23 मार्च शहीद दिवस पर विशेष
“मेरी कलम भी वाकिफ है इस कदर मेरे जज्बातों से ।
मैं गर इश्क भी लिखूँ तो इंक़लाब लिख जाता है।।”
– भगत सिंह
भगत सिंह की लेखनी से लिखे गए यह शब्द स्वयं भगत सिंह के व्यक्तित्व और विचारों का परिचय देते हैं । हमारे देश की आजादी के लिए हजारों शहीदों ने अपने प्राणों की आहुति दी परंतु मातृभूमि के लिए जान देने के जज्बे के कारण शहीद भगत सिंह का व्यक्तित्व अपने आप में अनोखा था।
महज़ 24 साल की छोटी सी उम्र में देश के लिए अपने प्राणों को न्यौछावर करने वाले माँ भारती के इस सपूत के इरादे और विचार इतने अडिग और मजबूत थे।
जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत की ऐसी मजबूत बुनियाद को हिला कर रख दिया जिसके बारे में पूरी दुनिया में यह कहावत मशहूर थी कि ब्रिटिश एम्पायर का सूरज कभी नहीं डूबता |
महात्मा गांधी के अहिंसक आंदोलनों के दौर में अपने क्रांतिकारी विचारों के दम पर भगत सिंह ने देश को क्रांतिकारी आंदोलन की एक नई राह पर चलना सिखाया और अंग्रेज सरकार का मुकाबला किया |
दोस्तों ! Bhagat Singh Biography In Hindi, भगत सिंह का जीवन परिचय, Biography Of Bhagat Singh In Hindi लेख के माध्यम से आज हम आपको भगत सिंह के जीवन के हर पहलू के बारे में विस्तृत रूप से बताएंगे, आप से गुजारिश है इस लेख को अंत तक अवश्य पढ़िए |
तो आइए शुरू करते हैं महान क्रांतिकारी, देशभक्त शहीद भगत सिंह के जीवन की महान गाथा……..
Bhagat Singh Wikipedia in Hindi, Birthday of Bhagat Singh, Bhagat Singh History –
बिंदु | जानकारी |
पूरा नाम | भगत सिंह |
जन्म तारीख | 27 सितंबर 1907 |
जन्म स्थान | ग्राम -बंगा, तहसील जरांवाला , ज़िला- लायलपुर, पंजाब (वर्तमान पाकिस्तान) |
पैतृक गाँव | खटकड़ कलाँ, पंजाब, भारत |
पिता का नाम | किशन सिंह सन्धू |
माता का नाम | विद्यावती कौर |
भाई | रणवीर सिंह, कुलतार सिंह, जगत सिंह, कुलबीर सिंह, राजेंद्र सिंह |
बहन | प्रकाश कौर, शकुंतला कौर, अमर कौर |
शिक्षा | डी०ए0वी0 हाई स्कूल लाहौर , नेशनल कॉलेज लाहौर |
राष्ट्रवादी संगठन | हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन , नौजवान भारत सभा , क्रांति दल , कीर्ति किसान पार्टी |
विचारधारा | राष्ट्रवाद , समाजवाद |
मृत्यु | 23 मार्च 1931 |
मृत्यु स्थल | लाहौर जेल, पंजाब ( अब पाकिस्तान ) |
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शहीद भगत सिंह का जन्म व प्रारंभिक जीवन- Bhagat Singh Biography In Hindi
शहीद-ए-आज़म भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर, 1960 को लायलपुर जिले के बंगा नामक गांव में हुआ था, जो कि अब पाकिस्तानका हिस्सा है है। कुछ विद्वानों के अनुसार इनका जन्म 28 सितम्बर को हुआ था। इनके पिता का नाम किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती कौर था।
जब भगत सिंह पैदा हुए उनके पिताजी किशन सिंह, चाचा अजीत सिंह और स्वर्ण सिंह जेल में थे । ब्रिटिश सरकार द्वारा 1906 में लागू किए गए औपनिवेशीकरण विधेयक के खिलाफ प्रदर्शन करने के कारण उन्हें सजा हुई थी।
सरदार भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह ने उस आंदोलन में प्रतिनिधित्व करते हुए महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी।
भगत सिंह की शिक्षा -Education of Bhagat Singh
भगत सिंह ने पाँचवी कक्षा तक की पढ़ाई गांव के ही स्कूल से की। प्राइमरी शिक्षा के बाद भगत सिंह के पिता ने उनका दाखिला डी0 ए0 वी0 हाई स्कूल लाहौर में करवा दिया । बाद में उन्होंने अपनी शिक्षा नेशनल कॉलेज लाहौर से पूरी की।
पारिवारिक विरासत में मिले क्रांतिकारी संस्कार – Revolutionary Traditions inherited in Family
जैसा कि अजीत सिंह, जो भगत सिंह के चाचा थे, ने एक संगठन की स्थापना की थी जिसका नाम “भारतीय देशभक्त संघ”था। अजीत सिंह के अभिन्न मित्र थे सैय्यद हैदर रज़ा, इन्होंने इस संगठन की स्थापना करने के साथ-साथ चिनाब नहर कॉलोनी बिल का विरोध करने में किसानों को एकजुट करके इनका पूरा साथ दिया।
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इनके चाचा अजीत सिंह के विरुद्ध ब्रिटिश सरकार की ओर से 22 मुकदमे दायर हो चुके थे जिसके चलते उन्हें ईरान पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ा। भगत सिंह का सारा परिवार गदर पार्टी का कट्टर समर्थक था अत: वैचारिक क्रांति भगत सिंह को परिवार की ओर से विरासत में मिली थी।
बचपन से ही था देश प्रेम का जज़्बा –
भगत सिंह के बचपन की एक कहानी जो उनके बचपन से ही देशप्रेम के जज्बे को दर्शाती है – हुआ यूँ कि एक बार बालक भगत अपने पिता के साथ खेत पर गए हुए थे वहाँ उनके पिता के एक मित्र भी थे, भगत के पिता अपने मित्र से बात कर रहे थे जबकि बालक भगत मिट्टी में बैठा कुछ कर रहा था।
अचानक पिता के मित्र ने पूछा कि “भगत तू ये क्या कर रहा है?” भगत ने जवाब दिया कि “मैं मिट्टी में बंदूकें बो रहा हूँ, बड़े होकर गोरों को देश से भगाने के काम आएंगी।”
दोस्तों, ऐसा था भगत सिंह के देश प्रेम का जज़्बा, जो बचपन से ही उनकी बातों और व्यवहार में झलकता था ।
भगत सिंह के क्रांतिकारी क्रियाकलाप और राष्ट्रीय आंदोलन में योगदान –
दोस्तों! Bhagat Singh Biography In Hindi लेख में हम आपको बताएंगे कि कैसे भगत सिंह की किशोरावस्था के दौरान घटित दो वीभत्स घटनाओं ने उनको पारिवारिक विरासत में मिली राष्ट्रभक्ति की भावना को इस्पात जैसा मजबूत आकार देना प्रारंभ कर दिया।
जलियांवाला बाग में 1919 में निर्दोष व निहत्थे देशवासियों का नरसंहार मात्र 12 वर्ष की अवस्था में उन्होंने अपनी मासूम आंखों से देखा था, और दिल दहला देने वाले उस मंजर को देखने के लिए वे अपने स्कूल से 12 किलोमीटर दूर पैदल चलकर जलियांवाला बाग पहुंचे थे।
वहां उन्होंने शहीदों के खून से सनी गीली मिट्टी को मुट्ठी में लेकर एक बर्तन में भर लिया और अंग्रेजों से प्रतिशोध लेने की कसम खायी।
1921 में ननकाना साहिब में निहत्थे अकाली प्रदर्शनकारियों की हत्या का मंजर भी उन्होंने अपनी किशोरावस्था में देखा था।
चूंकि भगत सिंह का परिवार अहिंसक गांधीवादी विचारधारा का समर्थक था अतः उस समय भगत सिंह भी गांधी जी के विचारों तथा उनकी आंदोलन शैली का समर्थन करते थे।
उस दौर में महात्मा गांधी के द्वारा चलाए गए अहिंसक आंदोलन तथा क्रांतिकारियों के द्वारा किये जाने वाले हिंसक आंदोलनों में वे हमेशा तुलना किया करते थे और अपने लिए एक सही रास्ते की तलाश किया करते।
असहयोग आंदोलन के दौरान चौरी-चौरा कांड के बाद जब महात्मा गांधी जी ने असहयोग आंदोलन को वापस लेने का ऐलान किया तो भगत सिंह गांधी जी के फैसले से खुश नहीं थे और इसीलिए उन्होंने आहत होकर स्वयं को इस आंदोलन से अलग कर लिया।
और गरम दल के युवा क्रांतिकारी आंदोलनों में सहभागिता निभाने लगे। और उन्होंने कई क्रांतिकारी दलों की सदस्यता ग्रहण की।
उस समय उन क्रांतिकारी दलों में कुछ महत्वपूर्ण क्रांतिकारी सुखदेव, राजगुरु तथा चंद्रशेखर आजाद आदि थे। उस दौरान हुए काकोरी कांड में 4 क्रांतिकारियों को फांसी दी गई तथा 16 को सजा दी गई।
इस घटना ने भगत सिंह को इतना आहत कर दिया कि उन्होंने 1928 में अपनी पार्टी नौजवान भारत सभा का हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन ( HRA) में विलय कर दिया ।
और उसका नाम बदलकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन ( HSRA ) रख दिया। उन्ही दिनों जब वह बी0 ए0 की पढ़ाई कर रहे थे उनके परिवार वालों ने भगत सिंह की शादी करने का प्रस्ताव जब उनके सामने रखा तो उन्होंने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया ।
लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला- Revenge of the Death of Lala Lajpat Rai
1928 में जब साइमन कमीशन भारत आया तो पूरे देश भर में इसका पुरजोर विरोध हुआ । इसके विरोध प्रदर्शन में क्रांतिकारी लाला लाजपत राय की अग्रणी भूमिका थी।
अंग्रेजों ने इस प्रदर्शन का दमन करने के लिए प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज किया जिसमें लाठीचार्ज के दौरान सर पर लाठी लगने से लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई।
इस घटना से क्रोधित होकर भगत सिंह और उनके साथियों राजगुरु, जय गोपाल ने मिलकर पुलिस सुपरिंटेंडेंट स्कॉट को मारने की योजना बनाई जिसमें पंडित जी चंद्रशेखर आजाद ने भी इनका पूरा साथ दिया।
और अपनी योजना को पूरा किया परन्तु इनसे एक गलती हो गई इन्होंने लाला जी की मौत का बदला लेने के लिए 17 दिसंबर 1928 को सुपरिंटेंडेंट स्कॉट की जगह ए0एस0पी0 (ASP) सांडर्स की हत्या कर दी।
असेंबली में बम का फेंका जाना (1929) Bombing of the Assembly (1929)
भगत सिंह रक्तपात करना नहीं चाहते थे , साथ ही वे यह भी चाहते थे अंग्रेजों को इस बात का एहसास हो जाना चाहिए कि भारत के लोग अब जाग चुके हैं और अब ज्यादा दिनों तक वे अंग्रेजों को स्वीकार नहीं करेंगे।
अतः इसी बात का एहसास अंग्रेजों को कराने के लिए उन्होंने दिल्ली की सेंट्रल असेंबली में बम फेंकने का प्लान बनाया।
भगत सिंह की मंशा थी कि इस धमाके से कोई खून खराब ना हो और उनकी तेज ‘आवाज’ अंग्रेजी हुकूमत तक पहुंच जाए। इस योजना को कार्यान्वित करने के लिए सभी की सहमति से भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को चुना गया।
निर्धारित तिथि के अनुसार 8 अप्रैल 1929 को दिल्ली की सेंट्रल असेंबली में इन दोनों ने एक खाली स्थान पर बम फेंका जहां कोई बैठा नहीं था, ताकि किसी को चोट ना पहुंचे। सेंट्रल असेंबली का पूरा हाल धुएँ से भर गया।
यदि भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त चाहते तो वहां से भाग सकते थे । परंतु भगत सिंह उसी असेंबली में गिरफ्तार होकर अपनी आवाज पूरे देश और अंग्रेजी हुकूमत तक पहुंचाना चाहते थे , जोकि स्वयं की गिरफ्तारी देकर ही संभव था ।
असेम्बली में बम फेंककर दोनों ने “साम्राज्यवाद मुर्दाबाद, इंकलाब जिंदाबाद!” के नारे लगाते हुए अपने साथ लाए हुए लाल पर्चों को हवा में उड़ा दिया।
और जब पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार करने की कोशिश की उन्होंने अपने दोनों हाथ आगे बढ़ा कर सहर्ष अपनी गिरफ्तारी दे दी।
जेल में बिताया गया समय – Time Spent in Prison
लगभग 2 वर्ष का समय भगत सिंह ने जेल में बिताया। इस दौरान जेल में रहते हुए भी उन्होंने अपना अध्ययन का सिलसिला जारी रखा साथ ही इस बीच वे लगातार लेख लिखते हुए जेल से भी अपने क्रांतिकारी विचारों को प्रचारित व प्रसारित करते रहे।
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अपने परिवार व संबंधियों को जेल से लिखे गए पत्र तथा उनके लेख उनके क्रांतिकारी विचारों को दर्शाते हैं । उन्होंने जेल में ही एक अंग्रेजी लेख लिखा था जिसका हिंदी शीर्षक था मैं नास्तिक क्यों हूं ?
भगत सिंह समाजवादी विचारधारा को मानते थे, इसी कारण उन्होंने अपने कई लेखों में पूँजीपतियों को अपना दुश्मन बताया । उन्होंने लिखा कि मजदूरों का शोषण करने वाला उनके दुश्मन के समान है चाहे वह भारत का नागरिक ही क्यों ना हो।
जेल में सामूहिक भूख हड़ताल – Collective Hunger Strike in Jail
भगत सिंह का जीवन परिचय में आप पढ़ेंगे कि भगत सिंह व उनके साथियों ने जेल में गोरे तथा देशी कैदियों के इलाज में पक्षपात करने और स्वयं को राजनीतिक कैदियों की मान्यता देने की मांग की।
तथा अन्य कई मांगों को लेकर भूख हड़ताल की , जो 64 दिनों तक चली , उनकी इस भूख हड़ताल ने प्रेस का ध्यान अपनी और आकर्षित किया तथा उन्होंने अपनी मांगों के पक्ष में उल्लेखनीय समर्थन हासिल किया।
इसी भूख हड़ताल के दौरान उनके एक साथी यतीन्द्रनाथ दास ने भूख से तड़प-तड़प कर दम तोड़ दिया, परन्तु अन्न का एक दाना भी मुँह में नहीं जाने दिया ।
आखिर में अपने पिता तथा कांग्रेस के अनुरोध पर116 दिनों के बाद भगत सिंह ने अपनी भूख हड़ताल समाप्त की।
भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेवको फांसी की सज़ा दी गई – Death Sentence Given to Bhagat Singh, Sukhdev And RajGuru
दोस्तों, Bhagat Singh Biography In Hindi में हम आपको बताने जा रहे हैं कि विशेष न्यायालय ने 7 अक्टूबर 1930 को अपने 68 पृष्ठों के फैसले में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा सुनाई।
और इसके तुरंत बाद पूरे लाहौर शहर में धारा 144 लगा दी गई। न्यायालय ने फैसला सुनाया कि 24 मार्च, 1931 को तीनों को फांसी दी जाएगी । उनकी फांसी की सजा सुनकर संपूर्ण राष्ट्र स्तब्ध था।
भगत सिंह की फांसी की सजा माफ कराने के लिए प्रिवी परिषद में अपील की गई, तात्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष पंडित मदन मोहन मालवीय ने 14 फरवरी 1931 को वायसराय के समक्ष अपील दायर की।
महात्मा गांधी ने 17 फरवरी 1931 को भगत सिंह की सजा माफ करने के लिए अपील की परंतु इन सारी अपील व प्रयासों को नकार दिया गया।
हालांकि जेल के बाहर किए जाने वाले यह सारे प्रयास जेल की ऊंची दीवारों के भीतर कैद भगत सिंह को मंजूर नहीं थे वे कभी भी यह नहीं चाहते थे कि उनकी सजा माफ की जाए ।
अंत में इनकी फांसी रोकने के सभी प्रयास विफल साबित हुए और ब्रिटिश सरकार ने निर्धारित तिथि से 1 दिन पहले ही अर्थात 23 मार्च 1931 की शाम को लगभग 7 बजकर 33 मिनट पर आजादी के मतवाले , भारत मां के लाल भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी ।
जब उन्हें फांसी पर ले जाने का समय हुआ तब भगत सिंह लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे। भगत सिंह से उनकी आखिरी इच्छा पूछे जाने पर उनका जवाब था कि वह लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे अतः उन्हें वह जीवनी पूरी पढ़ने का समय दिया जाए ।
ऐसा कहा जाता है कि फांसी के समय जब जेल में अधिकारियों के द्वारा भगत सिंह को यह बताया गया उनकी फांसी का वक्त हो गया है, तो उन्होंने कहा – ” ठहरो ! पहले एक क्रांतिकारी दूसरे क्रांतिकारी से मिल तो ले। ” ऐसा बोल कर उन्होंने हाथ में पकड़ी हुई किताब को छत की ओर उछाल दिया और बोले – “ठीक है अब चलो।”
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और फिर तीनों आजादी के दीवाने अंतिम बार गले मिले और और एक दूसरे का हाथ पकड़कर मस्ती में यह गीत गाते हुए फांसी के तख्त की ओर चल पड़े –
“मेरा रंग दे बसंती चोला, मेरा रंग दे।
मेरा रंग दे, मेरा रंग दे, मेरा रंग दे, मेरा रंग दे बसंती चोला,
माएं रंग दे, मेरा रंग दे बसंती चोला ।।“
समय से पूर्व ही फांसी देने के ब्रिटिश सरकार के फैसले का जनता में अत्यधिक विरोध होगा गोरे यह जानते थे अतः देश में अराजकता फैलने के डर से अंग्रेजों ने तीनों क्रांतिकारियों के पार्थिव शरीर को टुकड़े करके बोरियों में भरकर फिरोजपुर की ओर ले जाकर एक सुनसान स्थान पर मिट्टी का तेल डालकर जलाने का प्रयास करने लगे।
परंतु पास के गांव वालों ने जब वहां आग जलती देखी तो वे लोग उस तरफ आने लगे। गांव वालों को आता देख अंग्रेज इनके लाश के अधजले टुकड़ों को सतलज नदी में फेंक कर भाग गए।
फिर गांव वालों ने इनके शरीर के टुकड़ों को एकत्रित करके विधिवत रूप से दाह संस्कार किया। और इसी के साथ मां भारती का यह सच्चा सपूत अपनी शहादत देकर हमेशा हमेशा के लिए अमर हो गया।
सरदार भगत सिंह पर बनी फिल्में – Movies Made on Sardar Bhagat Singh
बहुत छोटी उम्र में देश के लिए शहीद हो जाने वाले भगत सिंह को देश के युवा आदर्श मानते हैं, देश के हिंदी सिनेमा जगत ने इन जज्बातों को देश की युवा पीढ़ी और देश के हर नागरिक तक पहुंचाने और उनके सीने में भगत सिंह की भांति देश प्रेम को जिंदा रखने के लिए समय-समय पर भगत सिंह के जीवन चरित्र पर आधारित फिल्में बनाई, यह प्रमुख फिल्में निम्नलिखित थीं –
क्रम सं0 | फिल्म का नाम | रिलीज़ का वर्ष | अभिनेता |
1 | शहीद-ए-आजाद भगत सिंह | 1954 | प्रेम अदीब |
2 | शहीद भगत सिंह | 1963 | शम्मी कपूर |
3 | शहीद | 1965 | मनोज कुमार |
4 | The Legend Of Bhagat Singh | 2002 | अजय देवगन |
5 | 23 मार्च 1931 शहीद | 2002 | बॉबी देओल |
6 | शहीद-ए-आजम | 2002 | सोनू सूद |
लेखनी के धनी थे भगत सिंह – Bhagat Singh Was Rich in Writing
भगत सिंह देशभक्त होने के साथ-साथ प्रखर वक्ता और लेखनी के धनी थे । अपने छोटे से क्रांतिकारी जीवन काल में उन्होंने कई पत्र-पत्रिकाओं के लिए लेखन कार्य किया और संपादन भी किया। उनकी कुछ मुख्य कृतियाँ निम्नलिखित हैं –
- Why I am an atheist ( मैं नास्तिक क्यों हूँ? )
- एक शहीद की जेल डायरी
- सरदार भगत सिंह : पत्र और दस्तावेज़
- भगत सिंह: भगत सिंह के सम्पूर्ण दस्तावेज़
साथ ही उन्होंने “अकाली” और “कीर्ति” नामक दो अखबारों का संपादन भी किया ।
भगत सिंह युवा पीढ़ी के आदर्श – Bhagat Singh “A Youth Icon“
भगत सिंह की राष्ट्रभक्ति , देशप्रेम और देश को आज़ाद कराने की भावना एक ज़ज़्बे से बढ़कर उनकी एक ज़िद की तरह थी , जो उनकी शायरी और लेखों मे दिखती है ।
उनकी यही सोच थी कि देश की आज़ादी के लिए उनका सर्वोच्च बलिदान ही देश की आने वाली पीढ़ी को देश के “स्वाधीनता यज्ञ” में आहुति देने के लिए तैयार करेगा और मेरा, देश को आज़ाद करने का सपना पूरा होगा।
अपनी इसी सोच और ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ मुखर आवाज और अपने विचारों के कारण वो युवा पीढ़ी की आवाज बन गए । शहीद-ए-आज़म भगत सिंह को हमारे देश के युवा आज भी अपना आदर्श और नायक मानते हैं |
FAQs
प्रश्न – भगत सिंह का जन्म कब हुआ था ?
उत्तर – भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर 1907 को हुआ था।
प्रश्न – भगत सिंह का जन्म कहां हुआ था ?
उत्तर – भगत सिंह का जन्म ग्राम -बंगा, तहसील जरांवाला , ज़िला- लायलपुर, पंजाब ( अब पाकिस्तान ) में हुआ था।
प्रश्न – भगत सिंह के माता-पिता का क्या नाम था ?
उत्तर – भगत सिंह के पिता का नाम किशन सिंह तथा माता का नाम विद्यावती कौर था।
प्रश्न –भगत सिंह का नारा क्या था?
भगत सिंह का नारा था “इंक़लाब-ज़िन्दाबाद”
प्रश्न – भगत सिंह को फांसी कब हुई ?
उत्तर – भगत सिंह को 23 मार्च 1931 को फांसी हुई ।
प्रश्न – भगत सिंह को फांसी कहाँ हुई ?
उत्तर – भगत सिंह को फांसी लाहौर जेल में हुई ।
प्रश्न –भगत सिंह को फांसी देने वाले जज का नाम क्या था ?
उत्तर – भगत सिंह को फांसी देने वाले जज का नाम जी0 सी0 हिल्टन था ।
“दिल से निकलेगी न मेरे कभी मरकर भी मेरे वतन की उल्फत।
मिट्टी से भी मेरी खुशबू-ए-वतन आएगी।।”
-भगत सिंह
दोस्तों ! भगत सिंह द्वारा लिखी इन पंक्तियों ( जज़्बातों ) से ही हम अपने इस लेख का समापन कर रहे हैं । हमें आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि आपको इस लेख (Shaheed Bhagat Singh Biography In Hindi, भगत सिंह का जीवन परिचय, Biography Of Bhagat Singh In Hindi) में शहीद भगत सिंह का जीवन परिचय तथा उनके विचार ज़रूर पसंद आए होंगे।
लेख से संबंधित यदि आपके कोई प्रश्न हैं तो कमेंट बॉक्स में हमसे पूछ सकते हैं ।
प्रिय पाठकों ! हमारे लेख आपको कैसे लगते हैं हमें कमेंट बॉक्स में ज़रूर लिखें , हमें आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियों का इंतजार रहता है । आपके कॉमेंट से हमें बेहतर लिखने की प्रेरणा मिलती है ।
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“23 मार्च शहीद दिवस” पर शहीद भगत सिंह , सुखदेव व राजगुरु को Team sanjeevnihindi की ओर से शत्-शत् नमन व श्रद्धांजली।
अंत में – “हमारे आर्टिकल पढ़ते रहिए, हमारा उत्साह बढ़ाते रहिए, खुश रहिए और मस्त रहिए। ज़िंदगी को अपनी शर्तों पर जियें ।”
देखिए विशिष्ट एवं रोचक जानकारी Audio/Visual के साथ sanjeevnihindi पर Google Web Stories में –
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