Tulsidas Biography in Hindi । Tulsidas ka Jeevan Parichay । तुलसीदास का जीवन परिचय, जीवनी

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महान सन्त कवि तुलसीदास (Tulsidas) जी का नाम भी भारतीय जनमानस के हृदय पटल पर उसी श्रद्धा के साथ अंकित है जो श्रद्धा उनके द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस के प्रति है।

जब कभी भी रामचरितमानस का नाम लिया जाता है तो अनायास ही तुलसीदास जी का नाम भी जिह्वा पर आ जाता है, मानों यह दोनों एक दूसरे के पर्याय हों। तुलसीदास जी को रामायण महाकाव्य के रचयिता महर्षि बाल्मीकि का अवतार भी माना जाता है ।

महान ग्रंथ श्रीरामचरितमानस तो दुनिया के 100 सर्वश्रेष्ठ काव्यों में 46 वाँ स्थान प्राप्त है। इन सब के उपरांत यह आश्चर्यजनक है कि रामचरितमानस जैसे विश्व प्रसिद्ध ग्रंथ के सृजक एवं महान राम भक्त संत कवि गोस्वामी तुलसीदास (Goswami Tulsidas) के शुरुआती जीवन के संबंध में तथ्य पूर्ण जानकारी का नितांत अभाव रहा है।

दोस्तों ! आज हम आपको इस लेख Tulsidas Biography in Hindi । Tulsidas ka Jeevan Parichay । तुलसीदास का जीवन परिचय, जीवनी, tulsidas ki jivani के माध्यम से महान संत कवि गोस्वामी तुलसीदास जी के जीवन परिचय के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे।

यह जानकारी आपको परीक्षा में गोस्वामी तुलसीदास जी का जीवन परिचय, जीवनी (Goswami Tulsidas Ka Jivan Parichay) लिखने के लिए समस्त महत्वपूर्ण जानकारियां उपलब्ध कराएगी। तो आइए जानते हैं तुलसीदास जी के बारे में सम्पूर्ण इतिहास ।

Table of Contents

Tulsidas Biography in Hindi । Tulsidas ka Jeevan Parichay । तुलसीदास का जीवन परिचय, जीवनी

बिन्दु सूचना
पूरा नाम गोस्वामी तुलसीदास
बचपन का नाम रामबोला, तुलसीराम
जन्म की तारीख 1532 ईस्वी
जन्म का स्थान राजापुर, बांदा जिला ( चित्रकूट ) उत्तर प्रदेश / सोरों ,
कासगंज, उत्तर प्रदेश (कुछ अन्य विद्वानों के अनुसार)
पिता का नाम पंडित आत्माराम शुक्ल दुबे
माता का नाम हुलसी
पत्नी का नाम रत्नावली
गुरु नरहरी दास
धर्म हिंदू
देहावसान 1623 अस्सीघाट ( वाराणसी )
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तुलसीदास का जन्म तथा जन्म स्थान -Tulsidas Birth and Birth Place

महान संत कवि गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म 1532 ईसवी, संवत 1511 में श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को हुआ था। तुलसीदास जी के जन्म स्थान के संबंध में विद्वान एकमत नहीं है। कुछ विद्वानों के अनुसार तुलसीदास जी का जन्म स्थान सोरों , कासगंज, उत्तर प्रदेश है।

जबकि कुछ विद्वान इनका जन्म स्थान उत्तर प्रदेश के बांदा जिले ( चित्रकूट ) में स्थित राजापुर नामक स्थान को मानते हैं। वर्तमान में उत्तर प्रदेश सरकार ने इसी स्थान को आधिकारिक रूप से गोस्वामी तुलसीदास जी के जन्म स्थान के रूप में घोषित किया है।

तुलसीदास का परिवार – Tulsidas Family

तुलसीदास जी के दादाजी का नाम पंडित सच्चिदानंद शुक्ल था, वह एक भारद्वाज गोत्र के सनाढ्य ब्राह्मण थे। इनके दादा के 2 पुत्र हुए, पंडित आत्माराम शुक्ल तथा पंडित जीवाराम शुक्ल। पंडित आत्माराम शुक्ल दुबे तथा उनकी पत्नी हुलसी के पुत्र का नाम तुलसीदास हुआ।

इनके चचेरे भाई का नाम नंददास था। तथा नंद दास जी के पुत्र का नाम कृष्णदास था। बचपन में तुलसीदास जी का नाम रामबोला तथा तुलसीराम था।

Tulsidas Biography in Hindi
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तुलसीदास का आरंभिक जीवन- Tulsidas Information in Hindi

लोक मान्यताओं के अनुसार तुलसीदास 12 महीने तक मां के गर्भ में रहे इस कारण वे बहुत हृष्ट -पुष्ट थे और जन्म के समय ही उनके मुंह में दांत दिखाई दे रहे थे।

कहा जाता है कि जन्म लेते ही तुलसीदास जी ने अपने मुख से राम के नाम का उच्चारण किया, इसी कारण उनका नाम राम बोला पड़ा।

तुलसीदास के जन्म के समय पंचांग के अनुसार मूल का समय था, और धार्मिक आस्था के अनुसार माना जाता है, ऐसे नक्षत्र में जन्म लेने वाले बच्चे के पिता के जीवन को खतरा होता है।

इनका जन्म होते ही अगले दिन इनकी माता का स्वर्गवास हो गया अतः परिवार के सब लोग इन्हें अशुभ मानने लगे ।

और इसी कारण से इनके पिता ने इनका त्याग कर दिया और इन्हें चुनिया नाम की एक दासी को दे दिया। जब रामबोला की उम्र लगभग पाँच वर्ष की हुई तो इनकी धाय मां चुनिया भी स्वर्ग सिधार गई।

उसके बाद रामबोला अनाथों की तरह इधर-उधर भटकते हुए भिक्षा मांग कर जीवन -यापन करते हुए एक हनुमान मंदिर में रहने लगे।

तुलसीदास की शिक्षा-दीक्षा एवं उनके गुरु- Tulsidas Education and Teacher

उन्हीं दिनों अनंतानन्द जी के प्रिय शिष्य श्री नरहरी शास्त्री ( नरहर्यानन्द जी ) जिन्हें रामानंद जी का चौथा शिष्य माना जाता है, की दृष्टि तुलसीदास पर पड़ी उन्होंने तुलसीदास के भीतर छिपी अलौकिक प्रतिभाओं को पहचान लिया और इन्हें अपने साथ अयोध्या ले गए।

वहां उन्होंने तुलसीदास का यज्ञोपवीत संस्कार कराया तथा इनका शिक्षण कार्य प्रारंभ कर दिया। संस्कार के समय बालक रामबोला ने बिना सीखे ही गायत्री मंत्र का स्पष्ट उच्चारण कर दिया , यह देख सभी आश्चर्यचकित रह गए ।

यहीं तुलसीदास जी ने सन्यासी वेश धारण करते हुए बैरागी की दीक्षा ली । माना जाता है कि यहीं उन्हें तुलसीदास का नाम मिला। तुलसीदास की उम्र 7 वर्ष होने पर उनके गुरु नरहरी दास जी ने उनका उपनयन कर्म किया।

उनके गुरु उन्हें कुछ समय बाद वराह क्षेत्र ले गए जहां पहली बार नरहरी दास जी ने उन्हें रामायण सुनाई , तत्पश्चात अक्सर वे रामायण सुनते थे अतः धीरे-धीरे उन्हें यह समझ में आने लगी।

कालांतर में तुलसीदास जी ने काशी नगरी में हिंदू दर्शन स्कूल में गुरु शेष सनातन जी के साथ रहकर 15 वर्षों तक उनसे संस्कृत व्याकरण,वेद और पुराणों का अध्ययन किया तथा ज्योतिष की शिक्षा ग्रहण की।

शेष सनातन जी इनके गुरु नरहरी दास के सखा थे तथा साहित्य और दर्शनशास्त्र के प्रकंड विद्वान थे । शिक्षा पूर्ण करने के बाद तुलसीदास जी अपने जन्म स्थान ( राजापुर ) वापस चले गए।

अपने घर पहुंच कर उन्हें ज्ञात हुआ कि उनके माता-पिता का देहावसान हो गया है अतः अपने माता-पिता का श्राद्ध करके वे अपने पैतृक घर में ही रहने लगे और चित्रकूट में लोगों को रामायण की कथा सुनाया करते।

ये अपने गुरु नरहरी जी से बाल्यावस्था में ही राम कथा सुन चुके थे अतः अब तक राम भक्ति की भावना और वैराग्य संस्कार उनके भीतर जागृत होने लगे थे परंतु फिर भी तुलसीदास जी ने बहुत अल्पावधि के लिए गृहस्थ आश्रम में प्रवेश किया।

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तुलसीदास का वैवाहिक जीवन-Tulsidas Married Life

तुलसीदास के विवाह के बारे में कुछ लोगों की मान्यता है कि वे बचपन से ही हनुमान भक्त थे , इस धारणा के आधार पर ऐसा माना जाता है कि शायद उन्होंने कभी विवाह किया ही नहीं।

परन्तु अन्य विद्वानों के अनुसार महान संत कवि तुलसीदास जी का विवाह रत्नावली ( बुद्धिमती ) से सन् 1583 में जयेष्ठ माह की पुण्यतिथि में 29 वर्ष की आयु में हुआ था।

रत्नावली के पिता का नाम दीनबंधु पाठक था यह एक भारद्वाज ब्राह्मण थी। तुलसीदास जी और रत्नावली के एक पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम तारक था, कहा जाता है कि अल्पायु में ही उसकी मृत्यु हो गई।

कहा जाता है कि तुलसीदास जी अपनी पत्नी रत्नावली से इतना प्रेम करते थे कि वे उनके बिना नहीं रह पाते थे। एक किवदंती के अनुसार एक बार जब तुलसीदास (tulsidas) की पत्नी रत्नावली अपने भाई के साथ मायके गई हुई थी।

और तुलसी अपनी पत्नी के बिरह – वियोग में स्वयं को रोक ना पाए और घनघोर बारिश में रात्रि के समय उफनती नदी को पार करके विपरीत परिस्थितियों में रत्नावली से मिलने अपनी ससुराल पहुंच गए।

तुलसीदास के इस कृत्य पर रत्नावली ने ग्लानि एवं क्रोध में उनसे कहा – ” मेरी हाड़ -मांस की देह के बजाय भगवान राम से ऐसी प्रीति क्यों नहीं करते ?”

यह बात तुलसीदास के हृदय में चुभ गई और उन्होंने समस्त पारिवारिक व सांसारिक सुख-ऐश्वर्य त्याग दिया और राम नाम का भजन करते हुए तीर्थाटन पर निकल पड़े।

तुलसीदास एक सन्यासी के रूप में – Tulsidas As a Monk

लगभग 14 वर्षों तक तुलसीदास संपूर्ण भारत में अलग-अलग तीर्थों का भ्रमण करते हुए भगवान राम की खोज में भटकते रहे और उन्होंने स्वयं को पूर्णरूपेण आध्यात्मिकता में लगा दिया।

इस दौरान उन्होंने अनेक साधु-संतों से शिक्षा ग्रहण की तथा अलग-अलग स्थानों पर लोगों को भी शिक्षा दी। वे अपने तीर्थाटन के दौरान वाराणसी, प्रयाग, अयोध्या चित्रकूट में रहे और इसी स्थान पर इन्हें भगवान राम के दर्शन हुए और तभी से इन्हें रामायण की रचना करने की प्रेरणा मिली।

तुलसीदास की राम भक्ति तथा राम व हनुमान दर्शन – Ram Bhakti and Ram, Hanuman Darshan

तुलसीदास राम के अनन्य भक्तों में से एक थे , राम के प्रति उनकी अगाध आस्था थी और उन्हें हमेशा विश्वास था कि एक दिन प्रभु राम स्वयं उन्हें दर्शन देंगे, और ऐसा हुआ भी उन्होंने अपनी रचना “भक्तिरस बोधिनी” में इस बात का वर्णन विस्तार पूर्वक किया है ।

उन्हे सर्वप्रथम प्रभु हनुमान के दर्शन वाराणसी में हुए थे उसी स्थान पर वर्तमान में संकट मोचन मंदिर है। ऐसी मान्यता है कि प्रभु हनुमान ने ही श्रीरामचरितमानस के लेखन कार्य में तुलसीदास जी की सहायता की थी।

तुलसीदास जी ने उस समय हनुमान जी के समक्ष प्रभु श्रीराम के दर्शनों की अभिलाषा प्रकट की, तब हनुमान जी ने तुलसीदास जी को राम जी के दर्शन हेतु चित्रकूट प्रस्थान करने की सलाह दी।

तत्पश्चात तुलसीदास जी चित्रकूट में रामघाट नामक स्थान पर रहने लगे थे। तुलसीदास जी ने स्वयं “विनयपत्रिका” में इस वृतांत का वर्णन किया है कि किस प्रकार श्री राम द्वारा दो बार उन्हें दर्शन देने के उपरांत भी वे उन्हें ना पहचान सके।

परंतु तीसरी बार बाल रूप में जब स्वयं श्री राम जी ने उन्हें दर्शन दिए तब हनुमान जी के संकेत पर तुलसीदास जी उन्हें पहचान गए।

तुलसीदास जी अपने ज्ञान व भक्ति के बल पर सामान्य मनुष्य से परे असामान्य शक्तियों के स्वामी थे, अपने ज्ञान व सूझ -बूझ से उन्होंने अनेक लोगों को स्वास्थ्य लाभ प्रदान किया और उनका जीवन बचाया।

तुलसीदास जी मुगल शासक अकबर के समकालीन थे, बादशाह अकबर तुलसीदास जी के ज्ञान व मानवता के लिए समर्पण की भावना के कारण उन्हें सम्मान देते थे और एक मित्रवत् व्यवहार करते थे।

तुलसीदास जी का देहावसान- Tulsidas Ki Mrityu Kab Hui Thi

देश के कई तीर्थों का भ्रमण करने के बाद भी तुलसीदास जी ने अपने जीवन का अंतिम समय काशी में गुजारा था। तुलसीदास जी की मृत्यु के समय को लेकर भी विद्वानों में मतभेद रहा है, अलग-अलग विद्वान इनकी मृत्यु का समय अलग-अलग बताते हैं।

फिर भी विद्वानों द्वारा सर्वाधिक मान्यता दिए जाने वाले समय के अनुसार महान भक्त, कवि व ज्ञानी तुलसीदास जी की मृत्यु सन 1623 , विक्रम संवत 1680 में श्रावण मास में वाराणसी के अस्सीघाट पर हुई थी।

काशी में वह स्थान अब तुलसीघाट के नाम से जाना जाता है। यहां तुलसीदास जी के द्वारा स्थापित हनुमान जी की प्रतिमा आज भी स्थित है। काशी का सुप्रसिद्ध “संकट मोचन मंदिर” भी तुलसीदास जी द्वारा स्थापित किया गया माना जाता है।

ऐसा कहा जाता है कि अपनी मृत्यु से पूर्व तुलसीदास जी ने अपनी अंतिम रचना विनय पत्रिका लिखी ,और उस पर स्वयं श्री राम जी ने हस्ताक्षर किये थे । गोस्वामी तुलसीदास जी (Goswami Tulsidas Ji) का नाम देश और दुनिया में हमेशा अमर रहेगा।


तुलसीदास की प्रमुख रचनाएँ
Tulsidas ki Rachnaye

ऐसा माना जाता है कि अपने जीवन काल में तुलसीदास जी ने सर्वप्रथम संस्कृत में काव्य रचना प्रारंभ की, परंतु जनसामान्य को संस्कृत भाषा का ज्ञान कम होने के कारण वे अवधि भाषा में अपनी रचनाएं लिखने लगे जो कि उत्तर भारत के जनसाधारण की भाषा है ।

तुलसीदास जी ने 39 ग्रंथों की रचना की, परंतु उनमें से 12 ग्रंथ , जो सर्वाधिक प्रसिद्ध है, को विद्वान निश्चित तौर पर इनके द्वारा रचित मानते हैं, यह 12 ग्रंथ निम्नलिखित है –

अवधी भाषा में रचित ग्रंथ – Books in Avadhi Language

तुलसीदास जी द्वारा अवधी भाषा में रचित ग्रंथ निम्नलिखित हैं –

श्रीरामचरितमानस – Shree Ramcharitmanas

श्रीरामचरितमानस को तुलसीदास जी की प्रतिनिधि रचना माना जाता है। तुलसीदास जी ने श्री रामचरितमानस की रचना 1631 में अयोध्या में शुरू की थी। इस ग्रंथ में लिखा जाने वाला किष्किंधा कांड का लेखन कार्य काशी में जाकर पूर्ण हुआ।

तुलसीदास जी के समय देश में मुगल शासक अकबर का साम्राज्य था , तब श्रीरामचरितमानस ने लोगों में नए जीवन का संचार किया। प्रत्येक अमीर-गरीब हिंदू के घर में प्रतिष्ठित होने वाला यह ग्रंथ सात कांडों में विभाजित है जिन्हें क्रमश: बालकांड, अयोध्या कांड, अरण्य कांड, किष्किंधा कांड, सुंदर कांड, लंका कांड एवं उत्तर कांड कहां जाता है ।

श्रीरामचरितमानस के अतिरिक्त तुलसीदास जी द्वारा अवधी भाषा में रचित अन्य ग्रंथ निम्नलिखित हैं –

रामलला नहछू

पार्वती मंगल

बरवै रामायण

रामाज्ञा प्रश्न

जानकी मंगल

ब्रज भाषा में रचित ग्रंथ –

विनय पत्रिका

कृष्ण गीतावली

दोहावली

गीतावली

साहित्य रत्न

संदीपनि

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उपरोक्त प्रमुख 12 ग्रंथों के अतिरिक्त तुलसीदास जी के द्वारा रचित कुछ अन्य विशिष्ट रचनाएं निम्नलिखित हैं –

हनुमान बाहुक

हनुमान अष्टक

तुलसी सतसई

हनुमान चालीसा

तुलसीदास जयंती 2022 Tulsidas Jayanti 2022 Date

गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म श्रावण माह में शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन माना जाता है अतः इसी दिवस को तुलसीदास जयंती के रूप में मनाया जाता है। 2022 में तुलसीदास जयंती 4 अगस्त दिन बृहस्पतिवार को मनाई जाएगी। 2022 में तुलसीदास जी की 522 वीं जन्मतिथि है।

तुलसीदास जयंती कैसे मनाते हैं – Tulsidas Jayanti Celebration

तुलसीदास जयंती के अवसर पर स्कूलों में विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इन कार्यक्रमों में मुख्य रूप से निबंध या दोहे लिखने की प्रतियोगिताएं, डिबेट, दोहे गाने वाली अंताक्षरी आदि प्रोग्राम होते हैं। मंदिरों में पूजा अर्चना, रामायण पाठ आदि कार्यक्रम होते हैं तथा लोग ब्राह्मणों को भोज भी कराते हैं।

तुलसीदास के दोहे व हिन्दी अर्थ – Tulsidas ke Dohe With Hindi Meaning

Tulsidas ke Dohe in Hindi –

“तुलसी मीठे वचन ते सुख उपजत चहूँ ओर।
वसीकरन इक मंत्र है परीहरू बचन कठोर ।।”

-तुलसीदास

भावार्थ – गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि मीठे वचनों से सब ओर सुख फैलता है। मीठे वचन किसी को भी बस में करने का एक मंत्र है। अतः मनुष्य को कठोर वचन ना बोलकर मीठे वचन बोलने चाहिए ।

“नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु ।
जो सिमरत भयो भांग ते तुलसी तुलसीदास।।”

-तुलसीदास

भावार्थ तुलसीदास जी कहते हैं कि राम का नाम कल्पवृक्ष ( इच्छित फल देने वाला वृक्ष ) और कल्याण का निवास है जिसको याद करने से भांग जैसा ( खराब ) तुलसीदास भी तुलसी की भांति पवित्र हो जाता है।

तुलसीदास के दोहे (Tulsidas Dohe in Hindi)-

“दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान ।
तुलसी दया न छांडिये , जब लग घट में प्राण ।।”

-तुलसीदास

भावार्थ तुलसीदास जी कहते हैं मनुष्य को कभी भी दया नहीं छोड़नी चाहिए, क्योंकि दया ही धर्म का मूल है। जबकि मनुष्य का अहंकार सभी पापों का मूल है।

“सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु ।
विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।”

-तुलसीदास

भावार्थ तुलसीदास जी कहते हैं कि योद्धा अर्थात शूरवीर युद्ध क्षेत्र में अपना परिचय अपने कर्मों के द्वारा अर्थात् युद्ध कौशल से देते हैं । उन्हें स्वयं के बारे में प्रशंसा करने की आवश्यकता नहीं होती, तथा जो अपनी प्रतिभाओं का बखान स्वयं अपने मुंह से करते हैं वह कायर होते हैं।

“काम क्रोध मद लोभ की जौ लौं मन में खान ।
तौ लौं पंडित मूरखौं तुलसी एक समान।।”

-तुलसीदास

भावार्थ तुलसीदास जी इस दोहे के माध्यम से यह कहना चाहते हैं कि क्रोध , लोभ ,मोह , तथा काम मनुष्य के अंदर पैदा होने वाले ऐसे भाव हैं जिनके होने पर किसी बुद्धिमान और मूर्ख व्यक्ति में कोई अंतर नहीं रह जाता ।

वास्तव में ये नकारात्मक भाव मनुष्य के दिमाग पर गूढ़ प्रभाव डालते हैं और मनुष्य का विवेक छीन लेते हैं अतः व्यक्ति को इन नकरात्मक भावों से स्वयं को दूर रखना चाहिए ।

FAQ

प्रश्न – तुलसीदास जी का जन्म कब हुआ था ?

उत्तर – गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म 1532 ईसवी, संवत 1511 में श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को हुआ था।

प्रश्न – गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म कहाँ हुआ था ?

उत्तर – तुलसीदास जी के जन्म स्थान के संबंध में विद्वान एकमत नहीं है। कुछ विद्वानों के अनुसार तुलसीदास जी का जन्म स्थान सोरों , कासगंज, उत्तर प्रदेश है, जबकि कुछ विद्वान इनका जन्म स्थान उत्तर प्रदेश के बांदा जिले ( चित्रकूट ) में स्थित राजापुर नामक स्थान को मानते हैं।

प्रश्न – तुलसीदास जी का बचपन का क्या नाम था ?

उत्तर – तुलसीदास जी का बचपन का नाम रामबोला था ।

प्रश्न – तुलसीदास जी के गुरु का क्या नाम था ?

उत्तर – तुलसीदास जी के गुरु का नाम श्री नरहरी शास्त्री (नरहर्यानन्द जी) था ।

प्रश्न – तुलसीदास जी के माता पिता का नाम क्या था?

उत्तर – तुलसीदास जी के पिता का नाम पं0 आत्माराम शुक्ल दुबे तथा माता का नाम हुलसी था ।

प्रश्न – तुलसीदास जी की धर्मपत्नी का क्या नाम था ?

उत्तर – तुलसीदास जी की धर्मपत्नी का नाम रत्नावली था ?

प्रश्न – तुलसीदास जी की मृत्यु कब और कहाँ हुई थी ?/
Tulsidas ki Mrityu Kab Hui Thi ?

उत्तर – तुलसीदास जी की मृत्यु सन 1623 , विक्रम संवत 1680 में श्रावण मास में वाराणसी के अस्सीघाट पर हुई थी।

प्रश्न – तुलसीदास जी की सर्वश्रेष्ठ रचना का क्या नाम है ?

उत्तर – तुलसीदास जी की सर्वश्रेष्ठ रचना का नाम श्रीरामचरितमानस है ?

प्रश्न – तुलसीदास की अंतिम रचना कौन सी है?

उत्तर – तुलसीदास की अंतिम रचना का नाम विनयपत्रिका है।

प्रश्न – तुलसीदास का विवाह कब हुआ ?

उत्तर – इनका विवाह सन् 1583 में जयेष्ठ माह की पुण्यतिथि में 29 वर्ष की आयु में हुआ था।

प्रश्न – श्री रामचरित मानस में कितने कांड है?

उत्तर – श्री रामचरित मानस में आठ कांड है।

निष्कर्ष – Conclusion

महान संत कवि गोस्वामी तुलसीदास जी राम के अनन्य भक्तों में से एक थे। तुलसीदास जी अपने ज्ञान व भक्ति के बल पर सामान्य मनुष्य से परे असामान्य शक्तियों के स्वामी थे, श्रीरामचरितमानस ग्रंथ के लिए वे आज भी याद किए जाते हैं, और हमेशा याद किए जाते रहेंगे।

हमारे शब्द – Our Words

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अंत में – हमारे आर्टिकल पढ़ते रहिए, हमारा हौसला बढ़ाते रहिए, खुश रहिए और मस्त रहिए।

जीवन को अपनी शर्तों पर जियें ।

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