सूरदास (Surdas) भारतीय हिन्दी साहित्य की भक्तिकालीन शाखा के महानतम कवि थे । सूरदास जी को भारतीय हिंदी साहित्य में श्री कृष्ण के अनन्य भक्त के रूप में जाना जाता है । सूरदास जी को भक्ति काल के श्रेष्ठतम कवि के साथ-साथ भारतीय हिंदी साहित्य का सूर्य मानते हैं ।
सूरदास जी ने 15 वीं सदी में हिंदी साहित्य के भक्ति काल में अपनी रचनाओं का अमिट प्रभाव छोड़ा। सूरदास जी ने ना सिर्फ 15 वीं सदी को बल्कि हिंदी साहित्य को युग-युगांतर तक अपनी रचनाओं तथा भाषा शैली से प्रकाशित किया।
नमस्कार दोस्तों !
स्वागत है आपका sanjeevnihindi के इस नवीन लेख में। प्रस्तुत लेख Surdas Ka Jivan Parichay । सूरदास जी का जीवन परिचय । Surdas Biography In Hindi में आप सूरदास जी की जीवनी के बारे में पढ़ेंगे ।
इससे पहले आपने हमारे ब्लॉग में तुलसीदास व कबीरदास के बारे में पढ़ा होगा, यदि नहीं तो अवश्य पढ़ें । तो चलिए दोस्तों Surdas Biography के बारे में विस्तार से जानते हैं –
सूरदास का संक्षिप्त जीवन परिचय Brief Information About Surdas
बिन्दु ( Point ) | जानकारी ( Information ) |
---|---|
नाम ( Name ) | सूरदास |
पूर्व नाम ( Nickname) | मदन मोहन |
पिता का नाम ( Father’s Name ) | रामदास सारस्वत |
माता का नाम ( Mother’s Name) | जमुनादास |
जन्म ( Birth) | 1478 |
मृत्यु ( Death ) | 1580 |
जन्म-स्थान ( Birthplace) | रुनकता, सीही ( कुछ अन्य विद्वानों के अनुसार ) |
कार्य-क्षेत्र ( Profession) | कवि |
गुरु ( Teacher/ Guru) | बल्लभाचार्य |
पत्नी का नाम ( Wife’s Name ) | अविवाहित |
प्रमुख रचनाएँ ( Major Compositions ) | 1. सूरसागर 2. सूर-सारावली 3. साहित्य लहरी 4. नल-दमयन्ती 5. ब्याहलो |
साहित्यिक भाषा ( Literary Language ) | ब्रज भाषा |
साहित्य काल ( Literary Period ) | भक्तिकाल |
सूरदास का जन्म – (Surdas Ka Jivan Parichay)
श्री कृष्ण भक्त , वात्सल्य रस सम्राट तथा महान कवि सूरदास जी का जन्म 1534 विक्रम संवत् की वैशाख शुक्ल पंचमी, 1478 ई0 में रुनकता नामक स्थान पर हुआ था। हालांकि कुछ विद्वान सीही नामक स्थान को इनकी जन्म स्थली मानते हैं। वैसे सूरदास जी के जन्म और मृत्यु के बारे में हिंदी साहित्य और विद्वानों में अलग- अलग मत पाए जाते हैं ।
सूरदास के माता पिता – Mother-Father of Surdas
सूरदास जी के पिता का नाम पं0 रामदास सारस्वत था, वे एक गायक थे और इनकी माता का नाम जमुनादास था।
सूरदास का जन्म स्थान – Birthplace of Surdas
सूरदास जी का जन्म, ‘चौरासी वैष्णव की वार्ता’ के अनुसार आगरा जिला के रुनकता (रेणुका क्षेत्र) में हुआ था। परन्तु “भाव प्रकाश” के अनुसार सूरदास जी का जन्मस्थान सीही नामक स्थान माना जाता है। सूरदास जी का जन्म एक गरीब सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था । आगरा व मथुरा के बीच गऊघाट पर सूरदास जी का परिवार निवास करता था । वहीं पर इनका बचपन व्यतीत हुआ ।
सूरदास का प्रारम्भिक जीवन – Early Life of Surdas
कहा जाता है कि सूरदास जी के तीन बड़े भाई भी थे, और ये जन्मांध थे परन्तु ईश्वर ने उन्हें जन्म के साथ ही एक अद्भुत शक्ति देकर इस पृथ्वी पर भेजा था, वे सगुन बताने की विद्या में माहिर थे । इसी शक्ति के कारण उन्होंने अपने माता-पिता को मात्र 6 वर्ष की अवस्था में अचंभित कर दिया था।
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परन्तु वे कुछ समय बाद ही अपना घर त्यागकर चार कोस दूर एक गाँव के निकट एक तालाब के पास रहने लगे, अपनी सगुन बताने कि शक्ति के कारण जल्द ही उनकी ख्याति चहुँओर फैल गई ।सूरदास जी को बाल्यकाल में ही संसार से विरक्ति हो गयी, और वे उस स्थान को छोड़कर यमुना किनारे गऊघाट पर रहने लगे ।
सूरदास जी की शिक्षा – Surdas Education
सूरदास जी का सारा बचपन गऊघाट पर ही व्यतीत हुआ, और वहीं श्री वल्लभाचार्य से इनकी भेंट हुई। कालांतर में सूरदास जी श्री वल्लभाचार्य के शिष्य बन गए । हालांकि सूरदास और उनके गुरु श्री वल्लभाचार्य की उम्र में केवल 10 दिन का ही अंतर था । वल्लभाचार्य ने सूरदास को पुष्टिमार्ग में दीक्षित किया तदोपरांत उन्होंने सूरदास को कृष्ण भक्ति की राह दिखाई ।
सूरदास की पत्नी का नाम – Surdas Wife Name
सूरदास जी की कोई पत्नी नहीं थीं, वे आजीवन अविवाहित थे, उन्होंने कभी विवाह नहीं किया ।
सूरदास के गुरु – Teacher of Surdas
सूरदास जी के गुरु का नाम श्री बल्लभाचार्य था । श्री वल्लभाचार्य से इनकी भेंट गऊघाट, जहाँ इनका बचपन बीता था, में हुई , उन्होंने ही इन्हें पुष्टिमार्ग में दीक्षित कर कृष्ण भक्ति के लिए प्रेरित किया ।
गऊघाट पर ही सूरदास अपने कई शिष्यों के साथ रहते थे सूरदास के सभी शिष्य उन्हें स्वामी बुलाते थे। उनके गुरु ने ही उन्हे कीर्तनकार के रूप में गोकुल में श्रीनाथ जी के मंदिर में नियुक्त कर दिया, और फिर आजीवन वे वहीं कृष्ण भक्ति मेें लीन रहे ।
सूरदास और अकबर की भेंट – Akbar Meets With Surdas
सूरदास जी ने भागवत गीता का ज्ञान प्राप्त कर अपने पदों में उनको वर्णित किया, द्वादश स्कंधों ( भागवत के ) की पद रचना की, सहस्त्रावधि पदों की रचना की उन्ही को ‘सागर’ कहा गया ।
सूरदास जी की गायन कला और पद-रचना की प्रसिद्धि सुनकर मुगल शासक अकबर भी सूरदास जी से बहुत प्रभावित था , और फिर अकबर के नवरत्नों मे से एक महान संगीतकार तानसेन ने मथुरा में उनकी सूरदास जी से भेंट करायी ।
क्या सूरदास जी जन्मांध थे ? Was Surdas Blind by Birth ?
सूरदास जी के बारे में हमेशा एक प्रश्न पूछा जाता रहा है कि, क्या सूरदास जी वास्तव में जन्मांध थे ?
दोस्तों , इस बात को लेकर इतिहास में विद्वानों के भिन्न-भिन्न मत हैं।
कुछ ऐसे ग्रंथ हैं जिनमें सूरदास जी को जन्मांध माना गया है, ऐसे ग्रंथों में प्रमुख रूप से श्रीनाथ भट रचित “संस्कृतवार्ता मणिपाला” , गोकुलनाथ कृत ” निजवार्ता” तथा श्री हरि राय रचित ” भाव-प्रकाश” हैं ।
परंतु दोस्तों, सूरदास जी ने श्री कृष्ण के बाल्यकाल और राधा कृष्ण के रूप सौंदर्य का जैसा सजीव चित्रण अपनी रचनाओं में किया है , उन्हें पढ़ने के बाद यह विश्वास करना मुश्किल होता है कि वे जन्मांध होंगे, क्योंकि ऐसे किसी भी जन्मांध व्यक्ति के लिए अपनी रचनाओं में रूप-सौंदर्य, भाव-भंगिमाओं आदि का इतना सूक्ष्म व सटीक वर्णन कर पाना असंभव प्रतीत होता है ।
अतः बहुत से विद्वान सूरदास को जन्मांध स्वीकार नहीं करते। हालांकि सूरदास की सूरसागर के कुछ पदों से यह अवश्य प्रतीत होता है कि उन्होंने स्वयं को ” जन्म का अंधा और कर्म का अभागा” कहा है, परंतु उनके शब्दों का अक्षरश: शाब्दिक अर्थ निकालना किसी प्रमाणिक निष्कर्ष पर नहीं पहुंचाता।
वैसे भी कई लोककथाओं में सूरदास जी के अंधत्व के बारे में वर्णन है, लोक कथाओं से भी यही प्रमाणित होता है कि वे जन्मांध नहीं थे ।
सूरदास जी की कृष्ण भक्ति – Krishna Bhakti of Surdas
सूरदास जी भक्तिधारा के अग्रणी कवि थे, वे भगवान कृष्ण के अनन्य भक्त थे । उनकी कृष्ण भक्ति के संबंध में बहुत सी कथाएं प्रचलित हैं, उन कथाओं में से एक कथा इस प्रकार है –
कहा जाता है कि सूरदास जी कृष्ण भक्ति में इतना लीन रहते थे कि एक बार वे ध्यान में रमे हुए एक कुएं मे जा गिरे । भगवान कृष्ण ने उन्हे बचाया और उनकी नेत्र ज्योति लौटाकर उन्हें दर्शन भी दिये, इस प्रकार सूरदास ने इस संसार में सर्वप्रथम अपने आराध्य के दर्शन किए । फिर उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर कृष्ण जी ने उनसे वरदान मांगने की बात कही ।
सूरदास जी ने कहा प्रभु ! आपके दर्शनों के बाद मुझे सब कुछ मिल गया है , अब मुझे कुछ और नहीं चाहिए, बस अब आप कुछ देना चाहते हैं तो मझे पुनः अंधत्व प्रदान करें, मैं आप के दर्शन के बाद इन नेत्रों से और कुछ नहीं देखना चाहता ।
सूरदास की रचनाएं – Surdas ki Rachnaye
हिंदी साहित्य में सूरदास जी का नाम उच्च कोटि के कवियों में गिना जाता है। वे श्री कृष्ण के अनन्य भक्त थे तथा अपने भगवान के प्रति उनकी गहरी आस्था थी, अपने अधिकांश समय कृष्ण भक्ति में लीन रहने वाले सूरदास जी ने अपनी रचनाओं में भी अपने भक्ति भाव का सहज प्रदर्शन किया है।
हिंदी साहित्य में भक्ति काल की सगुण धारा के सर्वश्रेष्ठ कवि सूरदास जी की रचनाओं में कृष्ण भक्ति की ऐसी धारा बहती है कि जो भी उन्हें सुनता है आकंठ कृष्ण भक्ति में डूब जाता है।
अपनी रचनाओं में सूरदास जी ने श्रीनाथजी के बेहद सुंदर एवं अनुपम रूपों का श्रृंगार, वात्सल्य और शांत रस में बड़ा ही मनोहारी वर्णन किया है। साथ ही उन्होंने अपनी रचनाओं में भगवान श्री कृष्ण की बाल लीलाओं, प्रेम प्रसंग, गोपियों आदि का अत्यंत हृदयस्पर्शी वर्णन किया है।
सूरदास जी ने अपनी रचनाएं ब्रज भाषा में रची है और लगभग हर कृति में भगवान श्री कृष्ण के विभिन्न स्वरूपों का मनोहारी वर्णन इस प्रकार किया है मानो उन्होंने स्वयं अपने नेत्रों से नटखट नंद गोपाल की सभी लीलाओं को देखा हो, सचमुच.. .. ऐसा सजीव वर्णन जिससे उनकी नेत्र हीनता पर भी संदेह होता है।
सूरदास जी कवि के साथ-साथ एक अच्छे संगीतकार और महान संत थे। वे मानते थे कि भगवान श्री कृष्ण की भक्ति तथा उनके प्रति सच्ची श्रद्धा ही व्यक्ति को मोक्ष प्रदान करा सकती है।
सूरदास जी की काव्य रचनाओं, लेखन शैली, कृष्ण भक्ति और विराट प्रतिभा के प्रभाव से महाराणा प्रताप और अकबर जैसे शासक भी बच नहीं सके और व भी उनके इन गुणों के कायल थे।
सूरदास जी अष्टछाप के कवियों में अपना सर्वश्रेष्ठ स्थान रखते हैं उनके द्वारा रचित पांच प्रमुख ग्रंथ हैं।
1. सूरसागर
2. सूरसारावली
3. साहित्य-लहरी
4. नल-दमयन्ती
5. ब्याहलो
इन 5 ग्रंथों में से प्रथम तीन ग्रंथों के साक्ष्य अवश्य मिलते हैं, परंतु नल दमयंती और ब्याहलो का कोई प्रमाणिक साक्ष्य नहीं मिलता है। सूरदास जी की हस्तलिखित पुस्तकों की ‘नागरी प्रचारिणी सभा’ द्वारा प्रकाशित सूची में लगभग 16 ग्रंथों का उल्लेख है। इनमे प्रमुख हैं –
- दशमस्कन्ध टीका
- भागवत
- गोवर्धन लीला
- नागलीला
- सूरपचीसी
- सुरसागर सार
- प्राणप्यारी
- पद संग्रह
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- सूरसागर –
महान कवि सूरदास जी द्वारा रचित समस्त ग्रंथों में सूरसागर उनकी सर्वाधिक प्रसिद्ध रचना है। माना जाता है इस ग्रंथ में लगभग सवा लाख पद हैं जबकि इसके वर्तमान संस्करण में अब केवल 7-8 हजार पद ही उपलब्ध हैं । सूरदास जी का ग्रंथ सूरसागर पूर्णरूपेण भक्ति रस से ओत-प्रोत है।
इस ग्रंथ में उन्होंने भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का बहुत ही मार्मिक वर्णन किया है। इस ग्रंथ की विभिन्न स्थानों पर 100 से अधिक प्रतियां मिली हैं । सूरसागर की समस्त उपलब्ध प्रतियां 1656 से 19 वीं शताब्दी के अंतराल की ही हैं।
- सूरसारावली –
सूरसारावली सूरदास जी के अन्य प्रमुख ग्रंथों में से एक है। सूरसारावली में श्रेष्ठ कवि सूरदास जी ने विशिष्ट एवं बहुत उत्कृष्ट ढंग से 1107 छंदों का वर्णन किया है।
दोस्तों, कहा जाता है कि महाकवि सूरदास जी ने लगभग 67 वर्ष की अवस्था में, अपने वृद्धावस्था के समय 1602 संवत् में इस कृति की रचना की थी । इस ग्रंथ में सूरदास जी की भगवान श्री कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम, श्रद्धा व आस्था दृष्टिगोचर होती है, वृहद होली गीत के रूप में लिखा गया यह ग्रंथ सूरदास जी की सर्वाधिक उत्कृष्ट रचनाओं में से एक है।
- साहित्य-लहरी –
सूरदास जी के अन्य प्रसिद्ध ग्रंथों में से साहित्य लहरी एक ग्रंथ है । सूरदास जी ने साहित्य लहरी में पद्य काव्य के रूप में अपने इष्ट देव भगवान श्री कृष्ण की बहुत अच्छे ढंग से स्तुति की है, 118 पदों में लिखे गए इस लघु ग्रंथ काव्य की विशेषता यह है कि इसमें सूरदास जी ने अपने वंश वृक्ष का वर्णन किया है। यह ग्रंथ काव्य श्रृंगार रस प्रधान है।
- नल-दमयंती –
सूरदास जी की अन्य प्रसिद्ध रचनाओं में से नल-दमयंती भी एक प्रसिद्ध काव्य है, इसमें सूरदास जी ने कृष्ण भक्ति का उल्लेख नहीं किया है बल्कि महाभारत काल के प्रसिद्ध नल-दमयंती की कथा का वर्णन किया है।
- ब्याहलो –
सूरदास जी का एक और प्रसिद्ध ग्रंथ ब्याहलो है, यह कृति भी भक्ति रस से पृथक है, साथ ही सूरदास जी की इस रचना का कोई प्रमाणिक साक्ष्य नहीं है।
Surdas Ka Jivan Parichay सूरदास की भाषा शैली – Bhasha-Shaili of Surdas
इस लेख में हम सूरदास जी की भाषा-शैली के बारे में जानकारी दे रहे हैं। सूरदास जी ने अपनी सभी रचनाओं में साहित्यिक ब्रजभाषा का प्रयोग किया है। इस भाषा में उन्होंने संस्कृत के तत्सम शब्द, देशज और तद्भव शब्दों का समावेश किया है। उनकी भाषा कर्णप्रिय एवं मधुर है, तथा इसमें शब्दालंकार और अर्थालंकार दोनों का ही उचित प्रयोग किया गया है।
सूरदास जी की भाषा में रूपक अलंकार, अनुप्रास अलंकार का अतिशय प्रयोग किया गया है और इन्होंने वार्तालाप शैली का भी बेहद चातुर्यपूर्ण प्रयोग किया है। अपनी रचनाओं की भाषा शैली में सूरदास जी ने सूक्तियों व लोकोक्तियों का खूब प्रयोग किया है ।
निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि सूरदास जी द्वारा रचित साहित्य की भाषा शैली उत्कृष्ट स्तर की है और इसमें प्रयोग किए गए भक्ति, वात्सल्य, श्रंगार और शांत रस का प्रयोग इसे और अधिक उत्कृष्टता प्रदान करता है।
सूरदास की काव्यगत-विशेषताएं – Kavygat Visheshtaye of Surdas
सूरदास जी द्वारा रचित काफी ग्रंथों व अन्य साहित्य के आधार पर उनकी काव्यगत विशेषताओं को निम्न प्रकार समझा जा सकता है-
वात्सल्य का वर्णन –
महान कवि सूरदास जी अपनी रचनाओं में श्री कृष्ण वात्सल्य का जिस प्रकार वर्णन करते हैं, वह अनुपम, अद्वितीय है । उन्होंने कान्हा की बाल क्रीड़ाओं को बड़े ही मनोयोग व सहज भाव से रचा है, मानो वे स्वयं बाल कृष्ण की लीलाओं को साक्षात् देखते हुए उनका वर्णन कर रहे हों ।
सूरदास जी के पदों में बाल कृष्ण लीलाओं को देखते हुए माता यशोदा के हर्षित व बलिहारी होने का जो चित्र सूरदास जी प्रस्तुत करते हैं वह अपने आप में एक मां के वात्सल्यपूर्ण मनोभावों को पूर्ण रूप से चित्रित करता है।
श्री कृष्ण की बाल लीलाओं को प्रदर्शित करने वाले पदों में सूरदास जी ने श्री कृष्ण के जन्म, मिट्टी में क्रीडा, चंद्रमा के लिए हठ के अलावा गऊ चराना तथा गोपियों संग रास आदि का बहुत सजीव वर्णन किया है ।
भक्ति भाव का वर्णन –
सूरदास जी को उनके गुरु वल्लभाचार्य जी ने पुष्टीमार्ग में दीक्षित करके श्री कृष्ण भक्ति की ओर प्रेरित किया था, अतः उन्होंने भगवान श्री कृष्ण को अपना आराध्य देव मानते हुए अपनी रचनाओं में उनकी लीलाओं का वर्णन पुष्टिमार्गीय सिद्धांतों के अनुसार किया है ।
महाकवि सूरदास जी ने अपनी अधिकांश रचनाओं में प्रेम भक्ति तथा माधुर्य भक्ति का खूब प्रयोग किया है इस हेतु उन्होंने राधा जी को गोपियों में एक माध्यम की तरह प्रस्तुत किया है।
प्रकृति का वर्णन –
अपने काव्य ग्रंथों की रचना में सूरदास जी ने प्रकृति का बहुत ही सजीव और सुंदर तरीके से वर्णन किया है । उन्होंने अपनी रचनाओं में श्री कृष्ण के बाल्यकाल का वर्णन करते हुए उन सभी प्राकृतिक स्थलों का वर्णन किया है जहां श्री कृष्ण अपनी लीलाएं किया करते थे, जैसे- यमुना का किनारा, उनके क्रीडा स्थल, जंगल, नदियां, पर्वत आदि।
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श्रृंगार का वर्णन –
सूरदास जी की रचनाओं में व्यापक स्तर पर श्रृंगार रस का वर्णन मिलता है । उन्होंने अपनी रचनाओं में भगवान श्री कृष्ण की राधा संग प्रेम-प्रसंग व गोपियों संग रास, खेल- ठिठौली के वर्णन के साथ ही राधा-कृष्ण के संयोग-वियोग का श्रंगार रस में अति विशिष्ट प्रयोग किया है ।
सामाजिक पक्ष –
महाकवि सूरदास जी ने अपनी रचनाओं में तात्कालिक समाज की रीति-रिवाज , उत्सव व सांस्कृतिक परंपराओं का वर्णन अपनी अधिकांश रचनाओं की कृष्ण लीलाओं में करते हुए तत्कालीन समाज की उत्कृष्ट झांकी प्रस्तुत की है ।
हास्य-विनोद पक्ष –
सूरदास रचित भ्रमरगीत काव्य-ग्रंथ की रचना में सूरदास जी ने उद्धव-गोपीयों के संवादों में हास्य-रस का प्रचुरता में प्रयोग किया है ।
हिन्दी साहित्य में सूरदास जी का स्थान– Place of Surdas in Hindi Literature
भारतीय हिन्दी साहित्य का लगभग 2000 साल से भी अधिक पुराना इतिहास समय के साथ-साथ शाखाओं में विभाजित होता गया , वर्तमान मे इसे 4 भागों में विभाजित किया जाता है –
1. आदिकाल 743-1343 तक
2. भक्ति काल 1343- 1643 तक
3. रीतिकाल 1643- 1843 तक
4. आधुनिक काल 1843- से वर्तमान तक
सूरदास जी को भारतीय हिन्दी साहित्य की भक्ति कालीन सगुण भक्ति शाखा के कृष्णाश्रय शाखा का प्रमुख कवि माना जाता है । हिन्दी साहित्य में इनका अभूतपूर्व योगदान रहा है ।
महकवि सूरदास सम्मान – Mahakavi Surdas Samman
हरियाणवी व हिन्दी साहित्य के विकास के लिए गठित ‘हरियाणा साहित्य अकादमी’ ने सूरदास जी के सम्मान में ‘महाकवि सूरदास सम्मान’ की स्थापना की है । इसके अंतर्गत 1 लाख 50 हजार रुपये की नकद धनराशि प्रदान की जाती है ।
सूरदास से जुड़ी एक कथा – A Story Related to Surdas
सूरदास जी के जीवन से जुड़ी अनेक कथा सुनने को मिलती है ऐसी ही एक कथा Surdas Ka Jivan Parichay में यहां प्रस्तुत है-
एक बहुत खूबसूरत व तीव्र बुद्धि का नवयुवक था, उसका नाम मदन मोहन था । युवक मदन मोहन प्रतिदिन एक नदी के किनारे बैठकर गीत लिखा करता था। एक दिन उस युवक ने देखा कि दूर उसी नदी के किनारे पर बैठकर एक अत्यंत सुंदर युवती कपड़े धो रही थी।
गीत लिखते लिखते अचानक मदनमोहन का ध्यान उस युवती की ओर गया तो वह मंत्रमुग्ध होकर उसी और देखता रह गया और गीत लिखने का कार्य भूल गया । युवक को लगा जैसे राधिका यमुना नदी के किनारे स्नान के लिए बैठी हो। एकाएक उस युवती का ध्यान स्वयं को निहारते हुए उस युवक पर गया और वह भी उसे देखती रही ।
और उस दिन के बाद उनके बीच वार्तालाप होने लगा, मदन मोहन के पिता को जब इस घटना का पता चला तो वह बहुत क्रोधित हुए। पिता पुत्र के बीच काफी कहासुनी हुई और इस घटना के बाद मदन मोहन ने अपना घर त्याग दिया।
मदन मोहन ने घर तो त्याग दिया परंतु उस सुंदर युवती का चेहरा वह भूल नहीं पा रहे थे, एक दिन ऐसा हुआ कि जब वह मंदिर में बैठे हुए थे उसी समय एक विवाहित युवती मंदिर में आई उस युवती को देखकर मदन मोहन उसके पीछे चल दिए।
युवती के पीछे चलते हुए मदन मोहन उसके घर पहुंच गए, युवती के पति ने दरवाजा खोलकर मदन मोहन को ससम्मान अंदर ले गया। मदन मोहन ने उसके पति से जलती हुई दो सलाई मंगाई और बाद में उन्हें अपनी आंखों में डाल दिया । कहा जाता है कि उसी दिन के बाद से सूरदास का एक कवि के रूप में जन्म हुआ।
सूरदास की मृत्यु कब और कहाँ हुई – When and Where did Surdas Die
सूरदास जी के गुरु श्री वल्लभाचार्य, श्रीनाथजी व गोसाई विट्ठलनाथ जी ने एक दिन देखा कि आरती के समय सूरदास जी नहीं थे, जबकि श्रीनाथ जी की आरती सूरदास कभी नहीं छोड़ते थे । ये देखकर श्री वल्लभाचार्य जी समझ चुके थे कि सूरदास जी का अंतिम समय निकट ही है ।
पूजा संपन्न करके गुरुजी अन्य लोगों के साथ उनकी कुटिया पर गए वहां उन्होंने देखा कि सूरदास जी अचेत अवस्था में हैं । सूरदास जी ने गोसाई जी का स्वागत साक्षात ईश्वर के रूप में किया और इस बात के लिए उनकी प्रशंसा की, कि वे हमेशा भक्तों का ध्यान रखते हैं।
साथ आए चतुर्भुज दास ने सूरदास जी से प्रश्न किया कि उन्होंने भगवान की भक्ति में बहुत गाया है परंतु अपने गुरु वल्लभाचार्य जी का यशगान नहीं किया, ऐसा क्यों ? उन्होंने जवाब दिया कि मेरे लिए ईश्वर व गुरु में कोई अंतर नहीं, भगवान और गुरु का यश मेरे लिए एक समान है। इसके बाद सूरदास जी ने अपने नश्वर शरीर को त्याग दिया ।
गोवर्धन के निकट पारसौली नामक गांव में संवत् 1642 विक्रमी अर्थात 1583 ई0 में इस महान कवि सूरदास ने अंतिम सांस ली और इस दुनिया को अलविदा कह दिया । भगवान श्री कृष्ण इसी पारसौली गांव में अपनी रास लीलाएं किया करते थे, जिस स्थान पर सूरदास जी ने प्राण त्यागे थे उसी स्थान पर वर्तमान में सूरश्याम मंदिर ( सूरकुटी ) स्थापित है ।
FAQ
प्रश्न – सूरदास जी कौन है?
उत्तर – सूरदास भारतीय हिन्दी साहित्य की भक्तिकालीन शाखा के महानतम कवि थे ।
प्रश्न – सूरदास का जन्म कब और कहाँ हुआ ?
उत्तर – सूरदास जी का जन्म 1534 विक्रम संवत् की वैशाख शुक्ल पंचमी, 1478 ई0 में रुनकता ( रेणुका क्षेत्र ), वर्तमान में आगरा जिला, नामक स्थान पर हुआ था ।
प्रश्न – सूरदास का जन्म स्थान क्या माना जाता है?
उत्तर – इनका जन्म रुनकता ( रेणुका क्षेत्र ), वर्तमान में आगरा जिला, नामक स्थान पर हुआ था, हालांकि सूरदास जी का जन्म “भाव प्रकाश” के अनुसार सीही नामक स्थान पर बताया जाता है।
प्रश्न – सूरदास के माता-पिता कौन है?
उत्तर – सूरदास जी के पिता का नाम पं0 रामदास सारस्वत था, और इनकी माता का नाम जमुनादास था।
प्रश्न – सूरदास के काव्य का प्रमुख विषय क्या है?
उत्तर – सूरदास के काव्य का प्रमुख विषय कृष्ण-भक्ति है ।
प्रश्न – सूरदास जी की मृत्यु कब और कहां हुई थी?
उत्तर – गोवर्धन के निकट पारसौली नामक गांव में संवत् 1642 विक्रमी अर्थात 1583 ई0 में इस महान कवि सूरदास ने अंतिम सांस ली।
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हमारे शब्द –
प्रिय पाठकों ! हमारे इस लेख (Surdas Ka Jivan Parichay । सूरदास जी का जीवन परिचय । Surdas Biography In Hindi) में महाकवि सूरदास जी के बारे में उनके जीवन परिचय से जुड़ी वृहत जानकारी आपको कैसी लगी ? यदि आप ऐसे ही अन्य महापुरुषों से जुड़े उनके जीवन वृतांत के बारे में पढ़ना पसंद करते हैं तो कमेंट बॉक्स में कमेंट करके हमें अवश्य लिखें।
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जीवन को अपनी शर्तों पर जियें ।
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