Khatu Shyam Ji Ki Kahani In Hindi | क्यों हैं हारे का सहारा, शीश के दानी, खाटू श्याम बाबा

Rate this post

हिंदू धर्म में  33 करोड़ देवी देवताओं  को पूजा जाता है। हर व्यक्ति अपनी निजी आस्था के अनुसार अपने किसी ईष्ट को पूजता है। हम अपने जीवन में जरूर किसी एक शक्ति को अपनी पूर्ण आस्था और विश्वास के साथ मानते हैं,  और जीवन में कठिन समय आने पर उन्हीं से प्रार्थना करते हैं।

और दोस्तों ! यह सच भी है  कि यदि हम उस शक्ति पर अगाध विश्वास और सच्चे मन से आस्था रखते हैं,  तो वह  हमें  निश्चित रूप से उन परेशानियों से निकाल लेती हैं। 

दोस्तों, हम इस लेख में निर्बलों और कमजोरों के रक्षक, लखदातार, कलयुग के अवतारी, मोरबी नंदन, हारे का सहारा, खाटू श्याम बाबा (Khatu Shyam Baba)  के बारे में  विस्तार पूर्वक  संपूर्ण जानकारी देने जा रहे हैं।  

आपसे अनुरोध है कि  तीन बाण धारी, खाटू नरेश के बारे में  समस्त जानकारी के लिए  हमारे  लेख क्यों हैं हारे का सहारा, शीश के दानी, खाटू श्याम बाबा  | Khatu Shyam Ji Ki Kahani In Hindi  को अंत तक  अवश्य पढ़ें।

Table of Contents

खाटू श्याम की कहानी, Khatu Shyam Baba Ki Katha, Khatu Shyam Ji Ki Kahani In Hindi

प्रमुख बिंदु संबंधित जानकारी
वास्तविक नामबर्बरीक
अन्य प्रसिद्ध नामहारे का सहारा, लखदातार, खाटू श्याम, खाटू नरेश, श्याम बाबा, मोरवी नंदन, मोर छड़ी धारी, तीन बाण धारी,  कलयुग के अवतारी, श्री श्याम
 जन्मतिथिदेवउठनी एकादशी (कार्तिक शुक्ल पक्ष )
 दादा का नाममहाबली भीम
 दादी का नामहिडिम्बा
 पिता का नाम महाबली घटोत्कच
 माता का नाम अहिलावती (मोरबी)
भाई के नाम अंजनपर्व, मेघवर्ण
 पूर्वजपांडव
वास्तु निर्माता शासक राजा रूप सिंह चौहान
निर्माण का वर्ष सन् 1027 
मंदिर अवस्थित हैखाटू, सीकर जिला, राजस्थान  में
प्रमुख अस्त्रधनुष  और तीन दिव्य  बाण 
मेला आयोजन व समय फाल्गुनी लक्खी मेला,  फाल्गुनी एकादशी को
श्री श्याम मंदिर वेबसाईट यहाँ क्लिक करें
होम पेजयहां क्लिक करें
Khatu Shyam Ji Ki Kahani In Hindi
Khatu Shyam Ji Ki Kahani In Hindi

खाटू श्याम का इतिहास- Khatu Shyam Ka Itihas/Khatu Shyam Ji Ki History       

आज खाटू श्याम जी का नाम लगभग सभी लोग जानते हैं। परंतु कुछ लोग आज भी उनके बारे में विस्तार से नहीं जानते और पूछते हैं, कौन हैं खाटू श्याम ? (Who is Khatu Shyam Baba) तो आइए दोस्तों आज हम आपको उनके जीवन परिचय के बारे में विस्तार से बताते हैं। 

खाटू श्याम जी का वास्तविक नाम महाबली बर्बरीक (Barbareek) था। ये पांडु पुत्र महाबली भीम के पौत्र (पोते) थे। इनके पिता का नाम घटोत्कच था। जो भीम और उनकी असुर पत्नी हिडिम्बा की संतान थे।

इनकी माता का नाम अहिलावती (मौरवी) था जो एक नागकन्या थीं। बर्बरीक को अपने अद्भुत केश के कारण ही यह नाम मिला था।

राजस्थान के सीकर जिले में खाटू नामक स्थान पर इनका विश्व प्रसिद्ध मंदिर है। यहां पूरे देश और विदेशों से भी भक्त इनके दर्शन हेतु आते हैं।  

मान्यता है कि जो भी खाटू श्याम बाबा के मंदिर में जाकर उनके दर्शन करता है उसकी समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है।

वीर बर्बरीक का जन्म – Khatu Shyam Birthday Date

पांडवों ने अपने अज्ञातवास का समय भीषण जंगलों  व गुफाओं में  छुपते-छुपाते बिताया था। अज्ञातवास के दौरान एक बार जंगल में विचरण करते हुए महाबली भीम पर हिडिम्बा नामक राक्षसी  की नजर पड़ी और उन पर आसक्त हो गई। 

भीम ने हिडिंबा के शक्तिशाली असुर भाई को पराजित करके हिडिम्बा से विवाह कर लिया। भीम और हिडिम्बा को घटोत्कच नामक एक पुत्र की प्राप्ति हुई जो अपने पिता भीम से भी ज्यादा शक्तिशाली और  पराक्रमी योद्धा था। 

घटोत्कच अपनी माता के साथ ही हिडिम्ब वन में निवास करते थे। एक बार घटोत्कच अपने पिता व अपने परिवार के लोगों से मिलने आए। 

श्री कृष्ण ने घटोत्कच को देखकर  उनके पिता से उनका विवाह कराने की बात कही तब  पांडवों ने श्रीकृष्ण से अनुरोध किया कि  आप ही इसके लिए योग्य वधू की तलाश करें।

तब श्री कृष्ण ने असुरराज,  शिल्पी मुरा की गुणवान  और सुशील कन्या कामकंटिका (मोरबी) को घटोत्कच के लिए  चुना।

अपने विवाह के लिए मोरबी की एक शर्त थी कि जो भी उसे शस्त्र और शास्त्रार्थ में पराजित कर देगा उसी के साथ में  उसका विवाह होगा। मोरबी की इस शर्त को पूरा करने के लिए स्वयं श्री कृष्ण भगवान ने घटोत्कच को दीक्षित किया।

घटोत्कच ने मोरबी को शस्त्र और शास्त्रार्थ में पराजित कर उसके साथ विवाह किया और अपनी पत्नी को लेकर  घटोत्कच हिडिंब वन चले गए। मोरबी ने हिडिंब वन में  एक बेहद अद्भुत पुत्र को जन्म दिया।

उसके बाल शेर की भांति बड़े-बड़े और घुंघराले थे। उनके बालों के कारण उनके पिता भीम ने उनका नाम बर्बरीक रखा। स्कंद पुराण में भी इनका जन्म स्थान  हिडिंब वन वर्णित है। वर्तमान में हिडिंब वन का कुछ भाग हिमाचल प्रदेश व शेष भाग नेपाल के अंतर्गत आता है।

बालक बर्बरीक का बचपन – 

बर्बरीक अपने बाल्यकाल से ही अद्भुत बालक थे। वे जन्म लेने के पश्चात ही पूर्ण विकसित हो चुके थे। अपने पुत्र को लेकर जब घटोत्कच श्री कृष्ण के पास गए।

बर्बरीक ने श्री कृष्ण से इस जीवन का सबसे अच्छा उपयोग पूछा तो उन्होंने बालक से प्रभावित होकर कहा, असहाय और कमजोर लोगों की मदद करना और सर्वदा धर्म का मार्ग अपनाना ही इस जीवन का सर्वोत्कृष्ट उपयोग है। 

आगे भगवान श्री कृष्ण ने  बालक बर्बरीक से कहा इस कार्य के लिए आपको शक्तियां अर्जित करनी होंगी। इस कार्य सिद्धि के लिए तुम्हें महिसागर गुप्त क्षेत्र  में जाना होगा और देवी सिद्ध अंबिका तथा नवदुर्गा  की पूजा अर्चना करनी होगी,  और उनसे शक्तियां प्राप्त करनी होंगी। 

बालक बर्बरीक ने श्री कृष्ण के कहे अनुसार महिसागर गुप्त क्षेत्र में जाकर सिद्ध अंबिका की उपासना  प्रारंभ की। बालक बर्बरीक की कठोर भक्ति से प्रसन्न होकर मां सिद्ध अंबिका ने उन्हें तीन दिव्य बाण,  धनुष  व कई अन्य शक्तियां  प्रदान कीं।

इस धनुष की मदद से वे त्रिलोक पर विजय प्राप्त कर सकते थे। इसी कारण इन्हे तीन बाणधारी (Khatu Shyam 3 Baan) नाम भी मिला। इसके उपरांत देवी ने उन्हें  चंडिल  नाम भी दिया। 

You May Also Like

बर्बरीक ने किया अपने शीश का दान –

महाबली भीम के पौत्र  वीर बर्बरीक को ही खाटू श्याम के नाम से जाना जाता है। वीर बालक बर्बरीक के खाटू श्याम  बनने की कथा महाभारत के समय से ही शुरू हो चुकी थी।

एक अन्य प्रचलित मान्यता के अनुसार  बालक बर्बरीक ने भगवान शिव की घोर तपस्या करके उन्हें प्रसन्न कर उनसे 3 दिव्य बाण प्राप्त किए।  यह बाण इतने चमत्कारी थे कि  इनका उपयोग करके त्रिलोक पर विजय प्राप्त की जा सकती थी। 

परंतु  इन बाणों का प्रयोग करने के लिए जिस विशिष्ट धनुष की आवश्यकता थी वह केवल अग्निदेव से प्राप्त हो सकता था अतः  बर्बरीक ने अग्नि देव की घोर तपस्या करके उन्हें प्रसन्न कर वह धनुष प्राप्त कर लिया।

खाटू श्याम की कहानी – Khatu Shyam Ki Kahani

जब महाभारत का युद्ध प्रारंभ होने की सूचना इन्हें मिली तो इन्होंने मां से उस युद्ध में भाग लेने की इच्छा प्रकट की, तब मां ने इन्हें आशीर्वाद दिया और इस वचन के साथ युद्ध में जाने की आज्ञा दी कि वे उसी का साथ दें जो उस युद्ध में हार रहा हो।

वीर बर्बरीक ने अपनी मां को वचन दिया कि वे हारने वाले की ओर से ही लड़ेंगे। तभी से इनको हारे का सहारा नाम से भी जाना जाता है। 

मां से आशीर्वाद प्राप्त कर बर्बरीक अपने नीले घोड़े पर सवार होकर अपने धनुष और  3 बाणों के साथ युद्ध भूमि की ओर चल पड़े।

यह बात पता चलने पर भगवान श्री कृष्ण को चिंता होने लगी क्योंकि वह जानते थे,  यदि किसी प्रकार बर्बरीक कौरवों के साथ शामिल हो जाते हैं तो कौरवों को किसी भी स्थिति में हराना असंभव होगा।

तब युद्ध के लिए जाते समय रास्ते में भगवान श्री कृष्ण एक ब्राह्मण के वेश में इनसे मिले और पूछा कि वे कहाँ जा रहे हैं।

बर्बरीक जी ने बताया कि वे महाभारत युद्ध में भाग लेने जा रहे हैं। ब्राह्मण वेशधारी श्री कृष्ण जी ने कहा कि “तुम केवल तीन बाण लेकर ही युद्ध में भाग लेने जा रहे हो ?”

तब उत्तर में बर्बरीक ने कहा कि ये साधारण बाण नहीं हैं बल्कि ये ऐसे दिव्य बाण हैं जो विश्व की किसी भी सेना को समाप्त कर सकते हैं। मेरा प्रत्येक बाण शत्रु का संहार करके तरकश में वापस आ जाएगा। 

ब्राह्मण ने कहा कि तुम मुझे इनकी शक्ति दिखा सकते हो? बर्बरीक के हाँ कहने पर ब्राह्मण ने पास के एक पीपल के वृक्ष की ओर संकेत करते हुए कहा कि क्या तुम एक ही बाण से इस वृक्ष के सारे पत्ते भेद सकते हो ?

बर्बरीक ने अपने आराध्य को नमन कर एक बाण छोड़ा उस एक ही बाण ने पीपल के सभी पत्तों को भेद दिया और फिर ब्राह्मण बने श्री कृष्ण के चारों ओर परिक्रमा करने लगा।

तब बर्बरीक ने कहा आप अंतिम पत्ते के ऊपर से अपना पैर हटाइए अन्यथा आपका पैर जख्मी हो जाएगा। वास्तविकता यह थी कि श्री कृष्ण ने चतुराई से एक पत्ता अपने पैर के नीचे दबा लिया था। 

चमत्कारिक रूप से वह पीपल का पेड़ आज भी हरियाणा के हिसार जिले में तलवंडी राणा  के पास पीर बबराना गांव में  मौजूद है। इस पेड़ पर जब भी नए पत्ते आते हैं शुरुआत में वे ठीक होते हैं परंतु कुछ समय बाद उनमें अपने आप छेद हो जाते हैं। 

अब श्री कृष्ण ने उनसे पूछा कि वे युद्ध में किस सेना की ओर से भाग लेंगे। बर्बरीक ने जवाब दिया कि जो पक्ष हार रहा होगा वे उसकी ओर से ही लड़ेंगे। ये बात सुनकर श्री कृष्ण चिंतित हो गए, वे जानते थे  कि यदि ऐसा हुआ तो यह युद्ध कभी समाप्त नहीं होगा।

दरअसल बर्बरीक के इस निर्णय के बारे में कौरव भी जानते थे, इसीलिए उन्होंने योजना बना रखी थी कि पहले दिन वे कम सेना के साथ युद्ध करेंगे और हारेंगे, अतः बर्बरीक उनकी ओर से लड़ेंगे और पांडवों की सेना को समाप्त कर देंगे। 

अतः ब्राह्मण वेश में श्री कृष्ण ने उनसे दान देने का वचन मांगा। बर्बरीक जी ने तुरंत वचन दे दिया। तब श्री कृष्ण ने रणचंडिका को भेंट करने के लिए दान में बर्बरीक से उनका शीश मांगा। वीर बर्बरीक उनकी बात सुनकर तनिक भी विचलित नहीं हुए।

उन्होंने उन ब्राह्मण देव से प्रार्थना की कि वे अपना शीश अवश्य देंगे परंतु इससे पूर्व उन्हें अपने वास्तविक रूप में आकर अपना परिचय देना होगा,  क्योंकि बर्बरीक जानते थे कि  ऐसा दान कोई साधारण व्यक्ति नहीं मांग सकता। 

श्री कृष्ण ने अपने वास्तविक रूप में बर्बरीक जी को दर्शन दिए, तब  बर्बरीक जी ने श्री कृष्ण से कहा कि महाभारत के पूरे युद्ध को स्वयं अपनी आँखों से देखने की मेरी इच्छा है। 

श्री कृष्ण ने उन्हें इस बात का वचन दिया। बर्बरीक ने अपनी तलवार से अपना शीश काटकर उन्हें समर्पित कर दिया। यह दिन फाल्गुन मास की द्वादशी का दिन था। श्री कृष्ण जी ने तब उन्हें वरदान दिया कि “तुम कलयुग में मेरे श्याम नाम से जाने जाओगे।”

मेरी समस्त शक्तियां तुम्हें प्राप्त होंगी। समस्त देवी-देवता तुम्हारे शीश को पूजेंगे। जब तक ब्रह्मांड में सूर्य, चन्द्र, पृथ्वी और नक्षत्र रहेंगे तुम भक्तों के द्वारा मेरे श्याम रूप में पूजनीय रहोगे। 

उसके बाद श्री कृष्ण जी ने वीर बर्बरीक के शीश को 14 देवियों से प्राप्त अमृत से अभिसिंचित कर अमर कर दिया और युद्धस्थल के निकट एक ऊंची पहाड़ी पर स्थापित कर दिया, जहां से वे सम्पूर्ण युद्ध के दृश्य को भली-भांति देख सकें।

तब बर्बरीक जी सम्पूर्ण महाभारत के युद्ध के साक्षी बने, और युद्ध समाप्त होने के बाद उन्होंने श्री कृष्ण जी से आशीर्वाद प्राप्त किया और अंतर्ध्यान हो गए। 

महाभारत का युद्ध समाप्त होने पर पांडवों को  इस बात पर घमंड हो गया,  कि वे बहुत बलशाली है और उन्होंने अपनी वीरता और पराक्रम से महाभारत का युद्ध जीता है।अतः इस बात पर गहन चर्चा होने लगी कि इस युद्ध में जीत का श्रेय किसे जाता है।

निर्णय न होने पर श्री कृष्ण ने कहा कि इस प्रश्न का उत्तर बर्बरीक बता सकते हैं, क्योंकि वे इस सम्पूर्ण युद्ध के साक्षी हैं। इस बात पर सभी सहमत होकर बर्बरीक जी के पास जाते हैं।

उन्होंने कहा इस युद्ध की विजय का सम्पूर्ण श्रेय श्री कृष्ण को जाता है, क्योंकि युद्ध में विजय के पीछे श्री कृष्ण की ही माया थी।

अर्थात् बर्बरीक को पूरे युद्ध क्षेत्र में केवल श्री कृष्ण का सुदर्शन चक्र ही घूमता दिखायी दे रहा था जो शत्रु सेना को मार-काट रहा था। इस प्रकार  बर्बरीक जी के शीश ने  पांडवों के अभिमान को  चकनाचूर कर दिया।

वीर बर्बरीक की बात सुनने के बाद उनके अप्रतिम बलिदान से प्रसन्न होकर श्री कृष्ण ने उन्हें वरदान दिया और कहा कि बर्बरीक का बलिदान अद्वितीय है, ऐसा बलिदान कोई दूसरा नहीं कर सकता। और आगे कहा कलयुग में वह श्री कृष्ण के श्याम नाम से जाने जाएंगे।

और क्योंकि उन्होंने अपना शीश दान किया है इसलिए वे शीश के दानी के नाम से भी जाने जाएंगे। मां को दिए वचन, कि हारने वाले का साथ दूंगा, के लिए हारे का सहारा के नाम से पूजे जाएंगे। और कलयुग में तुम्हारी भक्ति करने वाले की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होंगी। 

खाटू श्याम के रूप में प्रकट हुए बर्बरीक  –

जब पृथ्वी पर कलयुग बढ़ने लगा तब बर्बरीक चमत्कारी रूप से भगवान श्री कृष्ण के श्याम रूप में राजस्थान के खाटू नामक स्थान में प्रकट हुए। 

खाटू श्याम बाबा के चमत्कार – Khatu Shyam Baba Ke Chamatkar

राजस्थान के सीकर जिले में एक गाय गोधूलि के समय रास्ते में एक निश्चित स्थान पर खड़ी हो जाती और वहाँ अपने चारों थनों से दूध चढ़ाती। जब एक ग्वाले ने यह दृश्य देखा तो उसने खंडेला के राजा  को सारा वृत्तांत सुनाया। राजा यह वृत्तांत सुनकर बहुत प्रसन्न हुआ।

रात्रि में श्री श्याम ने राजा को स्वप्न में दर्शन देकर कहा मैं श्यामदेव हूं तुमने मेरे बारे में जो वृतांत सुना है वह सच है ठीक उसी स्थान पर जहां गाय के थन से दूध विसर्जित किया जाता है, मेरा शालिग्राम शिलारूप  विग्रह अवस्थित है।

तुम उस शिलारूप को  जमीन से खुदाई करके निकालो और संपूर्ण विधि विधान से उसकी स्थापना करवाओ। मेरे इस शिला रूप की  पूजा करने आने वाले भक्तों  की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी और उनका कल्याण होगा।

तब राजा ने खुदाई करवाकर उस शिलारूप  को विधि विधान के अनुसार प्रतिष्ठित कराया। 

राजा की पत्नी नर्मदा कंवर ने मुगल शासक औरंगजेब के अत्याचारों के समय जब पुराने मंदिर को  नष्ट कर दिया गया तब उस शिलारूप को सुरक्षित रखने के लिए झोपड़ी में रखा और उसकी सेवा की। 

पुराना मंदिर का विध्वंस होने के बाद श्री श्याम देव के शिलारूप  को  प्रतिष्ठित किया गया आज भी उसी स्थान पर यह स्थित है तथा देश-विदेश से श्याम प्रेमी उनके दर्शनों के लिए आते हैं। वर्तमान में  यहां नर्मदाकंवर  के वंशज चौहान राजपूत ही पुजारी हैं। 

क्या हुआ खाटू श्याम बाबा के पार्थिव शरीर का

खाटू श्याम बाबा द्वारा अपना शीश दान करने के बाद उनके पार्थिव शरीर का क्या हुआ ? ये प्रश्न एक पहेली की तरह है, और इसके बारे में अलग-अलग विद्वानों के अलग-अलग मत हैं। 

स्कंद पुराण,  जोकि वेदव्यास जी द्वारा रचित है, के  पहले खंड  महेश्वर खंड  के अंतर्गत कौमारी खंड में  खाटू श्याम बाबा की कथा का वर्णन है।

इस कथा के अनुसार बर्बरीक जी के शीश का अंतिम संस्कार  नहीं किया गया था परंतु भगवान कृष्ण ने उनके शरीर का अंतिम संस्कार विधि-विधान से करा दिया था।

और उनके शीश को अमृत द्वारा अभिसिंचित  करके उन्हें अमरत्व प्रदान किया और पूजनीय होने का वरदान दिया।

श्याम बाबा का शीश खाटू धाम पहुँचने की कहानी ?

अभी तक आप यह जान चुके हैं कि बर्बरीक जी के शीश  ने महाभारत के युद्ध  की समाप्ति के बाद पांडवों के अभिमान को तोड़ा।

उसके बाद उनके अमृत्व प्राप्त  शीश को निकट से बहने वाली रूपमती नामक नदी में, जो खाटू से होकर गुजरती थी,  प्रवाहित कर दिया गया।

उसी दौरान गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा जिन्हें अमरत्व प्राप्त था, वे युद्ध में  कौरवों के संपूर्ण वंश के समाप्त हो जाने के कारण अत्यधिक क्रोधित थे, उसी क्रोधवश  उन्होंने ब्रह्मास्त्र का संधान किया। 

प्रतिक्रिया स्वरूप  अर्जुन ने भी उनके विरुद्ध ब्रह्मास्त्र का संधान किया। श्री कृष्ण यह जानते थे यदि यह दोनों ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करते हैं  तो  संपूर्ण पृथ्वी का  विनाश निश्चित है।श्री कृष्ण ने दोनों को समझाने का प्रयास किया।

अर्जुन ने श्री कृष्ण की बात को मानते हुए  ब्रह्मास्त्र वापस ले लिया। जबकि अश्वत्थामा ब्रह्मास्त्र को वापस लेने की कला से परिचित नहीं थे।

ऐसा माना जाता है कि उस समय अश्वत्थामा ने अपने ब्रह्मास्त्र का संधान करते हुए उसे उसी स्थान पर छोड़ा जहां वर्तमान में राजस्थान क्षेत्र है।

ब्रह्मास्त्र की ऊष्मा से उस क्षेत्र के नदी, झरने  और स्रोत  सूख गए। नदी में बहता हुआ बर्बरीक जी का शीश  नदी का जल सूखने के कारण खाटू में ही रुक गया।

खाटू धाम में एक प्राकृतिक कुंड है जिसका नाम श्याम कुंड है, मान्यता है कि यहीं श्याम बाबा का शीश प्रकट हुआ था। नदी में प्रवाहित होते हुए  बर्बरीक जी का शीश रिंगस से होते हुए  खाटू पहुंचा था।

इसीलिए रिंगस से खाटू तक के क्षेत्र को  पवित्र भूमि की तरह माना जाता है और दूर-दूर से आने वाले खाटू भक्त, श्याम प्रेमी नंगे पैर ही रिंगस से निशान (श्याम ध्वज) लेकर खाटू धाम तक की यात्रा करते हैं।

Khatu Shyam Ji Ki Kahani In Hindi
Khatu Shyam Ji Ki Kahani In Hindi

खाटू श्याम कैसे पहुंचें ? – Khatu Shyam Mandir Kaise Jaye ?

खाटू श्याम बाबा का प्रसिद्ध मंदिर राजस्थान के सीकर जिले में खाटू नामक स्थान पर है।  खाटू श्याम बाबा और इस मंदिर की  मान्यता बहुत अधिक है लोग देश के कोने-कोने से बाबा के दर्शन के लिए यहां पहुंचते हैं।

यहां तक कि विदेशों से भी श्याम बाबा के भक्त उनके दर्शन के लिए खाटूश्याम  पहुंचते हैं। खाटू श्याम मंदिर पहुंचने के लिए सड़क,  रेल, और वायु मार्ग  तीनों मार्ग से पहुंचा जा सकता है।

Khatu Shyam Ji Ki Kahani In Hindi के इस लेख में आपको इसकी जानकारी हम यहाँ दे रहे हैं।

ट्रेन से खाटू श्याम कैसे पहुंचे ?

ट्रेन से खाटू धाम  पहुंचने के लिए  निकटतम रेलवे स्टेशन रिंगस है।  देश के सभी रेलवे स्टेशन से रिंगस रेलवे स्टेशन की कनेक्टिविटी नहीं है।

अतः  ट्रेन द्वारा रिंगस पहुंचने के लिए  आपको पहले जयपुर या सीकर  पहुंचना होगा,  यहां से रींगस के लिए कुछ लोकल ट्रेन उपलब्ध हैं। 

विमान से खाटू श्याम कैसे पहुंचे ?

यदि आप विमान द्वारा खाटू धाम पहुंचना चाहते हैं तो उसके लिए निकटतम अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा जयपुर है। जयपुर पहुंचने के बाद  कैब द्वारा आप सीधे खाटू श्याम पहुंच सकते हैं।

सड़क मार्ग से खाटू श्याम कैसे पहुंचे ?

सड़क मार्ग से खाटू धाम पहुंचने के लिए भी आपको सर्वप्रथम जयपुर पहुंचना होगा। खाटू श्याम की जयपुर से दूरी  लगभग 85 किलोमीटर है। 

जयपुर पहुंचने के बाद आप सिंधी कैंप बस स्टैंड से खाटू धाम के लिए बस से सफर कर सकते हैं।

यदि कोई अपने व्यक्तिगत वाहन से खाटू धाम पहुंचना चाहता है,  तो उसके लिए भी यही रूट है,  यहां तक पहुंचने के लिए गूगल मैप से नेविगेट करके आप यहां पर पहुंच सकते हैं।

आमतौर पर  रिंगस से खाटू धाम की लगभग 17 किलोमीटर की दूरी श्याम प्रेमी पैदल ही तय करते हैं फिर भी रिंगस से खाटू श्याम मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको प्राइवेट कैब और अन्य कई वाहन  आसानी से मिल जाते हैं।

खाटू श्याम के आसपास और क्या-क्या देखें –

खाटू धाम पहुंचने के बाद सर्वप्रथम श्याम प्रेमियों को श्याम बाबा के प्राचीन और वास्तविक मंदिर के दर्शन करने चाहिए मान्यता है कि इसी स्थान पर श्याम बाबा का शीश अवतरित हुआ था।

मंदिर के निकट ही श्याम वाटिका है और मंदिर से लगभग 1 किलोमीटर दूरी पर श्याम कुंड स्थित है। श्याम कुंड में स्नान करने का  बड़ा महत्व है ऐसी मान्यता है कि इस कुंड में स्नान करने से  समस्त व्याधियों और दोषों का नाश होता है। 

श्याम कुंड के ही निकट है हनुमान मंदिर और माता जी का मंदिर है भक्तों को यहां भी दर्शन अवश्य करने चाहिए। मंदिर के निकट ही एक बाजार भी है जहां से आप खरीदारी कर सकते हैं।

खाटू श्याम के निकट ही लगभग 25-30 किलोमीटर की दूरी पर जीण माता मंदिर स्थित है।  तथा यहां से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी तय करके सालासर बालाजी का मंदिर स्थित है। भक्तगण इन मंदिरों के दर्शन भी कर सकते हैं।

 खाटू श्याम पहुंचने पर कहां ठहरें ?

जब आप खाटू श्याम पहुंच जाते हैं  तो आपके मन में यह सवाल होता है कि आप खाटू श्याम में कहां ठहर सकते हैं ?  तो चलिए हम आपकी समस्या का समाधान कर देते हैं।  खाटू श्याम पहुंचने पर वहां ठहरने की  कोई भी समस्या नहीं है। 

यहां प्रत्येक व्यक्ति के लिए अलग-अलग बजट के हिसाब से बहुत सी धर्मशालाएं और होटल उपलब्ध हैं। खाटू श्याम में लगभग 300 धर्मशालाएं उपलब्ध है जिनमें सभी सुविधाएं आपको मिल जाती हैं।

प्रमुख धर्मशालाओं के नाम हैं-  श्री गढ़वाली धर्मशाला,  श्री श्याम मंडल रेवाड़ी धर्मशाला,  कानपुर धर्मशाला, श्री श्याम धर्मशाला,  श्री श्याम मित्र मंडल कोलकाता धर्मशाला आदि।

इसी के साथ खाटू श्याम में आधुनिक सुविधाओं से युक्त होटल भी मौजूद है जिनमें कुछ प्रमुख होटल हैं- होटल सांवरिया,  होटल श्याम सखी,  होटल लखदातार,  होटल मोरबी आदि। 

You May Also Like

खाटू श्याम जी के 11 प्रसिद्ध नाम – Khatu Shyam Ji Ke Naam

खाटू श्याम जी को कई अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है उनमें से कुछ प्रसिद्ध नाम हमारी पोस्ट Khatu Shyam Ji Ki Kahani In Hindi में नीचे सूची में दिए गए हैं।

  • बर्बरीक
  • तीन बाण धारी
  • मोरबी नंदन
  • श्री श्याम
  • शीश के दानी
  • हारे का सहारा
  • कलयुग के अवतारी
  • लीले का अश्वार
  • खाटू नरेश 
  • मोर छड़ीधारी
  • लखदातार 

श्री खाटू श्याम जी मंदिर की आरती : समय सारणी

आरती का नामशीतकालीन समयग्रीष्मकालीन समय
मंगला आरतीप्रातः 5:30 बजे प्रातः 4:30 बजे
शृंगार आरती प्रातः 8:00 बजेप्रातः 7:00 बजे
भोग आरती दोपहर 12:30 बजे दोपहर 12:30 बजे
संध्या आरती शाम 6:30 बजे शाम 7:30 बजे
शयन आरती रात्रि 9:00 बजे रात्रि 10:00 बजे

खाटू श्याम जी की आरती – Khatu Shyam Stuti Lyrics

श्याम प्रेमीजनों के लिए हमारे इस लेख  Khatu Shyam Ji Ki Kahani In Hindi में नीचे हम श्री श्याम बाबा की आरती khatu shyam stuti lyrics लिख रहे हैं।

ओम जय श्री श्याम हरे, 

बाबा जय श्री श्याम हरे। 

खाटू धाम विराजत, 

अनुपम रूप धरे।। 

ओम जय श्री श्याम हरे.. 

रत्न जड़ित सिंहासन, 

सिर पर चंवर ढुरे। 

तन केसरिया बागो, 

कुंडल श्रवण पड़े।। 

ओम जय श्री श्याम हरे.. 

गल पुष्पों की माला, 

सिर पर मुकुट धरे। 

खेवत धूप अग्नि पर, 

दीपक ज्योति जले।।

ओम जय श्री श्याम हरे.. 

मोदक, खीर, चूरमा, 

सुवरण थाल भरे।

सेवक भोग लगावत, 

सेवा नित्य करें।। 

ओम जय श्री श्याम हरे.. 

झांझ-कटोरा और घड़ियावल, 

शंख, मृदंग घुरे।

भक्त-आरती गावे, 

जय-जयकार करें।।

ओम जय श्री श्याम हरे.. 

जो ध्यावे फल पावे, 

सब दुख से उबरे।

सेवक जन निज मुख से, 

श्री श्याम-श्याम उचरे।।

ओम जय श्री श्याम हरे.. 

श्री श्याम बिहारी जी की आरती, 

जो कोई नर गावे।

कहत भक्तजन, 

मनवांछित फल पावे।।

ओम जय श्री श्याम हरे.. 

जय श्री श्याम हरे, 

बाबा जय श्री श्याम हरे।

निज भक्तों के तुमने, 

पूरण काज करें।। 

ओम जय श्री श्याम हरे.. 

ओम जय श्री श्याम हरे, 

बाबा जय श्री श्याम हरे।। 

खाटू धाम विराजत, 

अनुपम रूप धरे।। 

ओम जय श्री श्याम हरे.. 

हाथ जोड़ विनती करूं, 

तो सुनियो चित्त लगाए।। 

दास आगे आ गयो शरण में, 

राखियो इसकी लाज।। 

 ॐ जय श्री श्याम

FAQs 

प्रश्न- खाटू श्याम जी का जन्म कब और कहां हुआ?

उत्तर- कार्तिक शुक्ल पक्ष की देवउठनी एकादशी को खाटू श्याम जी का जन्म दिवस मनाया जाता है। स्कंद पुराण में इनका जन्म स्थान  हिडिंब वन वर्णित है।

प्रश्न- खाटू श्याम किसके पुत्र थे ? (Khatu Shyam Kaun The ?)

उत्तर- खाटू श्याम जी के पिता का नाम महाबली घटोत्कच था जो  पांडु पुत्र भीम के पुत्र थे।

प्रश्न- खाटू श्याम जी का असली नाम क्या है?

उत्तर- खाटू श्याम जी का वास्तविक नाम वीर बर्बरीक है। 

प्रश्न- बर्बरीक का धड़ कहाँ है?

उत्तर- स्कंद पुराण के अनुसार बर्बरीक जी के शेष शरीर का अंतिम संस्कार श्री कृष्ण द्वारा करा दिया गया था।

प्रश्न-खाटू श्याम जी का दिन कौन सा होता है? (Khatu Shyam Birthday Date)

उत्तर- खाटू श्याम जी का जन्मोत्सव कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि ( देवउठनी एकादशी) को होता है।

प्रश्न-खाटू श्याम जन्मोत्सव 2023 कब है ?

उत्तर- 2023 में खाटू श्याम जन्मोत्सव 23 नवंबर गुरुवार के दिन मनाया जाएगा। 

प्रश्न- खाटू श्याम किसका रूप हैं ? (Khatu Shyam Kiska Roop Hai ?)

उत्तर- खाटू श्याम भगवान श्री कृष्ण का श्याम रूप हैं ?

प्रश्न- खाटू श्याम मंदिर कहाँ पर स्थित है ? (Khatu Shyam Mandir Kaha Per Sthit Hai)

उत्तर- राजस्थान के सीकर जिले में खाटू नामक स्थान पर खाटू श्याम मंदिर स्थित है

हमारे शब्द – Our Words

दोस्तों ! आज के इस लेख क्यों हैं हारे का सहारा, शीश के दानी, खाटू श्याम बाबा  | Khatu Shyam Ji Ki Kahani In Hindi में हमने खाटू श्याम जी की वृहत जानकारी उपलब्ध कराई है, हमें पूर्ण आशा है कि आपको यह जानकारी अवश्य पसंद आयी होगी।

यदि आप में से किसी भी व्यक्ति को इस लेख से संबंधित कुछ जानकारी अथवा सवाल पूछना हो तो कमेंट बॉक्स में कमेंट करके हमसे पूछ सकते हैं। 

प्रिय पाठकों, आपको हमारे लेख तथा उनसे संबंधित विस्तृत जानकारी कैसी लगती है ? आपकी सराहना और समालोचना से ही हमारी लेखनी को बेहतर लेखन के लिए ऊर्जा रूपी स्याही मिलती है, अतः नीचे कमेंट बॉक्स में अपनी राय लिखकर हमारा मार्गदर्शन अवश्य करते रहे।

दोस्तों, जल्द मिलते हैं एक और नये, जानकारी से परिपूर्ण,  प्रेरणादायक, रोमांचक, जानदार और शानदार शाहकार के साथ।

लेख पूरा पढ़ने और हमारे साथ बने रहने के लिए आपका हृदय से धन्यवाद !

अंत में – हमारे आर्टिकल पढ़ते रहिए, हमारा उत्साह बढ़ाते रहिए, खुश रहिए और मस्त रहिए।

ज़िंदगी को अपनी शर्तों पर जियें । 

अस्वीकरण

इस लेख में प्रकाशित जानकारी विभिन्न स्रोतों (ऑनलाइन और ऑफलाइन) से ली गई हो सकती है अतः  इसकी सत्यता और विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है।

हमने यह जानकारी केवल सूचनात्मक उद्देश्यों  के लिए दी है, अतः उपयोगकर्ता को इसे केवल सूचना के रूप में लेना चाहिए। इसके अलावा इसके किसी भी प्रकार के इस्तेमाल की जिम्मेदारी खुद उपयोगकर्ता  की होगी।

लेख में व्यक्त कोई भी जानकारी, तथ्य या विचार sanjeevnihindi.com के नहीं हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सटीकता, पूर्णता, व्यावहारिकता या सत्यता के लिए sanjeevnihindi.com  जिम्मेदार नहीं है।

error: Content is protected !!