

चंद्र सिंह बचपन से ही चंचल, प्रखर बुद्धि के थे लेकिन पारिवारिक स्थितियों के कारण उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव व आस-पास के गांव मैं ही प्राप्त की।

चंद्र सिंह गढ़वाली का विवाह- Chandra Singh Garhwali Marriage

14 वर्ष की अवस्था में उनका विवाह संपन्न हुआ।

वीर चंद्र सिंह गढ़वाली का वास्तविक नाम ? Chandra Singh Garhwali Real Name

वीर चंद्र सिंह गढ़वाली का वास्तविक नाम चंद्र सिंह भंडारी था। चंद्र सिंह गढ़वाली को पेशावर कांड के नायक के नाम से भी जाना जाता है।

चंद्र सिंह गढ़वाली की पत्नी का नाम क्या था ? Chandra Singh Garhwali Wife Name

वीर चंद्र सिंह गढ़वाली की पत्नी का नाम श्रीमती भागीरथी देवी था।

सेना में प्रवेश- Recruitment in Army

3 सितंबर 1914 को चंद्र सिंह ने घर छोड़ दिया और 11 सितंबर 1914 को लैंसडॉन छावनी में 2/36 गढ़वाल राइफल्स में भर्ती हो गए।

Biography of Veer Chandra Singh Garhwali Hindi me
Veer Chandra singh Garhwali

वीर चंद्र सिंह गढ़वाली और प्रथम विश्व युद्ध- Chandra Singh Garhwali and First World War

ब्रिटिश सरकार ने अगस्त 1915 में चंद्र सिंह को प्रथम विश्व युद्ध में मित्र राष्ट्र की ओर से लड़ने के लिए भेज दिया। अपने सैनिक साथियों के साथ उन्होंने 2 माह तक लड़ाई में भाग लिया अक्टूबर 1915 में चंद्र सिंह वापस आ गए। सन 1917 में मेसोपोटामिया में अंग्रेजों की ओर से उन्होने युद्ध में भाग लिया, युद्ध समाप्त होने के बाद चंद्र सिंह भारत वापस लौट आए।

वीर चंद्र सिंह गढ़वाली पर आर्य समाज का प्रभाव-

सन 1920 में गढ़वाल में अकाल पड़ गया, उस समय अंग्रेजों ने सेना की पलटनों को तोड़ा और गढ़वाली सैनिकों को पलटन से निकाल दिया, ओहदेदारों को सिपाही बना दिया गया, वीर चंद्र सिंह गढ़वाली बड़े परिश्रम से हवलदार बने थे उन्हें फिर से सिपाही बना दिया गया।

इस समय देश में महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन चल रहा था इन सब घटनाओं का वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली पर अत्यधिक प्रभाव पड़ा।

अकाल के समय आर्य समाज ने गढ़वाल की बहुत अधिक मदद की थी आर्य समाज के इस सेवा भाव को देखकर चंद्र सिंह बहुत प्रभावित हुए और 1922 के बाद वे एक कट्टर आर्य समाजी टेकचंद वर्मा के संपर्क में आए और उनसे तथा आर्य समाज के सिद्धांतों से प्रभावित होकर वह भी पक्के आर्य समाजी बन गए। और देश में घटने वाली राजनीतिक घटनाओं में दिलचस्पी लेने लगे।

वीर चंद्र सिंह गढ़वाली पर महात्मा गांधी का प्रभाव-

1926 में महात्मा गांधी का कुमाऊं मैं आगमन हुआ। उन दिनों चंद्र सिंह छुट्टी पर थे। वह गांधी जी से मिलने बागेश्वर गए और वहां पर उन्होंने गांधी जी के हाथ से टोपी पहनी और साथ ही उस सम्मान की कीमत चुकाने का प्रण भी किया।

चंद्र सिंह गढ़वाली द्वारा लड़े गए युद्ध-

चंद्र सिंह गढ़वाली ने 1914 से 1918 के बीच होने वाले प्रथम विश्व युद्ध में मित्र राष्ट्रों की ओर से भाग लिया। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ही 1917 में चंद्र सिंह ने अंग्रेजों की ओर से मेसोपोटामिया के युद्ध में भाग लिया जिसमें अंग्रेजों की जीत हुई।

चंद्र सिंह ने 1918 में बगदाद की लड़ाई में भी हिस्सा लिया था। चंद्र सिंह को इनकी बटालियन के साथ 1920 में वजीरिस्तान भेजा गया सन 1920 से 1922 तक चंद्र सिंह युद्ध मोर्चे पर रहे और जब वे 1922 मैं लैंसडौन लौटे तो उन्हें फिर से हवलदार मेजर बना दिया गया ।

पेशावर कांड-

उस दौरान पेशावर में स्वतंत्रता संग्राम की ज्वाला पूरे जोर से धधक रही थी और अंग्रेज सरकार उसका दमन करने की पूरी कोशिश कर रही थी इस काम के लिए 1930 में चंद्र सिंह की बटालियन को पेशावर जाने का हुक्म दिया गया।

30 अप्रैल 1930 को पेशावर के किस्सा खानी बाजार में खान अब्दुल गफ्फार खान के लाल कुर्ती खुदाई खिदमतगारो कि एक आम सभा हो रही थी । अंग्रेज देश के इन सपूतों को अपनी बंदूकों के बल पर तहस-नहस करना चाहते थे ।

कैप्टन रैकेट 72 गढ़वाली सिपाहियों को साथ लेकर उस सभा वाली जगह पहुंचे और निहत्थे मुस्लिम पठानों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया।

चंद्र सिंह ने कैप्टन रैकेट से कहा हम -“निहत्त्थो पर गोली नहीं चलाते।” पेशावर की इसी घटना ने गढ़वाल बटालियन को सेना में एक ऊंचा दर्जा दिलाया इसी के साथ इस घटना के बाद से चंद्र सिंह गढ़वाली को वीर चंद्र सिंह गढ़वाली पेशावर कांड का मनहानायक कहा जाने लगा।

इसके बाद अंग्रेजों ने अपने गोरे सिपाहियों को बुलाकर उन्हें गोली चलाने का आदेश दिया। चंद्र सिंह गढ़वाली और गढ़वाली सिपाहियों के यह तेवर अंग्रेजी हुकूमत के लिए खुला चैलेंज था और राजद्रोह के समान था।

इस घटना के बाद चंद्र सिंह की पूरी बटालियन को ऐबटाबाद ( पेशावर) मैं नजर बंद कर दिया गया, उन पर राजद्रोह का अभियोग चलाया गया। बैरिस्टर मुकंदी लाल ने गढ़वालियों की ओर से मुकदमे की पैरवी की।

हवलदार चंद्र सिंह को मृत्यु दंड ना देकर आजीवन कारावास की सजा हुई, 16 सिपाहियों को लंबी सजा हुई, 39 सिपाहियों का कोर्ट मार्शल करके उन्हें सेना से निकाल दिया गया। चंद्र सिंह गढ़वाली को सजा सुनाने के बाद ऐबटाबाद जेल में भेज दिया गया ।

26 सितंबर 1941 को लगभग 11 साल से अधिक दिन जेल में बिताने के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया। जेल से रिहा होने के बाद कुछ समय तक वह इलाहाबाद में रहने के बाद 1942 में अपने परिवार के साथ वर्धा आश्रम में रहे। देश में उस समय भारत छोड़ो आंदोलन चल रहा था इलाहाबाद में इन्हें इस आंदोलन का Commander-in-chief नियुक्त किया गया।

इसी दौरान चंद्र सिंह को अंग्रेज सरकार ने फिर से गिरफ्तार कर लिया कई जेलों में इनको बहुत कठोर यातनाएं दी गई, 6 अक्टूबर 1942 को उन्हें फिर से 7 साल की सजा सुनाई गई। परंतु 1945 में ही उन्हें जेल से छोड़ दिया गया ।

उनके गढ़वाल प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया इसलिए वे अपने परिवार के साथ हल्द्वानी चले गए। दिसंबर 1946 में कम्युनिस्टों की सहायता से फिर से वे गढ़वाल में प्रवेश कर सकें।

राजनीतिक जीवन-

1957 में इन्होंने कम्युनिस्ट उम्मीदवार के रूप में चुनाव में भाग लिया पर असफल रहे।

वीर चंद्र सिंह गढ़वाली की मृत्यु कब हुई?

मृत्यु-

1 अक्टूबर 1979 को लंबी बीमारी के फल स्वरूप वीर चंद्र सिंह गढ़वाली का देहावसान हो गया।

वीर चंद्र सिंह गढ़वाली पर डाक टिकट-

1994 में भारत सरकार ने वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के सम्मान में एक डाक टिकट भी जारी किया तथा देश में कई सड़कों के नाम इस महान क्रांतिकारी के नाम पर रखे गए।

वीर चंद्र सिंह गढ़वाली पर्यटन स्वरोजगार योजना-

उत्तराखंड सरकार के द्वारा वीर चंद्र सिंह गढ़वाली जी के सम्मान में उत्तराखंड क्षेत्र के निवासियों एवं विशेष रूप से युवा वर्ग को पर्यटन के क्षेत्र में अधिक से अधिक स्वरोजगार उपलब्ध कराने के उद्देश्य को लेकर सर्वप्रथम स्वरोजगार योजना "वीर चंद्र सिंह गढ़वाली पर्यटन स्वरोजगार योजना" शुरू की गई इसका प्रारंभ 1 जून 2002 को किया गया था ।

वीर चंद्र सिंह गढ़वाली से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य-

  • वीर चंद्र सिंह गढ़वाली को पेशावर कांड का महानायक माना जाता है।
  • भारत सरकार के द्वारा 1994 में उनके सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया गया ।

विभिन्न महापुरुषों के कथन –

बैरिस्टर मुकुंदी लाल ने इनके बारे में कहा- ” आजाद हिंद फौज का बीज बोने वाला वही है।

’’आई०एन०ए० (INA) के जनरल मोहन सिंह ने इनके बारे में कहा था- ’’ पेशावर विद्रोह ने हमें आजाद हिंद फौज को संगठित करने की प्रेरणा दी।’’

इनके बारे में गांधीजी का कथन था- “मेरे पास बड़े चंद्र सिंह गढ़वाली जैसे आदमी होते तो देश कभी का आजाद हो गया होता।’’

पंडित मोतीलाल नेहरू ने इनके बारे में कहा था-’’ वीर चंद्र सिंह गढ़वाली को देश ना भूले उसे हमारे नेता और इतिहासकार कैसे भूल गए ?यह हमारे सामने एक गंभीर प्रश्न है जिस गढ़वाली ने पेशावर कांड द्वारा साम्राज्यवादी अंग्रेजों को यह बताया था।  
भारतीय सैनिकों की बंदूकों और संगीनों के बलबूते पर अब हिंदुस्तान पर शासन नहीं कर सकते, उसकी इतनी उपेक्षा क्यों हुई- इतिहासकारों को इसका जवाब देना होगा।’’
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FAQ

प्रश्न – चंद्र सिंह गढ़वाली का वास्तविक नाम क्या था?

उत्तर– चंद्र सिंह गढ़वाली का वास्तविक नाम चंद्र सिंह भंडारी था ।

प्रश्न – चंद्र सिंह गढ़वाली का जन्म कब हुआ?

उत्तर– चंद्र सिंह गढ़वाली जन्म 25 दिसंबर 1891 में हुआ था ।

प्रश्न– चंद्र सिंह गढ़वाली का जन्म कहां हुआ था ?

उत्तर-चंद्र सिंह गढ़वाली का जन्म ग्राम मासौं, चौथान पट्टी, सैणीसेरा( गढ़वाल) में हुआ था।

प्रश्न – वीर चंद्र सिंह गढ़वाली कौन थे ?

उत्तर – 23 अप्रैल 1930 को हवलदार मेजर चंद्र सिंह गढ़वाली के नेतृत्व में रॉयल गढ़वाल राइफल्स के जवानों ने निहत्थे देशभक्तों की सभा पर गोली चलाने से इनकार कर दिया था।
तभी से भारतीय इतिहास में इन्हें पेशावर कांड का महानायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न– वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के पिता का क्या नाम था?

उत्तर– वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के पिता का नाम जलौथ सिंह था।

प्रश्न – पेशावर कांड कब हुआ?

उत्तर– पेशावर कांड 23 अप्रैल 1930 को हुआ।

प्रश्न – पेशावर कांड क्या था?

उत्तर – 23 अप्रैल 1930 को पेशावर में  खान अब्दुल गफ्फार खान “सीमांत गाँधी” पठानों की एक सभा को संबोधित कर रहे थे, अंग्रेज अधिकारी ने वीर चंद्र सिंह गढ़वाली को उन निहत्थे पठानों पर
गोली चलाने का आदेश दिया। 
परंतु वीर चंद्र सिंह गढ़वाली ने उन पठानों पर गोली चलाने से मना कर दिया और कहा – ” हम निहत्थे लोगों पर गोली नहीं चलाते ।” इसी घटना को पेशावर कांड के नाम से जाना जाता है।
 

प्रश्न– गढ़वाल दिवस कब मनाया जाता है ?

उत्तर– उत्तराखंड राज्य में 2 सितंबर को गढ़वाली भाषा दिवस मनाया जाता है यह दिवस गढ़वाली भाषा को सम्मान दिलाने तथा 2 सितंबर 1994 को मसूरी गोलीकांड में शहीद हुए आंदोलनकारियों के सम्मान में मनाया जाता है।

तो दोस्तों यह थी महान क्रांतिकारी, निडर , जीवट और सच्चे देशभक्त वीर चंद्र सिंह गढ़वाली की जीवनी (Biography of Veer Chandra Singh Garhwali Hindi me | पेशावर कांड के नायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली का जीवन परिचय ) जिससे हमें देश प्रेम तथा विस्तारवादी शक्तियों के सामने कभी ना झुकने की प्रेरणा मिलती है।

दोस्तों मेरे इस ब्लॉग का यह पहला Article लिखने का प्रयास आपको कैसा लगा Comment करके अवश्य बताएं, साथ ही अगर आपके कुछ सुझाव हैं तो अवश्य लिखिएगा । मेरा हमेशा प्रयास रहेगा कि अच्छे विषयों पर प्रेरणाप्रद तथा बहुमूल्य जानकारी आपके लिए हमेशा लाता रहूं। धन्यवाद!

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57 thoughts on “Biography of Veer Chandra Singh Garhwali Hindi me | पेशावर कांड के नायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली का जीवन परिचय”

  1. अति सुंदर ऐसे ही और jeevni हिंदी में लिखकर हमें जानकारी दें ।

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