जानिए, कब, क्यों और कहाँ होता है नीम करौली बाबा का भंडारा

हमारा देश वैदिक काल से ही ऋषि-मुनियों, सिद्ध पुरुषों का देश रहा है। इस धरती ने ऐसे अनगिनत महापुरुषों को जन्म दिया है जिन्होंने पृथ्वी पर बिना किसी भेदभाव के मानवमात्र का कल्याण किया है। 

नीम करौली बाबा (नीब करौरी बाबा) बीसवीं शताब्दी के एक ऐसे ही महान सिद्ध संत थे जिन्होंने अपने जीवन काल में  बिना भेदभाव के देश-विदेश के अनगिनत लोगों का कल्याण किया।

कैंची धाम उत्तराखंड के नैनीताल जिले में भवाली-अल्मोड़ा/रानीखेत राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे पर स्थित है। यह नैनीताल से लगभग 22 किमी0 की दूरी पर है। 

24 मई 1962 को नीम करोली बाबा के पावन कदम यहां की भूमि पर पड़े थे। यहां आकर बाबा ने घास और जंगल के बीच घिरे चबूतरे और हवन कुंड को ढकने को कहा और यहीं कैंची धाम मंदिर की स्थापना की गई। 

15 जून 1964 को मंदिर में हनुमान जी की मूर्ति की प्रतिष्ठा की गई और तभी से 15 जून को प्रतिष्ठा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

और तभी से यहां स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में हर साल 15 जून को भव्य भंडारे का आयोजन किया जाता है। ये भंडारा 1965 से चल रहा है। 

उन्होंने देश के अनेक स्थानो का भ्रमण किया इसीलिए देश में उन्हें कई अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है जैसे- चमत्कारी बाबा, तलैया बाबा, लक्ष्मण दास तथा नीम करोली बाबा आदि।

कहा जाता है कि बाबा नीम करौली जी को हनुमान जी की उपासना के बाद अनेक चमत्कारिक सिद्धियां प्राप्त हुई थीं। उन्होंने लगभग 108 हनुमान मन्दिर बनवाए थे। लोग उन्हें हनुमान जी का अवतार भी मानते हैं।  

फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग, एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब्स और हॉलीवुड एक्ट्रेस जूलिया रॉबर्ट्स इनके ऐसे शिष्य थे जिन्हें इन्होंने जीवन की नई राह दिखाई। 

उनके आश्रम कैंची धाम (नैनीताल), वृंदावन, ऋषिकेश, शिमला, फर्रुखाबाद में खिमासेपुर के पास नीम करोली गांव, भूमिआधार, हनुमानगढ़ी, दिल्ली और न्यू मैक्सिको (USA) में हैं। 

1960 में जब एक लेखक ने बाबा पर पुस्तक लिखी तब बाबा को अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिली। बाबा ने अपनी समाधि के लिए वृंदावन की पावन भूमि को चुना था। 10 सितम्बर 1973 को बाबा ने समाधि ले ली। 

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