लोहड़ी क्यों मनाई जाती है | Lohri Essay in Hindi, 2023 | इतिहास, महत्व, निबंध

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हमारा देश त्योहारों की दृष्टि से समृद्ध देश है। यहां हर धर्म के खूबसूरत त्योहारों को सभी लोग मिलजुल कर बड़े हर्षोल्लास से मनाते हैं। हमारे देश में अगर कैलेंडर वर्ष के हिसाब से त्योहारों की बात करें तो वर्ष में सबसे पहले लोहड़ी का त्योहार ( Lohri Festival ) मनाया जाता है।

सर्वविदित है कि लोहड़ी का त्योहार मकर संक्रांति ( Makar Sankranti ) से एक दिन पहले अर्थात 13 जनवरी को मनाया जाता है। लोहड़ी फसल की बुआई और उसकी कटाई से जुड़ा त्योहार माना जाता है।

हम सभी जानते हैं कि प्रत्येक त्योहार को मनाने का कोई विशेष कारण या ऐतिहासिक महत्व अवश्य होता है। इसी प्रकार लोहड़ी को मनाने का कारण और अपना महत्व है।

लोहड़ी पर निबंध (Essay on Lohri in Hindi) लिखने के लिए छात्र छात्राओं को इन सभी बिंदुओं के बारे में पूर्ण जानकारी होना बहुत जरूरी है।

जिससे कि वह निबंध प्रतियोगिताओं में भाग लेते हुए अच्छा निबंध लिखकर स्थान प्राप्त कर सकें। अतः इस लेख में नीचे लिखे गए लोहड़ी पर हिंदी में निबंध (Lohri Festival Essay in Hindi) को अंत तक सावधानीपूर्वक पढ़ें।

लोहड़ी का क्या महत्व है ?, लोहड़ी क्यों मनाई जाती है ?, लोहड़ी कैसे मनाते हैं ?, लोहड़ी का इतिहास, दुल्ला भट्टी की कहानी, लोहड़ी 2023 में कब है ?, हैप्पी लोहड़ी विशेज, लोहड़ी पर निबंध in hindi आदि के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए आप हमारे इस निबंध लोहड़ी क्यों मनाई जाती है | Lohri Essay in Hindi, 2023 | इतिहास, महत्व, निबंध को अंत तक पूरा अवश्य पढ़े।

Table of Contents

लोहड़ी क्यों मनाई जाती है | Lohri Essay in Hindi, 2023 | इतिहास, महत्व, निबंध

बिंदु     जानकारी
त्यौहार का नाम लोहड़ी
प्राचीन नाम   तिलोड़ी
त्यौहार मनाने की तिथिपौष मास की अंतिम रात्रि, मकर संक्रांति की पूर्व संध्या
वर्ष    2023
पर्व को मनाने वाले लोगप्रमुख रूप से सिक्ख
हर साल मनाने की तारीख 13 जनवरी
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प्रस्तावना – Introduction

लोहड़ी (Lohri) सिक्ख धर्म के लोगों का प्रमुख त्यौहार है। हालांकि इस त्यौहार का सर्वाधिक महत्व पंजाब प्रांत में है।

परंतु फिर भी उत्तर भारत के कई राज्यों में सिक्ख धर्म के लोग होने के कारण इस पर्व को धूमधाम से मनाया जाता है।

हालांकि सिखों के अतिरिक्त अन्य धर्मों के लोग भी लोहड़ी का पर्व पूरे हर्षोल्लास से मनाते हैं। लोहड़ी के आगमन पर फसल काटी जाती है और नई फसल की बुवाई की जाती है।

इसीलिए इस पर्व को फसल के आगमन और खुशहाली के पर्व के रूप में देखा जाता है। इस त्यौहार को किसानों का नया साल भी माना जाता है।

फसलों के त्यौहार की मान्यता के अलावा भी इस त्यौहार को मनाने के पीछे कई धार्मिक मान्यताएं और कथाएं प्रचलित हैं ।

लोहड़ी क्यों मनाई जाती है
Happy Lohri

लोहड़ी का अर्थ – Meaning of Lohri

लोहड़ी का शाब्दिक अर्थ इस प्रकार कहा जा सकता है कि लोहड़ी शब्द 3 अक्षरों से मिलकर बना है। इसमें का अर्थ है लकड़ी, ओह अर्थात गोहा जिसका मतलब है सूखे उपले तथा ड़ी अक्षर का मतलब रेवड़ी से है।

इस प्रकार लोहड़ी को इस तरह परिभाषित किया जा सकता है –

ल (लकड़ी) + ओह ( गोहा = सूखे उपले ) + ड़ी ( रेवड़ी ) = लोहड़ी

लोहड़ी पर्व मनाने का उद्देश्य – Purpose of Celebrating Lohri Festival

अधिकांश त्यौहार प्रकृति के परिवर्तन से जुड़े हैं अर्थात त्यौहार ऋतुओं के परिवर्तन के सूचक होते हैं। ऐसे ही पर्वों में से एक है लोहड़ी का पर्व। यह पर्व पौष मास (पूस ) की अंतिम रात्रि को मनाया जाता है।

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लोहड़ी के पर्व के बारे में माना जाता है कि इस त्यौहार की रात वर्ष की सबसे लंबी अंतिम रात होती है। इसके बाद से दिन धीरे-धीरे बढ़ने लगते हैं।

किसानों के लिए यह पर्व विशेष महत्व रखता है यह पर्व फसल काटने और नई फसल की बुआई का त्यौहार माना जाता है। इसे किसानों का नया साल भी कहा जाता है।

इस त्यौहार को सिक्खों के अलावा बाकी धर्मों के लोग भी मिलजुल कर पूर्ण उल्लास से मनाते हैं। इस प्रकार आपसी प्रेम, एकता को बढ़ावा देना भी इस पर्व का एक उद्देश्य है।

लोहड़ी का पर्व कब मनाया जाता है ? When Lohri Festival is Celebrated ?

लोहड़ी का त्यौहार हिन्दू कैलेंडर के अनुसार पौष माह के अंतिम दिन मनाया जाता है। और अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह पर्व मकर संक्रांति से एक दिन पहले अर्थात 13 जनवरी को मनाया जाता है।

लोहड़ी को सर्दियों का मौसम समाप्त होने का प्रतीक भी माना जाता है। क्योंकि इसके बाद से दिन बड़े होने लगते हैं और रातें छोटी।

लोहड़ी 2023 डेट – Lohri 2023 Date

लोहड़ी का पर्व मकर संक्रांति से एक दिन पहले अर्थात 13 जनवरी को मनाया जाता है। इस बार मकर संक्रांति 15 जनवरी को है अतः 2023 में लोहड़ी का त्यौहार 14 जनवरी दिन शनिवार को मनाया जाएगा।

लोहड़ी 2023 मुहूर्त – Lohri 2023 Muhurt

लोहड़ी को कई अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है, इसे लाल लोई के नाम से भी जानते हैं। साल 2023 में लोहड़ी का मुहूर्त रात 08:57 पर है।

लोहड़ी क्यों मनाई जाती है ?/लोहड़ी का इतिहास – Why Lohri is Celebrated ? /History of Lohri

लोहड़ी त्यौहार को पूर्व में तिलोड़ी के नाम से जानते थे। तिलोड़ी शब्द 2 शब्दों तिल और रोड़ी (गुड़ की रोड़ी ) से मिलकर बना है। इस शब्द का अपभ्रंश होते-होते अब यह तिलोड़ी से लोहड़ी बन गया।

दोस्तों, यहां हम आपको लोहड़ी के इतिहास के बारे में बताने जा रहे हैं। दरअसल लोहड़ी का इतिहास या लोहड़ी क्यों मनाई जाती है, के कारणों की बात की जाए तो इसके पीछे कई कथाएं प्रचलित हैं।

उनमें से कुछ प्रचलित कथा हम आपको इस लेख लोहड़ी क्यों मनाई जाती है | Lohri Essay in Hindi, 2023 | इतिहास, महत्व, निबंध में बताने जा रहे हैं।

1.लोहड़ी पर सुनी जाती है सुंदरी-मुंदरी और दुल्ला भट्टीकी कहानी – Story of Dulla Bhatti and Sundri-Mundri

ऐसी मान्यता है कि मुगल शासक अकबर के समय में सुंदरी और मुंदरी नाम की दो लड़कियां रहती थीं। उनके माता-पिता नहीं थे, अतः उनका चाचा ही उनका पालन-पोषण करता था। एक बार उनका चाचा उन लड़कियों को राजा को उपहार स्वरूप देना चाहता था।

उन दिनों उसी क्षेत्र में दुल्ला भट्टी नाम का एक कुख्यात डाकू था, जो दिल से एक अच्छा इंसान था। सुंदरी-मुंदरी के चाचा के मंसूबों की भनक दुल्ला भट्टी को लगने पर उसने उन जालिमों से उन दोनों लड़कियों को छुड़ाया, और खुद योग्य वरों के साथ विधिवत रूप से उनकी शादी की।

दुल्ला भट्टी क्योंकि एक डाकू था अतः जिस जंगल में वह रहता था वहीं आग जलाकर उसने सुंदरी-मुंदरी का विधि-विधान से विवाह करवाया, और खुद ही उसने पिता का धर्म निभाते हुए उन दोनों लड़कियों का कन्यादान किया।

कहा जाता है कि सुंदरी-मुंदरी को देने के लिए दूल्हा के पास ज्यादा कुछ ना होने की वजह से उसने शगुन के रूप में लड़कियों की झोली में एक-एक सेर शक्कर डाल कर ही उनको विदा कर दिया था।

डाकू/विद्रोही होने के बावजूद भी दुल्ला भट्टी ने सुंदरी-मुंदरी के लिए एक पिता का फर्ज निभाया। दुल्ला भट्टी वास्तव में एक विद्रोही था। उसके पूर्वज राजपूत थे और वह पिंडी भट्टीयन के शासक थे।

उनका शासन संदल बार नामक स्थान पर था जो वर्तमान में पाकिस्तान में है। वास्तव में दुल्ला भट्टी सिक्खों का नायक था।

इसीलिए लोहड़ी के पर्व पर शाम को जलती हुई लोहड़ी के चारों ओर बैठकर दुल्ला भट्टी और सुंदरी-मुंदरी की कहानी सुनने-सुनाने की परंपरा चली आ रही है और इसका खास महत्व है।

2. माता सती की कथा – Story of Mata Sati

कुछ पौराणिक मान्यताओं के आधार पर ऐसा माना जाता है कि लोहड़ी का पर्व माता सती के अद्वितीय बलिदान को याद करते हुए हर साल मनाया जाता है।

माता सती की कथा के अनुसार एक बार उनके पिता राजा प्रजापति दक्ष ने अपने घर यज्ञ किया और उसमें अपनी पुत्री सती को आमंत्रित किया परंतु दामाद महादेव को नहीं।

साथ ही अपने जमाता महादेव का तिरस्कार किया, अपने पति के इस अपमान को माता सती सहन नहीं कर सकीं और स्वयं को यज्ञ के अग्निकुंड को समर्पित कर देती हैं। माना जाता है कि उस दिन को एक पश्चाताप की तरह हर साल लोहड़ी के रूप में मनाते हैं।

इसी पश्चाताप के तौर पर इस दिन लोग अपनी शादीशुदा बेटी और जमाई को घर आमंत्रित कर उन्हें भोजन कराते हैं और उपहार देकर उनका मान-सम्मान करते हैं, और उसे श्रंगार का समान भी देते हैं।

3.लोहड़ी मां की कथा – Story of Lohri Maa

लोहड़ी माता की कथा से नरवर किले  का इतिहास जुड़ा हुआ है, इसलिए अगर हम लोहड़ी माता की कथा सुनाने से पहले आपको नरवर के किले के बारे में संक्षिप्त जानकारी दे दें तो आपको संपूर्ण कथा जानने में आसानी होगी।

ग्वालियर से लगभग 60 किलोमीटर दूर स्थित शिवपुरी जिले का एक शहर है नरवर। इसी नगर के किले को नरवर का किला कहा जाता है।

यह किला एक ऐतिहासिक किला माना जाता है। इस किले से जुड़ी कई प्राचीन कथाएं भी प्रचलित हैं, उन्हीं में से एक कथा लोहड़ी माता की भी है।

नरवर किले का लगभग 200 वर्ष पुराना इतिहास है। यहां 19वीं सदी में ‘राजा नल’ का शासन हुआ करता था, उनकी राजधानी थी नरवर नगर। नरवर नगर को बीसवीं शताब्दी में नल पुर या निसदपुर के नाम से भी लोग जानते थे।

माना जाता है कि नरवर के किले की ऊंचाई समुद्र तल से 1600 फिट थी। नरवर का यह किला लगभग 7 किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। इसी किले के निचले हिस्से में लोड़ी माता का मंदिर स्थित है।

यह मंदिर अत्यधिक प्रसिद्ध है, इसकी बहुत अधिक मान्यता होने के कारण वहां बहुत से लोग माता के दर्शन हेतु जाते हैं, यह मंदिर उत्तर और मध्य भारत में बहुत अधिक प्रसिद्ध है।

राजा नल जुआ खेलने की बुरी आदत का शिकार थे। अपनी जुआ खेलने की बुरी आदत के कारण राजा नल अपना सारा राज्य और संपत्ति हार गए। बाद में राजा नल के पुत्र मारू ने नरवर को पुनः जीता। मारू को एक अच्छा राजा माना जाता है।

किले में बना लोहड़ी माता का मंदिर का इतिहास भी राजा नल के इतिहास से जुड़ा हुआ है। नरवर की स्थानीय दंतकथाओं के अनुसार माना जाता है कि लोहड़ी माता तांत्रिक विद्या में निपुण थीं । उन्हें धागे के ऊपर चलने में महारत हासिल थी।

एक बार लोहड़ी माता ने राजा नल के दरबार में अपना यह करतब दिखाया परंतु राजा नल का मंत्री जो लोहड़ी माता से ईर्ष्या रखता था, उसने वह धागा काट दिया जिसके कारण लोहड़ी माता का असामयिक निधन हो गया।

ऐसा माना जाता है कि तभी से लोड़ी माता के श्राप से नरवर का किला खंडहर में तब्दील हो गया। आधुनिक समय में लोहड़ी माता के भक्तों ने उनका मंदिर बनवाया, जिसमें प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में दूर-दूर से श्रद्धालु आकर लोहड़ी माता के दर्शन व पूजा-अर्चना करते हैं।

4. लोहड़ी क्यों मनाई जाती है, के पीछे कई कथाएं कही जाती हैं। उपरोक्त कथाओं के अलावा कुछ विद्वानों का मानना है की यह त्यौहार कबीर दास जी की पत्नी लोई के नाम पर उनकी याद में मनाया जाता है।

5. जबकि कुछ विद्वानों का मानना है कि कंस ने भगवान श्री कृष्ण का वध करने के लिए लोहिता नाम की एक राक्षसी को भेजा था। परंतु भगवान श्री कृष्ण ने उस राक्षसी का खेल-खेल में ही वध कर दिया था इसीलिए ये त्यौहार मनाया जाता है।

लोहड़ी का क्या महत्व है ? Significance of Lohri

लोहड़ी का पर्व सूर्य देवता और अग्नि देवता का आभार प्रकट करने का पर्व माना जाता है। इस पर्व को पंजाब राज्य में फसल कटने के बाद मनाते हैं।

लोहड़ी की अग्नि में लोग रेवड़ी, मूँगफली, तिल, गुड़ आदि डालते हैं और अग्नि देव और सूर्य देव का रबी की फसल की अच्छी पैदावार के लिए आभार व्यक्त करते हैं। इस पर्व पर गुड़ और तिल से बने खाद्यों का सेवन करना अच्छा माना जाता है।

लोहड़ी कैसे मनाई जाती है ? – How Lohri is Celebrated ?

सिख धर्म के लोगों के लिए लोहड़ी खास महत्व का त्यौहार है। वे लोग लोहड़ी का पर्व बड़े हर्षोल्लास और धूमधाम से मनाते हैं।

इस त्योहार से कुछ दिन पहले ही छोटे बच्चे मोहल्लो में लोहड़ी के गीत गाकर लोहड़ी की शाम के लिए मूंगफली, रेवड़ी, फुल्लियाँ ( मक्का की खीलें ) और लकड़ियां इकट्ठा करने लगते हैं।

लोहड़ी की शाम को घरों के आगे खुले प्रांगण में लोहड़ी जलाई जाती है। जलती आग के चारों ओर परिवार के सदस्य, रिश्तेदार और पड़ोसी बैठकर जलती लोहड़ी में मूंगफली, रेवड़ी और फुल्लियाँ डालते हैं।

जलती लोहड़ी के चारों ओर बैठकर सभी मूंगफली, रेवड़ी, फुल्लियाँ और गजक का आनंद लेते हैं, और सभी लोहड़ी के चारों ओर घूमते हुए नाचते गाते हैं।

सभी युवतियाँ जलती लोहड़ी के इर्द-गिर्द गिद्धा करती हैं और युवक बोलियाँ गाते हुए भांगड़ा करते हैं।

जिस घर में लोहड़ी पर्व से पहले कोई नई शादी हुई हो या किसी बच्चे का जन्म हुआ हो उस परिवार के लिए लोहड़ी का त्यौहार विशेष महत्व रखता है।

सभी लोग उस परिवार को विशेष रुप से बधाई देते हैं। नव वर-वधू को सभी आशीर्वाद देते हैं और सुखमय भविष्य की कामना करते हैं, तथा नवजात शिशु को भो सब सुखमय व स्वस्थ भविष्य का आशीर्वाद देते हैं।

उत्तरी भारत के पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, जम्मू कश्मीर आदि राज्यों में लोहड़ी का पर्व बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। मान्यताओं के अनुसार ऐसा विश्वास किया जाता है कि इस त्यौहार के दिन से ही दिन बड़े होने लगते हैं और रातें छोटी।

यह पर्व भारत में बड़े उल्लास के साथ मनाया जाता है। सिक्खों के अतिरिक्त हिन्दू धर्म के लोग भी इस पर्व को उतनी ही आस्था और उल्लास के साथ मनाते हैं। इस पर्व को अपने परिवार और परिजनों के साथ मिलकर खुशियां बाँटते हुए मनाया जाता है।

यह त्यौहार जनवरी माह के मध्य आता है, लोहड़ी का पर्व शरद ऋतु के विदा होने और वसंत के आगमन का प्रतीक भी माना जाता है।  

लोहड़ी पर गाया जाने वाला गीत -Lohri Song

लोहड़ी क्यों मनाई जाती है | Lohri Essay in Hindi, 2023 | इतिहास, महत्व, निबंध लेख में आपको वो गीत यहाँ लिख रहे हैं जिसे लोहड़ी के दिन शाम को लोहड़ी जलाकर लोग उसके चारों ओर बैठते हैं और लोहड़ी का ये गीत गाते हैं –

सुंदर मुंदरिए – हो

तेरा कौन विचारा – हो

दुल्ला भट्टी वाला – हो

दुल्ले ने धी ब्याही – हो

सेर शक्कर पायी – हो

कुड़ी दे जेबे पायी – हो

कुड़ी दा लाल पटाका – हो

कुड़ी दा शालू पाटा – हो

तेरा जीवे चाचा – हो

सानूं दे लोहड़ी – हो

तेरी जीवे जोड़ी – हो

लोहड़ी के प्रसाद में क्या-क्या होता है ?

लोहड़ी क्यों मनाई जाती है में आप जानेंगे- लोहड़ी का पर्व क्योंकि भीषण सर्दी के समय होता है, अतः परंपराओं के अनुसार इसके प्रसाद में कुछ ऐसी चीजें होती हैं जो हमारे शरीर को गर्मी प्रदान करती हैं। इसमें मुख्य रूप से निम्न वस्तुएं शामिल होती हैं –

  • मूंगफली
  • रेवड़ी
  • फुल्लियाँ (मक्का की खीलें )
  • तिल व गुड़ की गजक
  • मेवे
  • तिल

लोहड़ी पर्व के व्यंजन – Lohri Dishes

लोहड़ी पर्व पर मूंगफली, रेवड़ी, गजक विशेष रुप से खाए जाते हैं, साथ ही इस पर्व पर गुड और तिल से बने व्यंजनों का सेवन शुभ माना जाता है।

इस मौके पर सिख परिवारों में कई प्रकार के व्यंजन भी बनाए जाते हैं, इनमें मुख्य रूप से सरसों का साग और मक्का की रोटी बनाई जाती है, जिसे सब बड़े चाव से मिलजुल कर खाते हैं।

देश में निम्न राज्यों में मनाया जाता है लोहड़ी का पर्व –

यहाँ हम अपने लेख लोहड़ी क्यों मनाई जाती है | Lohri Essay in Hindi, 2023 | इतिहास, महत्व, निबंध  में आपको उन राज्यों के नाम बता रहे हैं जिन राज्यों में लोहड़ी का पर्व हर्षोल्लास से मनाया जाता है –

  • पंजाब
  • हरियाणा
  • जम्मू-कश्मीर
  • उत्तराखंड
  • दिल्ली
  • हिमाचल प्रदेश
  • प0 बंगाल
  • उड़ीसा

फसलों की कटाई-बुआई से जुड़ा पर्व है लोहड़ी –

वैसे तो इस पर्व को सभी धर्मों के लोग मिलजुल कर पूर्ण-सौहार्द से मनाते हैं , परंतु लोहड़ी प्रमुख रूप से सिक्ख धर्म के लोगों का प्रमुख पर्व माना जाता है।

सिक्ख लोग पंजाब प्रांत में बड़ी संख्या में रहते हैं, और उनमें से अधिकांश किसान हैं । पंजाब की समृद्धिशाली संस्कृति और संपन्नता इन सिक्ख किसानों के अथक परिश्रम की ही देन है ।

लोहड़ी के पर्व को फसल काटने की खुशी औरं नई फसल की बुआई का पर्व माना जाता है। लोहड़ी के त्यौहार को किसानों का नया साल भी माना जाता है।

विवाहित बहन- बेटियों का त्यौहार माना जाता है लोहड़ी –

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस त्यौहार को माता सती के पिता राजा दक्ष की गलती के प्रायश्चित के रूप में मनाया जाता है, इसलिए लोग अपनी विवाहित बहन और बेटियों को त्योहार पर आमंत्रित कर उनका आदर सत्कार करते हैं।

इस दिन नवविवाहित जोड़ो को भी पहली लोहड़ी के अवसर पर विशेष रुप से बधाई और आशीर्वाद दिया जाता है। साथ ही बच्चे के जन्म के बाद पहली लोहड़ी पर आशीर्वाद और उपहार दिए जाते हैं।

किसानों का नया साल माना जाता है लोहड़ी का पर्व –

लोहड़ी का पर्व फसलों की कटाई और बुआई का पर्व माना जाता है। इस पर्व पर किसान फसल काटकर बड़े हर्षोल्लास से अपने घर पर लाते हैं।

और फसल के घर आने का उत्सव लोहड़ी के रूप में मनाते हैं। पंजाब व कुछ अन्य राज्यों में लोहड़ी को किसानों के नए वर्ष के रूप में मनाया जाता है।

लोहड़ी का आधुनिक रूप – Modern Style of Lohri

पुराने समय में लोग लोहड़ी को उसके वास्तविक रूप में मनाते थे लकड़ियों का बड़ा सा अलाव जलाते थे और अग्नि में मूंगफली, रेबड़ी, फुल्लियाँ आदि डालते थे।

और पड़ोसी व रिश्तेदार समूह में जलती लोहड़ी के चारों ओर बैठकर रेबड़ी, मूँगफली, गजक आदि खाने का स्वाद लेते थे।

आज अन्य त्यौहारों की तरह लोहड़ी का पर्व भी लोग आधुनिक तरीके से मनाते हैं। वर्तमान समय की व्यस्तता, और त्यौहारों के प्रति लोगों का कम होता रुझान के कारण आजकल लोग त्यौहारों पर मात्र औपचारिकता पूरी करते हैं।

इस पर्व पर भी लोग थोड़ी सी लकड़ी जलाकर लोहड़ी की रस्म अदा कर देते हैं। वास्तव में लोहड़ी का सेलिब्रेशन आजकल परंपरागत ना होकर आधुनिक पार्टी के रूप में किया जाता है।

लोग प्रत्यक्ष रूप से एक दूसरे से कम ही मिलते हैं। इसके बजाय सोशल मीडिया पर अपने मित्रों और रिश्तेदारों को बधाई संदेश भेज कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर देते हैं।

लोहड़ी पर्व से जुड़े तथ्य – Facts About Lohri

  • लोहड़ी त्यौहार को पूर्व में तिलोड़ी के नाम से जानते थे। तिलोड़ी शब्द 2 शब्दों तिल और रोड़ी (गुड़ की रोड़ी ) से मिलकर बना है। इस शब्द का अपभ्रंश होते-होते अब यह तिलोड़ी से लोहड़ी बन गया।
  • लोहड़ी का पर्व सिख धर्म के लोगों का प्रमुख त्योहार माना जाता है।
  • उत्तर भारत के कई राज्यों में इस त्यौहार को बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
  • लोहड़ी के पर्व पर देश के अधिकांश राज्यों में अवकाश रहता है।
  • सिख धर्म के लोग इस त्योहार पर सरसों का साग और मक्का की रोटी बनाते और खाते हैं।
  • लोहड़ी की शाम को लोग अपने घर या किसी चौक पर लोहड़ी जलाते हैं और उसके चारों ओर बैठकर मूंगफली, रेवड़ी, गजक खाते हैं और नाचते गाते हैं।
  • एक मान्यता के अनुसार संत कबीर दास जी की पत्नी लोई के नाम पर इस पर्व का नाम लोहड़ी पड़ा।
  • लोहड़ी के पर्व को किसानों का नववर्ष भी माना जाता है।
  • लोहड़ी का पर्व मुख्य रूप से फसलों की कटाई और बुआई का पर्व माना जाता है।

निष्कर्ष – Conclusion

त्यौहार को यदि परिभाषित किया जाए तो कहा जा सकता है कि त्यौहार का अर्थ है अपनों के साथ खुशियां बांटना। इस आधार पर लोहड़ी पर यह परिभाषा सटीक बैठती है क्योंकि लोहड़ी मूँगफली, रेबड़ी, फुल्लियाँ, मेवा और गजक के साथ-साथ अपनों के साथ खुशियाँ बांटने का त्यौहार है

FAQs

प्रश्न – लोहड़ी 2023 में कब है ?

उत्तर- 14 जनवरी शनिवार के दिन

प्रश्न – लोहड़ी का क्या महत्व है ?

उत्तर – लोहड़ी फसल की कटाई और बुआई से जुड़ा पर्व है। सिक्ख धर्म के लोगों द्वारा इस पर्व को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। क्योंकि इस दिन गन्ने की फसल की कटाई की जाती है और फसलों की पूजा की जाती है। इस त्यौहार को किसानों का नया साल भी माना जाता है।

प्रश्न – लोहड़ी का प्रसिद्ध पर्व कब मनाया जाता है ?

उत्तर – लोहड़ी का पर्व प्रति वर्ष मकर संक्रांति से 1 दिन पहले अर्थात 13 जनवरी को मनाया जाता है।

प्रश्न – लोहड़ी क्यों मनाई जाती है ?

उत्तर – लोहड़ी सिख समुदाय के लोगों का प्रमुख त्योहार है। लोहड़ी को फसल की कटाई और नई फसल की बुआई से जुड़ा त्यौहार माना जाता है। परंतु इसके अतिरिक्त इस पर्व को मनाने के पीछे दुल्ला भट्टी, सुंदरी-मुंदरी, कबीर दास जी की पत्नी लोई और बालकृष्ण तथा राक्षसी लोहिता की कथा प्रचलित हैं, जिसके कारण लोहड़ी मनाई जाती है।

प्रश्न – लोहड़ी की शुरुआत कैसे हुई ?

उत्तर – लोहड़ी को पंजाब के कुछ स्थानों पर लोई के नाम से भी पुकारा जाता है। और इसके पीछे मान्यता है कि कबीर दास जी की पत्नी का नाम भी लोई था। उन्हीं के नाम पर इस पर्व को लोहड़ी कहा जाने लगा।

प्रश्न – लोहड़ी का मतलब क्या ?

उत्तर – लोहड़ी का शाब्दिक अर्थ इस प्रकार कहा जा सकता है कि लोहड़ी शब्द 3 अक्षरों से मिलकर बना है। इसमें ल का अर्थ है लकड़ी, ओह अर्थात गोहा जिसका मतलब है सूखे उपले तथा ड़ी अक्षर का मतलब रेवड़ी से है।

प्रश्न – लोहड़ी का प्रतीक क्या है ?

उत्तर – लोहड़ी के प्रतीक हैं ल (लकड़ी) + ओह ( गोहा = सूखे उपले ) + ड़ी ( रेवड़ी ) = लोहड़ी

प्रश्न – लोहड़ी कब शुरू हुई थी ?

उत्तर –यह त्यौहार मकर संक्राति से एक दिन पहले 13 जनवरी को हर वर्ष मनाया जाता हैं। लोहड़ी त्यौहार के उत्पत्ति के बारे में काफी मान्यताएं हैं जो की पंजाब के त्यौहार से जुडी हुई मानी जाती हैं। कई लोगो का मानना हैं कि यह त्यौहार जाड़े की ऋतु के जाने का द्योतक के रूप में मनाया जाता हैं।

प्रश्न – लोहड़ी पर क्या चढ़ाएं ?

उत्तर – इस दिन घर की पश्चिम दिशा में मां आदिशक्ति की प्रतिमा स्थापित करके सरसों के तेल का दीया जलाना चाहिए। फिर उनकी प्रतिमा पर बेलपत्र और सिंदूर चढ़ाना चाहिए, भोग में तिल के लड्डू चढ़ाने चाहिए। लोहड़ी की अग्नि प्रज्वलित करके उसमें मूंगफली, तिल के लड्डू, मक्का की खीलें चढ़ानी चाहिए।

प्रश्न – लोहड़ी में हम किस भगवान की पूजा करते हैं ?

उत्तर – लोहड़ी पंजाबी किसानों के लिए नए साल का प्रतीक है। इस दिन, किसान प्रार्थना करते हैं और कटाई शुरू होने से पहले अपनी फसलों के लिए आभार व्यक्त करते हैं और अग्नि देवता से प्रार्थना करते हैं कि वे अपनी भूमि को बहुतायत से आशीर्वाद दें।

प्रश्न – Lohri में किसकी पूजा की जाती है ?

उत्तर – लोहड़ी का त्योहार हमारे देश में कई स्थानों पर मनाया जाता है, इस दिन अग्नि देव, श्री कृष्ण और आदिशक्ति की पूजा की जाती है।

हमारे शब्द –

दोस्तों ! आज के इस लेख लोहड़ी क्यों मनाई जाती है | Lohri Essay in Hindi, 2023 | इतिहास, महत्व, निबंध में हमने आपको लोहड़ी क्यों मनाई जाती है के बारे में वृहत जानकारी उपलब्ध कराई है।

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