महान संत व कवि कबीर दास जी (Kabir Das Ji) जी भारतीय हिंदी साहित्य के भक्तिकालीन कवि माने जाते हैं। संत कबीर दास जी हिंदी साहित्य के ऐसे रत्न हैं जो साखी, सबद और रमैनी के रूप में काव्य रचनाएं करके भारतीय साहित्य के इतिहास में अमर हो गए ।
इसीलिए लगभग 600 वर्षों बाद भी ‘कबीर के दोहे’ के रूप में उनकी काव्य रचनाएं आज भी प्रासंगिक व अमर हैं। संत कबीर दास जी कवि होने के साथ-साथ स्वभाव से ही एक समाज सुधारक भी थे। कबीर दास जी ने हमेशा समाज में कुरीतियों व आडम्बरों का विरोध किया।
वे मनुष्य के कर्म में विश्वास करते थे और मानव मात्र के कल्याण के प्रति अति संवेदनशील थे, उनके ये विचार उनकी रचनाओं में भी साफ दृष्टिगोचर होते हैं । कबीर दास जी ने अपनी प्रखर लेखनी के द्वारा हमेशा समाज की रूढ़ियों व कुरीतियों पर प्रहार किया।
दोस्तों, आइए आज आपको हमारे इस लेख Kabir Das Ka Jivan Parichay । कबीर दास का जीवन परिचय । Kabir Das Biography In Hindi के माध्यम से कबीर दास जी ( Kabir Das Ji ) के जीवन के बारे में सम्पूर्ण जानकारी देते हैं ।
Jivan Parichay of Kabir Das in Hindi | Kabir Das Ka Jivan Parichay
बिन्दु | जानकारी |
---|---|
पूरा नाम | संत कबीरदास |
अन्य नाम | कबीर साहेब |
जन्म | 1398 ( लगभग ) |
जन्म स्थान | लहरतारा ताल, काशी |
माता-पिता ( पालक ) का नाम | नीमा, नीरू |
पत्नी का नाम | लोई |
पुत्र का नाम | कमाल |
पुत्री का नाम | कमाली |
शिक्षा | निरक्षर |
पेशा | कवि |
कर्म-भूमि | काशी |
प्रमुख रचनाएं | सबद, साखी, रमैनी |
रचनाओं की भाषा | अवधी, पंचमेल खिचड़ी, सधुक्कड़ी |
मृत्यु | 1518 |
मृत्यु स्थल | मगहर, उत्तर प्रदेश राज्य |
कबीर दास जी का जन्म एवं जन्म स्थान – Kabir Das Birth & Birth Place
भारतीय इतिहास में कहीं भी कबीर दास जी के जन्म के बारे में स्पष्ट मत नहीं है, इनके जन्म स्थान के संबंध में विद्वानों में मतान्तर हैं, कबीर पंथ के मतावलम्बियों की मान्यता है कि कबीर दास जी काशी के लहरतारा नामक तालाब में कमल पुष्प पर अवतरित हुए ।
जबकि कुछ विद्वानों का मानना है कि कबीर दास जी जन्म से मुस्लिम थे और कालांतर में अपने गुरु स्वामी रामानंद के सानिध्य में उन्हें हिन्दू धर्म के बारे में ज्ञान हुआ । हालांकि उनके काशी में जन्म को लेकर तार्किकता अधिक है, क्योंकि स्वयं कबीर दास जी ने ही अपनी रचना में वर्णन किया है –
“हम काशी में प्रगट भए हैं, रामानंद चेताए।”
– कबीर दास
कबीर दास जी के जन्म के बारे में तीन भिन्न-भिन्न मत निम्न हैं –
1. कबीर दास जी के मगहर में जन्म लेने के बारे में स्वयं कबीर दास जी ने अपनी रचनाओं में जिक्र किया है, वे लिखते हैं कि- उन्होंने पहले मगहर के दर्शन किए और बाद में वे काशी में रहने लगे । वर्तमान में मगहर नामक स्थान वाराणसी के पास स्थित है, मगहर में आज भी कबीर दास जी की समाधि स्थित है ।
2. कबीर दास जी के मतावलंबियों का हमेशा से यह विश्वास रहा है कि उनका जन्म काशी में ही हुआ था, हालांकि इस तर्क के पक्ष में पुख्ता प्रमाण न होने के कारण इस मत को बहुत अधिक बल नहीं मिलता ।
3. कुछ विद्वानों के मतानुसार कबीर दास जी का जन्म ‘बेलहरा’ ( आजमगढ़ जिला ) नामक गाँव में हुआ था, उन विद्वानों का तर्क है कि बेलहरा का नाम ही कालांतर मे लहरतारा बन गया ।
इस दावे को भी इसलिए तार्किक नहीं माना जा सकता क्योंकि, इतिहास में इस बात का कोई प्रमाण नहीं मिलता कि बेलहरा गाँव का ही नाम बदलकर लहरतारा हो गया हो, ना ही बेलहरा में कबीर दास जी का कोई स्मारक देखने को मिलता है ।
कबीर दास जी के माता-पिता – Mother-Father of Kabir Das
कबीर दास जी के जन्म की तरह ही उनके माता-पिता के बारे में भी विद्वान एकमत नहीं है। कुछ विद्वानों का मत है कि नीमा और नीरू नामक दंपत्ति के यहां इनका जन्म हुआ था, जबकि कुछ विद्वानों के अनुसार कबीर दास जी एक विधवा ब्राह्मणी की कोख से उत्पन्न हुए थे।
जिसे भूलवश रामानंद जी ने पुत्रवती होने का आशीर्वाद दे दिया था , परन्तु लोक-लाज के भय से उसने इन्हे लहरतारा ताल में छोड़ दिया था और वहीं नीरू और नीमा नामक दम्पत्ति को ये मिले, और फिर उन्होंने ही इनका पालन-पोषण किया।
कबीर दास जी का बचपन एवं शिक्षा – Kabir Das Childhood & Education
कबीर दास जी अपने बचपन में अन्य सामान्य बच्चों से बिल्कुल भिन्न थे, एतिहासिक तथ्यों के अनुसार कबीर दास जी पढे-लिखे नहीं थे क्योंकि उनके माता-पिता अत्यंत निर्धन थे अतः वे कबीर दास जी को शिक्षा हेतु मदरसा नहीं भेज सके।
वैसे भी जिस माता-पिता के पास दो वक़्त की रोटी का ठिकाना न हो वो बच्चे की शिक्षा के बारे में भला कैसे सोच सकता है । अतः किताबी ज्ञान का दूर-दूर तक उनसे कोई सरोकार न था, वे स्वयं भी लिखते हैं –
“मसि कागद छूयों नहीं, कलम गही नहि हाथ।“
-कबीर दास
इसी कारण ऐसा जान पड़ता है कि उनके ग्रंथ स्वयं उन्होंने नहीं लिखे होंगे बल्कि उन्होंने उन्हे सिर्फ बोला होगा और उनके शिष्यों ने उन्हे कलमबद्ध किया होगा ।
कबीर दास जी का वैवाहिक जीवन – Married Life of Kabir Das
कबीर दास जी का विवाह वनखेड़ी बैरागी की पुत्री लोई के साथ हुआ था । कबीर दास जी के दो संतान थीं , एक पुत्र कमाल और एक पुत्री कमाली। उनके पुत्र कमाल के बारे में श्री गुरु ग्रंथ साहिब में एक श्लोक में वर्णित है कि कमाल उनके मत का विरोध करता था ।
उनके घर में हर समय उनके अनुयायियों का जमघट रहता था , यहाँ तक कि उस जमघट के कारण घर में बच्चों को खाना भी नहीं मिल पाता था , अतः उनकी पत्नी लोई इस बात से खिन्न रहती थीं ।
कबीर दास जी के गुरु एवं गुरु दीक्षा – Kabir Das Ji’s Guru & Guru Deeksha
कबीर दास जी अपनी आध्यात्मिक उन्नति तथा ज्ञान के लिए ऐसे गुरु की तलाश में थे जो उन्हें पारलौकिक ज्ञान के साथ-साथ उनकी आध्यात्मिक उन्नति का भी साधन बन सके । उन दिनों स्वामी रामानंद काशी में बहुत बड़े विद्वान तथा महापुरुष माने जाते थे
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कबीर दास जी को गुरु की तलाश अंततः उन्हें स्वामी रामानंद के पास ले गई । कबीर दास जी ने रामानंद जी के द्वार पर पहुंचकर रामानंद जी से मिलने की कई बार कोशिश की, उन दिनों के समाज में जात-पात, ऊंच-नीच का बहुत बोलबाला था ।
काशी और फिर वहां के पंडे सब कुछ मिलाकर बड़ा मुश्किल था । कबीरदास जी को पता था कि प्रतिदिन सुबह 4:00 बजे अंधेरे में रामानंद जी खड़ाऊँ पहनकर गंगा में स्नान के लिए गंगा घाट पर जाते हैं ।
कबीर जी 1 दिन प्रातः गंगा घाट पर पहुँच कर रामानंद जी के रास्ते में पंचगंगा घाट की सीढ़ियों पर लेट गए, जब रामानन्द जी गंगा घाट पर पहुंचे सीढियाँ उतरते वक़्त उनका पैर कबीर दास जी के शरीर पर पड़ गया , पैर पड़ते ही रामानंद जी के मुख से निकला “राम.. राम.. राम.. ।
और बस …… कबीर दास जी का मन्तव्य पूरा हो गया । उन्हे तो गुरु के दर्शन के साथ-साथ गुरु का चरण स्पर्श भी मिल गया , फिर इसी “राम-नाम” को उन्होंने अपना गुरु मंत्र बना लिया, और स्वामी रामानंद को अपना गुरु बना लिया ।
कबीर दास जी की मृत्यु – Death of Kabir Das Ji
जन्म की ही तरह कबीर दास जी की मृत्यु के बारे में भी विद्वानों में अलग-अलग मत पाए जाते हैं, परन्तु अधिकतर विद्वान संवत् 1575 विक्रमी , सन 1518 ई0 में इनकी मृत्यु मानते हैं । जबकि अन्य इतिहासकार इनकी मृत्यु का समय 1448 को मानते हैं ।
काशी के निकट मगहर में कबीर दास जी का देहावसान हुआ । ऐसा माना जाता है कि अपनी मृत्यु से पूर्व उन्होंने अपनी मृत्यु के स्थान को स्वयं चुना था । उन दिनों ऐसी मान्यता थी कि मगहर में जिस व्यक्ति की मृत्यु होती है, अगले जन्म में वह बंदर की योनि में पैदा होगा, और उसे स्वर्ग में स्थान नहीं मिलेगा ।
कबीर दास लोगों के इस अंधविश्वास को गलत साबित करना चाहते थे, अतः वे अपने अंतिम समय में लखनऊ से 240 किलोमीटर दूर मगहर नामक उस स्थान पर जाकर रहने लगे, और जनवरी 1518 में मगहर में उन्होंने इस नश्वर संसार को त्याग दिया ।
माना जाता है कि उनकी मृत्यु के बाद उनके दाह-संस्कार को लेकर हिन्दू व मुस्लिम में विवाद पैदा हो गया था, हिन्दू उनका अंतिम संस्कार हिन्दू रीति-रिवाजों से चाहते थे जबकि मुस्लिम अपनी रीति से । ऐसा कहा जाता है कि इसी विवाद के बीच अचानक उनके शव से चादर उड़ गई और उसके नीचे उनके पार्थिव शरीर के स्थान पर फूल दिखाई दिये ।
फिर उन फूलों को हिन्दू व मुस्लिम लोगों ने आधा-आधा बाँट लिया और अपने-अपने रीति-रिवाज से उनका अंतिम-संस्कार कर दिया । कबीर दास जी की समाधि मगहर में ही स्थित है ।
कबीर दास जी की अनमोल रचनाएं – Kabir Ka Kavi Parichay (kavi parichay kabir das)
कबीर दास जी ने अपनी रचनाओं में एक ओर ईश्वर का स्तुति गान किया साथ ही दूसरी ओर समाज की कुरीतियों, आडंबरों और बुराइयों पर चोट की, और उन्हें दूर करने का प्रयास किया ।
कबीर दास जी हिंदी साहित्य के महानतम कवि, सच्चे समाज सुधारक व प्रकांड विद्वान थे । उनकी अधिकांश रचनाएं दोहे, गीत और काव्य में रची गई हैं, उनकी मूल रचनाओं की संख्या लगभग 72 है ।
कबीर दास जी की रचनाओं में समाज के नागरिकों को आदर्श नागरिक बनाने हेतु प्रेरणा तत्व विद्यमान है इसी कारण सैकड़ों बरसों से उनकी रचनाएं मानव जाति के लिए प्रेरणा बनी हुई है और आने वाले सैकड़ों वर्षों तक उनकी इन रचनाओं का व्यापक प्रभाव लोगों के मानस पटल पर पढ़ता रहेगा ।
कबीर जी की कृतियों में उन्होंने मानवीय मूल्यों की व्याख्या के साथ-साथ भारतीय धर्म, संस्कृति और भाषा का उपयुक्त समावेश किया है, और उन्हें आसान व सरल भाषा में लिखा है । दोस्तों, अपने इस लेख में अब हम आपको उनकी महान रचनाओं के बारे में बताने जा रहे हैं –
कबीर दास जी की प्रमुख रचनाएं – Major Compositions of Kabir Das
कबीर दास जी, रामानंद जी को अपना गुरु बनाने के बाद से हमेशा राम नाम का मंत्र जपते थे, चूंकि वे निराकार ब्रह्म के उपासक थे अतः उनके राम दशरथ के पुत्र राम नहीं थे, बल्कि उनके राम एक निराकार परमेश्वर थे ।
उनकी सभी रचनाओं में राम-नाम की महिमा हर जगह देखने को मिलती है, वे अपने निराकार ब्रह्म को कहीं राम, कहीं हरि जैसे शब्दों से पुकारते हैं ।वे केवल एक ईश्वर को मानते थे, वे मूर्ति पूजा, कर्मकांड, व अनेक ईश्वरवाद के घोर विरोधी थे, वे ईद, रोजा, मूर्ति, अवतार और मंदिर-मस्जिद को नहीं मानते थे ।
जैसा कि सर्वविदित है कि कबीर दास जी पढ़े-लिखे नहीं थे, यहां तक कि उन्होंने कभी कागज को छुआ भी नहीं था, वह केवल अपने दोहे अपने शिष्यों को सुनाते थे,और वे उन्हें कलमबद्ध करते थे ।
बीजक –
कबीर दास जी की वाणी का संग्रह ‘बीजक‘ कहलाता है, बीजक के तीन भाग हैं –
- साखी
- सबद
- रमैनी
साखी – साखी में Kabir Das Ji के सिद्धांतों और शिक्षाओं का वर्णन है ।
सबद – इस रचना में कबीर दास जी ने अपने प्रेम का वर्णन ढंग से किया है उनकी सर्वश्रेष्ठ रचनाओं में से एक है।
रमैनी – कबीर दास जी ने इस कृति को चौपाईयों व छंदों में लिखा है, और अपने दार्शनिक तथा रहस्यवादी विचारों का वर्णन किया है।
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कबीर दास जी की अन्य रचनाएं – Other Compositions of Kabir Das
उपरोक्त प्रमुख रचनाओं के अतिरिक्त कबीर दास जी की 61 अन्य उपलब्ध रचनाएं निम्नलिखित हैं
- अमर मूल
- अर्जनाम कबीर का
- अलिफ़ नामा
- अक्षर खंड की रमैनी
- अक्षर भेद की रमैनी
- आरती कबीर कृत
- उग्र गीता
- उग्र ज्ञान मूल सिद्धांत- दश भाषा
- कबीर और धर्मंदास की गोष्ठी
- कबीर की वाणी
- कबीर अष्टक
- अगाध मंगल
- अठपहरा
- अनुराग सागर
- कबीर गोरख की गोष्ठी
- कबीर की साखी
- कबीर परिचय की साखी
- निर्भय ज्ञान
- पिय पहचानवे के अंग
- पुकार कबीर कृत
- बलख की फैज़
- वारामासी
- बीजक
- व्रन्हा निरूपण
- विचार माला
- विवेक सागर
- शब्द अलह टुक
- शब्द राग काफी और राग फगुआ
- शब्द राग गौरी और राग भैरव
- शब्द वंशावली
- कर्म कांड की रमैनी
- काया पंजी
- चौका पर की रमैनी
- चौतीसा कबीर का
- छप्पय कबीर का
- जन्म बोध
- तीसा जंत्र
- नाम महातम की साखी
- शब्दावली
- ज्ञान सागर
- ज्ञान सम्बोध
- ज्ञान स्त्रोत
- संत कबीर की बंदी छोर
- सननामा
- सत्संग को अग
- साधो को अंग
- सुरति सम्वाद
- स्वास गुज्झार
- हिंडोरा वा रेखता
- हस मुक्तावालो
- ज्ञान गुदड़ी
- ज्ञान चौतीसी
- ज्ञान सरोदय
- भक्ति के अंग
- भाषो षड चौंतीस
- मुहम्मद बोध
- मगल बोध
- रमैनी
- राम रक्षा
- राम सार
- रेखता
कबीर दास जी के बारे में (Kabir Das Ke Bare Mein) महत्वपूर्ण तथ्य – Important Facts About Kabir Das
- यद्यपि कबीर दास जी पढ़े-लिखे नहीं थे और उन्होंने कभी कागज को छुआ भी नहीं था, तथापि कुछ विद्वानों के अनुसार उनके ग्रंथों की संख्या 57 से 61 तक है।
- वर्तमान में कबीर दास जी के उपलब्ध साहित्य में उनकी वास्तविक रचनाओं को खोज पाना बहुत मुश्किल है, क्योंकि उनमें से अधिकांश उनके अनुयायियों द्वारा रचित हैं।
- कबीर दास जी की वाणी का संग्रह “बीजक” नाम से जाना जाता है, जो उनके शिष्य धर्मदास द्वारा किया गया।
- डॉ श्याम सुंदर दास कबीर दास जी की संपूर्ण रचनाओं को संकलित करके “कबीर ग्रंथावली” के नाम से प्रकाशित कराया, इसका प्रकाशन काशी की नागरी प्रचारिणी सभा से किया गया।
- कबीर दास जी की प्रमाणिक रचना के तौर पर बीजक को मान्यता प्रदान की जाती है, कबीरपंथी इस ग्रंथ को पवित्र वेद की तरह मानते हैं, इसी ग्रंथ में कबीर दास जी के सिद्धांत व आदर्श मिलते हैं।
- “बीजक” का शाब्दिक अर्थ गुप्त धन को बताने वाली सूची से है।
- कबीर दास जी निराकार ब्रह्म के उपासक थे अतः उन्होंने अपनी संपूर्ण भक्ति निर्गुण निराकार ईश्वर को समर्पित की है।
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FAQ
प्रश्न – कबीरदास जी का जन्म कब हुआ था (
Kabir Das Ka Janm Kab Hua Tha)?
उत्तर – कबीरदास जी का जन्म 1398 में ( लगभग ) हुआ था ।
प्रश्न- कबीरदास जी का जन्म कहाँ हुआ था ?
उत्तर- कबीर दास जी के जन्म के बारे में विद्वान एकमत नहीं हैं परन्तु फिर भी सर्वाधिक विश्वस्त मत है कि उनका जन्म लहरतारा ताल, काशी में हुआ था ?
प्रश्न – कबीर दास जी के माता-पिता का क्या नाम था ?
उत्तर – कबीर दास जी के माता-पिता का नाम नीमा व नीरू था ।
प्रश्न- महान संत व कवि कबीर दास जी की मृत्यु कहाँ और कब हुई थी ?
उत्तर- कबीर दास जी की मृत्यु 1518 में मगहर उत्तर-प्रदेश में हुई थी ।
प्रश्न – कबीर किस प्रकार के संत थे ?
उत्तर – कबीर दास जी भारतीय हिंदी साहित्य के भक्तिकालीन कवि माने जाते हैं ।
प्रश्न- कबीर दास ने किस भाषा में लिखा था ?
उत्तर- कबीर दास जी ने अवधी, पंचमेल खिचड़ी और सधुक्कड़ी भाषा में लिखा है ।
प्रश्न – कबीर दास का जन्म कैसे हुआ था ?
उत्तर – कबीर दास जी के जन्म के बारे में स्पष्ट मत नहीं है, इनके जन्म के संबंध में विद्वानों में मतान्तर हैं, कबीर पंथ के मतावलम्बियों की मान्यता है कि कबीर दास जी काशी के लहरतारा नामक तालाब में कमल पुष्प पर अवतरित हुए ।
जबकि कुछ विद्वानों का मानना है कि कबीर दास जी जन्म से मुस्लिम थे और कालांतर में अपने गुरु स्वामी रामानंद के सानिध्य में उन्हें हिन्दू धर्म के बारे में ज्ञान हुआ । कुछ विद्वानों के अनुसार कबीर दास जी एक विधवा ब्राह्मणी की कोख से उत्पन्न हुए थे, जिसे भूलवश रामानंद जी ने पुत्रवती होने का आशीर्वाद दे दिया था ।
प्रश्न- कबीर दास जी की भाषा क्या है?
उत्तर- कबीर दास जी की भाषा अवधी, पंचमेल खिचड़ी, सधुक्कड़ी है ।
हमारे शब्द –
प्रिय पाठकों ! हमारे इस लेख (Jivan Parichay of Kabir Das। Kabir Das Parichay in Hindi । Kabir Das Biography In Hindi ) में महान संत व कवि कबीर दास जी के बारे में उनके जीवन परिचय से जुड़ी वृहत जानकारी आपको कैसी लगी ?
यदि आप ऐसे ही अन्य महापुरुषों से जुड़े उनके जीवन वृतांत के बारे में पढ़ना पसंद करते हैं तो कमेंट बॉक्स में कमेंट करके हमें अवश्य लिखें, हम आपके द्वारा सुझाए गए टॉपिक पर लिखने का अवश्य प्रयास करेंगे ।
दोस्तों, अपने कमेंट लिखकर हमारा उत्साह बढ़ाते रहें , साथ ही यदि आप को हमारा ये लेख पसंद आया हो तो इसे अपने मित्रों के साथ शेयर अवश्य करें ।
अंत में – हमारे आर्टिकल पढ़ते रहिए, हमारा उत्साह बढ़ाते रहिए, खुश रहिए और मस्त रहिए।
जीवन को अपनी शर्तों पर जियें ।
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