Uttarakhand GK in hindi | उत्तराखंड सामान्य ज्ञान श्रृंखला भाग 1

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उत्तराखंड राज्य की भौगोलिक संरचना, नदियां, झील, ताल, पर्वत, दर्रे, तीर्थस्थल, जिले, क्षेत्रफल, जनसंख्या आदि समस्त जानकारी हम आपको इस लेख के माध्यम से उपलब्ध करा रहे हैं।

दोस्तों नमस्कार !

अपार हर्ष का विषय है कि हम अपने ब्लॉग sanjeevnihindi.com की GK Catagory के अंतर्गत उत्तराखंड सामान्य ज्ञान की एक नई श्रृंखला प्रारंभ कर रहे हैं ।

इस श्रृंखला को प्रारंभ करने के पीछे हमारा एकमात्र उद्देश्य है कि हम अपने इस शैक्षिक ब्लॉग को हमारे पाठकों के लिए और अधिक शिक्षाप्रद, तथा विद्यार्थियों के लिए ज्यादा से ज्यादा मूल्यवान बनाने की कोशिश करें ।

हम चाहते हैं कि छात्रों की प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए हमारे ब्लॉग की प्रस्तुत श्रृंखला अधिकतम उपयोगी साबित हो सके। छात्र इस श्रृंखला (Uttarakhand GK in hindi | उत्तराखंड सामान्य ज्ञान श्रृंखला भाग 1 ) से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करके सफलता अर्जित करें यही हमारी कामना है।आगामी परीक्षाओं के लिए शुभकामनाओं के साथ।

तो चलिए दोस्तों, शुरू करते हैं हमारी यह श्रृंखला General Knowledge

Uttarakhand GK in hindi,उत्तराखंड सामान्य ज्ञान सीरीज, भाग- 1 Uttarakhand GK series VOL. 1)

उत्तराखंड राज्य की भौगोलिक संरचना एवं धरातल :

हिमालय के उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व तक 2500 कि.मी. लंबी तथा लगभग 250 से 400 कि.मी. चौड़ी 5 लाख वर्ग कि.मी. की अर्द्धचंद्राकार श्रृंखला भारत को उत्तरी दिशा से घेरे हुए है जिसमें हमारे देश के क्षेत्रफल का लगभग 15 %  तथा जनसंख्या का 3.5 % भाग समाहित है।

प्रशासनिक दृष्टि से भारत भूमि में हिमालय के तीन भाग जैसे- पश्चिमी हिमालय जिसमें जम्मू कश्मीर तथा हिमाचल का क्षेत्र, मध्य हिमालय जिसमें उत्तराखण्ड तथा  पूर्वी हिमालय जिसमें मणिपुर, सिक्किम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मिजोरम, असम तथा पं. बंगाल के पर्वतीय अंचल आते हैं।

साथ ही यदि संरचनात्मक दृष्टि से देखा जाए  तो दक्षिण से उत्तर की ओर हिमालय समग्र रूप में सात पेटियों में बँटा हुआ है जैसे – तराई, भावर, दून, शिवालिक, लघु हिमालय, बृहत हिमालय तथा ट्रांस हिमालय ।

यह पेटियाँ, भ्रंश या दरारों के द्वारा एक-दूसरे से अलग हैं, जो भूगर्भिक दृष्टि से अत्यंत दुर्बल तथा संवेदनशील हैं।

उत्तराखंड की स्थिति एवं विस्तार :

उत्तराखण्ड, 28°43′ से 31°27′ अक्षांशों व 77°34′ से 81°02′ पूर्वी देशांतरों के मध्य लगभग 53,483 वर्ग कि.मी. क्षेत्र में फैला हुआ है। इसके अंतर्गत दो मण्डल, गढ़वाल व कुमाऊँ सम्मिलित हैं।

उत्तराखंड राज्य के जिले : Uttarakhand District

उत्तराखंड राज्य में कुल 13 जिले है जिनमें से गढ़वाल मंडल में 7 जिले आते हैं-

Uttarakhand GK in Hindi
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  1. हरिद्वार
  2.  देहरादून
  3.  टिहरी गढ़वाल
  4.  पौड़ी गढ़वाल
  5.  उत्तरकाशी
  6.  रुद्रप्रयाग
  7.  चमोली

 तथा उत्तराखंड के दूसरे मण्डल कुमाऊँ में 6 जिले आते हैं-

  1. नैनीताल
  2. अल्मोड़ा
  3.  पिथौरागढ़
  4.  बागेश्वर
  5.  चम्पावत
  6. ऊधमसिंहनगर

उत्तराखंड राज्य की सीमाएं : Uttarakhand Borders

राज्य की पूर्वी अन्तर्राष्ट्रीय सीमा नेपाल से उत्तर से दक्षिण की ओर प्रवाहित काली नदी द्वारा तथा पश्चिमी सीमा हिमाचल प्रदेश से टौंस नदी द्वारा निर्धारित होती है। उत्तरी सीमा दक्षिण पूर्व में हुमला (नेपाल) से तथा उत्तर-पश्चिम में हिमाचल प्रदेश तथा तिब्बत की सीमा पर शिपकी दरें के समीप धौलधार तथा जैंक्सर श्रेणी के मिलन स्थल तक लगभग 400 कि.मी. की लम्बाई में फैली उस विशाल श्रृंखला से बनती है, जो तिब्बत क्षेत्र से प्रवाहित सतलज का दक्षिणी पनढाल बनाती है। दक्षिणी सीमा पर तराई व भावर की एक चौड़ी पट्टी इसको रुहेलखण्ड के मैदान (उत्तर प्रदेश) से पृथक् करती है।

हिमालय का उद्भव (भूगर्भिक रचना) :

बल्दिया तथा वाडिया आदि विख्यात भूगर्भशास्त्रियों के अनुसार हिमालय पर्वत के उत्तरी भाग में विशाल मोड़दार शृंखलायें फैली हुई हैं, जिनका निर्माण टर्शियरी युग में उत्तरी महाद्वीपीय खंड, अंगारालैंड एवं दक्षिणी महाद्वीपीय खंड गोंडवानालैंड के बीच  स्थित टेथिस सागर में लाखों वर्षों से पुरा एवं मध्य कल्पों में इकट्ठा होने वाले पदार्थ के परिणामस्वरूप हुआ। मध्य कल्प के उत्तरार्द्ध में भूगर्भिक हलचलों के कारण संचित मलवा धीरे-धीरे ऊपर उठने लगा।

उत्तर की ओर से अवसाद पर निरंतर दबाव पड़ने के कारण उसमें मोड़ पड़ गए। अवसाद का उत्थान तीन प्रमुख अवस्थाओं में हुआ। इयोसीन युग के अंतिम चरण में टेथिस सागर के तल के ऊपर उठने से मुख्य हिमालय का भाग ऊपर उठा। कालान्तर में मायोसिन युग में मुख्य हिमालय के दक्षिण में मध्य एवं लघु हिमालय श्रेणियों का प्रादुर्भाव हुआ।

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पर्वतीय क्षेत्र के दक्षिण में जहाँ पहाड़ियाँ समाप्त होती हैं एवं मैदान प्रारंभ होते हैं, उसी तलहटी वाले भूभाग में भावर की तंग पट्टी मिलती है। भावर का निर्माण प्लीस्टोसीन युग में तीव्रगामी पर्वतीय नदियों द्वारा लाए गए कंकड़, बलुआ पत्थर एवं मोटे कणों की बालू एकत्रित होने के कारण हुआ है। मुख्यतः भावर की तंग पट्टी नैनीताल जिले में है।

भावर में धरातलीय नदियाँ एवं नाले अदृश्य हो जाते हैं तथा जलधारायें धरातल के नीचे प्रवाहित होती हैं, क्योंकि कंकड़ एवं पत्थरों के नीचे जल आसानी से लुप्त हो जाता है। भावर क्षेत्र की दक्षिणी सीमा के निकट लुप्त नदियाँ पुनः धरातल पर तराई क्षेत्र में प्रकट होती हैं। तराई क्षेत्र में, भावर  क्षेत्र की अपेक्षा महीन कणों वाला निक्षेप सन्चित होता है।

भावर  की अपेक्षा तराई क्षेत्र अधिक समतल है जो दक्षिण की ओर गंगा के विशाल मैदान में विलीन हो जाता है। भूमिगत जल की अधिकता एवं निचला भाग होने के कारण तराई क्षेत्र आमतौर पर दलदली है। वस्तुतः भावर  एवं तराई क्षेत्रों का निर्माण पर्वतों के निचले दक्षिणी सिरों पर जलोढ़ मिट्टियों के संचित होने के कारण हुआ है।

प्राकृतिक प्रदेश :

धरातलीय ऊँचाई, भूरचना, एवं वर्षा की मात्रा में भिन्नता होने के कारण राज्य को पाँच प्राकृतिक प्रदेशों में बांटा जा सकता है –

Uttarakhand GK in Hindi
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  • ट्रांस हिमालय क्षेत्र
  • महा हिमालय क्षेत्र
  • मध्य हिमालय क्षेत्र (हिमाचल)
  • शिवालिक और दून क्षेत्र
  • भावर-तराई क्षेत्र

1.ट्रांस हिमालय क्षेत्र :

1.ट्रांस हिमालय क्षेत्र : ट्रांस का अर्थ है दूसरी ओर। ब्रिटिश काल में सर्वेक्षकों ने हिमालय की रचना के गहन अध्ययन से ज्ञात किया था कि कहीं न कहीं उत्तरी सीमा पर पनढाल बनाती ऊँची पर्वतमालाओं के उस पार भी उत्तराखण्ड की प्राकृतिक सीमायें उत्तर तक पहुँची हैं।

यह पनढाल हिमाचल प्रदेश के बुशहर तहसील में ऊँटाधुरा ( कुमाऊँ ) में तथा पैनखंडा ( गढ़वाल ) में हिमालय के दूसरी ओर, तिब्बत व उत्तराखण्ड को विभाजित  करने वाली पर्वतश्रेणी (जैक्सर) के अंतर्गत हैं, जिनकी सिन्धुतल से ऊंचाई (2500-3500) मीटर तथा चौड़ाई 20-35 कि.मी. है।

इस क्षेत्र को भौगोलिक शब्दावली में टिबियान, तिब्बती भी कहा जाता है। इस भू-भाग में ऊँची-नीची घाटियों का फैलाव  है। माना जाता है कि इस क्षेत्र की नदियाँ हिमालय के उत्थान से पूर्ववर्ती हैं। यहाँ बर्फ की परतें इतनी पतली होती हैं कि उनमें सूर्य की रश्मियाँ आर-पार दिखाई देती हैं।

2.महा हिमालय क्षेत्र :

(हिमाद्रि-रेन्ज, ग्लेशियर तथा घाटियाँ ) इस प्रदेश का अधिकांश भाग पूरे वर्ष हिमाच्छादित रहता है। अतः यह क्षेत्र हिमाद्रि (बर्फ का घर) कहलाता है। 15 से 30 कि.मी. चौड़ी इस पेटी का औसत धरातल 4800 से 6000 मी. तक है।

यहाँ नंदादेवी (7817 मी.) सर्वोच्च शिखर है तथा कामेट, बंदरपुच्छ, केदारनाथ, गंगोत्री, चौखम्बा, दूनागिरी, त्रिशूल, नंदाकोट, पंचाचूली आदि हिमाच्छादित शिखर हैं, जो 6000 मी. से अधिक ऊँचे हैं। यह प्रदेश प्राकृतिक वनस्पति की दृष्टि से महत्त्वहीन है।

इस प्रदेश में फूलों की घाटी स्थित है। कुछ जगहों पर छोटे-छोटे घास के मैदान हैं, जिन्हें बुग्याल, पयांर तथा अल्पाइन पाश्चर्स आदि नामों से जाना जाता है।

इस क्षेत्र में मिलम, केदारनाथ, गंगोत्री आदि विशाल हिमनद हिमाच्छादन के स्पष्ट प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। इसी क्षेत्र में गंगोत्री व यमुनोत्री हिमनद, क्रमश: गंगा एवं यमुना नदियों के उद्गम स्थान हैं। संपूर्ण प्रदेश अत्यंत पथरीला व कटा-फटा है, जलवायु की दृष्टि से यह क्षेत्र सबसे अधिक ठंडा है।

ऊँची चोटियाँ सदैव हिमाच्छादित रहती हैं। 3000 मी. से अधिक ऊंचाई वाले भागों में शीतकालीन तापक्रम हिमांक से कम रहता है। मौसम अनुकूल होने के कारण दक्षिणी भागों से लोगों का प्रवास मुख्यत: अप्रैल, मई व जून माह में होता है। इन दिनों निचले क्षेत्र से लोग आवश्यक सामग्री सहित प्रदेश के ग्रीष्मकालीन अधिवासों को आबाद कर देते हैं।

ग्रीष्मकालीन ग्रामों में भेड़ व बकरियों के आने से चहल-पहल बढ़ जाती है। प्रायः 3000 से 4500 मीटर की ऊँचाई वाले क्षेत्रों के अल्पाइन चरागाह पशुचारण के प्रमुख केंद्र बन जाते हैं, जहाँ भागीरथी व अलकनंदा घाटी से जाड, मारछा व तोलछा तथा धौली, गोरी गंगा व काली नदी की घाटियों से भोटिया जनजाति के लोग अपने पशुओं को चराने आते हैं।

इस प्रदेश में वर्षा अधिकांश रूप में ग्रीष्मऋतु में होती है। ग्रीष्मकालीन मानसून हवायें पर्वतों को पार करके उत्तर की ओर नहीं जा सकती हैं । 3000 मीटर की ऊँचाई वाले भागों में शीतोष्ण कटिबंधीय सदाबहार नुकीली पत्ती वाले वृक्षों, फर, सरों, चीड़ आदि के वन मिलते हैं। उसके ऊपर 3900 मी. तक कुछ घासें और झाड़ियाँ आदि मिलती हैं।

इससे अधिक ऊँचाई वाले क्षेत्रों में वनस्पति का नितान्त अभाव है। आर्थिक दृष्टि के आधार पर भी यह क्षेत्र पिछड़ा हुआ है। कृषि कार्य केवल घाटियों में ग्रीष्मकाल के चार महीनों में ही केंद्रित होता है।

3. मध्य हिमालय क्षेत्र  (हिमाचल)

यह क्षेत्र महा हिमालय के दक्षिण में सिन्धुतल से 3000-4800 मीटर की ऊँचाई पर विस्तृत है, जो 70 से 120 कि.मी. के फैलाव के साथ औसतन 75 कि.मी. चौड़ा है। आंशिक हिमाच्छादन के कारण इस भाग को हिमांचल (बर्फ का अंचल) कहते है। इस क्षेत्र में अल्मोड़ा, गढ़वाल, टिहरी गढ़वाल तथा नैनीताल का उत्तरी भाग सम्मिलित है।

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इस भाग की पर्वत श्रेणियाँ पूर्व से पश्चिम, मुख्य श्रेणी के समानांतर फैली हुई हैं। इस भाग में अनेक नदी घाटियाँ हैं तथा नैनीताल जिले में 25 कि.मी. लंबी व 4 कि.मी. चौड़ी पट्टी है इस पट्टी में कई ताल मौजूद  हैं, जिनमें मुख्य ताल हैं – नैनीताल, भीमताल, सातताल, नौकुचियाताल, सड़ियाताल खुरपाताल और सूखाताल ।

शीतऋतु में इस क्षेत्र में पर्वतीय शृंखलायें बहुधा हिमाच्छादित रहती हैं, वर्षाऋतु में ग्रीष्मकालीन मानसून द्वारा यहाँ पर भारी वर्षा होती है। वार्षिक वर्षा की मात्रा 160-200 से.मी. के मध्य रहती है। ग्रीष्मकालीन मौसम शीतल व सुहावना होता है, वनीय संसाधनों, आर्थिक क्रियाकलापों तथा मानव निवास की दृष्टि से यह क्षेत्र सबसे महत्त्वपूर्ण है।

इस क्षेत्र में वनों का अधिक विस्तार है। इस कारण इनका बड़े पैमाने पर दोहन एवं उपयोग किया जाता है। इस क्षेत्र में शीतोष्ण कटिबंधीय सदाबहार सघन वन मिलते हैं। संपूर्ण क्षेत्र के 45-60 प्रतिशत भाग वनाच्छादित हैं। यहाँ बाँज, खरसों, बुराँस, चीड़, फर, देवदार व सरों आदि वृक्षों का बाहुल्य है।

इस क्षेत्र की मिट्टी कम उपजाऊ है, परन्तु तब भी 3000 मीटर तक की ऊँचाई वाले क्षेत्रों में तथा पर्वतीय ढालों पर सीढ़ीदार खेतों का निर्माण कर कृषि की जाती है। इन क्षेत्रों में ढाल, मिट्टी की किस्म, जल की प्राप्ति के आधार पर खरीफ (ग्रीष्म) तथा रबी (शीत) में उत्तम कोटि का धान उत्पन्न किया जाता है।

4. शिवालिक और दून क्षेत्र :

मध्य हिमालय के दक्षिण में स्थित यह प्रदेश बाह्य हिमालय के नाम से भी पुकारा जाता है। इस क्षेत्र का फैलाव 1200 से 3000 मीटर  तक की  ऊँचाई वाले क्षेत्रों, अल्मोड़ा, पौड़ी गढ़वाल व चम्पावत जनपदों के दक्षिणी भाग, मध्यवर्ती नैनीताल तथा देहरादून जिलों में है। शिवालिक श्रेणियों को हिमालय की पाद प्रदेश श्रेणियाँ कहते हैं।

शिवालिक एवं लघु हिमालय श्रेणियों के बीच लम्बाकार घाटियाँ पाई जाती हैं, जिन्हें दून कहा जाता है। दून घाटियाँ प्राय: 24 से 32 किमी. चौड़ी तथा 350 से 750 मी. ऊँची हैं, जिनमें देहरादून अत्यंत विकसित एवं महत्त्वपूर्ण है। अन्य दून घाटियाँ हैं- पछुवादून, पूर्वीदून, चंडीदून, कोटादून, हर-की-दून, पाटलीदून, चौखमदून, कोटरीदून आदि। मुख्य दून घाटी 75 कि.मी. लम्बी तथा 25 कि.मी. चौड़ी है।

यहाँ आसन और सुसवा नदियाँ लघु हिमालय के दक्षिणी ढालों से बड़ी मात्रा में अवसाद लाकर निक्षेपित करती हैं। शिवालिक श्रेणियों का क्रम नदियों द्वारा स्थान-स्थान पर विच्छिन्न कर दिया गया है। हरिद्वार में गंगा नदी तथा विकासनगर (देहरादून) के पश्चिम में यमुना नदी द्वारा शिवालिक श्रृंखला-क्रम का विच्छेदन स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। वहीं से मैदानी भाग आरम्भ हो जाते हैं।

यहाँ ग्रीष्मकालीन तापमान 29-32 सेंटीग्रेड तथा शीतऋतु का तापमान 4-7 सेंटीग्रेड रहता है। वार्षिक वर्षा की मात्रा सामान्यत: 200-250 से.मी. रहती है।

यहाँ वनों पर आधारित कागज बनाने, लकड़ी, स्लीपर तथा फर्नीचर निर्माण उद्योगों का विकास हुआ है। खनिज पदार्थों की दृष्टि से यह क्षेत्र अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। देहरादून जनपद के कई क्षेत्रों से लाखों टन चूना पत्थर प्राप्त होता है।

देहरादून इस क्षेत्र का सबसे बड़ा नगर है। उत्तरी रेलमार्ग पर्वतीय क्षेत्र में यहीं समाप्त होता है। यहाँ से कुछ ही दूर मसूरी एक रमणीक स्थल है। नैसर्गिक दृश्यों तथा स्वास्थ्य के लिए अनुकूल जलवायु होने के कारण प्रतिवर्ष लाखों पर्यटक ग्रीष्मकाल में यहाँ आते हैं।

5. भावर-तराई क्षेत्र :

यह प्रदेश बहिर्हिमालय अथवा शिवालिक श्रेणियों एवं गंगा के समतल मैदान के मध्य तंग पट्टी के रूप में फैला हुआ हैं जिसकी धरातलीय ऊँचाई 1200 मीटर तक है। धरातलीय दशाओं के आधार पर इस प्रदेश को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है- 1. भावर  2. तराई।

1.भावर  :

पथरीली और कंकरीली मिट्टी से बना  यह क्षेत्र पर्वतों की  तलहटी में 35 से 40 किलोमीटर चौड़ी तंग पट्टी के आकार में तराई के उत्तरी भाग में मिलता है। इस क्षेत्र की चौड़ाई पश्चिमी भाग में पूर्वी भाग की अपेक्षा अधिक है।

भावर क्षेत्र में नदियों एवं स्रोतों का जल, धरातल ऊपर न बहकर अदृश्य होकर नीचे बहता रहता है। जलधारायें नीचे ही नीचे बहती हुई तराई प्रदेश में ऊपर आकर प्रकट हो जाती हैं। राज्य का भावर  क्षेत्र नैनीताल तथा गढ़वाल जिलों में पाया जाता है।

2.तराई :

तराई समतल, नम एवं दलदली मैदान है, जो भावर  के समानांतर तंग पट्टी के रूप में विस्तृत है। जलधारायें तराई प्रदेश में आकर धरातलीय भाग में फैल जाती हैं। इसमें वर्षा अधिक होती है तथा संपूर्ण क्षेत्र में दलदल पाये जाते हैं। मैदानी भागों से उत्तराखण्ड के पर्वतीय भाग में प्रवेश हेतु स्थान, घाटे या द्वार कहलाते हैं।

कुछ घाटे / द्वार इस प्रकार हैं-हरिद्वार, कोटद्वार, द्वारकोट (ठाकुरद्वारा), चौकीघाट, चिलकिया (ढिकुली), चोरगलिया (हल्द्वानी), बमौरी (काठगोदाम), ब्रह्मदेव (टनकपुर), तिमली तथा मोहन्डपास (देहरादून) । सभी घाटे या द्वार, शिवालिक, दून एवं तराई-भावर  क्षेत्रों में स्थित हैं।

FAQ

प्रश्न – उत्तराखंड में कितने मण्डल हैं ?

उत्तर – उत्तराखंड में 2 मण्डल हैं- कुमाऊँ व गढ़वाल।

प्रश्न – उत्तराखंड में कितने जिले हैं ?

उत्तर- उत्तराखंड में 13 जिले हैं।

प्रश्न – कुमाऊँ, उत्तराखंड के प्रमुख ताल कौन-कौन से हैं?

उत्तर – नैनीताल, भीमताल, सातताल, नौकुचियाताल, सड़ियाताल खुरपाताल और सूखाताल।

प्रश्न – बुग्याल किसे कहते हैं ?

उत्तर – उत्तराखंड के विशाल घास के मैदानों को बुग्याल कहते हैं।

तो दोस्तों ये थी  Uttarakhand GK in hindi | उत्तराखंड सामान्य ज्ञान श्रृंखला भाग 1 हमें आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि आपको हमारा ये प्रयास  पसंद आया होगा ।

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