Mahadevi Verma Ka Jivan Parichay | महादेवी वर्मा का जीवन परिचय, रचनाएं, पुरस्कार व रोचक तथ्य

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 विस्तृत नभ का कोई कोनामेरा ना कभी अपना होना। 

 परिचय इतना, इतिहास यही, उमड़ी कल थी,  मिट आज चली।। 

-महादेवी वर्मा 

महादेवी वर्मा (Mahadevi Verma) हिंदी साहित्य में छायावादी युग के 4 प्रमुख स्तंभों (सुमित्रानंदन पंत, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और जयशंकर प्रसाद) में से एक मानी जाने वाली हिंदी भाषा की प्रख्यात कवयित्री हैं।

महादेवी वर्मा को आधुनिक युग में हिंदी के उत्कृष्ट कवियों में से एक होने के कारण उन्हें आधुनिक मीरा  के नाम से जानते हैं। 

महादेवी वर्मा ने आधुनिक युग की हिंदी कविताओं में खड़ी बोली का प्रयोग करके हिंदी भाषा को कोमलता और माधुर्य से सींचा और अपनी कविताओं के द्वारा मानवीय संवेदनाओं की सहज अभिव्यक्ति की।

हिंदी भाषा के बारे में उनका कहना था- 

‘‘हिन्दी भाषा के साथ हमारी अस्मिता जुड़ी हुई है। हिन्दी भाषा हमारी राष्ट्रीय एकता और हमारे देश की संस्कृति की संवाहिका है।’’ 

तो आइए दोस्तों, आज हम हिंदी भाषा की प्रख्यात एवं सर्वकालिक महान कवयित्री महादेवी वर्मा का जीवन परिचय, रचनाएं, पुरस्कार व रोचक तथ्य | Mahadevi Verma Ka Jivan Parichay के बारे में जानते हैं। 

Table of Contents

महादेवी वर्मा का जीवन परिचय हिंदी में – Mahadevi Verma Ka Jivan Parichay In Hindi

बिन्दु जानकारी
पूरा नाम (Full Name)महादेवी वर्मा (Mahadevi Verma)
उपाधि/उपनामहिन्दी के विशाल मंदिर की वीणापाणि, आधुनिक मीरा
मूल नाम महादेवी 
जन्म26 मार्च 1907
जन्म स्थानफ़र्रुख़ाबाद, उत्तर प्रदेश (संयुक्त प्रान्त आगरा व अवध, ब्रिटिश राज)
मृत्यु11 सितंबर 1987, इलाहाबाद, उ0 प्र0 
मृत्यु के समय आयु 80 वर्ष 
पिता का नामगोविंद प्रसाद वर्मा
माता का नामहेमरानी देवी
पति का नाम डॉ0 स्वरूप नारायण वर्मा 
कर्मभूमिइलाहाबाद
कार्यक्षेत्रलेखिका, अध्यापिका
प्रारंभिक शिक्षाइंदौर, मध्य प्रदेश 
उच्च शिक्षाएम0ए0 (संस्कृत) क्रास्थवेट कॉलेज, इलाहाबाद विश्वविद्यालय
व्यवसायकवयित्री, उपन्यासकार,लघुकथा लेखिका
पुरस्कार एवं उपलब्धियांमहिला विद्यापीठ की प्राचार्या  
पद्म भूषण पुरस्कार
पद्म विभूषण पुरस्कार
सक्सेरिया पुरस्कार
द्विवेदी पदक 
साहित्य अकादमी फ़ेलोशिप 
मंगला प्रसाद पुरस्कार
भारत भारती पुरस्कार
भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार
1952 में स्वतन्त्रता के बाद उत्तर प्रदेश विधान परिषद की सदस्या मनोनीत
प्रमुख रचनाएंनिहार
रश्मि 
नीरजा
सान्ध्यगीत
दीपशिखा
प्रमुख विषयरेखाचित्र,  निबंध, संस्मरण, गीत और कविताएं
भाषाहिंदी (खड़ी बोली)
नागरिकताभारतीय
विधागद्य  एवं काव्य
साहित्यिक काल छायावाद 
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Mahadevi Verma Ka Jivan Parichay
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महादेवी वर्मा का जीवन परिचय – Mahadevi Verma Ka Jivan Parichay

महादेवी वर्मा जी के परिवार में एक कन्या का जन्म कई पीढ़ियों के बाद हुआ था। कहा जाता है कि लगभग 200 वर्षों से उनके परिवार में कोई लड़की पैदा नहीं हुई थी।

माँ दुर्गा की पूजा-अर्चना के फलस्वरूप इनका जन्म हुआ। इन्होंने संस्कृत भाषा का अध्ययन किया था। ये सत्याग्रह आंदोलन के समय स्वरचित कविताएं सुनाया करती थीं।

जिसके लिए इन्हें अक्सर पुरस्कार मिला करते थे। एक काव्य प्रतियोगिता में इन्हें एक चांदी का कटोरा मिला था जो इन्होंने महात्मा गांधी जी को दे दिया था। 

महादेवी वर्मा का जन्म- Mahadevi Verma Birth

हिंदी भाषा की अनन्य कवयित्री  महादेवी वर्मा जी 26 मार्च 1907 को फर्रुखाबाद, उ0प्र0 में पैदा हुई थीं।  इनके पिता गोविंद प्रसाद वर्मा पेशे से एक वकील थे। उनकी माता हेमरानी देवी एक धार्मिक महिला थीं।

महादेवी जी के माता-पिता दोनों का ही शिक्षा से बहुत लगाव था। इनके पिता भागलपुर, बिहार के एक कॉलेज में अध्यापक थे।

इनकी माता  एक कर्तव्यनिष्ठ और धार्मिक घरेलू महिला थीं।  जबकि इनके पिता एक नास्तिक,  संगीत प्रेमी,  मांसाहारी  तथा घुमक्कड़ प्रवृत्ति के व्यक्ति थे।  

महादेवी वर्माजी के नाना  एक कवि थे, और वे ब्रज भाषा में काव्य रचना किया करते थे। उन्हीं की प्रेरणा से महादेवी वर्मा को काव्य रचना में रुचि पैदा हुई और वे भी  कविताएं लिखने  लगीं। 

इनकी माता को हिन्दी और संस्कृत भाषा का अच्छा ज्ञान था, उन्होंने इन्हें मीरा,सूरदास और तुलसीदास के साहित्य का अध्ययन कराया। अपने पारिवारिक माहौल के कारण वे बचपन से ही कविताएं लिखने लगीं थीं।

उनकी कविताएं वास्तव में तुकबंदी के रूप में होती थीं। वे अपनी माँ के द्वारा बनाए गए पदों में कुछ पंक्तियाँ जोड़कर तुकान्त बनाकर कविता बना दिया करती थीं। 

महादेवी वर्मा जी छायावाद रहस्यवाद के मुख्य कवियों में से एक प्रमुख कवयित्री  मानी जाती हैं। महादेवी वर्मा जी का व्यक्तित्व एक आदर्श भारतीय स्त्री की भांति उदार , करुणामय,  सात्विक,  गंभीर  और ममतामयी था। 

महादेवी वर्मा जी के लेखन कौशल, विलक्षण प्रतिभा तथा साहित्य में उनके योगदान को देखते हुए विभिन्न साहित्यकारों ने उन्हें ‘हिंदी के विशाल मंदिर की सरस्वती’, ‘साहित्य साम्राज्ञी’ और ‘शारदा की प्रतिमा’  जैसे विशेषण  प्रदान किए।

हिंदी भाषा के महान कवि सुमित्रानंदन पंत  और सूर्यकांत त्रिपाठी निराला को वे अपना भाई मानती थीं और उन्हें  राखी बांधती थीं। 

महादेवी वर्मा का शैक्षिक विवरण – Mahadevi Verma education 

इनकी आरंभिक शिक्षा इंदौर, मध्यप्रदेश के मिशन स्कूल में हुई। इन्होंने 1921 में आठवीं कक्षा में प्रदेश में प्रथम स्थान प्राप्त किया। प्रारंभिक शिक्षा के साथ-साथ उन्होंने चित्रकला और संगीत की शिक्षा भी ली।

छठी कक्षा के बाद मात्र 9 वर्ष की अल्पायु में उनका विवाह कर दिया गया। जिससे उनकी पढ़ाई बाधित हो गई। ससुराल पक्ष के लोग उनके आगे पढ़ाई के पक्ष में नहीं थे। 

उनके ससुर के देहांत के बाद उन्होंने फिर से पढ़ाई शुरू की। महादेवी वर्मा ने 1924 में एक बार फिर प्रथम श्रेणी में हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की और राज्य में पहला स्थान प्राप्त किया।

1926 में इन्होंने इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण की और ‘क्रॉस्थवेट कॉलेज’, इलाहाबाद से 1928 में स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण की।

महादेवी जी का कवि जीवन यहीं से प्रारंभ हुआ ये लगभग 7 वर्ष की उम्र से ही कविताएं लिखने लगी थीं। इसीलिए मैट्रिक पास करने के समय तक वह एक कवयित्री के रूप में प्रसिद्ध हो गई थीं। कॉलेज में सुभद्रा कुमारी चौहान के साथ इनकी गहरी मित्रता थी। 

इन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से 1932 में संस्कृत विषय में MA  की परीक्षा उत्तीर्ण की। परास्नातक  की परीक्षा उत्तीर्ण करने के समय तक महादेवी वर्मा के ‘निहार’ और ‘रश्मि’ दो काव्य संकलन  प्रकाशित होकर चर्चित हो चुके थे। 

महादेवी वर्मा जी में बचपन से ही काफी प्रतिभा थी इसी कारण उनके विद्यार्थी जीवन के दौरान ही उनकी स्वरचित कविताएं  देश के प्रसिद्ध समाचार पत्रों व पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगी थीं।   

महादेवी वर्मा का वैवाहिक जीवन – Mahadevi Verma Married Life

भारतीय समाज में उस दौरान बाल विवाह जैसी प्रथा होने के कारण, महादेवी वर्मा जी का विवाह  लगभग 9 वर्ष की  छोटी अवस्था में हो गया था।

इनका विवाह बरेली के निकट नवाबगंज निवासी डॉ0 स्वरूप नारायण वर्मा के साथ 1916 में हुआ था। इनके पति  उस समय कक्षा 10 के छात्र थे। 

शादी के बाद महादेवी वर्मा क्रास्थवेट कॉलेज इलाहाबाद के छात्रावास में थीं,  क्योंकि उस दौरान उनके पति लखनऊ मेडिकल कॉलेज में बोर्डिंग हाउस में रहकर अपनी पढ़ाई पूरी कर रहे थे।

इनके पति इनसे मिलने इलाहाबाद आते रहते थे। महादेवी वर्मा जी का मन सांसारिकता में नहीं लगता था, वे बौद्ध धर्म से  बहुत प्रभावित थीं अतः बौद्ध भिक्षुणी  बनना चाहती थीं।

इसीलिए विवाह के बाद भी उन्होंने अपनी पढ़ाई को नहीं छोड़ा। उन्होंने हमेशा एक सन्यासिनी का जीवन जिया।

पूरा जीवन श्वेत वस्त्र धारण किए, तख्त पर सोईं और कभी आईना नहीं देखा। महादेवी वर्मा के पति की मृत्यु 1966 में हो गई, पति की मृत्यु के बाद वे इलाहाबाद में ही रहने लगीं। 

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महादेवी वर्मा का कार्य क्षेत्र – 

अध्यापन, लेखन व सम्पादन महादेवी वर्मा जी का प्रमुख कार्य क्षेत्र रहा है। महादेवी वर्मा ने वर्तमान प्रयागराज में प्रयाग महिला विद्यापीठ के नाम से एक विद्यापीठ की स्थापना और विकास में अदम्य योगदान दिया उनका यह कार्य  उस दौर में महिलाओं की शिक्षा के क्षेत्र में वास्तव में एक क्रांतिकारी प्रयास था।

महादेवी वर्मा जी प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्या और कुलपति भी रहीं। 1923 में  उन्होंने महिलाओं के लिए  प्रकाशित की जाने वाली ‘चांद’ नामक प्रमुख पत्रिका का कार्यभार भी संभाला।

महादेवी वर्मा जी की प्रमुख   गद्य और काव्य  रचनाओं की कुल  संख्या 18 है। महादेवी वर्मा जी ने गद्य, काव्य रचनाओं के अतिरिक्त शिक्षा और चित्रकला के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।

1955 में उन्होंने साहित्यकार संसद की स्थापना इलाहाबाद में की, और उसके संपादन का कार्य भी किया।

महादेवी जी ने देश में पहली बार अखिल भारतीय महिला कवि सम्मेलनों की शुरुआत की और और ऐसा पहला महिला कवि सम्मेलन प्रयाग महिला विद्यापीठ में 15 अप्रैल 1933 को आयोजित कराया जिसकी अध्यक्षता सुभद्रा कुमारी चौहान ने की। 

महादेवी वर्मा जी ने भारतीय हिन्दी साहित्य में रहस्यवाद को जन्म दिया। वे बौद्ध धर्म और महात्मा गांधी जी से बहुत प्रभावित थीं। अतः उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी प्रतिभागिता की।

उन्होंने नैनीताल के समीप उमागढ़ नामक गाँव में 1936 में एक घर बनवाया जिसका नाम उन्होंने मीरा मंदिर रखा, और वहाँ रहकर गाँव के लोगों व महिलाओं की शिक्षा, आर्थिक आत्मनिर्भरता और विकास के लिए बहुत काम किया। 

महादेवी वर्मा का साहित्यिक परिचय- Mahadevi Verma Ka Sahityik Parichay

हिन्दी के विशाल मंदिर की वीणापाणि महादेवी वर्मा जी किसी परिचय की मोहताज नहीं। वे भारतीय हिन्दी साहित्य के आकाश पर चमकते सितारे के समान हैं। उनकी गद्य  और काव्य रचनाएं अपनेआप में उनका परिचय हैं। 

साहित्यिक परिचय में हम उनके साहित्य को गद्य, काव्य, निबंध, संस्मरण, रेखाचित्र, भाषण, ललित निबंध और कहानियों के माध्यम से जानेंगे। 

महादेवी वर्मा की रचनाएँ  – (Mahadevi Verma Ki Rachnaen)

कविता संग्रह –

काव्य साहित्य 
नाम वर्ष 
नीहार1930 
रश्मि 1932 
नीरजा 1934 
सांध्यगीत 1936 
दीपशिखा 1942 
सप्तपर्णा 1959 
प्रथम आयाम 1974 
अग्निरेखा 1990 
सन्धिनी1965 
यामा 1936 
गद्य साहित्य
संस्मरण
नाम वर्ष 
पथ के साथी1956 
मेरा परिवार1972 
स्मृति चित्रण1973
संस्मरण1983 
रेखाचित्र 
अतीत के चलचित्र1941 
स्मृति की रेखाएं 1943 
संस्मरण, निबंध एवं भाषण संग्रह
श्रृंखला की कड़ियां1942
हिमालय 1963 
संभाषण नामक भाषण संग्रह1974
विवेचनात्मक गद्य1942 
 साहित्यकार की आस्था 1962 
संकल्पिता 1969 
कहानियाँ
गिल्लू 1972 
ललित निबंध
क्षणदा 1956 
  बाल साहित्य 
 आज खरीदेंगे हम ज्वाला 
ठाकुर जी भोले हैं 
 पुनर्मुद्रित  संकलन
नाम वर्ष 
यामा1940 
दीपगीत1983 
नीलाम्बरा 1983 
आत्मिका 1983 
गीतपर्व 
स्मारिका 
परिक्रमा 
आधुनिक कवि महादेवी

महादेवी वर्मा की साहित्यिक विशेषताएं – Mahadevi Verma Ki Sahityik Visheshtaen

महादेवी वर्मा जी ने हिन्दी साहित्य में काव्य के साथ-साथ गद्य का भी बहुत योगदान दिया है। वे एक लेखिका और कवयित्री के साथ समाज सेविका भी रही हैं।

उनकी काव्य रचनाएं जहां आत्मकेंद्रित रही हैं वहीं उनका गद्य साहित्य समाज पर केंद्रित है। उनके गद्य साहित्य की मुख्य विशेषताएं यहाँ दी गई हैं। 

समाज सुधार की उत्कंठा –

महादेवी जी लेखिका के साथ-साथ एक समाज सुधारक भी थीं।  उनकी यह भावना उनकी रचनाओं में स्पष्ट दिखाई देती है।

महादेवी जी पर गौतम बुद्ध, महात्मा गांधी और स्वामी विवेकानंद जैसे महान लोगों का बहुत प्रभाव था, अतः वह समाज सेवा के पथ पर अग्रसर थीं। 

महादेवी जी के साहित्य में सामाजिक विसंगतियों, कुरीतियों और बुराइयों  के प्रति उन्मूलन की उनकी भावना को सहज ही  देखा जा सकता है।

इसके साथ ही उन्होंने नारी सशक्तिकरण, स्त्री शिक्षा,  बाल विवाह और नारी शोषण जैसी बुराइयों का मुखर होकर विरोध किया। 

पशु-पक्षी प्रेम-भावना –

मानव मात्र के अतिरिक्त महादेवी वर्मा पशु-पक्षियों से भी बहुत प्रेम करती थीं। बिल्ली, कुत्ता, नेवला, गिलहरी और गाय  जैसे जानवरों को उन्होंने अपने घर में पाला हुआ था। उनकी कहानी  गिल्लू में भी जीवों के प्रति उनका प्रेम और वात्सल्य दृष्टिगोचर होता है।

समाज के सबसे निचले वर्ग के लिए सहानुभूति-

महादेवी वर्मा एक लेखिका होने के साथ-साथ कोमल ह्रदय महिला भी थीं। उनकी रचनाओं में समाज के सबसे निचले तबके के लिए सहानुभूति और प्रेम को महसूस किया जा सकता है।

उनके द्वारा लिखित गद्य साहित्य में  कई स्थानों पर समाज के पिछड़े वर्गों के लिए उनका मर्म  देखने को मिलता है।

समाज में उच्च वर्ग के द्वारा उपेक्षित और तिरस्कारित  वर्ग के प्रति वे संवेदनशील थी। इसी कारण  उनके लेखों में उनके नायक  या पात्र निम्न वर्ग से संबंध रखने वाले ही होते थे।

वास्तविक समाज का चित्रण –

वास्तविक समाज का चित्रण महादेवी जी के गद्य  साहित्य में जगह जगह देखने को मिल जाता है। उन्होंने अपनी गद्य साहित्य में समाज में फैली गरीबी,  सुख दुख और मानवीय शोषण  का बहुत  सुंदर वर्णन किया है।

महादेवी वर्मा जी के  संस्मरण और रेखाचित्रों में  सामाजिक कुरीतियां, भेदभाव और जाति-पाति का वर्णन देखने को मिलता है। 

Mahadevi Verma Ka Jivan Parichay
Mahadevi Verma Ka Jivan Parichay

महादेवी वर्मा की भाषा शैली – Mahadevi Verma Ki Bhasha Shaili

महादेवी वर्मा की भाषा शैली बहुत व्यापक है। उन्होंने अपने गीतों में सरल और स्निग्ध  तत्सम शब्दों की प्रधानता वाली खड़ी बोली का व्यापक प्रयोग किया है।

उस भाषा में उर्दू, फ़ारसी और अंग्रेजी के शब्दों का अच्छा समावेश किया है। उनकी कृतियों में रूपक, श्लेस और उपमा अलंकारों  का प्रयोग देखने को मिलता है। 

महादेवी जी ने अपनी रचनाओं में भावात्मक शैली का भी प्रयोग किया है। क्योंकि महादेवी वर्मा ने संस्कृत भाषा का अध्ययन किया था इसलिए उनकी रचनाओं में संस्कृत भाषा के शब्दों का प्रयोग भी देखने को मिलता है। 

महादेवी वर्मा की रचनाओं में उनकी भाषा शुद्ध साहित्य खड़ी बोली है। महादेवी जी के संस्मरण , रेखाचित्रों और निबंधों में सहज, और सरल भाषा का प्रयोग किया गया है।

जबकि मार्मिकता इनके गद्य साहित्य की मुख्य विशेषता है। गद्य में लोकोक्ति और मुहावरों का प्रयोग महादेवी जी के गद्य साहित्य को और रोचक बनाता है। 

छायावादी युग का महत्वपूर्ण स्तंभ थीं  महादेवी वर्मा-

भारतीय हिंदी साहित्य में महादेवी वर्मा का लेखन  एक क्रांति की तरह था।  उन्होंने अपनी हिंदी कविताओं में ब्रजभाषा की कोमलता को प्रदर्शित किया है।

उन्होंने अपनी रचनाओं के द्वारा दर्शन,  भाषा और साहित्य तीनों क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। छायावादी कविताओं की  सफलता में महादेवी वर्मा का महत्वपूर्ण योगदान माना जा सकता है।

कहा जा सकता है कि प्रसाद जी ने छायावादी कविताओं का  प्रकृतिकरण किया,  निराला जी ने उन कविताओं में मुक्ति को  मूर्त रूप दिया और पंत जी ने छायावाद को  नाजुकता  प्रदान की  तो महादेवी वर्मा ने  छायावादी कविताओं को जीवन्त रूप दिया।

इसी कारण महादेवी वर्मा भारतीय साहित्य के इतिहास में छायावादी युग के एक महत्वपूर्ण स्तंभ के रूप में प्रसिद्ध है। 

महादेवी वर्मा “आधुनिक मीरा”- Mahadevi Verma “Adhunik Meera”

महादेवी वर्मा का जन्म संयोगवश होली के दिन हुआ था। कदाचित  यह उनके जीवन की नियति थी  या होलिका दहन पर जन्म लेने का असर, कि  वह  जीवन भर वेदना की अग्नि में जलती रहीं। उन्होंने पूरा जीवन हिंदी साहित्य की सेवा की।

उनकी काव्य रचनाओं में छिपी विरह वेदना को सहज ही महसूस किया जा सकता है।अपनी रचनाओं में गहन भावनात्मक भावों  की अभिव्यक्ति  के कारण ही  उन्हें आधुनिक युग की मीरा कहा गया है।

महादेवी वर्मा का साहित्य में स्थान/योगदान –

भारतीय हिंदी साहित्य में द्विवेदी युग के बाद  में हुई  काव्य रचनाओं का समय छायावाद के नाम से जाना जाता है। महान कवयित्री महादेवी वर्मा उसी छायावादी युग की प्रमुख कवयित्री मानी जाती हैं। 

अपनी रचनाओं में उन्होंने भावुकता को प्रमुख स्थान दिया, मानव हृदय की सूक्ष्म अभिव्यक्तियों को उन्होंने  अपनी रचनाओं में जीवंत किया है। 

अपने इसी लेखन कौशल के कारण छायावादी कवियों में उन्हें प्रमुख स्थान प्राप्त है। हिंदी में उनके भाषणों के लिए आज भी उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है।  

अपनी प्रमुख रचनाओं के अतिरिक्त उनका अनुवाद ‘सप्तपर्णा’ (1980) से यह सिद्ध होता है कि महादेवी जी एक प्रवीण अनुवादक भी थीं। 

भारतीय हिंदी साहित्य में महादेवी वर्मा जी का अपना एक विशिष्ट स्थान है। उन्होंने  हिंदी भाषा की दोनों विधाओं गद्य एवं पद्य में रचना करके हिंदी भाषा की अभूतपूर्व सेवा की है।

महादेवी वर्मा ने अपनी रचनाओं में खड़ी बोली का प्रयोग किया है उनके दौर में खड़ी बोली का प्रयोग धीरे-धीरे परिष्कृत हो रहा था। उन्होंने अपनी हिंदी कविताओं में ब्रज भाषा का प्रयोग किया।

महादेवी जी ने अपनी कविताओं में भारतीय नारी की सरलता और उनके हृदय की कोमलता का चित्रण बहुत ही प्रभाव पूर्ण तरीके से किया है।

एकाकीपन की झलक भी इनकी कविताओं में देखने को मिल सकती है। महादेवी वर्मा जी ने अपनी रचनाओं में न सिर्फ  काव्य बल्कि गद्य लेखन  को भी उतनी ही खूबसूरती से लिखा है।

महादेवी वर्मा जी का लेखन प्रत्येक विधा में  प्रशंसनीय है,  उन्होंने अपने लेखन से हिंदी साहित्य की खूब सेवा की है,  इसीलिए हिंदी साहित्य के रहस्यवादी कवियों में महादेवी वर्मा जी का स्थान अग्रणी है।

पुरस्कार एवं सम्मान – Awards And Honours

सक्सेरिया पुरस्कार (नीरजा के लिए)1934 
द्विवेदी पदक (स्मृति की रेखाएँ के लिए)1942 
मंगलाप्रसाद पारितोषिक 1943 
भारत भारती पुरस्कार 1943 
उत्तर प्रदेश विधान परिषद सदस्य (मनोनीत)1952 
साहित्य अकादमी फेलोशिप1971
ज्ञानपीठ पुरस्कार (यामा के लिए)27 अप्रैल 1982
पद्मभूषण पुरस्कार 1956
पद्मविभूषण पुरस्कार (मरणोपरांत)1988 
डी0 लिट की उपाधि विक्रम विश्वविद्यालय -1969 
कुमाऊं विश्वविद्यालय, नैनीताल – 1977
दिल्ली विश्वविद्यालय –  1980
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी  – 1984  

महिला सशक्तिकरण की सशक्त मिसाल थीं महादेवी वर्मा –

महादेवी वर्मा एक लेखिका, कवयित्री के साथ-साथ एक समाज सुधारक और महिला कार्यकर्ती भी थीं। इसका उदाहरण महादेवी जी की रचना “शृंखला की कड़ियाँ” है।

इस रचना में उन्होंने भारतीय समाज में स्त्री की दयनीय दशा, उसके कारण और संभावित उपायों के बारे में अपने अमूल्य विचार प्रस्तुत किए हैं। 

भारतीय नारी को वे पुरुष की संगिनी मानती थीं छाया नहीं। उनका मानना था कि भारतीय नारी भारत माता की प्रतीक है। उस नारी को मुक्त करने में ही उसकी मुक्ती है। 

1931 मे लिखे उनके लेख “हमारी शृंखला की कड़ियाँ” में उन्होंने पति-पत्नी के संबंधों को बहुत खूबसूरती से उजागर किया है। साथ ही उन्होंने कुछ सवाल भी उठाये हैं।

पतिव्रता और पवित्र होने के बावजूद  नारी को परित्यक्ता क्यों बनना पड़ता है ?  ऐसे नारीत्व  को महादेवी जी एक अभिशाप मानती हैं।

“भारतीय संस्कृति और नारी”  नाम के अपने निबंध में महादेवी जी ने  हमारे देश की प्राचीन संस्कृति के अनुसार  समाज में नारी के महत्व और उसके स्थान पर बात की है।

महादेवी जी आधुनिक समय में समाज में स्त्री के पुरुष के समान अधिकारों पर जोर देती हैं। अपने इन विचारों  का उल्लेख उन्होंने  1934 में लिखित अपने लेख, “ आधुनिक नारी- उसकी स्थिति पर एक दृष्टि”,  में  किया है।

महादेवी वर्मा जी ने पूरा जीवन अपनी कलम की  सजगता और निडरता के साथ भारतीय नारी के पक्ष में संघर्ष करते हुए व्यतीत किया। उन्होंने नारी शिक्षा की आवश्यकता पर बल दिया और खुद भी नारी शिक्षा के क्षेत्र में कार्य किया।

उन्होंने महात्मा गांधी से प्रेरित होकर प्रयाग महिला विद्यापीठ की स्थापना की और वहां के अशिक्षित लोगों में शिक्षा की रोशनी को प्रज्वलित किया। 

अपनी अधिकांश रचनाओं में उन्होंने स्त्री के समान अधिकार, स्त्री-शिक्षा  और महिला सशक्तिकरण  पर जोर दिया,  और स्वयं भी नारी सशक्तिकरण की मिसाल बन गईं। 

महादेवी वर्मा से जुड़े 15 रोचक तथ्य – Mahadevi Verma 15 Interesting Facts

  • महादेवी वर्मा अपने परिवार में पाँच से अधिक पीढियों या लगभग 200 साल बाद कन्या रुप में जन्मीं थीं।
  • महादेवी वर्मा व सुभद्रा कुमारी चौहान शांति निकेतन में एक साथ रहती थीं। वैसे सुभद्रा कुमारी चौहान महादेवी जी से दो क्लास सीनियर थीं।
  • हालांकि महादेवी वर्मा विवाहित थीं, इनका बाल विवाह हुआ था, परंतु उन्होंने अपना जीवन एक अविवाहिता की तरह ही  व्यतीत किया।
  •  महादेवी वर्मा पशु-पक्षियों से बहुत प्रेम करती थीं। पशुओं में वह गाय को सर्वाधिक स्नेह करती थीं।
  •  इन्होंने आठवीं कक्षा में राज्य स्तर पर प्रथम स्थान प्राप्त किया था।
  •  हालांकि इनके पिताजी एक मांसाहारी व्यक्ति थे परंतु इनकी माताजी एक शाकाहारी महिला थीं। 
  • साहित्य के साथ ही संगीत में भी इनकी रूचि थी। इसके अलावा इन्होंने चित्रकारी में भी खुद को आजमाया।
  • महादेवी वर्मा अपने जीवन काल में महिला विद्यापीठ इलाहाबाद की कुलपति तथा प्रधानाचार्य के पद पर भी आसीन रहीं। 
  • महादेवी वर्मा जी ने 1971 में भारतीय साहित्य अकादमी की सदस्यता ग्रहण की। यह सदस्यता प्राप्त करने वाली वे प्रथम महिला थीं।
  • भारतीय डाक एवं तार विभाग ने 16 सितंबर 1991 को महादेवी वर्मा जी एवं जयशंकर प्रसाद के सम्मान में ₹2 मूल्य का एक युगल डाक टिकट जारी किया था। 
  • प्रसिद्ध भारतीय फ़िल्मकार मृणाल सेन ने 1968 में महादेवी जी के संस्मरण ‘वह चीनी भाई’ पर आधारित एक बांग्ला भाषा फ़िल्म बनाई इस फिल्म का नाम नील आकाशेर था।
  • महादेवी वर्मा ने  “मेरे बचपन के दिन” कविता में लिखा कि उस दौर में जब बेटियाँ बोझ मानी जाती थीं, यह उनका सौभाग्य था कि उनका जन्म एक स्वतंत्र विचारों वाले परिवार में हुआ था। 
  • महादेवी वर्मा बौद्ध धर्म से बहुत प्रभावित थीं, महात्मा गांधी का भी उन पर बहुत प्रभाव था, उन्हीं के प्रभाव के कारण वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से भी जुड़ी रहीं। 
  • मैथिलीशरण गुप्त और सूर्यकांत त्रिपाठी निराला को महादेवी वर्मा जी अपने सगे भाई की तरह  मानती थीं, निराला जी को वे हमेशा राखी बाँधती थी।
  • महादेवी वर्मा ने 1955 में इलाहाबाद में साहित्यकार संसद की स्थापना की थी।  भारत में महिला कवि सम्मेलन शुरू करने का श्रेय भी उन्हीं को जाता है।  उन्होंने सुभद्रा कुमारी चौहान की अध्यक्षता में 15 अप्रैल 1933 को प्रयाग महिला विद्यापीठ में देश का पहला अखिल भारतीय कवि सम्मेलन संपन्न कराया।

महादेवी वर्मा पर बनाया गया ‘गूगल डूडल’ – Google Doodle on Mahadevi Verma

सर्च इंजन गूगल अपने मुख-पृष्ठ पर महान शख्सियतों के जन्मदिन या पुण्य-तिथि पर उन्हें बधाई या श्रद्धांजलि देने के लिए डूडल बनाता है। गूगल ने 27 अप्रैल 2018 को गूगल सर्च इंजन के मुखपृष्ठ पर इन्हें स्थान दिया।

गूगल ने महादेवी वर्मा का एक डूडल बनाया, हालांकि यह डूडल  उनके जन्मदिन या पुण्यतिथि पर नहीं था बल्कि इसको बनाने की वजह कुछ और ही थी।

दरअसल महादेवी वर्मा जी को  हिंदी साहित्य में योगदान के लिए  27 अप्रैल 1982 को ही ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

यह गूगल डूडल भारतीय कलाकार सोनाली जोहरा के द्वारा बनाया गया था। इस डूडल में महादेवी वर्मा जी को हाथ में डायरी और पेन लिए विचारमग्न  मुद्रा में दिखाया गया था। 

मृत्यु – Death

महादेवी वर्मा जी के जीवन का अधिकांश समय इलाहाबाद में ही व्यतीत हुआ, यह नगर  उनकी कर्मभूमि की तरह रहा। और इसी नगर में 11 सितंबर 1987 को रात्री 9:30 पर उन्होंने अंतिम सांस ली। 

निष्कर्ष – Conclusion

महादेवी वर्मा ने अपनी कुशल और निडर लेखनी के माध्यम से हमेशा नारी के उत्थान के लिए  संघर्ष किया। इसके साथ ही उन्होंने समाज के निर्बल, गरीब और  दलित लोगों के प्रति अपने दया भाव को प्रदर्शित करते हुए, उनके लिए भी कार्य किए।

उस काल में तथा उसके बाद भी  बहुत से  कवि,  लेखक और साहित्यकार उनके व्यक्तित्व से प्रभावित रहे। भारतीय हिंदी साहित्य के लिए महादेवी वर्मा जी का अविस्मरणीय योगदान  चिरकाल तक याद किया जाता रहेगा। 

भले ही वह आज इस दुनिया में हमारे बीच नहीं है परंतु उनके विचार तथा समाज के लिए किए गए कार्य उनकी रचनाओं में अमर हैं। 

FAQs.

प्रश्न –  महादेवी वर्मा का जन्म कब और कहां हुआ था?

उत्तर –  महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च 1907 को फ़र्रुख़ाबाद, (संयुक्त प्रान्त आगरा व अवध, ब्रिटिश राज) में हुआ था। 

प्रश्न – महादेवी वर्मा के पिता का नाम क्या था ?

उत्तर –  महादेवी वर्मा के पिता का नाम श्री गोविंद प्रसाद वर्मा था। 

प्रश्न – महादेवी वर्मा का मूल नाम क्या था ?

उत्तर – महादेवी वर्मा का मूल नाम महादेवी था जो उनके दादा ने उन्हे दिया था। 

प्रश्न – महादेवी वर्मा की पहली रचना कौन सी है?

उत्तर – महादेवी वर्मा का पहला गीत काव्य संग्रह ‘निहार’ है।

प्रश्न –महादेवी वर्मा की प्रमुख रचनाएं कौन सी है?

उत्तर – महादेवी वर्मा के 8 प्रमुख कविता संग्रह प्रकाशित हुए हैं – निहार (1930), रश्मि (1932), सांध्यगीत (1936), दीपशिखा (1942), सप्तपर्णा को अनूदित है (1959), प्रथम आयाम (1974), अग्निरेखा (1990) 

प्रश्न – महादेवी वर्मा की भाषा शैली कौन सी थी?

उत्तर – महादेवी वर्मा की शैली छायावादी,  अलंकारिक,  चित्रात्मक, प्रतीकात्मक, भावतरल, रहस्यात्मक  और वैयक्तिक है।  उनकी भाषा  शुद्ध, साहित्यिक  खड़ी बोली है,  उनकी इस भाषा में संस्कृत भाषा के क्लिष्ट  तत्सम शब्द और सरल शब्दों का मिश्रण है।

प्रश्न – महादेवी वर्मा को क्या कहा जाता था?

उत्तर – महादेवी वर्मा को आधुनिक युग की मीरा कहा जाता है। 

प्रश्न – महादेवी वर्मा का निबंध कौन सा है?

उत्तर – निबंध के क्षेत्र में महादेवी वर्मा द्वारा लिखित निम्न पुस्तकों की चर्चा की जा सकती है- श्रृंखला की कड़ियाँ, क्षणदा, साहित्यकार की आस्था और संकल्पिता 

प्रश्न – महादेवी वर्मा की मृत्यु कब हुई

उत्तर – महादेवी वर्मा की मृत्यु 11 सितंबर 1987 को  इलाहाबाद, उ0 प्र0  में हुई। 

प्रश्न – महादेवी वर्मा का गीत संग्रह कौन सा है?

उत्तर – “निहार”  महादेवी वर्मा का सर्वप्रथम प्रकाशित काव्य संग्रह है, यह संकलन  भावपूर्ण गीतों का संग्रह है।

प्रश्न – परिक्रमा निबंध किसका है?

उत्तर –  वास्तव में परिक्रमा महादेवी वर्मा जी की चुनिंदा कविताओं का एक संग्रह है।

हमारे शब्द – Our Words

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