Guru Gobind Singh Biography History In Hindi | गुरु गोबिन्द सिंह का जीवन परिचय

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“चिड़ियाँ नाल मैं बाज़ लडावाँ , गिदरां नू मैं शेर बनावाँ,

सवा लाख से एक लड़ावाँ , तां गोबिन्द सिंह नाम धरावाँ “

– श्री गुरु गोविंद सिंह जी

सिक्खों के दसवें गुरु, श्री गुरु गोविंद सिंह जी द्वारा 17 वीं सदी में बोले गए इन शब्दों को सुनकर आज भी लोगों के दिलो-दिमाग में एक अलौकिक शक्ति का संचार हो जाता है ये न केवल शब्द हैं बल्कि मानव मात्र के लिए अथाह ऊर्जा का स्रोत बन जाते हैं।

ये शब्द एक हथियार की तरह हैं उन निहत्थे और विवश लोगों पर होने वाले अत्याचार के खिलाफ, ताकत के दुरुपयोग के खिलाफ, अन्याय के खिलाफ़ ।

आप सिर्फ एक बार आत्मविश्वास से लबरेज उस इंसान की कल्पना कीजिए जो एक चिड़िया से बाज को लड़ाने की कल्पना करता है, उस विश्वास के बारे में सोचिए जो गीदड़ को शेर बना सकता है, उस भरोसे की कल्पना कीजिए जिसमें एक अकेला व्यक्ति सवा लाख से जीत सकता है। और इतिहास गवाह है इस बात का कि श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने जो कहा उसी को जिया भी।

दोस्तों, Guru Gobind Singh Biography History In Hindi | गुरु गोबिन्द सिंह का जीवन परिचय लेख के माध्यम से आज हम जानेंगे सिक्खों के दसवें गुरु , श्री गुरु गोविंद सिंह जी के जीवन परिचय के बारे में जो अपने नाम को सार्थक करने वाले सच्चे “सिंह” ( शेर) थे।

वे एक ऐसे योद्धा थे जिन्होंने सारा जीवन संघर्ष किया और कभी पराधीनता स्वीकार नहीं की। सिक्ख इतिहास में उनका नाम एक महान योद्धा , महान दार्शनिक, प्रख्यात कवि व आध्यात्मिक गुरु के रूप में सर्वोच्च स्थान पर है।

Table of Contents

Guru Gobind Singh Biography History In Hindi | गुरु गोबिन्द सिंह का जीवन परिचय

बिन्दु जानकारी
जन्म (Birth) 22 दिसंबर 1666
जन्म स्थान ( Birth Place ) बिहार के पटना जिले में
जन्म का नाम ( Birth Name ) गोविन्द राय
पिता का नाम ( Father’s Name )श्री गुरु तेग बहादुर जी
माता का नाम (Mother’s Name)माता गूजरी
पुत्र ( Sons )जुझार सिंह जी, फतेह सिंह जी, जोरावर सिंह जी, अजीत सिंह जी
पत्नी ( Wives)माता जीतो , माता सुंदरी, माता साहिब देवन
पदवी ( Title)सिक्खों के दसवें गुरु
प्रसिद्धि के कारण ( Known For )दसवें सिख गुरु, खालसा पंथ के संस्थापक
देहावसान ( Death)7 अक्टूबर 1708 (42 वर्ष ) , नांदेड़ साहिब ( महाराष्ट्र )
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जन्म – Birth (Guru Gobind Singh Biography History In Hindi)

श्री गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म पौष शुक्ल सप्तमी संवत् 1723 विक्रमी तदनुसार 22 दिसंबर 1666 को पटना में श्री गुरु तेग बहादुर जी और उनकी पत्नी गूजरी के घर में हुआ था।

वे अपने माता पिता की इकलौती संतान थे। उनके पिता श्री गुरु तेग बहादुर जी सिक्खों के नौवें गुरु थे, वे गोविंद राय के जन्म के समय असम में धर्मोपदेश यात्रा पर गए हुए थे।

श्री गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म का नाम ( Birth name of Shree Guru Gobind Singh )-

श्री गुरु गोविंद जी का जन्म का नाम गोविंद राय था।

शिक्षा व प्रारंभिक जीवन – ( Education and Early Life)

गोविंद राय के जन्म के पश्चात पटना में 4 वर्ष तक रहने के बाद 1670 में उनका परिवार पंजाब वापस लौट गया । पटना में उनके जन्म स्थान वाले घर का नाम वर्तमान में “तख्त श्री हरिमंदर जी पटना साहिब ” के नाम से जाना जाता है।

मार्च 1672 में उनका परिवार हिमालय की शिवालिक पहाड़ियों में स्थित “चक्क नानकी” नामक स्थान पर चला गया। इस शहर की स्थापना उनके पिता श्री गुरु तेग बहादुर जी ने की थी, इस स्थान को वर्तमान में श्री आनंदपुर साहिब के नाम से जाना जाता है।

इसी स्थान पर श्री गुरु गोविंद सिंह जी की प्रारंभिक शिक्षा संपन्न हुई, उन्होंने संस्कृत, फारसी, मुगल, पंजाबी और ब्रजभाषा की शिक्षा लेने के साथ-साथ महान योद्धाओं की भांति सैन्य कौशल, अस्त्र शस्त्र चलाने की विद्या , घुड़सवारी , मार्शल आर्ट और तीरंदाजी की शिक्षा भी ली।

इतिहासकारों के अनुसार इनके पिता जी सिखों के नौवें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी ने कश्मीरी पंडितों को धर्म परिवर्तन करके मुस्लिम बनाए जाने के विरुद्ध खुलकर विरोध किया था, तथा साथ ही स्वयं भी मुस्लिम धर्म स्वीकार करने से इंकार कर दिया था।

इसी कारण से मुगल शासक औरंगजेब ने 11 नवंबर 1675 को दिल्ली के चांदनी चौक इलाके में सार्वजनिक रूप से श्री गुरु तेग बहादुर जी का शीश कटवा दिया था।

Guru Gobind Singh Biography History In Hindi
Sri Guru Gobind Singh Ji

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गुरु गोबिन्द सिंह दसवें गुरु के रूप में (Guru Gobind Singh As Tenth Guru)-

29 मार्च 1676 को बैसाखी के दिन मात्र 9 साल की छोटी उम्र में श्री गुरु गोविंद सिंह जी को विधिवत् रूप से सिक्खों का दसवां गुरु घोषित किया गया।

व्यक्तिगत जीवन -Personal Life (Guru Govind Singh Biography , History In Hindi)

ऐतिहासिक वर्णन के अनुसार उनकी तीन पत्नियां थी। 21 जून 1677 में 10 साल की उम्र में बसंतगढ़ की माता जीतो के साथ उनका विवाह हुआ, तथा उनके 3 पुत्र हुए – जुझार सिंह, जोरावर सिंह, फतेह सिंह।

4 अप्रैल 1684 को 17 वर्ष की उम्र में इनका दूसरा विवाह आनंदपुर की माता सुंदरी के साथ हुआ और इनके एक और पुत्र हुआ – जिसका नाम अजीत सिंह था। 15 अप्रैल 1700 को 33 वर्ष की आयु में इनका तीसरा विवाह माता साहिब देवन से हुआ।

आनंदपुर साहिब को छोड़कर जाना -( Leaving Anandpur Saahib)

अप्रैल 1685 में श्री गुरु गोविंद सिंह अपने निवास स्थान को छोड़कर सिरमौर राज्य के पांवटा शहर में चले गए। फिर वहां से वे टोका चले गए। भंगानी के युद्ध के बाद बिलासपुर की रानी चंपा ने गुरुजी से आनंदपुर ( चक नानकी ) वापस लौटने की विनती की जिसे गुरु जी ने स्वीकार कर लिया और नवंबर 1688 में वे आनंदपुर वापस आ गए।

खालसा पंथ की स्थापना – ( Khalsa Panth Establishmet )

खालसा का अर्थ है – शुद्ध , खालिस या पवित्र । खालसा सिक्ख धर्म के विधिवत् दीक्षाप्राप्त अनुयायियों का ऐसा समूह है जिनका कर्तव्य था कि वे किसी भी प्रकार के उत्पीड़न से निर्दोष व कमजोर लोगों की रक्षा के लिए हमेशा तैयार रहें । गुरु जी ने खालसाओं को पूर्णरूपेण एक योद्धा के रूप मे तैयार किया था ।

श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने मुगलों के अत्याचार और अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने तथा मानवता की रक्षा करने के लिए एक ऐसी मजबूत सेना का निर्माण करने का लक्ष्य बनाया जो हमेशा अपने धर्म की रक्षा के लिए तत्पर रहें, इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए श्री गुरु जी ने 13 अप्रैल 1699 में बैसाखी के दिन आनंदपुर साहिब में खालसा पंथ की स्थापना की।

खालसा के गठन को सिक्ख धर्म के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण घटना के रूप मे माना जाता है । तभी से सिक्खों द्वारा बैसाखी त्यौहार पर खालसा पंथ की स्थापना का जश्न पूरे जोशोखरोश से मनाया जाता है ।

अपने इस उद्देश्य के लिए गुरु जी ने आनंदपुर में अपने अनुयायियों को एक सभा में बुलाया और सभा के सामने हाथ में तलवार लहराकर कहा – “इस सभा में कौन है जो मुझे अपना शीश देगा ? ” उस सभा में एक स्वयंसेवक ने अपनी सहमति दी गुरुजी उसे तम्बू के अंदर ले गए और कुछ समय बाद अपने हाथ में खून से सनी तलवार के साथ वापस बाहर लौटे।

और उन्होंने फिर से सभा के सामने वही सवाल किया ,और फिर से एक और स्वयंसेवक ने अपनी सहमति दी और गुरु जी फिर से उसे तम्बू में ले गए और जब वे बाहर निकले तो उनके हाथ में वही खून से सनी तलवार थी।

इसी प्रकार जब गुरुजी पांचवे स्वयंसेवक को लेकर डेरे में गए तो कुछ समय बाद डेरे से जब वापस बाहर आए तो उनके साथ वे पांचों जीवित स्वयंसेवक भी बाहर लौटे। इसके बाद श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने उन पांचों को “पंज प्यारे” या पहले खालसा का नाम दिया।

गुरु गोविंद सिंह जी ने एक कटोरी में पानी तथा पताशा मिलाकर तलवार की धार से घोलघर उसे “अमृत” का नाम दिया। उन पंज प्यारों को अमृतपान कराया और स्वयं भी उनके हाथ से अमृतपान किया ।

पहले पांच खालसा बनाने के बाद स्वयं उन्हें छठवां खालसा का नाम दिया गया ,उसके बाद से ही उनका नाम गोविंद राय से गुरु गोविंद सिंह रखा गया , और गुरु गोबिन्द सिंह जी ने खलसाओं को नाम के अंत में सिंह लगाने का आदेश दिया ।

पंज प्यारों के नाम (Name Of Panj Pyare )-

  • भाई दया राम खत्री ( लाहौर )
  • भाई धरम दास जाट ( दिल्ली )
  • भाई मोहकम चन्द्र छीपा (द्वारिका , गुजरात )
  • भाई साहिब चन्द्र नाई ( बीदर , कर्नाटक )
  • भाई हिम्मत राम ( झीमर ,जगन्नाथपुरी , उड़ीसा )

अमृत पान करने के बाद पंज प्यारों के नाम क्रमशः – भाई दया सिंह , भाई धरम सिंह भाई मोहकम सिंह , भाई साहिब सिंह , भाई हिम्मत सिंह और गुरु जी का नाम गुरु गोबिन्द सिंह हो गया ।

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पंज ककार – ( Panj Kakar)

पंज ककार का संबंध “क ” अक्षर से प्रारंभ होने वाली उन 5 वस्तुओं से है जिन्हें श्री गुरु गोविंद सिंह जी द्वारा जीवन दर्शन के लिए निर्धारित किए गए सिद्धांतों के अनुसार सभी खालसाओं के लिए धारण करना आवश्यक बताया गया । इनके बिना खालसा वेश पूरा नहीं माना जाता । ये पंज ककार थे –

  • केश
  • कंघा
  • कड़ा
  • कृपाण
  • कछैरा

गुरु गोविंद सिंह जी के प्रमुख कार्य – (Main Tasks Of Guru Gobind Singh Ji )

श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की, समस्त गुरुओं की शिक्षाओं का संकलन करके श्री गुरु ग्रंथ साहिब की रचना पूर्ण की तथा धर्म की रक्षा के लिए अपने पूरे परिवार का बलिदान कर दिया।

उनके दो बड़े साहिबजादे युद्ध में शहीद हो गए और दो छोटे साहिबजादों को मुग़लों ने जीवित ही दीवार में चिनवा दिया था , इसीलिए उन्हें सर्वंशदानी ( पूरे परिवार का दानी ) भी कहा जाता है।

श्री गुरु गोविंद सिंह जी द्वारा लड़े गए युद्ध ( Battles Faught By Guru Gobind Singh Ji)-

धर्म और मानवता की रक्षा के लिए श्री गुरु गोविंद सिंह जी पूरे जीवन संघर्ष करते रहे और उन्होंने लगभग 14 लड़ाइयाँ लड़ीं और सभी में विजय प्राप्त की ।

चमकौर का युद्ध – ( Chamkaur Battle 1704 )

22 दिसंबर 1704 को सिरसा नदी के किनारे चमकौर नामक जगह पर मुगलों और सिक्खों के बीच एक ऐतिहासिक युद्ध हुआ जिसे इतिहास में चमकौर के युद्ध के नाम से जाना जाता है । इस युद्ध में श्री गुरु गोविंद सिंह के नेतृत्व में 40 सिक्खों की टुकड़ी का सामना वजीर खान के नेतृत्व वाली 10 लाख सैनिकों की मुगल सेना से हुआ।

इसी युद्ध में गुरु जी के दोनों बड़े साहिबजादे अजीत सिंह जी तथा जुझार सिंह जी बहुत वीरता और पराक्रम से लड़ते हुए शहीद हो गए । इसके अतिरिक्त उनके द्वारा लड़े गए प्रमुख युद्ध थे –

  • भंगानी का युद्ध – 1688
  • नांदोन का युद्ध – 1691
  • बदायूं का युद्ध – 1691
  • गुलेर का युद्ध – 1696
  • आनंदपुर का प्रथम युद्ध – 1700
  • आनंदपुर का द्वितीय युद्ध – 1701
  • निर्मोहगढ़ का युद्ध – 1702
  • बसौली का युद्ध – 1702
  • आनंदपुर का तृतीय युद्ध – 1704
  • सरसा का युद्ध – 1704
  • चमकौर का युद्ध – 1704
  • मुक्तसर का युद्ध – 1705

श्री गुरु गोविंद सिंह जी की रचनाएं – ( Books Of Shree Guru Gobind Singh Ji )

गुरु गोबिन्द सिंह जी एक प्रख्यात लेखक , मौलिक चिंतक और संस्कृत, फारसी ,पंजाबी सहित कई भाषाओं के परम ज्ञाता थे, अतः उन्होंने स्वयं कई ग्रंथों की रचना की । उनके दरबार में 52 कवि व लेखक थे इसीलिए उन्हें “संत सिपाही” भी कहा जाता है । श्री गुरु गोविंद सिंह जी की प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित हैं –

  • जाप साहिब
  • अकाल उस्तत
  • विचित्र नाटक
  • चंडी चरित्र
  • शास्त्र नाम माला
  • अथ पख्यां चरित्र लिख्यते
  • जफरनामा
  • खालसा महिमा
  • वर श्री भगौती जी की
देहावसान – ( Death Of Guru Gobind Singh Ji )

सरहिंद के नवाब वजीर खान को बादशाह व गुरुजी के बीच दोस्ताना संबंध पसंद ना होने के कारण उसने गुरु जी की हत्या का षड्यंत्र रचा और 1708 में दो पठानों जमशेद खान व वासिल बेग को गुरु गोबिन्द सिंह जी की हत्या के लिए भेजा ।

जमशेद खान ने आराम कर रहे गुरु जी के सीने में धोखे से खंजर से घाव कर दिया , वह ज़ख्म इलाज़ के बाद भी नहीं भर सका, 7 अक्टूबर 1708 को नांदेड़ ( महाराष्ट्र ) में धर्म के रक्षक , देश के सच्चे सपूत श्री गुरु गोविंद सिंह जी श्री गुरु ग्रंथ साहिब को गुरु गद्दी पर विराजमान कर देहधारी गुरु की परंपरा को समाप्त करके दिव्य ज्योति में लीन हो गए ।

श्री गुरु गोविंद सिंह जी के बारे मे 10 बहुत ही रोचक व महत्वपूर्ण तथ्य -( 10 Interesting And Very Important Facts About Shree Guru Gobind Singh Ji)

  • श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी सिक्खों के दसवें व अंतिम गुरु थे
  • उन्होनें खालसा वाणी – “वाहे गुरु जी का खालसा , वाहे गुरु जी की फतह “ दी
  • 13 अप्रैल 1699 में बैसाखी के दिन उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की
  • उन्होंने सिक्खों के पवित्र ग्रंथ , श्री गुरु ग्रंथ साहिब को पूर्ण किया
  • श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी ने खालसा पंथ की रक्षा हेतु मुग़लों से 14 युद्ध लड़े
  • उन्होंने जाप साहिब , बिचित्र नाटक , चंडी चरित्र सहित कई महान ग्रंथों की रचना की
  • बिचित्र नाटक उनकी आत्मकथा है , जो कि दसम ग्रंथ का ही एक भाग है श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी की कृतियों के संकलन का नाम दसम ग्रंथ है
  • उन्होंने जीवन के लिए 5 सिद्धांत दिए ,जिन्हें “पंज ककार” कहा जाता है
  • “पंज ककार” – केश , कंघा , कड़ा , कृपाण और कछेरा हैं

FAQ

Q. गुरु गोबिन्द सिंह जी का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?

Ans. श्री गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म पौष शुक्ल सप्तमी संवत् 1723 विक्रमी तदनुसार 22 दिसंबर 1666 को पटना में हुआ था ।

Q. गुरु गोबिन्द सिंह जी के बचपन का नाम क्या था ?

Ans. गुरु गोविंद जी का बचपन का नाम गोविंद राय था।

Q. गुरु गोबिन्द सिंह जी कि पत्नी का क्या नाम था ?

Ans. माता जीतो , माता सुंदरी , माता साहिब देवन ।

Q. गुरु गोबिन्द सिंह जी के पिता का क्या नाम था ?

Ans. गुरु गोबिन्द सिंह जी के पिता का नाम श्री गुरु तेग बहादुर था ।

Q. गुरु गोबिन्द सिंह जी के पुत्रों के क्या नाम थे ?

Ans. गुरु गोबिन्द सिंह जी के पुत्रों के नाम जुझार सिंह, जोरावर सिंह, फतेह सिंह और अजीत सिंह थे ।

Q. गुरु गोबिन्द सिंह जी की हत्या किसने की थी ?

Ans. सरहिंद के नवाब वजीर खान के द्वारा भेजे गए पठान जमशेद खान ने गुरु गोबिन्द सिंह जी की हत्या की थी ।

Q. खालसा पंथ की स्थापना कब हुई ?

Ans.खालसा पंथ की स्थापना 13 अप्रैल 1699 को बैसाखी के दिन आनंदपुर साहिब में हुई ।

Q. पंज ककार क्या हैं ?

Ans. पंज ककार का संबंध “क” अक्षर से प्रारंभ होने वाली उन 5 वस्तुओं से है जिन्हें श्री गुरु गोविंद सिंह जी द्वारा जीवन दर्शन के लिए निर्धारित किए गए सिद्धांतों के अनुसार सभी खालसाओं के लिए धारण करना आवश्यक बताया।इनके बिना खालसा वेश पूरा नहीं माना जाता । ये पंज ककार थे – केश , कंघा , कड़ा , कृपाण, कछैरा ।

Q. गुरु गोबिन्द सिंह जी की मृत्यु कैसे हुई ?

Ans. सरहिंद के नवाब वजीर खान ने 1708 में दो पठानों जमशेद खान व वासिल बेग को गुरु गोबिन्द सिंह जी की हत्या के लिए भेजा , जमशेद खान ने आराम कर रहे गुरु जी के सीने में धोखे से खंजर से घाव कर दिया, वह ज़ख्म इलाज़ के बाद भी नहीं भर सका ।

Q. गुरु गोबिन्द सिंह जी की मृत्यु कब और कहाँ हुई ?

Ans. गुरु गोबिन्द सिंह जी की मृत्यु 7 अक्टूबर 1708 को नांदेड़ ( महाराष्ट्र ) में हुई ।

हमारी ओर से निष्कर्ष वाक्य –

सारी दुनियाँ में एकमात्र श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी ही ऐसे महापुरुष थे , जो शहीद पिता के बेटे और शहीद बेटों के पिता थे, वे एक महान धर्म रक्षक , महान योद्धा , महान चिंतक थे , जिन्होंने धर्म की रक्षा के लिए अपने समस्त परिवार को बलिदान कर दिया ऐसे महान पुरोधा को हम शत- शत नमन करते हैं ।

दोस्तों Guru Gobind Singh Biography History In Hindi | गुरु गोबिन्द सिंह का जीवन परिचय लेख में हमने श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी के जीवन के बारे में विस्तृत जानकारी आपको दी है, आशा है ये पोस्ट आपको पसंद आई होगी, अगर आपको ये लेख पसंद आया हो तो हमें कमेन्ट बॉक्स में लिखकर अवश्य बताए व अपने मित्रों के साथ Share भी करें |

आप सभी को श्री गुरु गोबिन्द सिंह जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं

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